रास्ते भर खूब मस्ती और एक-दूसरे से मजाक करते हुए आख्रिरकार हम लोग पहुंच ही गये बाल्टा जलप्रपात (Balta Falls) पर। जलप्रपात का शानदार दृश्य देखकर हम लोग अभिभूत थे। एक-दूसरे से कुछ कहने के लिए मानो शब्द ही लुप्त हो गये। फिर शुरू हुआ रील्स और फोटोग्राफी का सत्र।
संजीव जिन्दल
यह यात्रा कभी भी इतनी खूबसूरत ना होती यदि मेरे दामाद अभिषेक द्विवेदी हमारे साथ ना होते और इतनी खूबसूरत फोटोग्राफी ना करते। दरअसल, अमिताभ बच्चन की एडवेन्चर ड्रामा फिल्म “ऊंचाई” देखने के बाद मेरा भी मन था कि मैं भी अपने कलाकारों को किसी दुर्गम स्थान की यात्रा पर लेकर जाऊं और फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी इस तरह से करूं कि वह एक फिल्म लगे। काफी जद्दोजहद के बाद आठ जुलाई 2023 को तय हुआ कि अगले दिन हम कुमाऊं के बाल्टा जलप्रपात की यात्रा पर चलेंगे। (From Bareilly to Katarmal, this is the journey of Daddu and his two brave daughters)
हम चारों में से केवल मेरा जाना ही पक्का था, बाकी की हां ही हां थी। मैंने सोच रखा था कि कोई और जाये या ना जाये मैं तो नौ जुलाई को पक्का जाऊंगा ही। आखिरकार आठ जुलाई को अभिषेक रात को सोने के लिए मेरे घर आ गया। अब दिल को तसल्ली हुई कि चलो अभिषेक का तो पक्का हुआ। फिर मैंने आंचल और वन्दना बिटिया से बात की। दोनों ने कहा, “दद्दू बिल्कुल पक्का है।”
हिमाचल प्रदेश में बाढ़ की खबरें आनी शुरू हो गयी थीं। सुबह पांच बजे जाने का कार्यक्रम था, इसलिए मैं और अभिषेक ठीक 09:30 पर सो गये। मैं सुबह चार बजे उठा और व्हाट्सएप पर वन्दना और आंचल का मैसेज देखा, “दद्दू पहाड़ों पर बहुत बारिश हो रही है, रास्ते बन्द होने का खतरा है, इसलिए हमारा जाना मुश्किल है।” मैं अकेले ही घूमना पसन्द करता हूं इसलिए मुझ पर इस मैसेज का कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा और मैंने दोनों को मैसेज कर दिया, “तुम्हारी जैसी इच्छा बच्चियों।” दोनों ने मैसेज तुरन्त देख भी लिया। इसका मतलब कि दोनों सुबह चार बजे जाग रही थीं। मैंने वन्दना को फोन मिलाया और उसने आंचल को लाइन पर ले लिया। मैंने उनसे कहा, “बेटा मेरा कभी भी कोई प्रेस्टीज इश्यू नहीं होता है और मैं बहुत ज्यादा सोच कर भी नहीं जाता हूं। यदि रास्ते बन्द होंगे और प्रशासन आगे नहीं जाने देगा तो हम लोग वहीं से लौट आएंगे।” दोनों बोलीं, “दद्दू ऐसा है तो पांच मिनट सोचने को दो।” दोनों का मैसेज आ गया, “दद्दू चलते हैं पांच की जगह छह बजे।” दोनों ने ही रात को पूरी पैकिंग कर के रखी हुई थी।
नैनीताल में घुमक्ड़ी : कनरखा गांव की छत पर चांदी
तेज बारिश के बीच हम लोगों ने 06:15 बजे बरेली छोड़ दिया। किच्छा तक हमें बहुत तेज बारिश मिली, फिर हल्द्वानी तक हल्की-फुल्की। हमने हल्द्वानी में नाश्ता किया। तब तक बारिश बिल्कुल रुक चुकी थी। अब शुरू हुआ पहाड़ों का सफर। क्या ही सफर था! कार में घुसते हुए बादल, हवा में उड़ते हुए बादल, कभी बिल्कुल अन्धेरा, कभी हल्की-फुल्की धूप! रास्ते में सैकड़ों छोटे-मोटे बरसाती झरने अपने पूरे शबाब पर थे। धड़ाधड़ फोटोग्राफी करते और पूछते-पाछते हुए हम लोग 12:30 बजे अल्मोड़ा जिले के बाल्टा गांव पहुंच गये। बाल्टा गांव मुख्य सड़क से नीचे बसा हुआ है। मुख्य सड़क पर बिल्कुल