पाकिस्तानी नेता द्विपक्षीय व्यापार फिर बहाल करने की बात तो करते हैं पर इस्लामाबाद ने अब तक ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिससे नई दिल्ली उस पर विश्वास कर सके।
नई दिल्ली। (India-Pakistan relations) वादों से मुकरने और दगाबाजी का लंबा इतिहास रखने वाला पाकिस्तान अब भारत के साथ दोस्ती के तराने गा रहा है। आर्थिक तंगी और अराजकता के कारण तिल-तिल कर मर रहे इस देश को इस समय भारत की याद आ रही है। गंभीर आर्थिक संकट, अफगानिस्तान के साथ तनावपूर्ण रिश्ते, ईरान के साथ तनातनी, भारत के साथ व्यापार के जरिए होने वाला लाभ आदि कुछ ऐसे कारक हैं जो पाकिस्तान को भारत के साथ रिश्ते सुधारने के लिए सोचने को मजबूर कर रहे हैं। सरकार के अलावा पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और जुल्फीकार अली भुट्टो के धेवते होने के कारण विदेश मंत्री के पद पर रह चुके बिलावल भुट्टो जरदारी सभी भारत-पाकिस्तान संबंध बहाल करने पर जोर दे रहे हैं। विदेश मंत्री के रूप में बिलावल का ट्रैक रिकॉर्ड जैसा भी रहा हो पर उन्हें अब पाकिस्तान के बड़े नेताओं में शुमार किया जाता है।
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के भाई व पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने कहा है कि कि हाल ही में संपन्न शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन पाकिस्तान और भारत के बीच संबंधों को सुधारने की दिशा में एक नई शुरुआत साबित हो सकता है। तीन दिन पहले ही पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने दोनों देशों के बीच एक आम सहमति पर पहुंचने की जरूरत पर जोर दिया था, खासतौर पर जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद के मुद्दे पर।
कुल मिलाकर देखा जाए तको पाकिस्तान में भारत के साथ रिश्ते सुधारने को लेकर एक राजनीतिक सहमति बनती दिख रही है। उसके हुक्मरान शायद यह हकीकत समझ चुके हैं कि भारत के साथ अच्छे संबंध ही उनके देश के लिए बेहतर भविष्य की गारंटी है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक, भारत-पाकिस्तान संबंधों के बारे में भारतीय पत्रकारों से बात करते हुए सत्तारूढ़ पीएमएल-एन का नेतृत्व करने वाले और तीन बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके नवाज शरीफ ने कहा कि दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों में सुधार से कई क्षेत्रों में प्रगति का रास्ता खुल सकता है।
शहबाद शरीफ की दोगली भाषा
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भारत के साथ व्यापार शुरू करने की बात तो करते हैं पर दुनिया के हर फोरम में कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप से भारत पर हमला करते रहे हैं। पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने इस साल मार्च में संकेत दिया कि इस्लामाबाद की नई दिल्ली के साथ व्यापार को फिर से शुरू करने की इच्छा है। डार ने कहा था , “पाकिस्तान का व्यापारिक समुदाय प्रत्यक्ष व्यापार को फिर से शुरू करने के लिए बहुत उत्सुक है.” डार की पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन, का बड़ा सपोर्ट बेस- छोटे पूंजीपतियों और बड़े उद्योगपतियों का रहा है. इन वर्गों ने हमेशा भारत के साथ व्यापार संबंधों को सामान्य बनाने में अपना और पाकिस्तान का फायदा देखा है। गरीबी से जूझ रहे पाकिस्तान को इस वक्त हार्ड कैश की जरूरत है और भारत से दोस्ती इस मामले में उसकी परेशानियों का हल साबित हो सकती है।
पीठ पर किए गए वार नहीं भूल सकता भारत
पाकिस्तानी नेता द्विपक्षीय व्यापार फिर बहाल करने की बात तो करते हैं पर इस्लामाबाद ने अब तक ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिससे नई दिल्ली उस पर विश्वास कर सके। भारत की सबसे बड़ी शर्त सीमा पार आतंकवाद (cross-border terrorism) को खत्म करने की है पर पाकिस्तान, खासतौर पर उसके अवैध कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादियों की फसल लहलहा रही है। अतीत में जायें तो याद आता है कि लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी दोस्ती का संदेश लेकर स्वयं पाकिस्तान गए पर बदले में उधर से कारगिल और पुलवामा ही मिले।