वीरनारायण मन्दिर एक वैष्णव मन्दिर है और तीनों मन्दिरों में भगवान विष्णु की मूर्तियां हैं जो उनके विभिन्न स्वरूपों को दर्शाती हैं। केन्द्रीय मन्दिर (पुराने मंन्दिर) में चार हाथों वाले नारायण (वीरनारायण) की 2.4 मीटर ऊंची मूर्ति है जिसे होयसल कला के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक माना जाता है।
न्यूज हवेली नेटवर्क
Veeranarayan Temple: कुछ लोग भले ही इसे संय़ोग कहते हों पर दुनियाभर के वास्तुकार इस मन्दिर को कर्नाटक की प्राचीन होयसल वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में से एक मानते हैं। इसके साथ भारतीय खगोलविज्ञान भी जुड़ा है। इन दोनों के संयोजन का चमत्कार है बारहवीं शताब्दी में बना वीरनारायण मन्दिर (Veeranarayan Temple)। हर साल ठीक 23 मार्च को सूर्य इस मन्दिर के मध्य में आतें हैं और यह दैवीय प्रकाश से जगमगा उठता है। (Veeranarayan Temple: Every year Suryadev comes to see Lord Vishnu)
यह मन्दिर त्रिकुटा है। त्रिकुटा शब्द को तीन मन्दिरों के समूह के लिए प्रयोग किया जाता है। यानी वीरनारायण मन्दिर (Veeranarayan Temple) परिसर में कुल तीन मन्दिर हैं- पूर्व की ओर केन्द्र में श्री वीरनारायण, उत्तर की ओर श्री वेणुगोपाल और दक्षिण की ओर श्री योगनरसिंह। चिक्कामंगलुरु (चिकमंगलूर) शहर के 29 किलोमीटर दक्षिण पूर्व बेलावडी में स्थित इस मन्दिर का निर्माण होयसल नरेश राजा वीरा बल्लाला द्वितीय ने बारहवीं शताब्दी में करवाया था। सोपस्टोन से निर्मित तीनों मंदिरों में से प्रत्येक में एक पूर्ण अधिरचना (मन्दिर के शीर्ष पर टॉवर) है और यह होयसल (Hoysala) राजाओं द्वारा निर्मित सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। बेलूर और हलेबिदु के मन्दिर जहां अपनी जटिल मूर्तियों के लिए जाने जाते हैं, वहीं यह मन्दिर अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।
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यह एक वैष्णव मन्दिर है और तीनों मन्दिरों में भगवान विष्णु की मूर्तियां हैं जो उनके विभिन्न स्वरूपों को दर्शाती हैं। केन्द्रीय मन्दिर (पुराने मंन्दिर) में चार हाथों वाले नारायण (वीरनारायण) की 2.4 मीटर ऊंची मूर्ति है जिसे होयसल कला के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक माना जाता है। यह अलंकृत मूर्ति पद्मासन (कमल आसन) पर खड़ी है। दक्षिणी मन्दिर में एक गरुड़ आसन सहित वेणुगोपाल (बांसुरी बजाते भगवान कृष्ण) की 2.4 मीटर ऊंची प्रतिमा है। उत्तरी मन्दिर में योग मुद्रा में बैठे योगनरसिंह की 2.1 मीटर ऊंची मूर्ति है।
वीरनारायण मन्दिर (Veeranarayan Temple) परिसर में दो मन्दिर एक-दूसरे के सामने हैं और एक विस्तृत और विशाल खुले मण्डप के दोनों ओर स्थित हैं जिसमें सैंतीस खण्ड हैं। मन्दिर परिसर में दो बन्द मण्डप हैं। इनमें एक 13 खण्डों वाला और दूसरा नौ खण्डों वाला है जिसके अन्त में एक केन्द्रीय मन्दिर है। यह तीसरा मन्दिर एक पुराना निर्माण है जिसमें होयसल मन्दिर वास्तुकला के सभी मूल तत्व शामिल हैं। इस पुराने मन्दिर की भीतरी दीवारें सादी हैं लेकिन इसकी छत की सज्जा उत्कृष्ट कोटि की है। मन्दिर परिसर में कुल 39 खण्ड और कई स्तम्भ हैं।
मान्यता है कि बेलावडी ही महाभारत काल का एकचक्रनगर है। महाभारत के अनुसार, पाण्डव राजकुमार भीम ने यहीं पर बकासुर का वध कर ग्रामीणों के जीवन की रक्षा की थी।
ऐसे पहुंचें
वायु मार्ग : चिक्कामंगलुरु में एक छोटा एयरपोर्ट है जिसका निर्माण कार्य दिसम्बर 2022 में पूरा हुआ है। बंगलुरु का कैम्पेगौड़ा इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 261 किमी जबकि मैसूर एय़रपोर्ट लगभग 185 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग : यहां से चिक्कामंगलुरु रेलवे स्टेशन 28 किलोमीटर है। बंगलुरु, मैसूर, धारवाड़, पुडुचेरी, मुम्बई के दादर, गोवा के वास्को डि गामा आदि से यहां के लिए ट्रेन सेवा है।
सड़क मार्ग : बेलावडी चिक्कामंगलुरु-जावागल राजमार्ग पर चिक्कामंगलुरु शहर से 29 किमी दक्षिण पूर्व में है। बंगलुरु से चिक्कामंगलुरु करीब 242 किमी पड़ता है।
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