सन्नाटा था। प्रपात के बारे में मुझे भी कोई खास जानकारी नहीं थी. बस इतना पता था कि यहां एक जलप्रपात है। मुख्य सड़क पर कोई भी नहीं था जो हमें बता सके कि हमें किधर जाना है। फिर मैं नीचे बाल्टा गांव गया और लोगों से बाल्टा जलप्रपात के बारे में बातचीत की। निखिल और उसका छोटा भाई हमारे साथ गाइड बनकर चलने को तैयार हो गये। फिर शुरू हुआ लगातार एक घण्टा पानी में पैदल-पैदल चलने का सफर। नीचे पत्थरों पर काई जमी थी, बहुत ज्यादा मात्रा में कांटे वाली झाड़ियां और बिच्छू बूटी की झाड़ियां थीं। पानी में जोंक और मछैना सांप भी थे। पूछो ही मत रास्ते की दुश्वारियां। एक “अनजाने महबूब” से मिलने की चाह में हम लोग सारी बाधाएं पार कर गये। इस दौरान मुझे “पराया धन” फिल्म का यह गाना बार-बार याद रहा था :-
आज उनसे पहली मुलाकात होगी,
फिर होगा क्या क्या पता क्या खबर।
दोनों बच्चियों का उनकी जिंदगी का पहला ऐसा एडवेंचर था और मुझे अन्दर ही अन्दर डर लग रहा था कि इतना दुर्गम रास्ता तय करके जब हम जलप्रपात पर पहुंचेंगे तो पता नहीं वहां का दृश्य कैसा होगा? पता नहीं बच्चों को अच्छा लगेगा या नहीं? रास्ते भर खूब मस्ती और एक-दूसरे से मजाक करते हुए आख्रिरकार हम लोग पहुंच ही गये बाल्टा जलप्रपात (Balta Falls) पर। जलप्रपात का शानदार दृश्य देखकर हम लोग अभिभूत थे। एक-दूसरे से कुछ कहने के लिए मानो शब्द ही लुप्त हो गये। फिर शुरू हुआ रील्स और फोटोग्राफी का सत्र। दोनों बेटियों को इतना मजा आ रहा था कि वे वापस आने को तैयार ही नहीं थीं। मैंने कहा, “बेटा बहुत हो गया चलो वापस, बारिश आ गयी तो बहुत दिक्कत हो जाएगी। लौट कर भी पानी में से ही जाना है और बारिश के कारण जलस्तर बढ़ जाएगा।” दोनों का एक ही जवाब था, “दद्दू बस 10 मिनट और।” 10 मिनट, 10 मिनट करते-करते हुए हम लोग लगभग डेढ़ घण्टे जलप्रपात पर रहे। वहां पर हम चारों और हमारे दो गाइडों के सिवा और कोई नहीं था। लौटते समय जहां भी पानी मिला, वहीं पर अपनी यात्रा की सफलता को हम लोगों ने सेलिब्रेट किया।
कसार देवी मन्दिर में दर्शन और मनोरंजन (Darshan and entertainment in Kasar Devi Temple)
भीगे हुए कपड़ों में ही हम लोग साढ़े पांच बजे कसार देवी पहुंच गये और ऐसी ही हालत में एक तिब्बती रेस्टोरेन्ट में मोमोज, थुकपा और सूप का नाश्ता किया। फिर शुरू हुई होटल की खोज। ऑफ सीजन में भी कसार देवी काफी महंगा है। आखिर में एक होटल की शानदार डॉरमेट्री में 380 रुपये प्रति बेड के हिसाब से चार बेड मिल गये। लगभग छह घण्टे भीगे हुए कपड़ों में रहने के बाद हमने कपड़े बदले और कसार देवी मन्दिर (Kasar Devi Temple) पहुंचे। देवी भागवत पुराण के अनुसार शुम्भ और निशुम्भ नामक दो राक्षसों का संहार करने के लिए मां दुर्गा यहीं पर देवी कात्यायनी का रूप धारण कर प्रकट हुई थीं। स्वामी विवेकानन्द 1890 में ध्यान करने को कुछ महीनों के लिए यहां आये थे। कालीघाट की एक गुफा में उन्हें विशेष ज्ञान की अनुभूति हुई।
वैज्ञानिकों के अनुसार कसार देवी मन्दिर के आसपास का पूरा क्षेत्र “वैन एलेन बेल्ट” है जहां धरती के भीतर विशाल भू-चुम्बकीय पिण्ड है। इस पिण्ड में विद्युतीय चार्ज कणों की परत है जिसे रेडियेशन भी कह सकते हैं। यह भारत का एकमात्र और दुनिया का तीसरा ऐसा स्थान है जहां खास चुम्बकीय शक्तियां मौजूद हैं।
