Fri. Nov 22nd, 2024
snow leopard in kamlang wildlife sanctuarysnow leopard in kamlang wildlife sanctuary

783 वर्ग किलोमीटर (302 वर्ग मील) में फैले कमलांग वन्यजीव अभयारण्य के उत्तर में लैंग नदी बहती है जबकि नमदाफा राष्ट्रीय उद्यान इसकी दक्षिणी सीमा बनाता है। यह अरुणाचल प्रदेश के 12 संरक्षित वन क्षेत्रों में से एक है।

न्यूज हवेली नेटवर्क

ने जंगल, तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल, घास-झाड़ियों के मैदान, कल-कल बहती छोटा-छोटी पहाड़ी नदियां और झरने। यह कमलांग वन्यजीव अभयारण्य (Kamlang Wildlife Sanctuary) है। लोहित जिले के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित इस अभयारण्य का नामकरण इसके बीच से होकर बहती कमलांग नदी के नाम पर किया गया है। इसे 1989 में वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया। भारत सरकार के प्रोजेक्ट टारगर के अन्तर्गत अरुणाचल प्रदेश सरकार ने छह सितम्बर 2016 को एक अधिसूचना जारी कर इस अभयारण्य को बाघ अभयारण्य का दर्जा प्रदान किया। यह राज्य का तीसरा और देश का 50वां बाघ अभयारण्य है। देश में इस समय 55 टाइगर रिजर्व हैं। (Kamlang Wildlife Sanctuary: Nature’s boon in the land of sunrise)

monal website banner

783 वर्ग किलोमीटर (302 वर्ग मील) में फैले इस अभयारण्य के उत्तर में लैंग नदी बहती है जबकि नमदाफा राष्ट्रीय उद्यान इसकी दक्षिणी सीमा बनाता है। यह अरुणाचल प्रदेश के 12 संरक्षित वन क्षेत्रों में से एक है। नामसाई सब-डिवीजन का वकारो इसका सबसे करीबी शहर है। नामसाई शहर वकारो से करीब 70 किलोमीटर दूर है।

अभयारण्य में 600 मीटर की ऊंचाई से ऊपर कई जलाशय हैं। इनमें 1,500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ग्लो लेक शामिल है जो आठ वर्ग किलोमीटर में फैली है। शहरी भीड़भाड़ और पक्की सड़कों से दूर स्थित इस झील तक केवल ट्रेकिंग द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। अभयारण्य में ही स्थित परशुराम कुण्ड अपनी स्थलाकृतिक विशेषता की वजह से जाना जाता है। यह एक तीर्थस्थान है।

कमलंग वन्यजीव अभयारण्य, अरुणाचल प्रदेश

जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत सम्पन्न इस अभयारण्य के आसपास मिसमी, दिगारु, मिजो समेत कई जनजातियां रहती हैं। इन जनजातियों को मानना है कि ये महाभारतकालीन रुकमो नामक राजा के वंशज हैं। हालांकि इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता है। उष्णकटिबंधीय और उप उष्णकटिबंधीय जलवायु क्षेत्रों में स्थित इस अभयारण्य में स्तनधारियों की 61, पक्षियों की 105 और सरीसृपों की 20 प्रजातियां मिलती हैं। यह भारत की चार बड़ी बिल्ली प्रजातियों (बाघ, तेंदुआ, स्नो लेपर्ड और क्लाउडेड लेपर्ड) का निवास स्थान भी है। इसके अलावा यहां उड़ने वाली गिलहरी, जंगली सूअर, सांभर, बार्किंग हिरण, एशयाई हाथी, ब्लैक जायंट गिलहरी और कुछ उड़ने वाली गिलहरियां भी हैं। भारत में पाये जाने वाले प्राइमेट की 15 में से छह प्रजातियां इस अभयारण्य में पाई जाती हैं। ये हैं- छाया हुआ लंगूर, रीसस मकाक, स्टम्प-पूंछ मकाक, असमिया मकाक, पूर्वी गिब्बन और बंगाल धीमी। यहां पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों को भी देख सकते हैं जिनमें सफेद पेट वाला बगुला, हॉर्नबिल, ग्रेट इण्डियन ह़ॉर्निबल,बैंबू, गेमहर, बारविंग, पैरोटबिल आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा यहां रेटुसा समेत कई खूबसूरत प्रजातियों के फूल भी देख सकते हैं। इनमें राउवोल्फिया, एंडोग्रफिस, विधानिया, टीनोस्पोरा, ओरोकिस्लम, डायोस्कोरिया, एक्वीलेरिया आदि प्रजातियां शामिल हैं।

