Shri Nageshwar Jyotirlinga: नागेश्वर मन्दिर विष और विष से सम्बन्धित रोगों से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है। नागेश्वर शिवलिंग (Nageshwar Shivalinga) गोल काले पत्थर वाली द्वारका शिला पर त्रि-मुखी रुद्राक्ष रूप में स्थापित है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण यहां रुद्राभिषेक कर महादेव की आराधना करते थे। कलियुग में आदि गुरु शंकराचार्य ने कलिका पीठ पर अपने पश्चिमी मठ की स्थापना की।
न्यूज हवेली नेटवर्क
गुजरात में बेट द्वारका द्वीप मार्ग पर द्वारका पुरी से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Shri Nageshwar Jyotirlinga)। पुराणों में भगवान शिव को नागों का देवता बताया गया है और नागेश्वर (Nageshwar) का अर्थ होता है “नागों का ईश्वर”। रुद्र संहिता में भगवान शिव को “दारुकावने नागेशम” कहा गया है। इस कारण इस ज्योतिर्लंग को “दारुकवाना” के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इस ज्योतिर्लिंग (Jyotirlinga) की बड़ी महिमा बताई गयी है। कहा गया है कि जो भी श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान् शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा।
यह मन्दिर विष और विष से सम्बन्धित रोगों से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है। नागेश्वर शिवलिंग (Nageshwar Shivalinga) गोल काले पत्थर वाली द्वारका शिला पर त्रि-मुखी रुद्राक्ष रूप में स्थापित है। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण यहां रुद्राभिषेक कर महादेव की आराधना करते थे। कलियुग में आदि गुरु शंकराचार्य ने कलिका पीठ पर अपने पश्चिमी मठ की स्थापना की।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति की कथा (Story of origin of Nageshwar Jyotirlinga)
एक समय की बात है जब सुप्रिय नामक एक शिव भक्त तीर्थयात्रियों के साथ नाव पर यात्रा कर रहा था। उसी दौरान दारुक नामक राक्षस ने उनको बंदी बनाकर अपनी राजधानी दारुकवना में कैद कर लिया। सुप्रिय ने कारागार में भी भगवान शिव की भक्ति करना जारी रखा। इससे क्रोधित दारुक ने उन्हें मारने का प्रयास किया। सुप्रिय की प्रार्थना सुनकर भगवान् शंकर तत्क्षण उस कारागार में एक ऊंचे स्थान पर एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए। उन्होंने सुप्रिय को इस रूप मेंदर्शन देकर उसे अपना पाशुपास्त्र भी प्रदान किया। इस अस्त्र से दारुक और उसके सहायकों का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया। भगवान् शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा।
प्रचलित मान्यताओं में भारत में दो अन्य स्थानों पर भी नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirlinga) होने की बात कही जाती है, हालांकि शिव महपुराण के अनुसार समुद्र के किनारे द्वारका पुरी के पास स्थित शिवलिंग ही ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रमाणित होता है।
दर्शन का समय (Darshan time)
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (Nageshwar Jyotirlinga) मन्दिर सुबह छह बजे से अपराह्न 12:30 बजे तक भक्तों के लिए खुलता है। सुबह के समय श्रद्धालु ज्येतिर्लिंग पर दूध अर्पित करते हैं। इसके बाद मन्दिर सायंकाल पांच बजे से रात्रि 9:30 बजे तक खुला रहता है। इसी दौरान आरती की जाती है।
ऐसे पहुंचें नागेश्वर धाम (How to reach Nageshwar Dham)
वायु मार्ग : पोरबन्दर एयरपोर्ट नागेश्वर से करीब 125 किलोमीटर जबकि जामनगर एयरपोर्ट लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर है। मुम्बई इण्टरनेशनल एयरपोर्ट से इन दोनों स्थानों के लिए नियमित फ्लाइट उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग : द्वारका और ओखा यहां के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं। राजकोट, अहमदाबाद और जामनगर से यहां के लिए नियमित ट्रेन सेवा है।
सड़क मार्ग : द्वारका कई राज्यों से सड़क मार्ग के जरिये जुड़ा हुआ है। गुजरात और महाराष्ट्र के सभी बड़े शहरों से द्वारका के लिए सरकारी और निजी बस सेवाएं उपलब्ध हैं।