हाशिमपुरा नरसंहार 22 मई 1987 को हुआ था जब पीएसी के जवानों ने सांप्रदायिक तनाव के दौरान मेरठ के हाशिमपुरा में 42 से 45 मुस्लिम पुरुषों को कथित तौर पर घेर लिया था।
मेरठ। सुप्रीम कोर्ट ने 1987 में पीएसी (प्रादेशिक आर्म्ड कॉन्स्टेबुलरी) के कर्मचारियों द्वारा 38 लोगों की कथित हत्या से जुड़े हाशिमपुरा नरसंहार मामले में 8 दोषियों को शुक्रवार को जमानत दे दी। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 4 दोषियों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी की इन दलीलों पर गौर किया कि उन्हें बरी करने के अधीनस्थ अदालत के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा पलटे जाने के बाद से वे लंबे समय से जेल में हैं।
अधिवक्ता आनंद तिवारी ने शुक्रवार को समी उल्ला, निरंजन लाल, महेश प्रसाद और जयपाल सिंह का प्रतिनिधित्व करते हुए दलील दी कि अपीलकर्ता हाई कोर्ट के फैसले के बाद से 6 साल से अधिक समय से जेल में हैं। उन्होंने कहा कि अपीलकर्ताओं को पहले अधीनस्थ अदालत द्वारा बरी किया जा चुका है और अधीनस्थ अदालत में सुनवाई और अपील प्रक्रिया के दौरान उनका आचरण अच्छा रहा है। उन्होंने यह भी दलील दी कि अधीनस्थ अदालत द्वारा सोच-विचारकर पारित किए गए बरी करने के फैसले को पलटने का हाई कोर्ट ने गलत आधार पर निर्णय लिया। सुप्रीम कोर्ट ने दलीलों पर गौर किया और 8 दोषियों की 8 लंबित जमानत याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।
हाशिमपुरा नरसंहार 22 मई 1987 को हुआ था जब पीएसी (PAC) की 41वीं बटालियन की सी-कंपनी के जवानों ने सांप्रदायिक तनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में मेरठ के हाशिमपुरा इलाके में 42 से 45 मुस्लिम पुरुषों को कथित तौर पर घेर लिया था। सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के बहाने शहर के बाहरी इलाके में ले जाया गया जहां उन्हें गोली मार दी गई और उनके शवों को एक नहर में फेंक दिया गया। इस घटना में 38 लोगों की मौत हो गई थी तथा केवल 5 लोग ही इस भयावह घटना को बयां करने के लिए बचे।
अधीनस्थ अदालत ने 2015 में पीएसी के 16 कर्माचारियों को उनकी पहचान और संलिप्तता को साबित करने वाले साक्ष्यों के अभाव का हवाला देते हुए बरी कर दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2018 में अधीनस्थ अदालत के फैसले को पलट दिया और 16 आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 302 (हत्या), 364 (हत्या के लिए अपहरण) और 201 (साक्ष्य मिटाना) के साथ धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोषियों ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी और उनकी अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।