कपिलधारा जलप्रपात : अमरकण्टक में नर्मदा की पहली छलांग

अभयारण्य के ऊपरी क्षेत्रों खासकर नमदाफा राष्ट्रीय उद्यान (Namdapha National Park) की सीमा पर स्थित दफाबम चोटी पर अल्पाइन वनस्पतियां हैं जबकि तलहटी (1,200 मीटर से नीचे) में उष्णकटिबंधीय आर्द्र सदाबहार वन। यहां वृक्षों की करीब 150 प्रजातियां मिलती हैं। इनमें प्रमुख हैं- कैनारियम रेजिनिफेरम, टर्मिनालिया चेबुला, गमेलिना अर्बोरिया और अमोरा वालिची। इसके अलावा यहां कई तरह की जड़ी-बूटियां, बांस, घास और झाड़ियां भी मिलती हैं। इस संरक्षित क्षेत्र में ऑर्किड की 49 प्रजातियों की पहचान हो चुकी है।

कब जायें

कमलंग वन्यजीव अभयारण्य

उगते सूर्य की धरती पर स्थित कमलांग वाइल्ड लाइफ अभयारण्य (Kamlang Wildlife Sanctuary) का मौसम पूरे साल शानदार बना रहता है। इस कारण यहां कभी भी घूमा जा सकता है। हालांकि आदर्श समय अक्टूबर से लेकर मार्च के मध्य का बताया जाता है क्योंकि इस दौरान यह अभयारण्य हरियाली से भरा रहता है। फोटोग्राफी का असली आनन्द भी इसी मौसम में है। आपको हिमपात का आनन्द लेना हो अथवा स्नो स्पोर्ट्स में शामिल होना हो, दिसम्बर और जनवरी सबसे अच्छा समय है।

अभयारण्य के आसपास करने योग्य चीजें

मोटरसाइकिल राइडिंग, घुड़सवारी, रॉक क्लाइम्बिंग, स्नो स्पोर्ट्स, पैराग्लाइडिंग आदि। ये सारी गतिविधियां मौसम और समय के अनुसार बदलती रहती हैं।

आसपास के देखने योग्य स्थान

लोहित जिला मुख्यालय तेजू अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध है। यहां कई मन्दिर, मठ और गुरुद्वारा हैं। डोंग वैली में सूर्योदय देखने का अपना अलग आनन्द है। सर्दी के मौसम में चाय या कॉफी की गर्मागर्म प्याली के साथ सूर्योदय और सूर्यास्त देखने का एहसास क्या होता है, यह समझने के लिए आपको यहां आना होगा। तेजू शहर से करीब 48 किलोमीटर दूर स्थित परशुराम कुण्ड अपनी बनावट, प्राकृतिक सुन्दरता और शुद्ध-शान्त वातावरण के लिए जाना जाता है। ट्रेकिंग कर ग्लो लेक पहुंचना भी एक अलग तरह का अनुभव है।

वन-सम्पदा के मामले में धनी प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश वन-सम्पदा की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध है। यहां कई वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान हैं। इनमें दिबांग वन्यजीव अभयारण्य, पाखुई (पक्के बाघ) वन्यजीव अभयारण्य, डेइंग एरिंग वन्यजीव अभयारण्य, महो वन्यजीव अभयारण्य, कमलांग वन्यजीव अभयारण्य, टैली घाटी वन्यजीव अभयारण्य, ईगल नेस्ट अभयारण्य, नमदाफा राष्ट्रीय उद्यान, नामेरी राष्ट्रीय उद्यान, नौमिंग राष्ट्रय उद्यान, केन राष्ट्रीय उद्यान आदि शामिल हैं।

ईगल नेस्ट वन्यजीव अभयारण्य : पूर्वोत्तर भारत में पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग

ऐसे पहुंचें

वायु मार्ग : कमलांग वन्यजीव अभयारण्य का निकटतम हवाई अड्डा डिब्रूगढ़ एयरपोर्ट यहां से करीब 159 किलोमीटर दूर है। डिब्रूगढ़ से 15 किमी उत्तर-पूर्व में मोहनबाड़ी में स्थित इस एयरपोर्ट से आप टैक्सी के जरिये लोहित जिला मुख्यलय और वहां से अभयारण्य पहुंच सकते हैं। दिल्ली, कोलकाता, बंगलुरु आदि से यहां के लिए विमान सेवा है।

रेल मार्ग : असम के डिब्रूगढ़ रेलवे स्टेशन से कमलांग वन्यजीव अभयारण्य करीब 168 किमी है। असम का ही न्यू तिनसुकिया जंक्शन रेलवे स्टेशन भी यहां से ज्यादा दूर नहीं है। दिल्ली, अमृतसर, चण्डीगढ़, वाराणसी, पटना आदि से डिब्रूगढ़ के लिए ट्रेन मिल जाती हैं। तिनसुकिया जाना हो तो वाराणसी, पटना, गुवाहाटी से ट्रेन पकड़ सकते हैं।

सड़क मार्ग : लोहित और उसके आसपास का क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश के अन्य शहरों के साथ सड़कों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ईटानगर, जोरहाट, गोलघाट आदि से लोहित के लिए बस, टैक्सी आदि मिल जाती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *