अल्मोड़ा शहर समुद्र की सतह से 1,642 मीटर की ऊंचाई पर एक उल्टे रखे कटोरे के आकार वाली पहाड़ी (कश्यप पर्वत) पर बसा है। कौशिका (कोसी) और शाल्मली (सुयाल) नदियां इसके चरण पखारते हुए बहती हैं। “चरण पखारना” इसलिए क्योंकि इस पर्वत पर भगवान विष्णु का निवास माना जाता है।
डॉ. मंजू तिवारी
मेरा जन्म और शिक्षा-दीक्षा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुई है पर मन मानो पहाड़ों में ही रमता है। सम्भवतः इस कारण कि मेरे ईजा-बाबू (माता-पिता) कुमाऊं से थे और बेहतर भविष्य की तलाश में पहाड़ों से उतर कर मैदानी क्षेत्र में आ गये थे। पहाड़ जाना मेरे लिए अपनी जड़ों से जुड़े रहने के प्रयास के साथ ही पर्यटन और धर्माटन भी है। मैं पहाड़ों की गोद में जाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती। पिछली सर्दियों में अवसर मिला तो फिर चल पड़ी पहाड़ की ओर। (Almora: Unforgettable memories of the cultural capital of Kumaon)
अकेले ही जाना था, इसलिए बस ही बेहतर और सस्ता विकल्प लगी। बेहद सर्द रात में नौ बजे बेटी मुस्कान मुझे आनन्द विहार अन्तरराज्यीय बस टर्मिनल पर अल्मोड़ा (Almora) की बस में बैठाकर गाजियाबाद के इन्दिरापुरम वापस चली गयी। इधर मेरी बस नोएडा, हापुड़, मुरादाबाद, रामपुर, बिलासपुर, रुद्रपुर, हल्द्वानी, काठगोदाम, भीमताल, भवाली, खैरना पुल, लोध आदि होते हुए प्रातः सात बजे अल्मोड़ा पहुंची जहां भांजी हिना मुझे लेने आयी हुई थी। वहां से घर के लिए चले तो वह एक कुशल गाइड की तरह रास्ते में पड़ने वाले स्थानों और बाजारों के बारे में जानकारी देती रही। धार की तूनी होते हुए लक्ष्मेश्वर चौराहे के पास स्थित घर पहुंचने तक अच्छी धूप खिल चुकी थी। स्नान-ध्यान के बाद मैं घर के सामने धूप में बैठ गयी। काफी ऊंचाई पर होने के कारण यहां से अल्मोड़ा (Almora) शहर के सुन्दर विहंगम दृश्य दिखते हैं। घर में बैठे-बैठे ही ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों, हरीभरी घटियों और शहर की आपाधापी को एक साथ देखना सचमुच एक अलग ही अनुभव था।
दोपहर को ठेठ कुमाऊंनी थाली का आनन्द लिया जिसमें शामिल थी घौत (कुलथी) की दाल, भात, लेसू रोटी, लाई का शाक, भांग की चटनी, माल्टा और मूली। उत्तराखण्ड में माल्टे का प्रयोग विशेष रूप से चटनी (खट्टी-मीठी) बनाने में किया जाता था।
जहां मैं ठहरी थी, वहां से सूर्यास्त और रात्रि में बिजली की रोशनी में जगमगाते अल्मोड़ा का नजारा मन मोह लेने वाला था। दूर सामने बाजार, होटल, गिरजाघर आदि पर झिलमिलाते बिजली के बल्बों और झालरों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे आसमान अपनी सम्पूर्ण सुन्दरता और तारागणों के साथ अल्मोड़ा के सौन्दर्य में वृद्धि करने के लिए पृथ्वी पर उतर आया हो। इसी बीच भोजन तैयार होने की आवाज सुनाई दी। आंगन में अलाव के समीप बैठकर और सामने दिखते अल्मोड़ा शहर के सौन्दर्य में डूबकर एक बार फिर दिव्य कुमाऊंनी भोजन का आनन्द लिया।

अल्मोड़ा (Almora) शहर समुद्र की सतह से 1,642 मीटर की ऊंचाई पर एक उल्टे रखे कटोरे के आकार वाली पहाड़ी (कश्यप पर्वत) पर बसा है। कौशिका (कोसी) और शाल्मली (सुयाल) नदियां इसके चरण पखारते हुए बहती हैं। “चरण पखारना” इसलिए क्योंकि इस पर्वत पर भगवान विष्णु का निवास माना जाता है। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि भगवान विष्णु का कूर्मावतार इसी पर्वत पर हुआ था। एक कथा के अनुसार, देवी कौशिका ने शुम्भ और निशुम्भ नामक दानवों का वध इसी क्षेत्र में किया था।
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चन्द राजाओं की राजधानी रहे अल्मोड़ा (Almora) को कुमाऊं की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है। यह अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, हस्तकला और स्वादिष्ट व्यंजनों खासकर बाल मिठाई, सिंगोड़ी और चॉकलेट के लिए जाना जाता है। मालरोड पर स्थित गोविन्द बल्लभ पन्त राजकीय संग्रहालय में कुमाऊं की संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने का अच्छा प्रयास किया गया है। यहां के रामजे हाईस्कूल (अब इण्टर कॉलेज) ने देश को कई स्वतन्त्रता सेनानी, नेता तथा अनगिनत वैज्ञानिक, साहित्यकार और आईएए, आईपीए, आईएफएस, पीसीएस अधिकारी दिए हैं। शैलेश मटियानी, मनोहर श्याम जोशी समेत कई साहित्कारों ने अपनी रचनाओं में रत्नप्रसूता कहलाने वाले इस ऐतिहासिक विद्यालय का उल्लेख किया है।

