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Nanda Devi Temple of AlmoraNanda Devi Temple of Almora

उत्तराखण्ड के लोग नन्दा देवी को अपनी अधिष्ठात्री देवी मानते हैं। यहां की लोककथाओं में नन्दा को हिमालय की पुत्री कहा जाता है। अल्मोड़ा के नन्दा देवी मन्दिर परिसर में तीन देवालय विद्यमान हैं।

डॉ मंजू तिवारी

शिवालिक की कश्यप पहाड़ी पर स्थित अल्मोड़ा शहर का अपना विशेष धार्मिक महात्म्य है। शहर व आसपास कई ऐतिहासिक और पौराणिक धर्मस्थल हैं। इनमें नन्दा देवी की विशेष महिमा बतायी गयी है। देवी नन्दा (Nanda Devi) की उपासना प्राचीन काल से ही किये जाने के प्रमाण पुराणों और उपनिषदों समेत कई धर्मग्रन्थों में मिलते हैं। रूप मण्डन में पार्वती को गौरी के छह स्वरूपों में एक बताया गया है। भगवती की छह अंगभूता देवियों में नन्दा भी एक हैं। हाट कालिका मन्दिर और पाताल भुवेश्वर गुफा से वापसी के अगले दिन मैं अपनी बहन, भांजी आदि के साथ घूमने के लिए निकली तो हमारी पहली मंजिल थी नन्दा देवी मन्दिर (Nanda Devi Temple)।

उत्तराखण्ड के लोग नन्दा देवी को अपनी अधिष्ठात्री देवी मानते हैं। यहां की लोककथाओं में नन्दा को हिमालय की पुत्री कहा जाता है। अल्मोड़ा के नन्दा देवी मन्दिर (Nanda Devi Temple Almora) परिसर में तीन देवालय विद्यमान हैं। इनमें से उद्योतचन्द्रेश्वर और पर्वतेश्वर मन्दिर पुराविद् एवं स्थापत्य में रुचि रखने वालों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं। तीसरा देवालय जिसमें नन्दा देवी की प्रतिमा को स्थापित किया गया है, बाद की संरचना है। यह मन्दिर शिल्प और शैली का दृष्टि से साधारण है। इसका कक्ष स्तम्भों पर टिका है जबकि फर्श पत्थरों को काटकर बनाए गय़े पटलों से बनाया गया है। मल्ला महल (वर्तमान कलक्ट्रेट परिसर) में स्थापित नन्दा की प्रतिमा को सन् 1815 में ब्रिटिश हुकुमत के दौरान तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने यहां रखवा दिया था। यहां मां नन्दा की पूजा-अर्चना तारा शक्ति के रूप में तान्त्रिक विधि से करने की परम्परा है।

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नन्दा देवी मेला (Nanda Devi Fair)

प्रत्येक वर्ष भादो माह की अष्टमी तिथि पर यहां नन्दा देवी का पांच दिवसीय मेला लगता है जो पंचमी से प्रारम्भ होता है। इस अवसर पर कदली (केला) स्तम्भों से दो भव्य प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। इन मूर्तियों का स्वरूप उत्तराखण्ड की सबसे ऊंची चोटी नन्दा देवी के समान होता है। पंचमी की रात्रि से जागर शुरू होती है। षष्ठी तिथि के दिन पुजारी गोधूलि के समय चन्दन, अक्षत आदि पूजा की सामग्री तथा लाल और श्वेत वस्त्र लेकर केले के झुरमुटों के समीप जाते हैं। पूजन करने के बाद अक्षत मुट्ठी में लेकर कदली स्तम्भों की ओर फेंके जाते हैं। जो स्तम्भ पहले हिलता है, उससे नन्दा देवी की प्रतिमा बनायी जाती है। हिलने वाले दूसरे स्तम्भ से सुनन्दा तथा तीसरे स्तम्भ से देवी शक्तियों के हाथ-पैर बनाए जाते हैं। सप्तमी के दिन इन स्तम्भों को काट कर लाया जाता है। इसी दिन कदली स्तम्भों की पहले चन्दवंशीय प्रतिनिधि पूजा करते हैं। मुख्य मेला अष्टमी को होता है। इस दिन सुबह से ही पारम्परिक कुमाऊंनी मांगलिक वस्त्रों में सजी-धजी स्त्रियां देवी पूजन के लिए मन्दिर में पहुंचने लगती हैं। रात्रि को मुख्य पूजा परम्परानुसार चन्दवंशीय प्रतिनिधियों द्वारा की जाती है। बलि भी दी जाती है। नवमी तिथि को देवी नन्दा और सुनन्दा को रथों पर बैठाकर अल्मोड़ा और आस-पास के क्षेत्रों में शोभायात्रा निकाली जाती। मान्यता के अनुसार इस दिन नन्दा देवी को उनके मायके से ससुराल विदा किया जाता है। (जारी) (Almora Yatra: Mother Goddess Nanda, the presiding deity of Uttarakhand)

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