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शस्य श्यामला मालवा की धरती के वाशिन्दे मुख्यतः शाकाहारी हैं। मालवा के मालपुए प्रसिद्ध हैं। राजा भोज ने “श्रृंगार प्रकाश” में अवन्ति (उज्जैन) के अपूप या मालपुए की प्रसिद्धि की चर्चा की है, “अपूपा हिता एषां आपूपिकाः अवन्तयः।”

अनुवन्दना माहेश्वरी

मालवा की धरती जितनी उर्वरा है, उतनी ही समृद्ध और विविधतापूर्ण है यहां की भोजन परम्परा। इस क्षेत्र में रबी और खरीफ दोनों ही फसलें भरपूर होती हैं। यहां मक्का, ज्वार, बाजरा, गेहूं, चावल, तूवर, मूंग, चना, उड़द, सोयाबीन, सरसों, मूंगफली आदि के भरपूर खेती होती है। इन्हीं फसलों पर आधारित हैं यहां के व्यंजन। इनमें मुख्य हैं दाल-बाटी-चूरमा, दाल-बाफला, दाल-पानिया, मक्के की रोटी, पकौड़े, बेसन के सेव, गेहूं और चने के तले हुए रेलमे (चिकारे), गेहूं के लड्डू, उड़द के लड्डू, थूली लापसी, मोतीचूर के लड्डू  आदि। ये चिरकाल से मालवा में घर-घर में बनते आ रहे हैं। (Malwa: Fertile land, desi taste)मालवा में आपको गेहूं, मूंग, चना, ज्वार, मक्का, चावल आदि के पापड़ भी मिलेंगे जो सेंक कर या तल कर खाये जाते हैं। आम के रस से पापड़ के अलावा आचार, मुरब्बा और चटनी भी बनायी जाती है। खास बात यह कि शस्य श्यामला मालवा की धरती के वाशिन्दे मुख्यतः शाकाहारी हैं। मालवा के मालपुए प्रसिद्ध हैं। राजा भोज ने “श्रृंगार प्रकाश” में अवन्ति (उज्जैन) के अपूप या मालपुए की प्रसिद्धि की चर्चा की है, “अपूपा हिता एषां आपूपिकाः अवन्तयः।”

मालपुआमालपुआ
मालपुआ

मालवा-निमाड़ क्षेत्र में कुल 15 जिले इन्दौर, धार, खरगौन, खण्डवा, बुरहानपुर, बड़वानी, झाबुआ, अलीराजपुर, उज्जैन, रतलाम, मन्दसौर, शाजापुर, देवास, नीमच और आगर शामिल हैं। यह क्षेत्र जितना विस्तृत है, उतनी ही विविधतापूर्ण और समृद्ध है यहां की पाककला। उदाहरण के लिए इन्दौर में लोगों के दिन की शुरुआत पोहा और जलेबी के साथ चाय की चुस्कियों से होती है। इसके बाद दोपहर से रात को सोने तक यहां के लोग चने से बने विभिन्न व्यंजनों से लेकर खमन, कचौरी–आलू, कचौरी, दाल कचौरी, समोसा, बेक्ड समोसा, भेल पूरी, पानी पुरी, आलू टिकिया, मठरी, सेव, गजक,  भुट्टे की कीस, गुलाब जामुन, रबड़ी, गरम मीठा दूध, गाजर हलवा, मूंग हलवा, मावा बाटी आदि डकारते रहते हैं।

जहां तक निमाड़ की बात है, खाने की चीजों में तीखा तड़का यहां की वास्तविक पहचान है। दाल-चिकोली, मेथी के पराठे, शाही खिचड़ी, दूध के तड़के वाली सेव की सब्जी इनको खासतौर पर पसन्द है तो ज्वार की रोटी समेत इससे बनने वाले विभिन्न व्यंजन इनके रोजाना के खानपान का अहम हिस्सा हैं।

मालवा के कुछ सर्वाधिक लोकप्रिय व्यंजन (Some of the most popular dishes of Malwa)

दाल,बाटी और चूरमा :