अल्मोड़ा (Almora) के बाजार में घूमते समय यह देखकर बहुत अच्छा लगा कि उत्तराखण्ड सरकार महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए प्रयास कर रही है। बाजार में थाने के सामने कुछ महिला पुलिसकर्मी महिलाओं को उनकी सुरक्षा और आत्मरक्षा से सम्बन्धित जानकारी दे रही थीं। वे मोबाइल फोन पर महिलाओं की सुरक्षा से सम्बन्धित एक एप भी डाउनलोड करवा रही थीं। यहां का पटाल बाजार बहुत प्रसिद्ध है जिसकी सड़कें डामर के बजाय पत्थरों के काटकर बनाये गये पटलों से बनायी गयी हैं। चौक बाजार, पल्टन बाजार और धारनौला भी यहां के प्रमुख बाजार हैं। मुख्य बाजार में तिराहे पर लोहे का एक शेर बना हुआ है जिसके नाम पर इस जगह का नाम “लोहे का शेर चौराहा” रखा गया है।
अल्मोड़ा बेहतरीन हस्तशिल्प और सजावटी वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध है। आप तांबे के बर्तन और सजावटी सामान, पीतल के बर्तन, खरगोश और पहाड़ी भेड़ की ऊन, पहाड़ी मिठाई, ऑक्सीकृत गहने, स्वेटर, स्कार्फ अंगोरा वस्त्र आदि खरीद सकते हैं।
इन मन्दिरों में दर्शन-पूजन करना ना भूलें

अल्मोड़ा आने वाले पर्यटक रामशिला मन्दिर, हनुमान मन्दिर, मुरली मनोहर मन्दिर, रघुनाथ मन्दिर, भैरव मन्दिर, भोलेनाथ मन्दिर, सिद्ध भैरव मन्दिर, बदरीनाथ मन्दिर आदि में शीश नवाना नहीं भूलते। शहर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पाताली देवी मन्दिर। शान्त स्थान पर स्थित यह धर्मस्थल देवी के नौ स्वरूपों को समर्पित है। आस्था, श्रद्धा, विश्वास और मन्दिर का बहुत ही गहरा सम्बन्ध है क्योंकि यदि व्यक्ति के मन में आस्था, श्रद्धा और विश्वास ना हों तो उसे मन्दिर में रखी गयी मूर्तियां पत्थर ही लगती हैं। चन्द वंशीय राजा दीप चन्द के शासनकाल (1748-1777) में उनके एक बहादुर सैनिक सुमेर अधिकारी द्वारा इसका निर्माण कराया गया था। बहुत से लोग इसे देवी शक्तिपीठों में से एक मानते हैं। मान्यता है कि माता सती के यज्ञ कुण्ड में कूदकर अपनी जान दे देने के बाद क्रोधित और शोकमग्न भगवान शिव ने उनके शव को यज्ञ कुण्ड से बाहर निकाला और उसे अपने कन्धे पर रख कर ब्रह्मांड में विचरण करने लगे। इसी दौरान माता सती की नाभि इस स्थान पर गिरी थी। यहां मुख्य मन्दिर के सामने एक लघु चबूतरे पर नन्दी की प्रतिमा है। यहां का वातालरण इतना दिव्य और आध्यात्मिक है कि श्रद्धालु दर्शन-पूजन के बाद घण्टों परिसर में ही बैठे रहते हैं।

कब जायें अल्मोड़ा (When to go to Almora)
यूं तो अलमोड़ा साल में कभी भी जा सकते हैं पर सबसे अच्छा समय मार्च-अप्रैल और अक्टूबर नवम्बर है क्योंकि इस दौरान मौसम हल्का सर्द होने के साथ ही सैलानियों की भीड़भाड़ भी कम होती है। मई-जून में यहां बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं जिसके चलते होटल में कमरा मिलने में दिक्कत हो सकती है।
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ऐसे पहुंचें अल्मोड़ा (How to reach Almora)
वायु मार्ग : पन्तनगर एयरपोर्ट यहां से करीब 125 जबकि बरेली एयरपोर्ट लगभग 198 किलोमीटर दूर है। मुम्बई, दिल्ली, बंगलुरु और जयपुर से बरेली के लिए सीधी उड़ानें हैं। पन्तनगर की कनेक्टीविटी उतनी अच्छी नहीं है।
रेल मार्ग : निकटतम रेल हेड काठगोदाम (87.4 किमी) और हल्द्वानी (93.6 किमी) हैं। हावड़ा, कानपुर, लखनऊ, दिल्ली आदि से काठगोदाम के लिए सीधी ट्रेन सेवा है।
सड़क मार्ग : अल्मोड़ा शहर नैनीताल से करीब 65, हल्द्वानी से 95, बरेली से 195, देहरादून से 356, दिल्ली से 357 और लखनऊ से लगभग 446 किलोमीटर पड़ता है। इन सभी स्थानों से यहां के लिए सरकारी बसें मिलती हैं। आप टैक्सी या कैब भी बुक करा सकते हैं। (जारी रहेगा)
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