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सुरकण्डा पहाड़ी (Surkanda Hill) टिहरी जनपद के पश्चिमी भाग में 2756 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सुरकण्डा मन्दिर के लिए जानी जाती है। यह मसूरी- चम्बा मोटर मार्ग पर पर्यटन स्थल धनोल्टी से आठ किलोमीटर और नरेन्द्र नगर से लगभग 61 किमी दूर है।

प्रकाश नौटियाल

Surkanda : गर आप घूमने के शौकीन हैं और इन सर्दियों में किसी नये स्थान पर जाना चाहते हैं तो आइये, हम आपकी इस समस्या को हल कर देते हैं और एक सुन्दर-सी जगह आपको बताते हैं। यह जगह है सुरकण्डा (Surkanda)। धार्मिक स्थल होने के साथ-साथ यह एक खूबसूरत जगह भी है  जो उत्तराखण्ड के टिहरी जिले में पड़ती है। उत्तराखण्ड के बारे में तो आप जानते ही होंगे जिसकी खूबसूरत वादियों की बात ही निराली है। यहां हिमशिखरों, झील-झरनों और वनों के मनोरम दृश्य देखते ही बनते हैं। (Surkanda Dham: Grand vision of Shakti and nature)

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सुरकण्डा पहाड़ी (Surkanda Hill) टिहरी जनपद के पश्चिमी भाग में 2756 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सुरकण्डा मन्दिर के लिए जानी जाती है। यह मसूरी- चम्बा मोटर मार्ग पर पर्यटन स्थल धनोल्टी से आठ किलोमीटर और नरेन्द्र नगर से लगभग 61 किमी दूर है।  जिला मुख्यालय नयी टिहरी से 41 किमी की दूरी पर चम्बा-मसूरी रोड पर कद्दुखाल नामक स्थान है जहां से लगभग 2.5 किमी की पैदल चढ़ाई कर सुरकण्डा माता के मन्दिर तक पहुंचा जाता है। यह मन्दिर घने जंगल से घिरा हुआ है। प्रकृति के सुरम्य-सुन्दर वातावरण वाला यह स्थान पर्यटकों को पूरे साल आकर्षित करता है। यहां से उत्तर में हिमालय के त्रिशूल, चौखम्बा, नन्दादेवी आदि हिम-शिखरों के दर्शन होने के साथ ही बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के पास के शिखरों के भी भव्य दर्शन होते हैं। यहां से देहरादून, ऋषिकेश, चकराता, प्रतापनगर और चन्द्रबदनी का नजारा भी देखा जा सकता है। अत्यधिक ऊंचाई पर होने के कारण शीतकाल में यहां हिमपात होता है। यहां विभिन्न आकार-प्रकार एवं रंगों के फूल एवं जड़ी-बूटियां बहुतायत में होती हैं। पश्चिमी हिमालय के कुछ खूबसूरत पक्षी भी यहां पाये जाते हैं।

मन्दिर को लेकर दन्तकथा/मान्यता

सुरकण्डा देवी मन्दिर
सुरकण्डा देवी मन्दिर

कुछ ग्रन्थों और स्थानीय मान्यता के अनुसार इस मन्दिर की स्थापना का इतिहास देवी सती की कथा से जुड़ा है जो महातपस्वी भगवान शिव की पत्नी और पौराणिक देवता/राजा दक्ष की पुत्री थीं। दक्ष अपनी पुत्री द्वारा पति के रूप में शिव को वरे जाने से अप्रसन्न थे। इसीलिए उन्होंने अपने द्वारा कराये जा रहे यज्ञ में अन्य सभी देवी-देवताओं को तो आमंत्रित किया पर पुत्री सती और जमाता शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। अपने पति भगवान भोलेनाथ के मना करने के बावजूद सती यज्ञ में भाग लेने पहुंच गयीं। वहां पिता दक्ष द्वारा पति भगवान शिव के लिए अपशब्दों का प्रयोग किये जाने से वे इतनी आहत हुईं कि यज्ञ कुंड में कूद गयीं। वह स्वयं सर्वशक्तिमान देवी थीं, इसलिए उसी क्षण देवी पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लेने के लिए अपना शरीर त्याग दिया। इधर भगवान शिव अपनी पत्नी को खोने की वजह से दुःखी और दक्ष के व्यवहार से क्रुद्ध थे। उन्होंने सती के शरीर को अपने कंधे पर रखा और ताण्डव (ब्रह्माण्ड के विनाश का नृत्य) शुरू कर दिया। शिव के क्रोध से ब्रह्माण्ड कंपकंपाने लगा। इस पर विनाश के डर से भयभीत देवी-देवताओं ने भगवान विष्णु से भगवान शिव को शांत करने के लिए प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने शिव के वियोग को खत्म करने के लिए अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को 51 भागों में विभक्त कर दिया। सती के शव के पूरी तरह खण्डित हो जाने के पश्चात भगवान शिव महातपश्य (महान तपस्या) करने के लिए बैठ गये। नाम में समानता के बावजूद विद्वान आमतौर पर यह नहीं मानते हैं कि इस किंवदन्ती ने सती या विधवा को जलाने की प्रथा को जन्म दिया।

