इस मन्दिर का निर्माण कच्छप राजा देवपाल ने 1323 ईस्वी (विक्रम संवत 1383) में करवाया था। यह रहस्यमयी मन्दिर इकन्तेश्वर (एकट्टसो) महादेव मन्दिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहां तक पहुंचने के लिए 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
न्यूज हवेली नेटवर्क
मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के चौसठ योगिनी मन्दिर (Chausath Yogini Temple) पर नजर पड़ते ही वह कुछ जाना-पहचाना सा लगा पर यह तो हमारी पहली मुरैना यात्रा थी! फिर ऐसा क्या था जिसने दिमाग को खदबदा दिया था? दरअसल इस प्राचीन मन्दिर पर नजर पड़ते ही दिल्ली के लुटियंस जोन में स्थित पुराने संसद भवन की तस्वीर सामने आ गयी। अंग्रजों का बनवाया अपना वही पुराना संसद भवन जिसे “लोकतन्त्र का मन्दिर” भी कहा जाता था। अजब संयोग है, कभी तन्त्र-मन्त्र का केन्द्र रहे एक प्राचीन मन्दिर और दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र की अपने समय की सबसे बड़ी पीठ के भवन में प्रथमदृष्या समानता नजर आती है।
भारत के तत्कालीन अंग्रेज शासकों ने अपनी राजधानी को कलकत्ता (कोलकाता) से दिल्ली ले जाने से पहले वहां एक विशाल परिसर बनाने की योजना बनायी थी। इसे साकार करने के लिए ब्रिटिश वास्तुकार एड्विन लैंडसियर लूट्यन्स को वर्ष 1912 में भारत बुलाया गया। लूट्यन्स ने वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन) समेत तमाम अन्य भवनों का डिजायन तैयार करने से पहले भारतीय वास्तुकला का गहन अध्ययन करने के साथ ही तामाम प्राचीन भवनों का भी अवलोकन करने के लिए देशभर का दौरा किया। माना जाता है कि इसी दौरान वह संभवतः मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में पडावली के पास मितावली नामक गांव में स्थित चौसठ योगिनी मन्दिर भी पहुंचे होंगे। बहरहाल, स्वयं लूट्यन्स ने इसका कहीं कोई जिक्र नहीं किया है। हां, इस बात पर आधुनिक वास्तुकार भी एकमत हैं कि राष्ट्रपति भवन और पुराना संसद भवन पश्चिमी, भारतीय एवं बौद्ध वास्तुकला का बेहतरीन मिश्रण हैं।

मुरैना जिला मुख्यालय से 30 और ग्वालियर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित चौसठ योगिनी मन्दिर (Chausath Yogini Temple) भारत के उन चौसठ योगिनी मन्दिरों में से एक है जो अभी भी अच्छी दशा में बचे हैं। यह मन्दिर एक वृत्तीय आधार पर निर्मित है और इसमें 64 कक्ष हैं। गोलाकार मन्दिर में अन्दर की तरफ जिस तरह के खम्भे हैं, बिल्कुल उसी तरह के पुराने संसद भवन में बाहर की तरफ के खम्भे दिखते हैं। जिस तरह मन्दिर के अन्दर बीच में एक बड़े कक्ष में मन्दिर है, वैसे ही पुराने संसद भवन के बीचों-बीच एक बड़ा हॉल है जिसे सेन्ट्रल हॉल कहा जाता है।
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इस मन्दिर का निर्माण कच्छप राजा देवपाल ने 1323 ईस्वी (विक्रम संवत 1383) में करवाया था। यह रहस्यमयी मन्दिर इकन्तेश्वर (एकट्टसो) महादेव मन्दिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहां तक पहुंचने के लिए 200 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। ऊपर जाकर बड़ा मैदान है जहां इसका मुख्य द्वार है। ऊंचाई पर मौजूद मुख्य द्वार पर जैसे ही खड़े होते हैं, मन्दिर के बीचों-बीच स्थित शिवलिंग के दर्शन होते हैं। इसी शिवलिंग को एकट्टसो महादेव कहते हैं। अन्दर जाने पर बीच प्रांगण में वृत्ताकार मन्दिर है। यहां दो शिवलिंग हैं। मन्दिर में 64 कमरे हैं और इन सभी में भव्य शिवलिंग स्थापित है। कहा जाता है कि सभी कमरों में शिवलिंग के साथ ही देवी योगिनी की मूर्ति भी स्थापित की गयी थी जिसकी वजह से इसका नाम चौसठ योगिनी मन्दिर रखा गया। हालांकि कई मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं। इसके चलते अब बची मूर्तियों को दिल्ली स्थित संग्रहालय में रख दिया गया है। इस मन्दिर में 64 कक्ष हैं जबकि पुराने संसद भवन में 340 कक्ष हैं। इस मन्दिर में 101 खम्भे हैं जबकि पुराना संसद भवन 144 खम्भों पर टिका हुआ है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस मन्दिर को एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक घोषित किया है।
तन्त्र-मन्त्र का प्राचीन केन्द्र

