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Forts of Maharashtra :भारत में सबसे ज्यादा किले महाराष्ट्र में हैं। इनमें से 360 किलों का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में छत्रपित शिवाजी से माना जाता है जिनमें से कुछ का उन्होंने निर्माण कराया जबकि बाकी पर युद्ध में विजयी होकर अपना नियन्त्रण कर उनका पुनरोद्धार कराया।

न्यूज हवेली नेटवर्क

हाराष्ट्र अपने प्राकृतिक दृष्टि से सुन्दर पर्यटन स्थलों के साथ ही किलों के लिए भी जाना जाता है। भारत में सबसे ज्यादा किले इसी राज्य में हैं। इनमें से 360 किलों का सम्बन्ध किसी न किसी रूप में छत्रपित शिवाजी से माना जाता है जिनमें से कुछ का उन्होंने निर्माण कराया जबकि बाकी पर युद्ध में विजयी होकर अपना नियन्त्रण कर उनका पुनरोद्धार कराया। इन किलों में रायगढ़, शिवनेरी, सिन्धु दुर्ग, विजय दुर्ग, प्रतापगढ़, लोहागढ़, दौलाताबाद और तोरण किलों का खासा महत्व है।

शिवनेरी किला (Shivneri Fort)

शिवनेरी दुर्ग
शिवनेरी दुर्ग

पुणे के करीब जुन्नर गांव में स्थित इसी किले में 19 फरवरी 1630 को मराठा कुल गौरव छत्रपित शिवाजी महाराज का जन्म हुआ था। शिवाजी के पिता शहाजी राजे भोंसले बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह के एक सेनापति थे। उन दिनों लगातार युद्ध हो रहे थे। इस कारण शाहजी अपनी गर्भवती पत्नी जीजाबाई की सुरक्षा को लेकर चिन्तित थे। इसलिए उन्होंने अपने परिवार को शिवनेरी भेज दिया जो चारों ओर से खड़ी चट्टानों से घिरा एक अभेद्य किला था। 1632 ईसवीं में जीजाबाई नन्हे शिवाजी को लेकर इस किले से अन्यत्र चली गयीं।

किले में माता शिवाई का मन्दिर भी है जिनके नाम पर शिवाजी महाराज का नामकरण हुआ था। किले के मध्य में एक सरोवर है जिसे बादामी तालाब कहते हैं। इसी सरोवर के दक्षिण में माता जीजाबाई और बाल शिवाजी की मूर्तियां स्थापित की गयी हैं। किला परिसर में मीठे पानी के दो स्रोत हैं जिन्हें गंगा और यमुना कहा जाता है। इनसे सालभर पानी निकलता है।  किले से दो किलोमीटर की दूरी पर लेण्याद्रि गुफाएं हैं जहां अष्टविनायक का मन्दिर है।

शिवनेरी किला घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का माना जाता है। निकटतम रेलवे स्टेशन पुणे जंक्शन यहां से करीब 96 किलोमीटर पड़ता है। कल्याण-नांदेड़ राजमार्ग होते हुए जुन्नर गांव तक पहुंच सकते हैं। पुणे इण्टरनेशनल एयरपोर्ट के लिए देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से उड़ानें हैं।

सिन्धुदुर्ग (Sindhudurg)

सिन्धुदुर्ग
सिन्धुदुर्ग

सिन्धुदुर्ग महाराष्ट्र के सबसे महत्त्वपूर्ण सामुद्रिक किलों में से एक है। साथ ही इसे भारत के तीन बेहतरीन समुद्री किलों में से एक माना जाता है। इसका निर्माण सिन्धुदुर्ग जिले के मालवन तालुका के समुद्र तट से कुछ दूर अरब सागर में एक द्वीप पर किया गया है। कोंकण क्षेत्र के दक्षिण में स्थित इस किले के पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में सहयाद्रि की पहाड़ियां, उत्तर में रत्नागिरी और दक्षिण में गोवा हैं। छत्रपति शिवाजी ने 1664 में इस किले का निर्माण कराया था और यह उनकी शक्तिशाली नौसेना का प्रमुख केन्द्र था। महाराष्ट्र सरकार में 2021 में इसे राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया था।

किले के चारों ओर की चट्टानों को देखकर ही यह अन्दाजा लगाया जा सकता है कि उस समय ये किले की सुरक्षा का काम करती थीं। इसमें 42 बुर्ज हैं। 48 एकड़ में विस्तृत इस किले को बनाने में करीब तीन साल लगे थे। किले में तीन सदानीरा जलाशय और शिवाजी को समर्पित एक मन्दिर भी है जिसे राजाराम ने बनवाया था।

इस किले को घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का है। निकटतम हवाईअड्डा गोवा इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 130 किलोमीटर पड़ता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 17 इस क्षेत्र से गुजरता है। महाराष्ट्र के लगभग सभी बड़े शहरों और गोवा से यहां के लिए बस मिलती हैं। कोंकण रेलवे का कुडाल रेलवे स्टेशन यहां से करीब 31 किमी पड़ता है।

विजयदुर्ग (Vijaydurg)

विजयदुर्ग पर विजय छत्रपति शिवाजी की सर्वश्रेष्ठ जीत मानी जाती है। अभेद्य माना जाने वाला यह किला सिन्धुदुर्ग किले के पास ही है। इसका इस्तेमाल मराठा युद्धपोतों के एंकर के रूप में किया जाता था। इसको पहले घेरिया के नाम से जाना जाता था। 1653 में इस पर नियन्त्रण करने के बाद शिवाजी ने इसका नाम विजयदुर्ग रखा। यह उन दो किलो में से एक है जहां शिवाजी ने स्वयं केसरिया ध्वज फहराया था। दूसरे किले का नाम तोरणा है।

