परशुराम महादेव गुफा मन्दिर का निर्माण एक ही चट्टान को काट कर किया गया है। गुफा का ऊपरी भाग गाय के थन के समान प्रतीत होता है। गर्भगृह में भगवान शिव लिंग के रूप में विराजमान हैं। शिवलिंग के ऊपर गोमुख है जहां से प्राकृतिक रूप से शिवलिंग का जलाभिषेक होता है।
न्यूज हवेली नेटवर्क
Parshuram Mahadev Cave Temple : उदयपुर में तीन दिन घूमने के बाद हमारा अगला गन्तव्य था परशुराम महादेव गुफा मन्दिर। अरावली पहाड़ियों की तलहटी पर दो जिलों (राजसमन्द और पाली) की सीमाओं पर स्थित यह मन्दिर हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थस्थानों में गिना जाता है। इसका परिसर तीन किलोमीटर परिधि में फैला हुआ है। भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने यहां भगवान शिव का आह्वान अपने कठोर तप से किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मन्दिर का निर्माण परशुराम ने भगवान शिव से प्राप्त फरसे से एक बड़ी चट्टान को काटकर किया था। (Parshuram Mahadev Gupha Mandir)
उदयपुर से टैक्सी के द्वारा मन्दिर के पास तक पहुंचने में करीब ढाई घण्टे लगे। इसके बाद मन्दिर तक की खास और कठिन यात्रा शुरू होती है। दरअसल, समुद्र तल से लगभग 3600 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित इस मन्दिर (Parshuram Mahadev Cave Temple) तक पहुंचने के लिए 500 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है जो किसी कठिन परीक्षा से कम नहीं होता है। मन्दिर तक पहुंचने के मुख्य रूप से दो रास्ते हैं। पहला मारवाड़ वालों के लिए जो 1,600 मीटर लम्बा है। इसमें चढ़ाई कम है। दूसरा मेवाड़ से आने वालो के लिए जो 1,200 मीटर लम्बा है पर इसमें चढ़ाई अधिक है। मन्दिर परिसार की भौगोलिक स्थिति कुछ इस प्रकार की है कि गुफा राजसमन्द जिले में पड़ती है जबकि जल कुण्ड पाली जिले में हैं।
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जानकारों की मानें तो इस गुफा मन्दिर का निर्माण एक ही चट्टान को काट कर किया गया है। गुफा का ऊपरी भाग गाय के थन के समान प्रतीत होता है। गर्भगृह में भगवान शिव लिंग के रूप में विराजमान हैं। शिवलिंग के ऊपर गोमुख है जहां से प्राकृतिक रूप से शिवलिंग का जलाभिषेक होता है। नीचे तीन कुण्ड हैं जो बारहों महीने भरे रहते हैं।
मन्दिर से जुड़ी खास बातें और मान्यताएं
इस गुफा मन्दिर के साथ कई मान्यताएं, विचित्र तथ्य और कहानियां जुड़ी हैं। यहां तक पहुंचने के लिए सादड़ी होकर जाना सुगम रहता है जो फालना रेलवे स्टेशन से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। सादड़ी से कुछ दूर चलने पर परशुराम महादेव की बगीची आती है। कहा जाता है कि यहां पर भी भगवान परशुराम (Parshuram) ने शिवजी की आराधना की थी। गुफा में स्थित मन्दिर में शिव, पार्वती और कार्तिकेय की कई आकतियां उत्कीर्ण हैं। एक शिला पर एक राक्षस की आकृति भी बनी हुई है जिसका परशुराम ने अपने फरसे से वध किया था।
एक मान्यता के अनुसार वही व्यक्ति भगवान बदरीनाथ के धाम के कपाट खोल सकता है जिसने परशुराम महादेव गुफा मन्दिर के दर्शन किए हों। एक अन्य मान्यता के अनुसार यहां मौजूद शिवलिंग में एक छिद्र है जो पानी के हजारों घड़े डालने पर भी नहीं भरता है जबकि दूध का अभिषेक करने पर उसके अन्दर दूध नहीं जाता। मन्दिर में स्थापित शिवलिंग को स्वयंभू माना जाता है। कहा जाता है कि पृथ्वी के आठ चिरंजीवियों (अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और मार्कण्डेय ऋषि) में से एक परशुराम की तपस्या से प्रसन्न होकर महादेव शिवलिंग के रूप में यहा स्थापित हुए। स्थानीय तौर पर इस मन्दिर को अमरनाथ कहा जाता है क्योंकि जिस प्रकार अमरनाथ में भगवान शिव का साक्षात निवास माना जाता है, ठीक उसी प्रकार इस स्थान पर भी महादेव की मौजूदगी को महसूस किया जाता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार यह वही स्थान है जहां परशुराम ने कर्ण को शस्त्र शिक्षा दी थी। इस गुफा मन्दिर से लगभग 100 किलोमीटर दूर महर्षि जमदग्नि की तपोभूमि है जहां भगवान परशुराम का अवतार हुआ बताया जाता है। कुछ ही किलोमीटर दूर मातृ कुन्डिया नामक स्थान है। माना जाता है कि भगवान परशुराम को मातृहत्या के पाप से मुक्ती यहीं पर मिली थी। (Parshuram Mahadev Gupha Mandir)
कब जायें
अक्टूबर से फरवरी के बीच का समय यहां जाने के लिए सबसे अच्छा है। मन्दिर में अक्षय तृतीया, महाशिवरात्रि, रामनवमी और नवरात्रि जैसे त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। अगस्त और सितम्बर में यहां भव्य मेले का आयोजन होता है। इस दौरान यहां रोजाना हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। अप्रैल से जून के बीच यहां तेज गर्मी पड़ती है, इस कारण चढ़ाई पर चलना और सीढ़ियां चढ़ना मुश्किल हो जाता है। (Parshuram Mahadev Cave Temple)
खुलने और बन्द होने का समय : इस मन्दिर के द्वार साल में सभी दिन खुले रहते हैं। भक्त सुबह छह से सायंकाल सात बजे के बीच किसी भी समय पूजा-अर्चना कर सकते हैं।
ऐसे पहुंचें परशुराम महादेव गुफा मन्दिर
सड़क मार्ग : यह मन्दिर उदयपुर से लगभग 89 किमी पड़ता है। उदयपुर के रास्ते बस या टैक्सी के द्वारा आसानी से यहां पहुंच सकते हैं। यह कुम्भलगढ़ दुर्ग से करीब आठ, पाली से करीब 114 और जोधपुर से लगभग 62 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग : फालना रेलवे स्टेशन यहां से करीब 65 और रानी रेलवे स्टेशन लगभग 66 किलोमीटर दूर है। मुम्बई, दिल्ली, पुणे, अजमेर, बीकानेर, बरेली आदि से फालना के लिए ट्रेन मिलती हैं। रानी के लिए मुम्बई, दिल्ली, बंगलुरु, पुरी, अजमेर, हरिद्वार, लखनऊ आदि से ट्रेन सेवा है।
वायु मार्ग : उदयपुर के महाराणा प्रताप एयरपोर्ट से यह मन्दिर करीब 101 किलोमीटर पड़ता है। दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई, अहमदाबाद, जोधपुर, जयपुर आदि से उदयपुर के लिए नियमित उड़ानें हैं।
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