दाल,बाटी और चूरमा
दाल,बाटी और चूरमा

दाल, बाटी और चूरमा दरअसल तीन व्यंजन हैं जो एक साथ थाली में परोसे जाते हैं। बाटी गेहूं के मोटे आटे से बनाई जाती है जबकि चूरमा भुने आटे, देसी घी और मेवों का मीठा मिश्रण है। दाल, बाटी और चूरमा आमतौर पर दोपहर के भोजन के समय ही खाये जाते हैं। इनमें खुले हाथ से देसी घी का इस्तेमाल किया जाता है जो इनके स्वाद को और बढ़ा देता है। बाटी बनाने के लिए गेहूं के आटे और बेसन को दही, घी, अजवाइन, नमक और पानी डालकर नरम गूंथ लेते हैं। फिर कागजी नींबू के आकार की गोलियां बनाकर एक घंटे के लिए ढक कर रख देते हैं। इसके बाद इन्हें कोयले और कंडे की आंच में सुनहरा होने तक सेंका जाता है। इसके बाद ऊपर से गर्म घी डालते हैं। नींबू के आकार की इन्हीं गोलियों को यदि सेंकने के बजाय पानी में उबाल लिया जाये और फिर अंगारों पर सेंका जाए तो बाफला तैयार हो जाता है। बाफले को घी में डुबोकर परोसा जाता है।

बाटी के साथ खायी जाने वाली दाल को बनाने के लिए चना, मूंग, तुअर, मसूर आदि को एक साथ उबाला जाता है। फिर इसमें तेजपत्ता, हींग, प्याज, अदरक-लहसुन का पेस्ट और टमाटर का तड़का लगाते हैं। इस दाल को हल्का गाढ़ा रखते हैं। इसे देसी घी, नींबू का रस और हरा धनिया मिलाने के बाद परोसा जाता है।

चूरमा बनाने के लिए बाटी को हल्का ठंडा होने के बाद तोड़ कर पीस लेते हैं। इसके बाद इसमें गुड़ या शक्कर, सूखे मेवे और इलायची पाउडर गरम घी डालकर मिलाये जाते हैं। इस मिश्रण को लोग बड़े चाव से खाते हैं, हालांकि कुछ लोग इस मिश्रण के लड्डू भी बांध लेते हैं।

बेसन के सेव :

बेसन सेव
बेसन सेव

बेसन के सेव बेसन और तरह-तरह के मसालों से तैयार की जाने वाली नमकीन है। यह लौंग, लहसुन, काली मिर्च, पुदीना आदि अलग-अलग स्वादों में बनायी जाती है। सेव बनाने के लिए मुख्य रूप से मूंगफली के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इसको लोग स्नैक्स की तरह खाना पसन्द करते हैं। खासकर इन्दौर और रतलाम के लोग तो इसके दीवाने हैं। यहां आलू की टिक्की, कचौरी, समोसा और पोहे की प्लेट को तैयार करने के बाद ऊपर से बेसन के सेव डाल कर सर्व किया जाता है।

पोहा :

पोहा
पोहा

चावल के मोटे चीवड़े यानि पोहा से बनने वाला पोहा मालवा का सबसे पसंदीदा व्यंजन है। इन्दौर वाले तो पोहा को लेकर तरह-तरह के प्रयोग करते रहते हैं। किसी को मूंगफली और आलू मिला पोहा पसन्द है तो कोई हरी मटर डले पोहे का दीवाना है। तीखी तरी वाला पोहा तो इन्दौर की ही ईजाद कहा जाता है। हालांकि लोग कहते हैं कि मालवा खासतौर पर इन्दौर के लोगों के दिन की शुरुआत पोहे के नाश्ते के साथ होती है पर जहां तक मेरा अनुभव है, मालवा के लोग पोहे को कभी भी खा सकते हैं। यहां तक की रात के भोजन के बाद भी पोहा पेश किया जाये तो उसे उदरस्थ करने में विलम्ब नहीं करते।

ज्‍वार की रोटी-अमाड़ी की भाजी :

ज्‍वार की रोटी-अमाड़ी की भाजी
ज्‍वार की रोटी-अमाड़ी की भाजी

ज्वार की रोटी और आमाड़ी की भाजी निमाड़ का पारम्परिक भोजन है। आमड़ी एक बहु उपयोगी पौधा है जिसके तने से रस्सी बनायी जाती है जबकि पत्तियां भाजी बनाने के काम आती हैं। इसके फूलों से जैम, जैली आदि तैयार की जाती हैं। आमड़ी के पौधे की पत्तियों को सुखाकर भाजी के रूप में उपयोग किया जाता है। इसे बनाने के लिए तुअर की दाल अधकचरी उबाली जाती है जबकि अमाड़ी की सूखी पत्तियों को अलग से उबाला जाता है। फिर दोनों को मिलाकर छौंक लगाकर भाजी बनाई जाती है। इसके बाद लहसून, राई और तेल का तड़का तैयार किया जाता है जिसे भाजी में ऊपर से डाला जाता है। अमाड़ी का स्वाद खट्टा होता है,  इसलिए इसका खटाई के रूप में भी उपयोग किया जाता है। ताजी अमाड़ी यानि इसके हरे पत्तों को धनिया और हरी मिर्च के साथ पीसकर चटनी भी बनायी जाती है।

 

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