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करणी माता मन्दिर में प्रसाद खाते चूहे।करणी माता मन्दिर में प्रसाद खाते चूहे।

वास्तुकला की इण्डो इस्लामिक (मुस्लिम-राजपूत) शैली पर आधारित करणी माता मन्दिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था। मन्दिर के सामने के दरवाजे चांदी के हैं। छत्र सोने का जबकि चूहों (काबा) के लिए प्रसाद रखने की परात चांदी की है।

न्यूज हवेली नेटवर्क

संगमरमर से बने परिसर में हर तरफ घूमते हजारों चूहे और उनके बीच ही कदम घसीटते हुए निश्चिन्त होकर आते-जाते श्रद्धालु। यह स्थान है करणी माता मन्दिर (Karni Mata Temple)। राजस्थान के बीकानेर जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दक्षिण में देशनोक में स्थित इस मन्दिर में करीब 25 हजार चूहे रहते हैं। (Karni Mata Temple: Thousands of rats roam here carefree)

मान्यता है कि करणी देवी (Karni Devi) साक्षात मां जगदम्बा की अवतार थीं। चारणी देवियों में सर्वाधिक पूज्य एवं लोकप्रिय करणी माता का जन्म विक्रम संवत 1444 में जोधपुर जिले के सुआप गांव में कीनिया गोत्र के मेहाजी चारण के घर हुआ था। जिस स्थान पर यह मन्दिर है, करीब साढ़े छह सौ वर्ष पहले वहां एक गुफा में माता करणी (Karni Mata) अपने इष्ट देव की पूजा-अर्चना किया करती थीं। यह गुफा आज भी मन्दिर परिसर में है। उनके ज्योतिर्लीन होने पर उनकी इच्छानुसार उनकी मूर्ति की इस गुफा में स्थापना की गयी। जोधपुर और बीकानेर रियासतों की संस्थापिका तथा राठौड़ों की कुलदेवी के रूप में करणी माता की विशिष्ट मान्यता है।

वास्तुकला की इण्डो इस्लामिक (मुस्लिम-राजपूत) शैली पर आधारित इस मन्दिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था। मन्दिर के सामने के दरवाजे चांदी के हैं। छत्र सोने का जबकि चूहों (काबा) के लिए प्रसाद रखने की परात चांदी की है। संगमरमर की दीवारों पर सुन्दर नक्काशी है।

करणी माता मन्दिर।
करणी माता मन्दिर।

मन्दिर के पूरे प्रांगण में चूहे दिनभर धमाचौकड़ी करते रहते हैं। वे श्रद्धालुओं के शरीर पर भी कूद-फांद करते हैं लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। चील, गिद्ध आदि से इन चूहों की रक्षा के लिए मन्दिर में खुले स्थानों पर बारीक जाली लगी हुई है। इन चूहों की उपस्थिति की वजह से ही यह मन्दिर “चूहों वाले मन्दिर” के नाम से भी विख्यात है। किसी भी श्रद्धालु को सफेद चूहे के दर्शन होना बहुत शुभ माना जाता है। सुबह पांच बजे की मंगला आरती और शाम की आरती के समय सभी चूहे जिन्हें “काबा” कहा जाता है, अपने-अपने बिलों से बाहर निकल आते हैं। देवी मां का प्रसाद पहले चूहे खाते हैं, फिर भक्तों को बांटा जाता है। यहां पैरों को उठाकर चलने के बजाय घसीटकर चलना होता है। पैरों के नीचे किसी चूहे के आ जाने को अशुभ माना जाता है और प्रयाश्चित के तौर पर चांदी का चूहा चढ़ाना पड़ता है।

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चैत्र एवं शारदीय नवरात्र में देशनोक में विशाल मेला लगता है। इस दौरान राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं। (Karni Mata Temple)

ऐसे पहुंचें

वायु मार्ग : यहां का निकटतम एयरपोर्ट बीकानेर में है जहां से मन्दिर के लिए बस, कैब, टैक्सी आदि मिल जाती हैं।

रेल मार्ग : यह मन्दिर बीकानेर-जोधपुर रेल मार्ग पर देशनोक रेलवे स्टेशन के पास है। जैसलमेर, बीकानेर, जयपुर, अहमदाबाद, मुम्बई आदि से यहां के लिए ट्रेन सेवा है।

सड़क मार्ग : देशनोक बीकानेर-जोधपुर राज्य राजमार्ग पर स्थित है। राजस्थान के सभी बड़े शहरों से बीकानेर के लिए सरकारी बस मिलती हैं। बीकानेर से मां करणी मन्दिर तक पहुंचने के लिए बस, जीप और टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं।

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