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अमरनाथ गुफा में हिम-शिवलिंग।अमरनाथ गुफा में हिम-शिवलिंग।

Amarnath Yatra : वैष्णो देवी से वापस आकर हम अमरनाथ यात्रा (Amarnath Yatra) के जम्मू स्थित भगवती नगर आधार शिविर पहुंचे। हम लोगों ने एक मिनी बस पूर्व में ही तय कर ली थी। अपने कागजातों की जांच करवाने के बाद हम कॉनवाय में शामिल अपनी बस में बैठ गये। श्रद्धालु शिविर में खड़ी रोडवेज की बस में भी अपने पास (टोकन) के दिन के अनुसार टिकट बुक करवा सकते हैं।

निर्भय सक्सेना

र शिव भक्त कामना करता है कि उसे जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के उत्तर-पूर्व में 135 किलोमीटर दूर स्थित पवित्र अमरनाथ गुफा (Amarnath Cave) में बाबा बर्फानी (Baba Barfani) के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो। सावन माह में हर कोई उनके दर्शन करना चाहता है। मुझे इस बार दो जुलाई को दूसरे जत्थे में बाबा बर्फानी के दर्शन का सौभाग्य मिला। सावन माह (अधिक मास समेत) में एक जुलाई 2023 से आरम्भ हुई 62 दिवसीय यात्रा 31 अगस्त 2023 तक चली।

एक जुलाई को यात्रा आरम्भ होने के साथ ही श्रद्धालु बम भोले-बम भोले करते हुए आगे बढ़ना शुरू हुए। भारी वर्षा और भूस्खलन के बावजूद इस कठिन यात्रा को पूरा कर वे अपने को सौभाग्यशाली मान रहे थे। मुझे भी बरेली के कुछ पत्रकारों और फोटो जर्नलिस्ट साथियों के साथ दो जुलाई 2023 को समुद्र तल से 13,600 फुट की ऊंचाई पर स्थित पवित्र गुफा में बाबा बर्फानी के दर्शन-पूजन का आवसर मिला।  उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन (उपजा) के बरेली के उपजा प्रेस क्लब से जुड़े इन साथियों में मेरे अलावा अशोक शर्मा,  शुभम ठाकुर, अशोक शर्मा “लोटा”, उमेश शर्मा, पुत्तन सक्सेना और विवेक मिश्रा शामिल थे। इसके अलावा सक्षम शर्मा, सुरेन्द्र मिश्रा “रामू” भी थे।

अमरनाथ

अमरनाथ यात्रा पर जाने का कार्यक्रम बनने पर हमने जिला अस्पताल में मेडिकल करवाया और पंजाब नेशनल बैंक में शुल्क जमा कर रजिस्ट्रेशन अप्रैल में ही करवा लिया। दर्शन करने के लिए दो जुलाई की तिथि आवंटित होते ही हम लोगों ने पहला काम ट्रेन में सीट आरक्षित करवाने का किया। बरेली से हम 27 जून को रवाना हुए और अगले दिन दोपहर 12 बजे के असपास जम्मू पहुंच गये। जम्मू तवी रेलवे स्टेशन के बाहर बने अमरनाथ यात्रा शिविर में कागजी खानापूर्ति कर हम लोगों ने अपने टोकन कार्ड बनवाए। रात्रि में एक होटल में विश्राम किया। 29 जून को संगर गांव में स्थित शिव खोड़ी गुफा में प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन करने के पश्चात हम कटड़ा के लिए रवाना हो गये। कटड़ा में रात्रि विश्राम के बाद हमने अगले दिन माता वैष्णो देवी के दर्शन किए।

