नैनीताल से करीब 22 किलोमीटर दूर समुद्र की सतह से 1370 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भीमताल अपनी झील, प्राकृतिक सौन्दर्य और भीमेश्वर महदेव मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। भीमताल की झील आकार में नैनीताल की झील से बड़ी है। यह एक त्रिभुजाकार झील है जिसकी लम्बाई 1674 मीटर, चौड़ाई 447 मीटर और गहराई 15 से 50 मीटर तक है।
डॉ. मंजू तिवारी
जागेश्वर धाम में दर्शन-पूजन के अगले दिन अल्मोड़ा से वापसी की यात्रा शुरू हुई जिसका पहला पड़ाव था भीमताल (Bhimtal)। राष्ट्रीय राजमार्ग 109 पर होते हुए वाया भवाली हम करीब ढाई घण्टे में भीमताल (Bhimtal) पहुंचे। तल्लीताल में सरकारी अस्पताल के पास मैं कार से उतर गयी जबकि हिना परिवार समेत हल्द्वानी चली गयी। यहां मेरी दीदी-जीजाजी रहते हैं। अस्पताल के पास से ही सीढ़ियों वाला रास्ता उनके घर तक जाता है।
पहाड़ों में सर्दी के मौसम में कार, बस आदि से बाहर निकलते ही बहुत तेज सर्दी महसूस होती है, कई बार लगता है कि पूरा शरीर हिल रहा हो। फिर यह तो माघ माह की 10वीं तिथि थी यानी साल के सबसे ठण्डे दिनों में से एक। पास ही में स्थिति झील की तरफ से आने वाली हवा इस ठण्ड को और बढ़ाने के ईंधन का काम कर रही थी। सर्दी से कंपकंपाते और पत्थरों की सीढ़ियों को नापते हुए मैं काफी ऊंचाई पर स्थित दीदी के घर पहुंची तो कुछ राहत महसूस हुई।
प्रातःकाल मेरी नींद टूटी तो दीदी गोठ (पशुशाला) में गाय का दूध निकाल रही थीं। सूरज ने प्रकाश फैलाना शुरू किया तो मैं कुर्सी लेकर धूप में बैठ गयी। यहां से सलड़ी, काठगोदाम और हल्द्वानी की तरफ के पहाड़ों और घाटियों के शानदार परिदृश्य नजर आ रहे थे। दीदी-जीजाजी ने अपने अहाते में क्यारियां में कई तरह की सब्जियां लगा रखी थीं। फलों के पेड़ और बेलें भी फैली थीं। हालांकि सिंचाई के लिए पानी की कमी और बन्दरों के उत्पात की वजह से इस मेहनत का पर्याप्त फल प्राप्त नहीं हो पाता है। यहां एक बेल पर परवल के आकार के सैकड़ों हरे रंग के फल लगे हुए थे जिनका रंग पकने पर लाल हो जाता है। इन फलों को पकना शुरू होते ही बन्दर खा जाते हैं। वहां कई पेड़ों पर ऐसे फल थे जिनको बन्दरों ने इस तरह से खाया था कि केवल बाहर के छिलके ही डालियों पर लटके दिखाई दे रहे थे। दरअसल, यह केवल भीमताल (Bhimtal) की ही समस्या नहीं है, पहाड़ों में सोमेश्वर, भवाली समेत कई स्थानों पर बन्दरों, भालुओं और गुलदार (तेंदुए) का आतंक है। बन्दर फल-सब्जियों की फसल बर्बाद कर देते हैं जबकि भोजन की तलाश में निकले भालू आलू की तैयार फसल को खोद-खादकर नुकसान पहुंचाते हैं।
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तल्लीताल के ऊंचाई वाले क्षेत्र में माल्टा और पहाड़ी नींबू के अनेक पेड़ हैं। मुझे नीबू और सन्तरी रंग के माल्टों को अपने हाथों से तोड़ने पर बड़ा मज़ा आया। मायके के गांव की याद आयी जहां जाने पर मैं वृक्षों पर लगे हुए फलों को तोड़कर उसी समय खाती थी और शाक-सब्जियों को ताजा-ताज़ा तोड़कर पकाती थी।
