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the pillar of lepakshi temple hanging in the air.the pillar of lepakshi temple hanging in the air.

Lepakshi Temple : लेपाक्षी मंदिर के इष्टदेव भगवान शिव का क्रूर रूप वीरभद्र हैं। वीरभद्र महाराज दक्ष के यज्ञ के बाद अस्तित्व में आये थे। भले ही यह मन्दिर भगवान वीरभद्र को समर्पित माना जाता हो पर यहां भगवान शिव, विष्णु और वीरभद्र के अलग-अलग मन्दिर मौजूद हैं। मन्दिर परिसर में एक ही पत्थर से बनी नागलिंग की प्रतिमा है।

न्यूज हवेली नेटवर्क

भारत में लाखों धर्मस्थल हैं। इनमें से हजारों ऐसे हैं जो अपनी वास्तुकला और रहस्यमय शिल्प के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। आज के समय के वास्तुविद् और अभियन्ता भी इनके रहस्यों को नहीं सुलझा पाये हैं। ऐसा ही एक धर्मस्थल है आन्ध्र प्रदेश के अनन्तपुर जिले में स्थित श्री वीरभद्र स्वामी मन्दिर (Sri Veerbhadra Swamy Temple) जो लेपाक्षी मन्दिर (Lepakshi Temple) के नाम से प्रसिद्ध है। मुराल वास्तुकला पर आधारित कछुए के आकार के इस मन्दिर में 70 खम्भे हैं जिनमें से एक हवा (अधर) में लटका हुआ है। इसके चलते इसे “लटकते खम्भे वाला मन्दिर” (Hanging Pillar Temple) भी कहा जाता है।

Lepakshi temple
Lepakshi temple

अत्यंत सुन्दर संरचना वाले यहां के खम्भे “आकाश स्तम्भ”के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं में से एक खम्भा जमीन से करीब आधा इन्च ऊपर उठ हुआ है। ऐसी मान्यता है कि इस खम्भे के नीचे से कुछ निकालने से घर में सुख-समृद्धि आती है। यही वजह है कि यहां आने वाले लोग इस खम्भे के नीचे से कपड़ा, अखबार आदि निकालते हैं। अंग्रेजों के शासनकाल में भी कई बार इस लटकते खम्भे का रहस्य जानने का प्रयत्न किया गया। ब्रिटिश अभियन्ताओं ने इस स्तम्भ को उसकी जगह से हटाने का प्रयास किया लेकिन असफल रहे। पहले तो ऐसा लगा कि इस स्तम्भ का मन्दिर के भवन में कोई योगदान नहीं है लेकिन जब इसको हटाने का प्रयास किया गया तो मन्दिर के अन्य हिस्सों में भी विचलन देखने को मिला। इससे विस्मित अभियन्ताओं ने अपने अभियान को स्थगित कर दिया।

लेपाक्षी मन्दिर
लेपाक्षी मन्दिर

लेपाक्षी मंदिर (Lepakshi Temple) के इष्टदेव भगवान शिव का क्रूर रूप वीरभद्र हैं। वीरभद्र महाराज दक्ष के यज्ञ के बाद अस्तित्व में आये थे। भले ही यह मन्दिर भगवान वीरभद्र को समर्पित माना जाता हो पर यहां भगवान शिव, विष्णु और वीरभद्र के अलग-अलग मन्दिर मौजूद हैं। मन्दिर परिसर में एक ही पत्थर से बनी नागलिंग की प्रतिमा है। यह भारत की सबसे बड़ी नागलिंग प्रतिमा मानी जाती है। काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी इस मूर्ति में एक शिवलिंग के ऊपर सात फन वाला नाग बैठा है। मन्दिर में रामपदम (मान्यता के मुताबिक भगवानश्रीराम के पांव के निशान) भी हैं, हालांकि कई लोगों का मानना है की यह माता सीता के पैरों के निशान हैं। इसके अलावा यहां भगवान शिव के ही अन्य रूप अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर भी मौजूद हैं। यहां विराजमान देवी को भद्रकाली कहा जाता है।

नागलिंग प्रतिमा
नागलिंग प्रतिमा
रामपदम
रामपदम

लेपाक्षी मन्दिर के बारे में मान्यताएं (Beliefs about Lepakshi Temple)

