नई दिल्ली। (Hearing on marital rape) सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मैरिटल रेप (Marital Rape) को अपराध घोषित करने से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की। शीर्ष अदालत को तय करना है कि किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी, जो नाबालिग नहीं है, के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने पर कानूनी संरक्षण जारी रखना चाहिए या नहीं। इन याचिकाओँ में मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग की गई है। केंद्र सरकार के विरोध के चलते प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने हो रही यह सुनवाई अहम हो गई है। बेंच में न्यायामूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायामूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं।
सुनवाई के दौरान CJI चंद्रचूड़ ने कहा, “अपवाद 2 कहता है कि पत्नी के साथ एनल सेक्स (Anal Sex) बलात्कार नहीं है।” इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, “हम इसी को चुनौती दे रहे हैं।“ चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि जब पत्नी 18 साल से कम की होती है, तो यह बलात्कार है और जब यह 18 साल से अधिक की होती है, तो यह नहीं है। यही भारतीय न्याय संहिता (BNS) और भारकतीय दण्ड संहिता (IPC) में अंतर है। बहस के दौरान CJI चंद्रचूड़ ने यह भी कहा, “कानून कहता है कि चाहे वजाइनल सेक्स हो या एनल सेक्स, जब तक यह विवाह के भीतर किया जाता है, तब तक यह बलात्कार नहीं होगा।”
मैरिटल रेप का मामला सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा
मैरिटल रेप को लेकर नए कानून बनाने की मांग काफी समय से हो रही थी। पिछले दो वर्ष के दौरान में दिल्ली हाई कोर्ट और कर्नाटक हाई कोर्ट के इस मामले में फैसला आने के बाद इसकी मांग और तेज हो गई। सुप्रीम कोर्ट में दो मुख्य याचिकाएं हैं, जिन पर सुनवाई हो रही है। एक याचिका पति की तरफ से लगाई गई तो दूसरी अन्य मामले में एक महिला ने याचिका दायर की थी।
भारत सरकार मैरिटल रेप को अपराध मानने से कर चुकी है इनकार
वर्ष 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार ने मैरिटल रेप के विचार को खारिज कर दिया था। सरकार ने कहा था कि देश में अशिक्षा, गरीबी, ढेरों सामाजिक रीति-रिवाजों, मूल्यों, धार्मिक विश्वासों और विवाह को एक संस्कार के रूप में मानने की समाज की मानसिकता जैसे विभिन्न कारणों से इसे भारतीय संदर्भ में लागू नहीं किया जा सकता है।
2017 में, सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध न मानने के कानूनी अपवाद को हटाने का विरोध किया था। सरकार ने तर्क दिया था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो जाएगी और इसका इस्तेमाल पत्नियों द्वारा अपने पतियों को सजा देने के लिए किया जाएगा।
केंद्र ने पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप पर चल रही सुनवाई के दौरान कहा था कि केवल इसलिए कि अन्य देशों ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया है, भारत को भी ऐसा करने की जरूरत नहीं है।