आईसीआईसीआई डायरेक्ट के एक सर्वेक्षण में बताया गया है कि वर्ष 2022 में वाराणसी में 7.2 करोड़ पर्यटक आए। एक अन्य सर्वे में यह बात सामने आई है कि वाराणसी में अब हर साल 10 करोड़ सैलानी आ रहे हैं। जाहिर है कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों का आना वाराणसी की अर्थव्यवस्था में अरबों रुपयों का योगदान देता है।
पंकज गंगवार
क्रिसमस से एक-दो दिन पहले की बात है, मेरे एक मित्र जो लखनऊ में रहते हैं, का फोन आया कि चलो इन छुट्टियों में खजुराहो चलते हैं। खजुराहो जाने की मेरी इच्छा बहुत पहले से थी तो मैं मना न कर सका। मैं अपनी कार लेकर निकल पड़ा। लखनऊ से उन्हें लिया और रास्ते में एक-दो और मित्रों से मिलते हुए आखिरकार खजुराहो पहुंच गए। खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कार्य 9वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य का है। ये मंदिर वास्तु और मूर्ति कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इनकी इसी विशेषता को देखते हुए यूनेस्को ने इन्हें विश्व विरासत स्थल की सूची में स्थान दिया है। (Heritage sites: Do not underestimate their contribution to the economy)
इन करीब 1000 साल पुराने मंदिरों को देखने पूरी दुनिया से लोग आते हैं। लोगों का इन मंदिरों को देखने आने का उद्देश्य कोई भक्ति भाव नहीं होता बल्कि यह कौतूहल होता है कि कैसे हजारों साल पहले इतने उत्कृष्ट मंदिर बनाए गए। इन मंदिरों में उस समय के जन-जीवन को मूर्तियों में दर्शाया गया है। इनमें से कुछ मूर्तियां काम कला को प्रदर्शित करती हैं। हालांकि इन मंदिरों की हजारों मूर्तियों में से कुछ मूर्तियां ही इस प्रकार की हैं लेकिन यह मंदिर इन मूर्तियों के कारण ही विख्यात या यूं कहें कि कुख्यात है। इन मंदिरों को देखने से प्रतीत होता है कि प्राचीन भारत के लोग काम को कितनी सहजता से लेते थे।
मेरे इस आलेख का उद्देश्य इन मंदिरों के बारे में और काम कला पर आधारित मूर्तियां क्यों बनाई गईं, यह विस्तार से बताना नहीं है। बल्कि मैं यह कहना चाहता हूं कि इस तरह के कार्य शासकों द्वारा ही किए जा सकते हैं, चाहे वे शासक प्राचीन भारत के रहे हो या मध्य कालीन भारत के या फिर इस नए भारत के।
जब बसपा सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते लखनऊ में स्मारक बनवाये तो कई लोगों ने बहुत आलोचना की कि इतनी धनराशि में कितनी ही फैक्ट्रियां लग सकती थीं, हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता था, पत्थरों में पैसा बर्बाद कर दिया आदि-आदि। लेकिन, मैं जब भी लखनऊ जाता हूं, मायावती के बनवाए गए लखनऊ के इन स्मारकों को देखते ही अच्छा एहसास होता है। इन स्मारकों ने लखनऊ को एक गरिमा प्रदान की है।
शाहजहां ने जब ताजमहल बनवाया था तो उसकी आलोचना उस समय भी हुई थी और आज भी होती है। आज भी बहुत से इतिहासकार कहते हैं कि उस समय शाहजहां के राज्य में भीषण अकाल पड़ा था और वह ताजमहल को बनाने में रुपये खर्च कर रहा था। ऐसे ही जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार बल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर (लगभग 600 फीट) ऊंची मूर्ति (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) बनवाई तो उनकी भी बहुत आलोचना की गई। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, महाकालेश्वर कॉररडोर और श्रीराम मंदिर की भी आलोचना हो रही है कि इतने रुपयों में कई अस्पताल और विश्वविद्यालय बन जाते। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि अस्पताल और विश्वविद्यालय की जरूरत नहीं है। इन्हें भी बनवाया जाना चाहिए लेकिन अस्पताल और विश्वविद्यालय जनता के बीच के लोग भी बनवा सकते हैं और सरकारें भी। लेकिन, विरासत स्थल बनवाने का कार्य सिर्फ सरकारें या शासक ही कर सकते हैं।
रही बात अर्थव्यवस्था में योगजान की तो मायावती के बनवाये स्मारकों, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, राम मंदिर आदि का योगदान कहीं से भी फैक्ट्रियों से कम नहीं है। आपको कोई 100 साल पुरानी फैक्ट्री उत्पादन करते हुए मुश्किल से ही मिलेगी लेकिन हजारों सैकड़ों साल पहले बनाये गए आर्किटेक्चर (ऐलोरा का कैलास मन्दिर, ताजमहल, कुतुबमीनार, मीनाक्षी मन्दिर, होयसल शासकों के बनवाए मन्दिर, हम्पी, महाबलेश्वर, जगन्नाथ मन्दिर, कुम्भलगढ़ किला, मेहरानगढ़ आदि) आज भी अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं। मेरे वाराणसी के मित्र बता रहे थे कि जब से कॉरिडोर बना है, बाबा विश्वनाथ की नगरी में बाहर से आने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। जाहिर है जब इतने लोग आएंगे तो वहां की अर्थव्यवस्था भी बढ़ेगी ही। तो जब भी कोई सरकार इस तरह के कार्य करें तो उसकी आलोचना मत कीजिए बल्कि सराहना कीजिए क्योंकि विरासत स्थलों के आसपास की व्यावसायिक गतिविधियां स्थानीय उद्योग-धंधों, फिटकर कारोबारियों, समुदायों और देशों के लिए आर्थिक प्रवाह बनाती हैं। ये प्रवाह रोजगार और राजस्व पैदा करके लाभकारी हो सकते हैं। आईसीआईसीआई डायरेक्ट के एक सर्वेक्षण में बताया गया है कि वर्ष 2022 में वाराणसी में 7.2 करोड़ पर्यटक आए। एक अन्य सर्वे में यह बात सामने आई है कि वाराणसी में अब हर साल 10 करोड़ सैलानी आ रहे हैं। जाहिर है कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों का आना वाराणसी की अर्थव्यवस्था में अरबों रुपयों का योगदान देता है।
((लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड (न्यूट्री वर्ल्ड) के चेयरमैन भी हैं))