मुरुदेश्वर मन्दिर (Murudeshwar Temple) कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ ज़िले के भटकल तालुका में भटकल नगर से लगभग 13 किलोमीटर दूर अरब सागर तट पर स्थित है। समुद्र ने इसे तीन तरफ से घेर रखा है। दक्षिण भारतीय मन्दिरों की तरह यहां भी गोपुरम बना हुआ है जिसे राजा गोपुरम या राज गोपुरा कहा जाता है। इस बीस मंजिला गोपुरा की ऊंचाई 249 फिट है यानी दिल्ली के कुतुबमीनार से 11 फिट ज्यादा।
न्यूज हवेली नेटवर्क
कुर्ग में दो दिन घूमने के बाद हमारा अगला गंतव्य था मुरुदेश्वर। रास्ते में पड़ने वाले मंगलुरु में एक दिन ठहरने के बाद हम मुरुदेश्वर की ओर बढ़े। पश्चिमी घाट के घुमावदार रास्तों में करीब 140 किलोमीटर का सफर तय किया ही था कि एक मोड़ पर दूर एक विशाल मन्दिर और उसके ठीक पास स्थित भगवान शिव की चांदी के समान चमकती मूर्ति नजर आयी। यही था मुरुदेश्वर मन्दिर (Murudeshwar Temple) जहां तक पहुंचने के लिए हमें मडिकेरी से करीब तीन सौ किलोमीटर का सफर करना पड़ा।
मुरुदेश्वर मन्दिर (Murudeshwar Temple) कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ ज़िले के भटकल तालुका में भटकल नगर से लगभग 13 किलोमीटर दूर अरब सागर तट पर स्थित है। समुद्र ने इसे तीन तरफ से घेर रखा है। दक्षिण भारतीय मन्दिरों की तरह यहां भी गोपुरम बना हुआ है जिसे राजा गोपुरम या राज गोपुरा कहा जाता है। इस बीस मंजिला गोपुरा की ऊंचाई 249 फिट है यानी दिल्ली के कुतुबमीनार से 11 फिट ज्यादा। इसे विश्व में सबसे ऊंचा गोपुरा माना जाता है। गोपुरा के अन्दर एक लिफ्ट है जो 18वीं मंज़िल तक ले जाती है जहां से अरब सागर के शानदार नजारे देखने के साथ ही भगवान शिव 123 फीट ऊंची मूर्ति के भव्य दर्शन किए जा सकते हैं। यह दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची शिव प्रतिमा है। इसको चांदी के रंग में कुछ इस तरह रंगा गया है की सूरज की किरणें पड़ते ही यह और भी विशाल प्रतीत होती है। इसे बनाने में करीब दो साल लगे थे और पांच करोड़ रुपये की लागत आई थी। यह प्रतिमा एक अत्यन्त सुन्दर पार्क में स्थापित की गयी है जहां कई अन्य प्रतिमाएं और झरने हैं।
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पौराणिक कथा
मुरुदेश्वर मन्दिर (Murudeshwar Temple) में भगवान शिव लिंग स्वरूप में विराजमान हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंकापति रावण ने अमरता का वरदान पाने के लिए घोर तपस्या की। भगवान शिव ने उसकी तपस्या से खुश होकर उसे एक शिवलिंग दिया। महादेव ने रावण से कहा कि अगर तुम अमर होना चाहते हो तो इस “आत्मलिंग” को लंका में स्थापित कर देना लेकिन एक बात का ध्यान रखना कि इसे जिस जगह पर रख दोगे, ये वहीं स्थापित हो जाएगा। भगवान शिव के कहे अनुसार रावण शिवलिंग लेकर लंका की ओर जा रहा था लेकिन बीच रास्ते में ही भगवान गणेश ने चालाकी से उसको लंका भेज दिया और आत्मलिंग को गोकर्ण में जमीन पर रख दिया जिससे वह वहीं पर स्थापित हो गया। इससे क्रोधित होकर रावण लिंग को उखाड़ने और नष्ट करने की कोशिश करने लगा और शिवलिंग के टूटे हुए टुकड़े इधर-उधर फेंक दिए। इसी क्रम में जिस वस्त्र से शिवलिंग ढंका हुआ था, वह मृदेश्वर के कन्दुका पर्वत पर जा गिरा। शिव पुराण में इस कथा का विस्तार से वर्णन है। इस स्थान को पहले मृदेश्वर के नाम से जाना जाता था, मन्दिर के निर्माण के बाद इसका नाम बदलकर मुरुदेश्वर (Murudeshwar) कर दिया गया। (Murudeshwar Temple: Lankapati Ravana’s thrown clothes had fallen here)
पूजा-अर्चना का समय
दर्शन का समय : सुबह 06:00 बजे से दोपहर 01:00 बजे तक।
पूजा का समय : सुबह 06:30 से सुबह 07:30 बजे तक।
रुद्राभिषेकम : सुबह 06:00 से दोपहर 12:00 तक।
दोपहर की पूजा का समय : दोपहर 12:15 से दोपहर 01:00 बजे तक। दोपहर 01 से 03 बजे तक मन्दिर बन्द रहता है।
दर्शन का समय : दोपहर 03:00 से रात 08:15 बजे तक।
रुद्राभिषेकम : दोपहर 03:00 से शाम 07:00 तक।
शाम की पूजा का समय : शाम 07:15 से 08:15 बजे तक।
मुरुदेश्वर व आसपास के दर्शनीय स्थल (Murudeshwar and surrounding tourist place)
