जटोली शिव मन्दिर के शिखर पर लगाया गया स्वर्ण कलश 11 फुट ऊंचा है जिसे मिलाकर मन्दिर की ऊंचाई करीब 122 फुट पहुंच गयी है। खास बात यह है कि मन्दिर का निर्माण पूरी तरह भक्तों द्वारा किए गये दान से ही हुआ है।
न्यूज हवेली नेटवर्क
कारोबार के सिलसिले में सोलन जाने का कार्यक्रम अचानक ही बना था। चण्डीगढ़ से सवेरे करीब सात बजे टैक्सी पकड कर हम तीन घण्टे में सोलन पहुंचे। जिस काम के लिए गये थे, वह एक-डेढ़ घण्टे में ही निपट गया। अभी पूरा दिन बाकी था। वापस चलें या फिर यहीं पर कुछ देऱ घूम लें, इस पर चर्चा कर ही रहे थे कि मेजबान कारोबारी मित्र ने सुझाव दिया कि यहां तक आये ही हैं तो जटोली शिव मन्दिर (Jatoli Shiv Temple) में भगवान भोलेनाथ के दर्शन भी कर लें जो यहां से करीब सात किलोमीटर दूर है और एशिया का सबसे ऊंचा शिव मन्दिर है।
तय हुआ कि मन्दिर में दर्शन कर भोजन के बाद ही चण्डीगढ़ वापसी की जाये और हम बढ़ चले जटोली शिव मन्दिर (Jatoli Shiv Temple) की ओर। बमुश्किल बीस मिनट में हम मंजिल पर पहुंच गये। सामने था दक्षिण-द्रविड़ शैली में बना भव्य शिव मन्दिर जिसके शिखर पर स्वर्ण कलश चमचमा रहा था। हिमाचल प्रदेश में ज्यादातर मन्दिर परम्परागत स्थानीय शैली में ही बनाये गये हैं, ऐसे में यह मन्दिर हमारे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था।
मान्यता है कि पौराणिक काल में भगवन शिव यहां कुछ समय के लिए रहे थे। 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानन्द परमहंस नाम के एक संन्यासी यहां आये। उनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देशन में ही जटोली में इस शिव मन्दिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। वर्ष 1974 में उन्होंने ही इसकी नींव रखी। हालांकि 1983 में उन्होंने समाधि ले ली लेकिन मन्दिर का निर्माण कार्य नहीं रुका। मंदिर प्रबन्धन कमेटी ने जिम्मेदारी बखूबी सम्भाली। इस मन्दिर को पूरी तरह तैयार होने में तकरीबन 39 साल का समय लगा। मन्दिर के शिखर पर लगाया गया स्वर्ण कलश 11 फुट ऊंचा है जिसे मिलाकर मन्दिर की ऊंचाई करीब 122 फुट पहुंच गयी है। खास बात यह है कि मन्दिर का निर्माण पूरी तरह भक्तों द्वारा किए गये दान से ही हुआ है। देश के साथ ही विदेशी भक्तों ने इसके लिए खुले हाथों से धनराशि दी थी। यहां हर रविवार को भण्डारा लगता है।

