मैनपाट (Mainpat) विन्ध पर्वतमाला पर समुद्र की सतह से 1,152 मीटर (अधिकतम) ऊंचाई पर स्थित है। भौगोलिक रूप से देखें को इसकी लम्बाई 28 किलोमीटर और चौडाई 10 से 13 किलोमीटर तक है। मैनपाट (Mainpat) नाम दो शब्दों से मिलकर बना है- मैन मतलब मिट्टी और पाट का अर्थ है पठार। यहां का मौसम सालभर सर्द रहता है।
न्यूज हवेली नेटवर्क
घुमक्कड़ी का भी अपना एक अलग ही आनन्द है। एक ऐसी लत जो लग जाये तो छूटनी मुश्किल। हाल ही में इसकी तलब फिर उठी तो हम लोग निकल पड़े छत्तीसगढ़ की ओर। रायपुर और कबीरधाम जिले में स्थित भोरमदेव मन्दिर होते हुए कोरबा पहुंचे। यहां पर कुछ परिचितों के साथ बातचीत में मैनपाट (Mainpat) की जिक्र आया। मेरे लिए यह नाम एकदम नया था। पता चला कि अभी तक लगभग पर्दे में रहे इस पर्वतीय स्थान में खूबसूरत वादियां, घने जंगल, झरने, जलप्रपात, मनोहारी परिदृश्य और कुछ नदियों के उद्गम स्थल हैं।
सरगुजा के जिला मुख्यालय अम्बिकापुर पहुंच कर हमने टैक्सी ली और चल दिये मैनपाट (Mainpat) के लिए जो अम्बिकापुर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर है। पठारीय क्षेत्र में सड़क मार्ग से यात्रा आपको प्रकृति के विविध रंगों से रू-ब-रू कराती है। मैनपाट मार्ग पर दरिमा-नवानगर से आगे करीब 15 किलोमीटर का सफर पहाड़ों की घुमावदार सड़कों से होकर है। इस बलखाते रास्ते के दोनों ओर हरे-भरे वृक्ष, बड़ी-बड़ी चट्टानें और खाइयां रोमांच का एहसास करा रही थीं।
मैनपाट (Mainpat) विन्ध पर्वतमाला पर समुद्र की सतह से 1,152 मीटर (अधिकतम) ऊंचाई पर स्थित है। भौगोलिक रूप से देखें को इसकी लम्बाई 28 किलोमीटर और चौडाई 10 से 13 किलोमीटर तक है। मैनपाट (Mainpat) नाम दो शब्दों से मिलकर बना है- मैन मतलब मिट्टी और पाट का अर्थ है पठार। यहां का मौसम सालभर सर्द रहता है। खास सर्दी के मौसम में यहां अक्सर पाला पड़ता है जो जमने पर बर्फ की चादर बिछी होने का एहसास कराता है। इसी के चलते इस छोटे-से कस्बे को “छत्तीसगढ़ का शिमला” भी कहा जाने लगा है।
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रिहन्द (रेर, रेणुका) और माण्ड नदियों के उद्गम स्थल मैनपाट क्षेत्र में ही हैं। यह कालीन और पामेलियन कुत्तों के लिए भी प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र के नर्मदापुर, कमलेश्वर, डाण्ड केसरा, पथरई, बरीमा गांव आदि स्थानों में बाक्साइट की खदानें हैं। यहां टाऊ (कुट्टू) की खेती बड़े पैमाने पर होती है जिसके पौधों पर सफेद फूल खिलने पर दूर तलक सफेद चादरें बिछी होने का एहसास होता है। टाऊ को फलाहारी भोजन माना जाता है और उपवास के दौरान इसके आटे से व्यंजन बनाते हैं। बताते हैं कि तिब्बतियों के बसने के बाद यहां टाऊ की खेती शुरू हुई। तिब्बतियों के आने के बाद ही यहां सेब के पौधे रोपे गये जो अब बागानों का रूप ले चुके हैं। यहां नाशपाती, चेरी, स्ट्रॉबेरी, अमरूद, अनार आदि का भी उत्पादन होता है।
प्राकृतिक सौन्दर्य और खनिज सम्पदा के मामले में अत्यन्त समृद्ध होने के बावजूद मैनपाट (Mainpat) में सुविधाओं का अभाव है। पर्यटकों के ठहरने, खाने-पीने और सुरक्षा के इन्तजाम भी नाकाफी हैं।
मैनपाट का इतिहास और संस्कृति (History and Culture of Mainpat)