अमरनाथ

वैष्णो देवी से वापस आकर हम अमरनाथ यात्रा (Amarnath Yatra) के जम्मू स्थित भगवती नगर आधार शिविर पहुंचे। हम लोगों ने एक मिनी बस पूर्व में ही तय कर ली थी। अपने कागजातों की जांच करवाने के बाद हम कॉनवाय में शामिल अपनी बस में बैठ गये। श्रद्धालु शिविर में खड़ी रोडवेज की बस में भी अपने पास (टोकन) के दिन के अनुसार टिकट बुक करवा सकते हैं। भगवती नगर में यात्रियों के खाने और रहने की निशुल्क व्यवस्था सरकार की ओर से सेना की कड़ी निगरानी में रहती है। हालांकि हम लोग रात में अपनी मिनी बस में ही सो गये। अगले दिन एक जुलाई को तड़के चार बजे हमारा कॉनवाय सेना के जवानों की निगरानी में बालटाल के लिए रवाना हुआ। रास्ते में करीब नौ बजे एक लंगर पर हमारी बस रुकी। वहां प्रसाधन साहित सभी सुविधाएं निशुल्क थीं। सभी ने फ्रेश होकर लंगर में चाय-नाश्ता किया। इसके बाद रामबन में काफिला फिर आधा घण्टे को रोका गया। सभी ने अपनी जरूरत के अनुसार चाय-नाश्ता अथवा भोजन लिया। सभी को हिदायत दी गयी कि थाली में उतना ही लें जितना खा सकें। डस्टबिन के पास लंगर वालों के स्वयंसेवक खड़े थे। किसी श्रद्धालु के थाली में जूठन छोड़ने पर वे आग्रह कर रहे थे कि बचा भोजन समाप्त करने के बाद ही खाली थाली डस्टबिन में रखें। श्रद्धालु लंगर में रखे दानपात्र में अपनी श्रद्धा के अनुसार धनराशि डाल या पेटीएम कर रहे थे।

अमरनाथ

यहां से काफिला बालटाल की ओर बढ़ा। शाम लगभग चार बजे बजे हम बालटाल पहुंचे। वहां स्कैनर से सामान की जांच कराने के बाद हम दोगाम में बदायूं के शिविर में पहुंचे। जिन श्रद्दालुओं की पहले से व्यवस्था नहीं होती है, वे भी कुछ अंशदान कर शिविर में ठहर सकते हैं। दो जुलाई को सुबह चार बजे आधार शिविर(Amarnath Yatra Base Camp) की लाइन में लगकर हमने अपने पत्रकों की जांच कराई। लगभग पांच बजे पवित्र गुफा के लिए 16.5 किलोमीटर की कठिन यात्रा शुरू हुई। मैंने घोड़े से लौटा-फेरी वाली यात्रा बुक की थी। हम लोग करीब 10 बजे पंजतरणी पहुंच गये। वहीं पर घोड़ा छोड़ दिया। पंजतरणी से गुफा तक की पैदल यात्रा दो किलोमीटर की थी। वहां खड़े पालकी वाले अनाप-शनाप किराया बता रहे थे। 67 वर्ष उम्र होने की वजह से मेरी सांस फूलने लगी। पवित्र गुफा के पास लगे मेडिकल कैम्प में मैंने ऑक्सीजन की जांच कराई और ग्लूकोज का पानी पिया। पूर्वाह्न 11 बजे हमने हिम-शिवलिंग के दर्शन किए। पंजतरणी वापस पहुंच कर मैं फिर घोड़े पर सवार हो गया। सायं छह बजे हम दोगाम में बदायूं के संजय पाराशरी के भण्डारे वाले टैंट में पहुंच गये।

Surkanda Shaktipeeth – सुरकण्डा धाम : शक्ति और प्रकृति के भव्य दर्शन

अगले दिन सवेरे पांच बजे बालटाल शिविर (Baltal Camp) से हमारा काफिला सेना के जवानों की निगरानी में वापसी की यात्रा पर रवाना हुआ। सायंकाल छह बजे के आसपास हम जम्मू पहुंच गये और पहले से बुक कराए गये मोटल में रात्रि विश्राम किया। अगले दिन यानी चार जुलाई को हमने जम्मू के प्रसिद्ध रघुनाथ मन्दिर, काली माता मन्दिर और जामवन्त गुफा (पीर खो) के दर्शन किए। पांच जून को हम सुबह सात बजे की ट्रेन में बैठकर देर रात्रि बरेली पहुंच गये।

ऐसे बनता है हिम-शिवलिंग (This is how Him Shivlinga is made)

