कूड़े की समस्या का समाधान सिर्फ डस्टबिन रख देना नहीं है। जब तक लोग इनका सही प्रयोग नहीं करेंगे, तब तक सिर्फ धन की बरबादी ही होगी। हमें सबसे पहले लोगों को कचरा प्रबंधन के प्रति जागरूक करना होगा।
पंकज गंगवार
अगर हम गीले कचरे और सूखे कचरे को अलग-अलग करना सीख लें तो यूरोप और अमेरिका की तरह हमारे शहर भी साफ सुथरे हो जाएंगे और खेती में भी रासायनिक खाद (यूरिया, एमोनियम सल्फेट आदि) और कीटनाशकों का उपयोग कम हो जाएगा। सरकार इसके लिए बहुत कोशिश कर रही है, अलग-अलग डस्टबिन बना रही है लेकिन मजाल क्या कि हम लोग उनका सही तरह से उपयोग करें। हमारे घर के बाहर जो गाड़ी कूड़ा लेने आती है उसमें मौजूद कर्मचारी को अगर हम सूखा और गीला कचरा अलग-अलग करके देते हैं तो वह भी उनको एक साथ मिला देता है जबकि उसकी गाड़ी में इसके लिए अलग-अलग व्यवस्था होती है।
भारत दुनिया में कचरा पैदा करने वाला सबसे बड़ा देश है। यहां हर साल 30 करोड़ टन से भी ज्यादा ठोस कचरा पैदा होता है लेकिन इसका 60 प्रतिशत ही निस्तारित हो पाता है। बाकी इधर-उधर पड़ा रह कर पर्यावरण को प्रभावित करता है। यही कचरा जल, वायु और भूतल प्रदूषण का कारण बन रहा है। जानकारी और जागरूकता के अभाव के साथ ही आलस्य और लापरवाही ने आदतन कूड़ा फेंकने की मनोवृत्ति को जन्म दिया है।
पिछले दिनों काफी समय बाद रेलवे स्टेशन पर अपनी पत्नी और बच्चों को रिसीव करने जाना हुआ। ट्रेन के आने में समय था। मैने नोटिस किया की प्लेटफार्म पर गीले कचरे और सूखे कचरे के लिए अलग अलग डस्टबिन जगह-जगह रखे हुए थे। इतने अधिक डस्टबिन देखकर मैं काफी प्रभावित हुआ। पहले प्लेटफार्म पर पहले इतने डस्टबिन नहीं रखे होते थे। मैंने एक-एक डस्टबिन को झांक कर देखा पर सब में सूखा और गीला कचरा एक साथ ही पड़ा हुआ था। कुछ दिनों पहले मुझे दक्षिण भारत में बंगलुरु, मैसूर और ऊटी जाना हुआ। इन शहरों में भी जगह-जगह डस्टबिन रखे हुए थे पर उनमें भी सूखा और गीला कचरा एक साथ ही पड़ा हुआ था।
मुझे लगता है कि इस समस्या का एक ही समाधान है- लोगों को यह शिक्षित करना कि सूखा कचरा और गीला कचरा क्या होता है। हम गांव के लोग चाहे अनपढ़ हों या पढ़े-लिखे खूब अच्छे से जानते हैं कि किस कूड़े का क्या करना है। मुझे दो दशक से ज्यादा हो गए शहर में रहते हुए पर आज भी अपने घर का गीला कचरा बाहर फेंकते या कूड़े वाले को देते समय यह लगता है कि कोई अनमोल खजाना मेरे घर से बाहर जा रहा है। इसलिए अधिकतर उससे कंपोस्ट खाद घर पर ही बना लेता हूं।
कूड़े की समस्या का समाधान सिर्फ डस्टबिन रख देना नहीं है। जब तक लोग इनका सही प्रयोग नहीं करेंगे, तब तक सिर्फ धन की बरबादी ही होगी। हमें सबसे पहले लोगों को कचरा प्रबंधन के प्रति जागरूक करना होगा। मुझे लगता है कक्षा एक से लेकर स्नातकोत्तर तक जितने भी क्लास हैं, सबमें गीले कचरे और सूखे कचरे पर एक पाठ जरूर होना चाहिए। जितनी भी प्रतियोगी परीक्षाएं हैं, सबमें गीला कचरे और सूखे कचरे पर सवाल जरूर होने चाहिए। शायद तभी भारत के लोग कुछ सीख-समझ पाएंगे वरना ऐसे ही हमारे शहर गंदगी से सड़ते रहेंगे और खेती की जमीन ज्यादा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग की वजह से बंजर होती रहेगी।
(लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड (न्यूट्रीवर्ल्ड) के चेयरमैन भी हैं)