कुर्मासेलम की पहाडियों पर बने लेपाक्षी मन्दिर (Lepakshi Temple) को लेकर दो तरह की मान्यताएं हैं। पहली मान्यता यह है कि मन्दिर का निर्माण अगस्त्य ऋषि ने करवाया था और यह रामयणकालीन है। कहा जाता है कि जब लंका नरेश दशानन रावणमाता सीता का अपहरण करके ले जा रहा था, तब पक्षीराज जटायु ने माता सीता की रक्षा करने के लिए इसी स्थान पर युद्ध किया था। रावण के प्रहार से जटायु घायल होकर यहीं पर गिरे थे। देवी सीता की खोज में भटक रहे भगवान श्रीराम और उनके अनुज लक्ष्मण को वह इसी स्थान पर मिले थे। भगवान राम ने करुणा भाव से उनको उठाकर अपने गले से लगा लिया। उसी समय से इस स्थान के नाम “लेपाक्षी” यानि “उठो पक्षी” पड़ा। स्कन्द पुराण के अनुसार लेपाक्षी एक दिव्य क्षेत्र है।

हालांकि वर्तमान समय में मौजूद मन्दिर मंदिर के निर्माण के बारे में प्रारम्भिक प्रमाण सन् 1533 के दौरान विजयनगर साम्राज्य से सम्बन्धित हैं। मन्दिर में स्थित शिलालेख से यह जानकारी मिलती है कि इसका निर्माण विजयनगर साम्राज्य के राजा अच्युत देवराय के अधिकारियों विरूपन्ना और विरन्ना ने करवाया था।

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लेपाक्षी मन्दिर की वास्तुकला (Architecture of Lepakshi Temple)

लेपाक्षी मन्दिर में स्थित नन्दी।
लेपाक्षी मन्दिर में स्थित नन्दी।

लेपाक्षी मन्दिर विजयनगर साम्राज्य के दौर में विकसित और पल्लवित मुराल वास्तुकला पर आधारित है। इसे तीन भागों में विभाजित किया गया है- मुख मण्डपा या असेम्बली हॉल, आर्दा मंडापा या एन्ते-चेम्बर, और गर्भगृह। गर्भगृह के प्रवेश द्वार पर देवी गंगा और यमुना की प्रतिमाएं हैं। हॉल के बाहरी स्तम्भों पर नक्काशी कर सैनिकों, घोड़ों आदि की आकृतियां उकेरी गयी हैं। कहीं-कहीं नटराज, ब्रह्मा, ढोलकियों, अप्सराओं आदि की आकृतियां हैं। लेपाक्षी मन्दिर (Lepakshi Temple) के अन्दर और इसके पूर्वी हिस्से में भगवान शिव और देवी पार्वती के कक्ष हैं। एक कक्ष में भगवान विष्णु की छवि है। मन्दिर के ऊपर की छत में इसको बनावाने वाले भाइयोंविरुपन्ना और विरन्ना की पेंटिंग हैं।

कब जायें लेपाक्षी मन्दिर (When to go to Lepakshi Temple)

अक्टूबर से मार्च तक का समय लेपाक्षी मन्दिर (Lepakshi Temple) जाने के लिए आदर्श है। इस दौरान यहां का मौसम अत्यंत सुखद होता है।हलांकि मानसूनी मौसम में बारिश के पानी से धुला मन्दिर और आसापास का इलाका अत्यंत सुन्दर लगता है पर पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण परेशानी हो सकती है।

ऐसे पहुंचें लेपाक्षी मन्दिर (How to reach Lepakshi Temple)

लेपाक्षी मन्दिर का अन्दरूनी हिस्सा।
लेपाक्षी मन्दिर का अन्दरूनी हिस्सा।

वायु मार्ग : लेपाक्षी मन्दिर (Lepakshi Temple) का निकटतम सिविल एयरबेस पुट्टपर्थी का श्री सत्य साईं एयरपोर्ट है जो यहां से करीब 58 किलोमीटर पड़ता है। बेंगलुरू अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा है यहां से लगभग 100 किलोमीटर दूर है।

रेल मार्ग : लेपाक्षी मन्दिर अनन्तपुर जिले के लेपाक्षी कस्बे में है। यहां के लिए कोई सीधी रेल कनेक्टविटी नहीं है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन हिन्दूपुर है जो लगभग 12 किमी की दूरी पर है। नंद्याल और कुरनूल रेलवे स्टेशन भी यहां से ज्यादा दूर नहीं हैं।

सड़क मार्ग : लेपाक्षी मन्दिर वाया हिन्दूपुर आंधप्रदेश और कर्नाटक के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। यहां के लिए राज्य सड़क परिवहन निगमों और निजी टूर ऑपरेटरों की बसें मिल जाती हैं। टैक्सी और कैब सेवा भी उपलब्ध है।

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