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शिव चरित्र और स्थानीय लोकमान्यता के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में देवी सती के शरीर के अंग जिन 51 स्थानों पर गिरे थे, उनको शक्तिपीठ कहा जाता है। हालांकि तंत्र चूडामणि और दुर्गा सप्तशती में शक्तिपीठों की संख्या 52 बतायी गयी है। स्थानीय मान्यता के अनुसार देवी सती का सिर सुरकूट नामक पर्वत पर गिरा था। इसलिए यह स्थान सरकण्डा और कालान्तर में सुरकण्डा (सुरखण्ड) देवी शक्तिपीठ (Surkanda Devi Shaktipeeth,) के नाम से जग विख्यात हुआ।

सुरकण्डा देवी मन्दिर (Surkanda Mata Temple) में भक्तों को प्रसाद के रूप में रौंसली की पत्तियां दी जाती हैं। रौंसली को इस क्षेत्र में देववृक्ष माना जाता है और इसकी लकड़ियों का  घर बनाने में या व्यावसायिक उपयोग  नहीं करते हैं। रौंसली वृक्ष चीड़ और देवदार की एक छोटी प्रजाति है जिसकी पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं।

 आसपास के देखने योग्य स्थान

सुरकण्डा
सुरकण्डा

सुरकण्डा (Surkanda) के आसपास पर्यटकों के घूमने-फिरने के लिए कई अच्छी जगह हैं। यहां से 5-6 किमी की दूरी पर जबरखेत नेचर रिज़र्व है जहां बहुत सारे ट्रैक हैं। इसके साथ ही लरिसा रिसोर्ट से 300 मीटर ऊपर वन विभाग का वॉच टावर है जहां से सूर्यास्त का खूबसूरत नजारा दिखता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक यहां आते हैं। रिसोर्ट से तीन किलोमीटर दूर सुवाखोली में अत्याधुनिक एडवेंचर पार्क है जहां पर्यटकों के लिए कई तरह के साहसिक क्रियाकलापों का आयोजन किया जाता है।

कहां ठहरें

सुरकण्डा व आससपास कई रिसोर्ट हैं जहां रुका जा सकता है। धनोल्टी, मसूरी, चम्बा, ऋषिकेश यहां से ज्यादा दूर नहीं हैं।

ऐसे पहुंचें सुरकण्डा

वायु मार्ग : देहरादून के जौलीग्रान्ट एयरपोर्ट से सुरकण्डा की दूरी 94 किमी है। एयरपोर्ट से टैक्सी या कैब कर यहां पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन देहरादून सुरकण्डा से 66 किलोमीटर की दूरी पर है। देहरादून देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों में शामिल है जहां से मुम्बई, दिल्ली, हावड़ा, लखनऊ, बरेली, वाराणसी, बेंगलूर, चेन्नई आदि के लिए ट्रेन मिल जाती हैं। कई ट्रेनों के लिए कनेक्टिंग शहर दिल्ली है।

सड़क मार्ग : सुरकण्डा अन्य शहरों से सड़क मार्ग द्वारा बहुत अच्छे से जुड़ा है। चम्बा से सुरकण्डा के लिए बुकिंग में टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं। मसूरी से सुरकण्डा, धनोल्टी व आसपास के स्थानों के लिए टैक्सी उपलब्ध हैं। यह मसूरी से लगभग 40 किलोमीटर और चम्बा से 24 किलोमीटर की दूरी पर है।

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