इस विशाल मन्दिर में कई स्थानों पर लगे पत्थरों को थपथपाने पर डमरू जैसी आवाज निकलती है। मन्दिर के चारों ओर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित की गयी हैं। यहां स्फटिक शिवलिंग विराजमान है। इसके अलावा यहां भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमाएं भी स्थापित की गयी हैं। सड़क से 100 सीढ़ियां चढ़ कर भगवान शिव के दर्शन होते हैं। मन्दिर के कोने में ही स्वामी कृष्णानन्द परमहंस की एक गुफा है। इस गुफा में भी एक शिवलिंग स्थापित है।
अद्भुत है यहां का पानी
मान्यता है कि जटोली (Jatoli) में पानी की समस्या थी जिससे राहत दिलाने के लिए स्वामी कृष्णानन्द परमहंस ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए जिसके बाद स्वामी जी ने अपने त्रिशूल से प्रहार कर जमीन से पानी निकला। तब से लेकर आज तक यहां कभी भी पानी की समस्या नहीं हुई। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस पानी को पीने से गम्भीर से गम्भीर बीमारी भी ठीक हो सकती है।
जटोली के आस-पास के घूमने योग्य स्थान (Places to visit around Jatoli)
सोलन : समुद्र की सतह से 1,600 मीटर की औसत ऊंचाई पर स्थित इस खूबसूरत पर्वतीय नगर का नाम माता शूलिनी देवी के नाम पर पड़ा है। इस शहर को “मशरूम सिटी” के नाम से भी जाना जाता है। मशरूम उत्पादन सोलन से दो किलोमीटर दूर चम्बाघाट में किया जाता है। प्रसिद्ध पाण्डव गुफा सोलन की करोल पहाड़ी के आंचल में है। मान्यता है कि यह पाण्डवों के समय में लाक्षागृह के नीचे बनाई गयी थी। यहां के ऊंचे पर्वतों और खूबसूरत दृश्यों का अद्भुत नजारा पर्यटकों को बार-बार अपनी ओर खींचता है।
शूलिनी माता मन्दिर :

माता शूलिनी को समर्पित यह मन्दिर सोलन के सबसे पुराने और पवित्रतम मन्दिरों में से एक है। यह बघाट रियासत से सम्बन्धित है। शूलनी माता को बघाट राजघराने की कुलदेवी भी कहा जाता है। यहां हर साल जून में वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है।
कसौली :

समुद्री की सतह से 1795 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कसौली हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले का एक छावनी नगर है। इसकी प्राकृतिक सुन्दरता की वजह से इसे “छोटा शिमला” भी कहा जाता है ।यह फर, रोडोडेंड्रॉन, अखरोट, ओक और विलो के लिए भी प्रसिद्ध है। कसौली से रात के समय शिमला की छटा देखते ही बनती है। यहां की सबसे ऊंची जगह हैमंकी प्वाइन्ट। यहां से प्रकृति की दूर−दूर तक फैली अनुपम छटा दिखाई पड़ती है।
कुठार का किला :

लगभग 800 वर्ष पुराना यह किला सोलन क्षेत्र का सबसे पुराना ऐतिहासिक स्मारक है। हालांकि इसकी नयी संरचना 80 साल पुरानी है। इसके परिसर में ताजे पानी के कई झरने हैं।
बड़ोग : जटोली शिव मन्दिर से करीब 16 किमी दूर स्थित बड़ोग एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है जो कालका-शिमला टॉय ट्रेन का एक स्टेशन भी है। इसको 20वीं सदी की शुरुआत में कालका-शिमला रेल ट्रैक के निर्माण के दौरान बसाया गया था।
ऐसे पहुंचें जटोली शिव मन्दिर (How to reach Jatoli Shiv Temple)
वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा चण्डीगढ़ इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 87 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग : चण्डीगढ़ रेलवे जंक्शन यहां से करीब 70 किमी पड़ता है। सोलन विश्व प्रसिद्ध कालका-शिमला नैरो गेज लाइन पर स्थित है जिस पर टॉय ट्रेन चलती है। यूनेस्को ने इसको विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया है। कालका जंक्शन के लिए सोलन, दिल्ली, देहरादून, कोलकाता आदि प्रमुख शहरों से ट्रेन सेवा है।
सड़क मार्ग : जटोली शिव मन्दिर सोलन से करीब सात किमी, कसौली से लगभग 35 किमी और चण्डीगढ़ शहर से करीब 76 किलोमीटर दूर है। सोलन से राजगढ़ रोड होते हुए इस मन्दिर तक पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 22 सोलन से होकर गुजरता है। यह एक डिफेन्स रोड है जो दिल्ली, अम्बाला, चण्डीगढ़ और देहरादून को चीन की सीमा से जोड़ती है।
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