अमरनाथ गुफा का विहंगम दृश्य।
अमरनाथ गुफा का विहंगम दृश्य।

गांदरबल जिले में बालटाल के पास स्थित अमरनाथ गुफा (Amarnath Cave) हिमालय की गोद में ग्लेशियरों और बर्फीले पहाड़ों से घिरी है। इस गुफा की लम्बाई 19 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर है। यह 11 मीटर ऊंची है। गर्मी के मौसम में कुछ दिनों को छोड़कर यह साल के ज्यादातर समय बर्फ से ढक रहती है। सबसे विशेष बात ये है कि इस पवित्र गुफा में प्रत्येक वर्ष हिम-शिवलिंग अपने आप प्राकृतिक तौर पर बनता है। वैज्ञानिकों के अनुसार गुफा में ऊपर से एक दरार से पानी की बूंदे टपकती हैं और फिर शिवलिंग का निर्माण होता है। काफी अधिक ठण्ड की वजह से पानी की ये बूंदें जम जाती हैं और शिवलिंग के आकार में ढलती हैं। आश्चर्य की बात यह है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है जबकि गुफा के आसपास आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह शिवलिंग चन्द्रमा के प्रकाश के आधार पर घटता-बढ़ता है। श्रावण पूर्णिमा को यह हिम-शिवलिंग(Snow-Shivalinga) अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है।

अमरनाथ क्षेत्र
अमरनाथ क्षेत्र

अमरनाथ की पौराणिक कथा (Amarnath mythology)

पौराणिक कथा है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से उनकी अमरता का कारण जानना चाहा। इस पर महादेव ने उन्हें अमर कथा सुनने को कहा। अमरकथा बांचने के लिए उचित स्थान को तलाशते हुए वे एक गुफा में पहुंच गये। इस गुफा में प्रवेश करने से पहले भगवान शिव ने नन्दी, चन्द्रमा, शेषनाग और गणेश भगवान को अलग-अलग जगहों पर छोड़ दिया। शिवजी ने गुफा के चारों ओर रहने वाले हर जीव को नष्ट करने का भी आदेश दिया ताकि कोई भी यह कथा ना सुन सके। कहते हैं कि जब भगवान भोलेनाथ ने यह कथा सुनाई तो कबूतर के एक जोड़े ने भी इसे सुन लिया और अमर हो गया। अन्त में यहीं पर भगवान शिव और माता पार्वती बर्फ से बने शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए। अमर कथा वाचन की वजह से यह गुफा कालान्तर में अमरनाथ गुफा के नाम से प्रसिद्ध हुई।

श्रद्धालुओं की सुरक्षा के फूल प्रूफ इन्तजाम (Fool proof arrangements for the security of devotees)

अमरनाथ

केन्द्र एवं जम्मू-कश्मीर सरकार ने अमरनाथ (Amarnath) जाने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए इस बार भी फूल प्रूफ योजना तैयार की थी। जम्मू में बनाया गया कन्ट्रोल कमाण्ड सेन्टर अमरनाथ तीर्थयात्रा पर कैमरों से नजर रखे रहा। जम्मू में जारी किए जाने वाले टोकन के आधार पर हर श्रद्धालु की ट्रैकिंग की जाती रही। आतंकवादी हमलों से बचाव के लिए यात्रा मार्ग पर सेना और अर्ध सैन्य बलों के 70 हजार से अधिक जवान तैनात किए गये थे। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर पुलिस भी कानून व्यवस्था बनाए रखने को लगाई गयी थी। यात्रा के लिए पहलगाम से सुबह 10 बजे तक चलकर घाटी की ओर नवयुग सुरंग को पार करने के लिए अन्तिम वाहन का समय शाम चार बजे जबकि अनन्तनाग की ओर से भोर में चार बजे चलकर मीर बाजार को पार करने के लिए अन्तिम वाहन का समय शाम चार बजे तय किया गया था। प्रतिदिन लगभग 14 हजार तीर्थयात्रिय़ों ने हिम-शिवलिंग के दर्शन किए। श्राइन बोर्ड के अनुसार इस बार बालटाल से दोगाम तक बैटरी चालित रिक्शा भी चलाए गये। घोड़े, पालकी और पिट्ठू वाले तीर्थयात्रियों को मनमाने रेट मांग कर परेशान न करें, इसके लिए उनके लिए बनाए गये कार्ड पर पूर्व बुकिंग अनिवार्य की गयी। घोड़े और पालकी के रेट सरकार की ओर से तय किए गये थे, इसके बावजूद घोड़े और पालकी वालों के चक्रव्यूह को भेद पाना आसान नहीं था। कुछ पुलिस वालों का संरक्षण मिलने के कारण वे पर्ची कटने के बाद भी तीर्थयात्रियों को पवित्र गुफा से काफी पहले ही छोड़ दे रहे थे और वहां पहले से खड़े पालकी और घोड़े वाले आगे की यात्रा के लिए काफी अधिक रुपयों की मांग कर रहे थे।

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