प्राकृतिक सौन्दर्य और खनिज सम्पदा के मामले में धनी मैनपाट इतना उपेक्षित रहा है कि इसकी बसासत के लेकर कोई अधिकृत दस्तावेज नहीं मिलता है। सन् 1962 तक यह किसी गांव की तरह ही था। तिब्बत में चीन के कब्जे के बाद 1962-63 में हजारों तिब्बती बौद्धों ने भारत में शऱण ली। तब इनमें से करीब चौदह सौ लोगों के लिए भारत सरकार ने यहां तीन हजार एकड़ जमीन आवंटित की थी। तभी से यह एक कस्बे का आकार लेने लगा लेकिन मांझी, मंझवार, कंवर, पहाड़ी कोरवा जैसे आदिवासी समुदायों का यह पूर्ववर्ती घर अप्रवासियों का निवास स्थान बन गया। यहां तिब्बतियों के सात कैम्प हैं। तिब्बतियों के मकान, घरों के सामने लहराते झण्डे और बौद्ध मठ-मन्दिर अनायास ही तिब्बत की याद दिला देते हैं। इस कारण मैनपाट को “छत्तीसगढ़ का तिब्बत” भी कहा जाता है। दुनिया भर से बड़ी संख्या में बौद्ध यहां आते हैं।
मैनपाट के प्रमुख दर्शनीय स्थल (Major tourist places of Mainpat)
टाइगर पॉइन्ट :
इसे महादेव मुड़ा जलप्रपात भी कहते हैं। महादेव मुड़ा नदी की तेज धारा के करीब 60 मीटर की ऊंचाई से छलांग लगाने की वजह से इसका निर्माण हुआ है। चट्टानों को काट कर बनायी गयी सीढ़ियों से उतर कर यहां तक पहुंच सकते हैं। हरेभरे जंगल के बीच इस स्थान के शांत वातावरण में चिड़ियों की चहचहाहट और बंदरों की उछल-कूद अत्यन्त आनन्द देती है। कई साल पहले यहां के जंगलों में बाघ देखा गया था जिसके बाद इसे टाइगर पॉइन्ट भी कहा जाने लगा।
जलजली पॉइन्ट :
इसे दलदली पॉइन्ट भी कहते हैं और यह मैनपटा से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर हरेभरे जंगलों की बीच है। यह देखने में भले ही साधारण-सा लगे पर वास्तव में अद्वितीय स्थानों में से एक है। यह एक असामान्य भूमि की सतह है जिसमें ट्रैम्पोलिन की तरह उछाल है। इस कारण कूदने पर जमीन हिलती हुई लगती है। इस कारण इसे उछलती हुई भूमि के रूप में भी जाना जाता है। यकीन मानिये, यहां पहुंच कर आप इस अनुभव को लेने के लिए उछल-कूद करने पर मजबूर हो जायेंगे।
ठिनठिनी पत्थर :
मैनपाट से करीब 36 किलोमीटर दूर स्थित छिन्दकालो गांव में सैकडों पत्थर का एक समूह है। इन पत्थरों के बीच करीब छह फिट का एक रहस्यमयी पत्थर है। काले पत्थरों के बीच स्थित इस धुंधले सफेद रंग के पत्थर की ग्रामीण पूजा करते हैं। अन्य पत्थरों से अलग दिखने और आवाज करने वाले इस पत्थर के अद्भुत व्यवहार की वजह कोई नहीं जानता है। इसको किसी ठोस चीज से ठोकने पर धातु को पीटने के जैसी आवाज आती है। खास बात यह कि इसके चारों तरफ से अलग-अलग धातु की आवाज आती है। किसी स्थान को ठोकने पर स्कूल की घण्टी की तरह आवाज आती है तो कहीं पर पीतल के बर्तन के तरह आवाज होती है। इसी तरह कांसे के बर्तन और मोटे बर्तन को पीटने जैसी आवाजें भी आती हैं। इसको ठोकने पर तरह-तरह की आवाजें क्यों निकालती हैं, यह आज भी रहस्य बना हुआ है।
मछली पॉइन्ट :
मैनपाट से लगभग 14 किलोमीटर दूर मछली नदी के किनारे यह एक अत्यन्त सुन्दर परिदृश्य वाला स्थान है। यहां पहाड़ियों के बीच बहती नदी झरना बनाती है जबकि एक जगह जलधारा सीधे ऊंची चट्टानों से नीचे गिरती है। मछली नदी और मछलियों की बहुतायत की वजह से इस स्थान को मछली पॉइन्ट कहा जाता है। बरसात के मौसम में इस स्थान की खूबसूरती देखते ही बनती है।
उल्टा पानी :
