कॉफी कई प्रकार की होती है जैसे एस्प्रेसो, कैपेचीनो, कैफे लैट्टे आदि। दक्षिण भारतीय फिल्टर कॉफी को दरदरी पिसी और हल्की गहरी सिंकी हुई कॉफी अरेबिका से बनाया जाता है। इसके साथ पीबेरी के दानों को सबसे अधिक पसंद किया जाता है।
रेनू जे त्रिपाठी
काजू, आलू, अनानास की तरह घूमंतू मिजाज की कॉफी दुनियाभर का चक्कर लगाते हुए कब भारत आयी और हमारी खान-पान की आदत का हिस्सा बन गयी, पता ही नहीं चला। खासकर दक्षिण भारत के लोग तो कॉफी को पिये बिना दिन की शुरुआत की कल्पना ही नहीं कर सकते। दिनभर में कॉफी के कई कप सुड़क लेना उनके लिए आम बात है। उत्तर और मध्य भारत में साहित्यकारों की कॉफी हाउस गोष्ठियों के तमाम किस्से सुनने को मिलते हैं। कई लोग तो खुद को नफासत पसंद दिखाने के लिए ही कॉफी नाम का “जाप” करते दिख जायेंगे, मानो कॉफी कोई पेय न होकर उनके मन के दमित अभिजात के दर्शाने का टूल हो।
वनस्पती विज्ञानियों के अनुसार कॉफी की मूल भूमि इथियोपिया है। यहीं के कफ़ा प्रान्त के नाम पर इसको कॉफी कहा जाने लगा। हालांकि यमन में भी इसकी खेती के कुछ प्रमाण मिले हैं। इसके बावजूद सच तो यह है कि व्यापार के लिए दूर-दराज के देशों में जाने वाले यूरोपीय व्यापारियों ने बाकी दुनिया को इसके स्वाद का चस्का लगाया। सन् 1582 में इसे इंग्लिश शब्दकोष में स्थान मिला। 15वीं शताब्दी में अरब में कॉफी के इस्तेमाल के प्रमाण मिले हैं। मक्का की तीर्थयात्रा पर गये एक भारतीय मुस्लिम संत बाबा बुदान कॉफी के सात बीज अपनी कमर में बांधकर मैसूर लाये। यहां इन्हें पास की ही चन्द्रगिरि की पहाड़ियों पर उगाया गया। कर्नाटक के चिक्कामगलुरु जिले में स्थित इस पहाड़ी को अब बाबा बुदान गिरि के नाम से जाना जाता है। बहरहाल बाबा बुदान गिरि पर कॉफी उगाने का प्रयोग सफल रहा और अगले कुछ वर्षों में ही दक्षिण भारत के ज्यादातर क्षेत्रों में इसकी व्यावसायिक तौर पर खेती होने लगी। ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में कॉफी की जड़ें और मजबूत हुईं। अंग्रेज भले ही भारतीयों को चाय का लती बनाने का प्रयास कर रहे थे पर खुद को भारतीयों से श्रेष्ठ दर्शाने के लिए स्वयं चाय से ज्यादा कॉफी पीते थे। इसी दौर में भारत में निर्यात के लिए भी कॉफी का उत्पादन किया जाने लगा। हर वर्ष 3,48,000 टन उत्पाद के साथ भारत आज दुनिया के सबसे बड़े कॉफी उत्पादक देशों में शामिल है।
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आज के समय में कॉफी चाय के बाद दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्राकृतिक पेय है। इसका इस्तेमाल तुरंत ताजगी और ऊर्जा देने वाले उत्तेजक पदार्थ के रूप में किया जाता है। दरअसल, इसमें कैफीन होता है जो हमारे तंत्रिकाओं को उत्तेजित करता है जिससे हम स्वयं को तरोताजा और ऊर्जावान महसूस करते हैं।
कॉफी कई प्रकार की होती है जैसे एस्प्रेसो, कैपेचीनो, कैफे लैट्टे आदि। दक्षिण भारतीय फिल्टर कॉफी को दरदरी पिसी और हल्की गहरी सिंकी हुई कॉफी अरेबिका से बनाया जाता है। इसके साथ पीबेरी के दानों को सबसे अधिक पसंद किया जाता है। इन्स्टेन्ट या सॉल्यूबल कॉफी बनाने के लिए कॉफी के द्रव को बहुत कम तापमान पर छिड़काव कर सुखाया जाता है। फिर उसे घुलनशील पाउडर या कॉफी के दानों में बदलकर इन्स्टेन्ट कॉफी तैयार की जाती है। मोचा या मोचाचिनो कॉफी कैपेचिनो और कैफे लैट्टे का मिश्रण है जिसमें चॉकलेट सिरप या पाउडर मिलाया जाता है।