यह मन्दिर कभी तन्त्र-मन्त्र के लिए दुनियाभर में जाना जाता था। यहां भगवान शिव की योगिनियों को जागृत करने का कार्य होता था। सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित की शिक्षा भी दी जाती थी। इसको “तंत्र विश्वविद्यालय” भी कहते थे। दुनियाभर से लोग यहां तन्त्र-मन्त्र विद्या सीखने के लिए आते थे।
स्थानीय लोगों का मानना है कि आज भी यह मन्दिर भगवान शिव की तन्त्र साधना के कवच से ढका है। मान्यता है कि चौसठ योगिनियां मां काली का अवतार हैं। घोर नाम के राक्षस के साथ युद्ध लड़ते समय माता आदिशक्ति काली ने इन रूपों को धारण किया था। इन चौसठ योगिनियों में 10 महाविद्याओं और सिद्ध विद्याओं की गिनती भी की जाती है। इस मन्दिर में आज भी रात में रुकने की मनाही है। इन्सान तो क्या पशु-पक्षी भी रात में यहां दिखाई नहीं देते।
वाटर हार्वेस्टिंग की बेहतरीन व्यवस्था
करीब 700 साल पुराना यह मन्दिर वाटर हार्वेस्टिंग का बेहतरीन उदाहरण है। इसके मुख्य केन्द्रीय मन्दिर से बारिश का पानी पाइपलाइन के जरिये जमीन के अन्दर पहुंचाने की व्यवस्था है।
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चौसठ योगिनियों के नाम
1.बहुरूप 2.तारा 3.नर्मदा 4.यमुना 5.शान्ति 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी 8.ऐन्द्री 9.वाराही 10.रणवीरा 11.वानर-मुखी 12.वैष्णवी 13.कालरात्रि 14.वैद्यरूपा 15.चर्चिका 16.बेतली 17.छिन्नमस्तिका 18.वृषवाहन 19.ज्वाला कामिनी 20.घटवार 21.कराकाली 22.सरस्वती 23.बिरूपा 24.कौवेरी 25.भलुका 26.नारसिंही 27.बिरजा 28.विकतांना 29.महालक्ष्मी 30.कौमारी 31.महामाया 32.रति 33.करकरी 34.सर्पश्या 35.यक्षिणी 36.विनायकी 37.विंध्यवासिनी 38. वीर कुमारी 39. माहेश्वरी 40.अम्बिका 41.कामिनी 42.घटाबरी 43.स्तुती 44.काली 45.उमा 46.नारायणी 47.समुद्र 48.ब्रह्मिनी 49.ज्वालामुखी 50.आग्नेयी 51.अदिति 52.चन्द्रकान्ति 53.वायुवेगा 54.चामुण्डा 55.मूरति 56.गंगा 57.धूमावती 58.गान्धार 59.सर्व मंगला 60.अजिता 61.सूर्यपुत्री 62.वायु वीणा 63.अघोर 64.भद्रकाली।
भारत में चौसठ योगिनी मन्दिर (Chausath Yogini Temple in India)
देश में हालांकि कई चौसठ योगिनी मन्दिर (Chausath Yogini Temple) हैं लेकिन इनमें चार को प्रधान माना गया है। इनमें से दो मध्य प्रदेश और दो ओडिशा में हैं। ये मन्दिर हैं-
1. चौसठ योगिनी मन्दिर, मुरैना (मध्य प्रदेश)
2. चौसठ योगिनी मन्दिर, खजुराहो (मध्य प्रदेश)
3. चौसठ योगिनी मन्दिर, हीरापुर (ओडिशा)
4. चौसठ योगिनी मन्दिर रानीपुर झारल (ओडिशा)

ऐसे पहुंचें चौसठ योगिनी मन्दिर (How to reach Chausath Yogini Temple)
हवाई मार्ग : मितावली का निकटतम हवाईअड्डा ग्वालियर एयरपोर्ट है जो यहां से लगभग 30 किलोमीटर दूर स्थित है।
ट्रेन मार्ग : मितावली का निकटतम रेलवे स्टेशन गोहद रोड है जो यहां से लगभग 18 किलोमीटर है। मालनपुर रेलवे स्टेशन से यह मन्दिर 20 किमी पड़ता है।
सड़क मार्ग: मितावली मुरैना से लगभग 30 और ग्वालियर से 40 किमी दूर है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से मुरैना करीब 467 किमी दूर है।
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