नैनीताल से करीब 22 किलोमीटर दूर समुद्र की सतह से 1370 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भीमताल अपनी झील (Bhimtal Lake), प्राकृतिक सौन्दर्य और भीमेश्वर महदेव मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। भीमताल (Bhimtal) की झील आकार में नैनीताल की झील से बड़ी है। यह एक त्रिभुजाकार झील है जिसकी लम्बाई 1674 मीटर, चौड़ाई 447 मीटर और गहराई 15 से 50 मीटर तक है। स्थानीय मान्यता है कि पाण्डु पुत्र भीम ने भूमि को खोद कर इस झील की रचना की थी। पर्यटक यहां पर नौकायान का आनन्द ले सकते हैं। यहां का एक और आकर्षण झील के मध्य में स्थित टापू पर बना एक्वेरियम है। पर्यटक इस मछलीघर पर नाव द्वारा आ-जा सकते हैं। झील के डांट वाले तट से टापू की दूरी 98 मीटर है। नैनीताल की तरह ही यहां भी झील के ऊंचाई वाले क्षेत्र को मल्लीताल जबकि इसके ठीक दूसरी ओर के निचाई वाले क्षेत्र को तल्लीताल कहते हैं जो हल्द्वानी मार्ग के दोनों ओर बसा हुआ है। (Bhimtal: The largest lake of Nainital district)
सन् 1841 में पीटर बैरन द्वारा नैनीताल की खोज किए जाने से पहले भीमताल झील (Bhimtal Lake) ही प्रसिद्ध थी। अंग्रेजों के शासनकाल में 1880 में यहां एक चालीस फिट ऊंचा बांध बनाया गया जिसे स्थानीय बोली में डांट कहते हैं। पत्थरों से बनाए गये इस बांध की चिनाई उड़द की दाल और चूने के मसाले से की गयी है। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के नाम पर इसका नाम विक्टोरिया भीमताल डैम रखा गया। डांट को आप भीमताल का हृदय स्थल कह सकते हैं। यहां पर बस और टैक्सी स्टैण्ड के अलावा कई दुकानें और रेस्तरां हैं। यहीं से एक सड़क नौकुचियाताल जाती है जो अपनी नौ कोनों वाली झील, प्राकृतिक सौन्दर्य और साहसिक खेलों के लिए प्रसिद्ध है।
डांट से बिल्कुल लगा हुआ एक मन्दिर है जिस तक कुछ सीढ़ियां उतर कर पहुंचा जा सकता है। यह एक प्राचीन मन्दिर है, शायद भीम का ही स्थान हो या भीम की स्मृति में बनाया गया हो। आज भी यह मन्दिर भीमेश्वर महादेव मन्दिर के रूप में जाना और पूजा जाता है। मन्दिर के वर्तमान भवन का निर्माण 17वीं शताब्दी में चन्द वंश के राजा बाज बहादुर (1638-78 ईसवी) ने करवाया था।
भीमताल का एक बड़ा आकर्षण बटरफ्लाई म्यूजियम है। फ्रेडरिक स्मेटसेक सीनियर द्वारा स्थापित इस संग्रहालय और अनुसंधान केन्द्र में तितलियों के ढाई हजार से ज्यादा नमूने देखे जा सकते हैं। पद्मश्री यशोधर मठपाल के व्यक्तिगत प्रयास से स्थापित लोक संस्कृति संग्रहालय एवं कलादीर्घा भी देखने योग्य है। यहां आप करोड़ों साल पुराने जीवाश्म, पाण्डुलिपियां, सिक्के, नोट, हस्तशिल्प उत्पाद, हथियार, पेन्टिंग आदि देख सकते हैं।
भीमताल घूमने के बाद मैं दीदी-जीजाजी से पुनः आने का वादा कर अपने अगले पड़ाव हल्द्वानी के लिए रवाना हो गयी। एक पारिवारिक मांगलिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मैं वहां तीन दिन रुकी। 23 जनवरी को मैं आनन्द विहार बस टर्मिनल जाने के लिए बस में बैठ गयी। मेरे लिए यह सम्पूर्ण यात्रा वास्तव में एक आनन्ददायक खोज-यात्रा थी।
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कब जायें
भीमताल जाने का सबसे सही समय अप्रैल से जून और 15 सितम्बर से 15 नवम्बर के बीच का है क्योंकि इस दौरान यहां पर मौसम ना ज्यादा गर्म होता है और ना ही ज्यादा ठंडा। यहां के सर्दी के मौसम अपना अलग ही आनन्द है। हालांकि यहां तापमान काफी गिर जाता है और कड़ाके की सर्दी पड़ती है पर मैदानी-क्षेत्रों की तरह हाथ-पांव नहीं अकड़ते हैं। इस दौरान कोहरा और बादल किसी रहस्यलोक जैसी रचना करते रहते हैं। बरसात के मौसम में यहां जाने से बचें क्योंकि भूस्खलन की वजह से सड़कें अवरुद्ध हुईं तो आप कई दिनों के लिए फंस सकते हैं।
आसपास के दर्शनीय स्थल
नौकुचियाताल (चार किमी), सातताल (10 किमी), भवाली (11 किमी), नैनीताल (24 किमी), मुक्तेश्वर (39 किमी), रामगढ़ (25 किमी, वाया भवाली), हैड़ाखान (54 किमी), छोटा कैलास (33 किमी)।
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