मुरुदेश्वर किला :
विजयनगर साम्राज्य के समय का यह किला मुरुदेश्वर मन्दिर (Murudeshwar Temple) के पास ही स्थित है। माना जाता है कि टीपू सुल्तान के बाद किसी ने भी इसका जीर्णोद्धार नहीं कराया। यह भव्य संरचना अब कई स्थानों पर जर्जर हो चुकी है।
मुरुदेश्वर बीच : नारियल के वृक्षों से घिरे इस शान्त बीच पर बैठकर अरब सागर को इत्मीनान से निहार सकते हैं। पर्यटकों के लिए यह साहसिक गतविधियों (नौका विहार, कयाकिंग, सर्फिंग) का केन्द्र है जबकि स्थानीय लोगों के लिए पिकनिक स्पॉट। यहां आप उड़ने वाले सीगल, किंगफिशर आदि पक्षी भी देख सकते हैं।
भटकल :
मुरुदेश्वर मन्दिर से कुछ ही दूरी पर स्थित भटकल एक प्राचीन बन्दरगाह शहर है जो अनेक युद्धों का गवाह रहा है। यहां विजयनगर साम्राज्य के समय बनाए गये कई भवन और मन्दिर आज भी मौजूद हैं। कस्बे में कुछ खूबसूरत जैन मन्दिर भी हैं। यहां का समुद्र तट अत्यन्त आकर्षक है जिसकी मखमली रेत पर लेटकर आप प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द ले सकते हैं।
नेत्रानी द्वीप :
मुरुदेश्वर से कुछ ही दूरी पर अरब सागर में स्थित इस द्वीप को “कबूतर द्वीप” के नाम से भी जाना जाता हैं। ऊंचाई से देखे पर यह द्वीप दिल की भांति दिखाई देता है। यही स्कूबा डाइविंग, नौका विहार और फिशिंग का आनन्द ले सकते हैं।
अप्सरा कोण्डा जलप्रपात :
मुरुदेश्वर शहर से करीब 28 किलोमीटर दूर स्थित यह जलप्रपात इस क्षेत्र में घूमने के कुछ सबसे अच्छे स्थानों में से एक है। हरे-भरे जंगलों के बीच स्थित इस जलप्रपात में पानी काफी ऊंचाई से एक तालाब में गिरता है और एक सुन्दर लैगून जैसा दिखता है।
जामिया मस्जिद : ऐतिहासिक महत्व की इस मस्जिद देखने के लिए हर साल भारी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। भटकल में स्थित यह तीन मंजिला मस्जिद इस क्षेत्र सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक मानी जाती हैं। इसकी वास्तुकला देखने लायक है। यहां फ़ारसी लिपि में कुछ शिलालेख हैं जिनसे आप यहां के इतिहास और महत्व के बारे में काफी कुछ जान सकते हैं।
कोल्लूर मूकाम्बिका मन्दिर :
कोडाचद्री पर्वत शिखर की घाटी में स्थित कोल्लूर मूकाम्बिका मन्दिर को भगवान परशुराम द्वारा बनाए गये सात मुक्ति स्थलों में से एक माना जाता है। देवी दुर्गा को समर्पित यह मन्दिर मुरुदेश्वर मन्दिर से करीब 62 किलोमीटर दूर उडुपी जिले में है। यहां देवी की तीन अलग अलग रूपों में पूजा की जाती है- सुबह महाकाली के रूप में, दोपहर में महालक्ष्मी के रूप में और सायंकाल महासरस्वती के रूप में। यहां आप गरुड़ गुहा, कोदाचदरी आदि भी घूम सकते हैं।
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मुरुदेश्वर घूमने का सबसे अच्छा समय (Best time to visit Murudeshwar)
मुरुदेश्वर मन्दिर व आसपास के स्थानों में जाने के लिए अक्टूबर से फरवरी तक का समय सबसे अच्छा है। हालांकि इस दौरान यहां काफी भीड़ होती है पर मौसम सुहावना होने की वजह से दर्शन-पूजन और घूमने-फिरने में परेशानी नहीं होती है। मुरुदेश्वर मन्दिर में महाशिवरात्रि का त्यौहार बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता हैं जोकि फरवरी-मार्च के दौरान ही होता है।
ऐसे पहुंचें मुरुदेश्वर मन्दिर (How to reach Murudeshwar Temple)
वायु मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा मंगलुरु इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 162 किलोमीटर दूर है जबकि हुबली एयरपोर्ट लगभग 207 किमी पड़ता है। इन दोनों ही स्थानों से यहां के लिए बस और टैक्सी मिल जाती हैं।
रेल मार्ग : मुरुदेश्वर जंक्शन इस मन्दिर से करीब छह किलोमीटर पड़ता है जो देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं।
सड़क मार्ग : मुरुदेश्वर मन्दिर सड़क मार्ग के माध्यम से अपने आसपास के सभी शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। बस अथवा टैक्सी से आसानी से मन्दिर पहुंच जायेंगे।
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