सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मंगलवार को इस बारे में कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि पोश एक्ट (posh act) को पूरे देश में समान रूप से लागू किया जाना चाहिए।
नई दिल्ली। (Supreme Court On POSH Act) सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए बने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 को सख्ती से लागू करने की ज़रूरत बताई है। शीर्ष अदालत ने इस बारे कई दिशानिर्देश जारी किए हैं। इनमें सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सभी सरकारी कार्यालयों में अनिवार्य रूप से आंतरिक शिकायत समिति (ICC) बनाने और निजी संस्थानों की भी निगरानी जैसी बातें शामिल हैं। न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मंगलवार को इस बारे में कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि पोश एक्ट (posh act)को पूरे देश में समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 को संक्षेप में पोश एक्ट (posh act) कहा जाता है।
शीर्ष अदालत ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 दिसंबर, 2024 तक प्रत्येक जिले में एक अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया जो 31 जनवरी, 2025 तक एक स्थानीय शिकायत समिति का गठन करेगा और तालुका स्तर पर नोडल अधिकारी नियुक्त करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने उपायुक्तों/जिला मजिस्ट्रेटों को पोश एक्ट की धारा 26 के तहत आंतरिक शिकायत समिति अनुपालन के लिए सार्वजनिक और निजी संगठनों का सर्वेक्षण करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।
पीठ ने अपने निर्देशों के अनुपालन के लिए 31 मार्च, 2025 तक का समय दिया और मुख्य सचिवों को क्रियान्वयन की निगरानी करने का निर्देश दिया। यह निर्देश न्यायालय के मई 2023 के आदेश के क्रियान्वयन से संबंधित एक याचिका पर आया जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को यह सत्यापित करने के लिए समयबद्ध अभ्यास करने का निर्देश दिया गया था कि क्या कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए सभी मंत्रालयों और विभागों में पैनल गठित किए गए हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इतने लंबे समय के बावजूद 2013 के यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम के प्रवर्तन में “गंभीर चूक” को देखना “चिंताजनक” है। इसे “दुखद स्थिति” बताते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सभी राज्य पदाधिकारियों, सार्वजनिक प्राधिकरणों और निजी उपक्रमों पर खराब प्रभाव डालता है। अदालत का यह निर्देश गोवा विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष ऑरेलियानो फर्नांडीस की तरफ से दायर याचिका पर आया जिन्होंने अपने खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों पर बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने गोवा विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद (अनुशासनात्मक प्राधिकरण) के उस आदेश के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्हें सेवाओं से बर्खास्त कर दिया गया था और भविष्य में नौकरी के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था। अदालत ने जांच कार्यवाही में प्रक्रियागत खामियों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन को देखते हुए हाई कोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश
1- 31 दिसंबर तक सभी राज्य सरकारें हर जिले में POSH से जुड़े मामलों को देखने के लिए अधिकारी नियुक्त करें
2- ज़िला स्तरीय अधिकारी 31 जनवरी, 2025 तक लोकल कम्प्लेंट कमिटी (LCC) बनाए
3- तहसील स्तर पर भी नोडल अधिकारियों की नियुक्ति हो
4- नोडल अधिकारियों और LCC का ब्यौरा शीबॉक्स (SheBox) पोर्टल पर डाला जाए
5- जिलाधिकारी (डीएम) सरकारी और निजी संस्थानों में POSH एक्ट की धारा 26 के तहत ICC
6- आंतरिक शिकायत समिति) के गठन को लेकर सर्वे करें
7- राज्य स्थानीय शीबॉक्स पोर्टल बनाएं
8- शीबॉक्स पर मिली शिकायतों को LCC और ICC को भेजा जाए
9- हर सरकारी कार्यालय में अनिवार्य रूप से ICC का गठन हो