शाम ढल चुकी थी, बिजली की रोशनी में झिलमिलाता हुआ पूरा अल्मोड़ा बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था। अन्धेरा होने के बावजूद कसार देवी से वापस आने का मन नहीं कर रहा था। आखिर में अपने आप को यह समझाते हुए कि वापस तो जाना ही है हम लोग नीचे कसार देवी बाजार में आ गये। फिर तमाम कैफे घूमे। एक कैफे पसन्द आया पर उसका बहुत ही महंगा मीनू और खाली स्टेज देख कर हमारी भूख छूमन्तर हो गयी। हमने सोचा छोड़ो खाना, गाना गाकर ही पेट भरा जाये। गुरुग्राम का एक बड़ा परिवार भोजन कर रहा था। उनको मेरा और आंचल का गाना पसन्द आया। भोजन करके रात को 10 बजे हम लोग अपने होटल वापस आ गये और उसकी लॉबी में कैरम खेलते रहे। करीब एक घण्टे बाद मैंने कहा, “बच्चों 11 बज गये हैं और सुबह छह बजे निकलना है। मान जाओ, सो जाओ।” बड़ी मुश्किल से बच्चे सोने को तैयार हुए। सुबह जैसे-तैसे उनको जगाया।
कटारमल सूर्य मन्दिर के दर्शन (Visit to Katarmal Sun Temple)
आज यानी सावन के पहले सोमवार को हमें नौवीं शताब्दी के कटारमल सूर्य मन्दिर को एक्सप्लोर करना था और मेरी बेटियों का ड्रेस कोड साड़ी था। दोनों को ही साड़ी बांधनी नहीं आती थी पर एक-दूसरे की मदद करके जैसे-तैसे साड़ी बांध ली। हम लोगों ने आठ बजे अपना आगे का सफर शुरू किया। रास्ते में एक जगह नाश्ता करके हम लोग 10 बजे कटारमल सूर्य मन्दिर (Katarmal Sun Temple) पहुंच गये। बच्चों को साड़ी में मन्दिर की चढ़ाई बहुत मुश्किल लग रही थी और मुझे दोनों की हालत देख कर बहुत मजा आ रहा था। मन्दिर परिसर में हम लोगों ने दो घण्टे जमकर फोटोग्राफी की। मन्दिर की सीढ़ियों पर ही एक घर में बने रेस्टोरेन्ट में हम लोगों ने मैगी खाई। फिर कार में ही गाते-ठिठोली करते हुए बरेली वापसी का सफर शुरू हुआ। रास्ते में उड़ते हुए बादलों के बीच एक जगह भुट्टे खाए। भीमताल के बाद एक जगह भोजन किया और शाम को छह बजे बरेली अपने घर पहुंच गये।
प्रकृति की गोद : सुयालबाड़ी का शानदार ढोकाने जलप्रपात
बहुत गर्व है मुझे अपनी दोनों बहादुर बेटियों पर जिन्होंने मेरे साथ बहुत ही दुर्गम पर्वतीय रास्ते पर यात्रा कर मेरा “ऊंचाई” जैसी फिल्म बनाने का सपना पूरा करा। लव यू बच्चों, हमेशा खुश रहो बच्चों।
कोणार्क से भी पुराना है कटारमल सूर्य मन्दिर (Katarmal Sun Temple is older than Konark)
कटारमल सूर्य मन्दिर (Katarmal Sun Temple) भारत के प्राचीनतम सूर्य मन्दिरों में से एक है। इसको कोणार्क के विश्वविख्यात सूर्य मन्दिर से लगभग दो सौ वर्ष पुराना माना गया है। यह पूर्वाभिमुखी है और उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गांव में स्थित है। इसका निर्माण कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल्ला ने करवाया था। इसके भव्य परिसर में सूर्य देव के एक अवतार को समर्पित मुख्य मन्दिर है जिन्हें बुरादिता या वृद्धादित्य के नाम से जाना जाता है। यह अलग-अलग समय में निर्मित 44 छोटे मन्दिरों से घिरा हुआ है। ये मन्दिर स्थानीय रूप से उत्खनित पत्थरों के बड़े-बड़े स्लैबों से बनाए गये हैं। सभी मन्दिरों के खम्भों और दीवारों पर जटिल नक्काशी है।
सभी फोटोग्राफ : अभिषेक द्विवेदी
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