मैनपाट से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित इस स्थान का असली नाम विसरपानी है। इस स्थान पर ऐसा प्रतीत होता है कि पानी का बहाव ऊंचाई की ओर है। पानी का बहाव ऊंचाई की ओर क्यों है, इसका कारण अभी तक पता नहीं चल सका है। इस स्थान पर कई अनुसंधानकर्ता और विशेषज्ञ आये लेकिन सभी का अलग-अलग मत है। कई लोग मानते हैं की यह केवल एक दृष्टि भ्रम (ऑप्टिकल इल्युजन) तो कुछ लोगों का कहना है की यहां गुरुत्वाकर्षण बल अधिक है। कुछ लोगों कहना है कि यहां लगभग 185 मीटर के दायरे में चुम्बकीय क्षेत्र मौजूद हैं
परपटिया :
यह मैनपाट के पश्चिमी छोर पर है। यहां से बन्दरकोट की ऊंची दुर्गम पहाड़ी, रक्समाड़ा की प्रकृतिक गुफा, जनजातीय आस्था का प्रतीक दूल्हा-दुल्हन पर्वत, बनरई बांध, श्याम घुनघुट्टा के बांध के साथ ही “मेघदूतम” की रचनास्थली रामगढ़ पर्वत दिखाई देते हैं। इस स्थान से सूर्यास्त देखना एक सुखद अनुभव है।
दारोगा झरना : मैनपाट बस स्टैंड से करीब छह किलोमीटर दूर यह एक आकर्षक पर्यटन स्थल है।
एलिफेन्ट पॉइन्ट : जमदरहा नामक पहाड़ी नदी इस झरने को बनाती है। घनघोर जंगल के बीचोबीच स्थित इस झरने में बारहों महीने पानी बहता है।
मेहता पॉइन्ट : यह जगह एक सुन्दर लैण्डस्केप की तरह है जहां से सूर्योदय एवं सूर्यास्त के दृश्य अत्यन्त मनोहारी होते हैं।
सरभंजा जलप्रपात : माण्ड नदी चट्टानों से छलांग लगाकर इस प्रपात की रचना करती है।
बौद्ध मठ :
मैनपाट अपने बौद्ध मठों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां कुल चार मठ हैं। इनमें से एक में गौतम बुद्ध की 20 फीट ऊंची आकर्षक प्रतिमा है। इस मूर्ति को नेपाल और भूटान के कारीगरों ने मैनपाट की बॉक्साइट मिश्रित मिट्टी से बनाया था। बुद्ध पूर्णिमा पर यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
कब जायें
गर्मी के मौसम में सर्दी का एहसास कराने वाले इस छोटे-से हिल स्टेशन पर कभी भी जा सकते हैं। हालांकि गर्मी और मानसूनी मौसम सबसे अच्छे हैं। गर्मी के मौसम में जहां हल्की ठण्ड होती है, वहीं मानसून के दौरान यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य और भी निखर जाता है और तापमान सुकून देने वाला होता है। अप्रैल से अक्टूबर के बीच यहां घूमने का कार्यक्रम बनाएं तो बेहतर रहेगा।
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ऐसे पहुंचें
वायु मार्ग : निकटतम एयरबेस अम्बिकापुर सिटी एयरपोर्ट (दरिमा हवाई अड्डा) यहां से करीब 33 किलोमीटर पड़ता है। एक एक बहुत छोटा हवाईअड्डा है और यहां गिनीचुनी फ्लाइट ही आती हैं। रायपुर का स्वामी विवेकानन्द इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 381 और रांची का बिरसा मुण्डा एयरपोर्ट लगभग 298 किमी दूर है।
रेल मार्ग : मैनपाट होते हुए कोई भी रेल लाइन नहीं है। निकटतम रेलहेड अम्बिकापुर रेलवे स्टेशन यहां से करीब 57 किमी पड़ता है। विश्रामपुर रेलवे स्टेशन से यहां तक पहुंचने के लिए करीब 74 किमी का सफर करना पड़ता है।
सड़क मार्ग : अम्बिकापुर से मैनपाट जाने के लिए दो रास्ते हैं। पहला रास्ता अम्बिकापुर-सीतापुर रोड से होकर जबकि दूसरा ग्राम दरिमा होते हुए जाता है। मैनपाट दिल्ली से करीब 1,176 किलोमीटर, रायपुर से 366, राउरकेला से 255 और कोरबा से लगभग 202 किलोमीटर पड़ता है।
[…] मैनपाट : “छत्तीसगढ़ का शिमला” जहां साल… […]
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