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Jinji Fort को दुर्गम पहाड़ियों के बीच इस तरह बनाया गया है कि छत्रपति शिवाजी ने इसको भारत का सबसे “अभेद्य दुर्ग” कहा था। अंग्रेज इसे “पूरब का ट्रॉय”  कहते थे। इसके परिसर में इतिहास की कई परतें बसी हुईं हैं और यह कई साम्राज्यों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है।

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न्यूज हवेली नेटवर्क

पुडुचेरी के बाद हमारा अगला गंतव्य था जिंजी दुर्ग (Jinji Fort)। हमें बताया गया था कि तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले में स्थित इस विशाल किले को घूमने, इसकी वास्तुकला को देखने-समझने, इतिहास को जानने और उसे महसूस करने में सात-आठ घण्टे लग ही जाते हैं। इसके मद्देनजर हमने सवेरे साढ़े छह बजे ही होटल से चेकआउट किया और टैक्सी तय कर रवाना हो गये। कलापेट होते हुए तिंडिवनम पहुंच कर चाय-नाश्ता किया और यहीं पर दोपहर के लिए भोजन-पानी पैक कराने के बाद अपने गंतव्य पर पहुंचे तो नौ बजने को थे। हमारे सामने था दक्षिण भारत के उत्‍कृष्‍टतम किलों में से एक जिंजी दुर्ग (Jinji Fort) जिसे सेंजी दुर्ग (Senji Fort) भी कहा जाता है।

जिंजी दुर्ग
जिंजी दुर्ग

जिंजी दुर्ग (Jinji Fort) को दुर्गम पहाड़ियों के बीच इस तरह बनाया गया है कि छत्रपति शिवाजी ने इसको भारत का सबसे “अभेद्य दुर्ग” कहा था। अंग्रेज इसे “पूरब का ट्रॉय”  कहते थे। इसके परिसर में इतिहास की कई परतें बसी हुईं हैं और यह कई साम्राज्यों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है। अपने सदियों लम्बे इतिहास के दौरान यह विजयनगर के नायक नरेशों, बीजापुर के सुल्तानों,  मराठों, फ़्रांसीसियों और अंग्रेजों के नियन्त्रण में रहा। (Jinji Fort: Witness to the rise and fall of many empires)

जिंजी दुर्ग का इतिहास (History of Jinji Fort)

जिंजी दुर्ग (Jinji Fort) का निर्माण नौवीं शताब्दी में चोल राजवंश के शासकों ने करवाया था। विक्रमा चोल के शिलालेख में इसका उल्लेख मिलता है। एक मत यह भी है कि इस दुर्ग की नींव यदुवंशी कोनार राजाओं ने रखी थी। 13वीं शताब्दी में चोलों को पराजित कर विजयनगर के शासकों ने इस पर अधिकार कर लिया और कई नये निर्माण करवाये। बाद के दिनों में यह बीजापुर के नियन्त्रण में रहा। सन् 1677 में छत्रपित शिवाजी ने बीजापुर के सुल्तान को पराजित कर इस पर कब्जा कर लिया और इसे अपनी कर्नाटक सरकार की राजधानी बनाया। एक जेसुइट पुजारी के कथन के अनुसार, “शिवाजी ने दस हजार सैनिकों के साथ जिंजी (Jinji) के पास चकरावती नदी के किनारे चकरापुरी में अपना डेरा डाला और जल्द ही किले को अपने अधिकार में कर लिया।” कहा जाता है कि वे इस जगह पर वज्रपात की तरह गिरे और पहले ही आक्रमण में इसे अपने अधिकार में ले लिया।

जिंजी दुर्ग
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छत्रपित शिवाजी के जिंजी विजय से पहले रघुनाथ पन्त ने रौफ खान और नजीर खान के साथ किले के आत्मसमर्पण के लिए एक गुप्त समझौता किया था और इस मदद के लिए उन्हें धन और जागीरें प्रदान की गयीं। इस समझौते की वजह से बीजापुर सल्तनत के लिए शिवाजी से मुकाबला करना और भी कठिन हो गया। शिवाजी महाराज ने जिंजी दुर्ग (Jinji Fort) को अभेद्य बनाने के लिए कई नये निर्माण करवाये। शिवाजी की मृत्यु के बाद जिंजी का पूर्वी क्षेत्र मराठों के स्वातन्त्र्य युद्ध का प्रमुख केन्द्र बना रहा। बाद के दिनों में इस पर क्रमशः फ्रांसिसियों और अंग्रेजों का नियन्त्रण रहा।

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जिंजी दुर्ग की वास्तुकला (Architecture of Jinji Fort)

जिंजी दुर्ग
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दक्षिण भारत के सबसे शानदार किलों में से एक जिंजी दुर्ग (Jinji Fort) का परिसर तीन पहाड़ियों पर स्थित है। इनमें पश्चिम में राजगिरि, उत्तर में कृष्णगिरि और उत्तर-पूर्व में चन्द्रेनादुर्ग शामिल हैं। तीनों पहाड़ियों के अलग-अलग दुर्ग हैं जो संयुक्त रूप से जिंजी दुर्ग कहलाते हैं। सैन्य और धार्मिक संरचनाओं से युक्त यह भव्य किला विशाल त्रिकोणीय आकार में है। करीब 11 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस किले की दीवारों की लम्बाई 13 किलोमीटर है।

राजगिरि किला (Rajgiri Fort) : जिंजी दुर्ग का सबसे महत्वपूर्ण किला राजगिरी है। इसे पहले कमलागिरि और बाद में आनन्दगिरि के नाम से जाना जाता था। यह 800 मीटर ऊंचा है और यहां तक जाने के लिए लकड़ी के पुल को पार करना होता है। यहां कमलकन्नी अम्मन मन्दिर, अस्तबल, बैठक हॉल, अन्न भण्डार, मस्जिद, मन्दिर और मण्डप हैं। इसके अलावा कल्याण महल, रंगनाथर मन्दिर, प्रहरी दुर्ग और घण्टाघर भी हैं। किले के प्रवेश द्वार पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा स्थापित साइट संग्रहालय है। इसमें उन राजवंशों के बारे में मूर्तियां व अन्य सामग्री है जिन्होंने जिंजी पर राज किया था।

कृष्णगिरि किला (Krishnagiri Fort) : इसे अंग्रेजी पर्वत के रूप में जाना जाता है। यह राजगिरि किले से थोड़ा छोटा है और इसमें ग्रेनाइट की सीढ़ियां बनी हुई हैं। शुरुआत में इस किले का सामरिक और सैन्य मूल्य अपेक्षाकृत कम था मगर बाद में कुछ प्रभावशाली इमारतें बनायी गयीं।

चक्कालिया किला (Chakkalia Fort) : इसे चन्द्रेनादुर्ग भी कहते हैं। दक्षिण भारत के अन्य किलों की तुलना में यहां बेहतर जल प्रबन्धन है। शिखर पर दो जल स्रोत हैं और नीचे वर्षा जल संचयन प्रक्रिया के लिए तीन जलाशय हैं। कल्याण महल से 500 मीटर की दूरी पर स्थित भण्डार में पानी पहुंचाने की व्यवस्था है।

जिंजी दुर्ग को घूमने के लिए सुझाव (Tips to visit Jinji Fort)

जिंजी दुर्ग
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• जिंजी दुर्ग (Jinji Fort) को घूमने के लिए काफी ट्रैकिंग करनी पड़ती है। इसलिए ट्रैकिंग से जुड़ी सभी वस्तुएं (छड़ी, टोपी, सनसक्रीन, स्ट्रेचेबल और

फ्लैक्सिबल लोअर, टोपी, पेयजल, तुरन्त ऊर्जा देने वाले स्नैक्स, चॉकलेट आदि) साथ अवश्य ले जायें।

  • खाना और पानी जरूर साथ रखें क्योंकि दुर्ग परिसर में इसकी व्यवस्था देखने को नहीं मिलती है।
  • यह दुर्ग परिसर पर्वतीय क्षेत्र है और रास्ते पथरीले और ऊबड़-खाबड़। इसलिए सावधानी बरतें। खासकर बच्चों को विशेष ख्याल रखें।
  • अपने साथ एक अच्छा कैमरा या अच्छे कैमरे वाला मोबाइल फोन अवश्य ले जायें। मोबाइल फोन को हमेशा कैमरा ऑन मोड पर रखें क्योंकि घूमने के दौरान एक से बढ़कर एक शानदार दृश्य और वास्तुकला के नमूने मिलते रहते हैं।
  • ज्यादा भीड़ से बचने के लिए कार्यदिवस पर यात्रा कर सकते हैं।

कब जायें जिंजी दुर्ग (When to go to Jinji Fort)

जिंजी दुर्ग
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जिंजी दुर्ग (Jinji Fort) प्रतिदिन सुबह 9:00 बजे से सायं 5:00 बजे तक खुला रहता है। यहां किसी भी मौसम में जा सकते हैं, हालंकि मई-जून में तापमान बढ़ने पर परेशानी हो सकती है। इसे देखते हुए लोग वर्षा ऋतु और सर्दी के मौसम में यहां जाना पसन्द करते हैं।

ऐसे पहुंचें जिंजी दुर्ग (How to reach Jinji Fort)

वायु मार्ग : चेन्नई इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 165 किलोमीटर जबकि पुडुचेरी एयरपोर्ट लगभग 68 किलोमीटर दूर है। चेन्नई एयरपोर्ट पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय टर्मिनल हैं जबकि पुडुचेरी से सीमित संख्या में घरेलू उड़ानें संचालित होती हैं।

रेल मार्ग : निकटतम रेल हेड विल्लुपुरम जंक्शन यहां से करीब 41 किलोमीटर पड़ता है जहां के लिए पुडुचेरी, चेन्नई, नयी दिल्ली, मुम्बई, हावड़ा, बंगलुरु आदि से नियमित ट्रेन सेवा है।

सड़क मार्ग : विल्लुपुरम शहर तमिलनाडु के सभी प्रमुख शहरों और पुडुचेरी से बहुत ही अच्छे रोड नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। विल्लुपुरम से जिंजी दुर्ग के लिए बस, टैक्सी और कैब मिलती हैं।

 

 

One thought on “जिंजी किला : कई साम्राज्यों के उत्थान और पतन का गवाह”
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