प्रतापगढ़ (Pratapgarh)

प्रतापगढ़ किला
प्रतापगढ़ किला

छत्रपति शिवाजी ने नीरा और कोयना नदियों के तटों और पार दर्रे की सुरक्षा के लिए समुद्र तल से 1,000 मीटर की ऊंचाई पर यह किला बनवाया था। यह 1665 में बनकर तैयार हुआ। इस किले में 10 नवम्बर 1656 को छत्रपति शिवाजी और अफजल खान के बीच युद्ध हुआ था जिसमें शिवाजी की जीत हुई। इस जीत को ही मराठा साम्राज्य की नींव माना जाता है। किला परिसर में मां भवानी और शिवजी के मन्दिर तथा अफजल खां का मकबरा भी हैं। 1818 मेंतीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध में हारने के बाद मराठा सेना को प्रतापगढ़ को त्यागना पड़ा।

इस किले के निकटतम बड़ा रेलवे स्टेशन सतारा है जो यहां से करीब 81 किलोमीटर दूर है। दिल्ली, मुम्बई, पुणे आदि से यहां के लिए कई ट्रेन हैं। सतारा शहर के केन्द्र से यह किला करीब 76 किलोमीटर पड़ता है। मुम्बई से महाबलेश्वर आसानी से पहुंच सकते हैं जहां से प्रतापगढ़ सिर्फ 21 किलोमीटर दूर है।

लोहागढ़ (Lohagarh)

लोहागढ़ किला
लोहागढ़ किला

पुणे से 52 किलोमीटर दूर लोनावाला में स्थित इस किले में मराठा साम्राज्य की सम्पत्ति रखी जाती थी। कहा जाता है कि सूरत से लूटी गयी बेशकीमती वस्तुओं को भी यहीं रखा गया था। यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल यह किला समुद्र तल से लगभग 3,400 फीट की ऊंचाई पर है। इसके चार प्रवेश द्वार हैं- हनुमा दरवाजा, गणेश दरवाजा, नारायण दरवाजा और महा दरवाजा। सन् 1648 में छत्रपति शिवाजी ने इस किले पर विजय प्राप्त कर अपने कब्जे कर लिया था लेकिन वर्ष 1665 में पुरन्दर सन्धि के तहत यह मुगलों के कब्जे में आ गया था।

अक्टूबर से मार्च के बीच का समय लोहागढ़ किले की यात्रा के लिए अच्छा माना जाता है। इसका निकटतम हवाईअड्डा पुणे इण्टरनेशनल एयरपोर्ट है। निकटतम रेलवे स्टेशन लोनावाल यहां से करीब 11 किमी पड़ता है। मुम्बई, पुणे, रायगढ़, हावड़ा, पुडुचेरी आदि से लोनावाला के लिए नियमित ट्रेन सेवा है।

तोरणा किला (Torna Fort)

शिवाजी ने मात्र 16 साल की उम्र में इस किले पर कब्जा कर लिया था। पुणे जिले में समुद्र की सतह से 4,603 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस किले को प्रचण्डगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। सम्भाजी महाराज की हत्या के बाद औरंगजेब ने इस पर कब्ज़ा कर लिया और इसका नाम “फुतुलगैब” रखा।

आधार पहाड़ी से लेकर मुख्य किले तक इसमें सात द्वार हैं। इसका एक अलग निकासी द्वार भी है। मुख्य प्रवेश द्वार पत्थरों की एक विशाल संरचना है जिसे कोठी धारवासा नाम दिया गया है। पैदल पहाड़ी के प्रवेश द्वार को बीनी धारवासा कहा जाता है। इस किले पर कई महान योद्धाओं का शासन रहा लेकिन लगातार होते रहने वाले आक्रमणों की वजह से इसे भारी क्षति पहुंची। अब यहां एक मन्दिर और गढ़ के शीर्ष पर कुछ खण्डहर ही बचे हैं।हालांकि इसकी दीवारें और द्वार बिल्कुल सही हैं।

पन्हाला किला (Panhala Fort)

पन्हाला किला
पन्हाला किला

पन्हाना का शाब्दिक अर्थ है “सांपों का घर”। यह दक्कन के सबसे बड़े किलों में से एक है। पन्हाला दुर्ग को पन्हालगढ़, पाहाला और पनाल्ला के नाम से भी जाना जाता है। यह महाराष्ट्र में कोल्हापुर के उत्तर-पश्चिम में स्थित है। भोज द्वितीय ने 1178 से 1209 ईस्वी के बीच इस किले का निर्माण करवाया था। इसका अन्दरूनी हिस्सा आज भी अखण्ड मौजूद है। यह किला लम्बे समय तक मराठा शासन के नियन्त्रण में रहे।

यहां सज्जा कोठी, कलावन्तिणीचा महल, अम्बर कोठी, धर्मा कोठी, तीन दरवाजा, आंदर बावड़ी, कोंकण दरवाजा, वाघ दरवाजा आदि देखने योग्य स्थान हैं।

कोल्हापुर से इस दुर्ग तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग से करीब 23 किलोमीटर सफर करना पड़ता है। निकटतम रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट कोल्हापुर शहर में हैं। कोल्हापुर के लिए मुम्बई, पुणे आदि से उड़ानें हैं।

पुरन्दर का किला (Purandar Fort)

पुरन्दर किला
पुरन्दर किला

पुरन्दर का किला पुणे से करीब 40 किलोमीटर दूर सहयाद्रि की पहाड़ियों पर समुद्र तल से 4,472 फीट की ऊंचाई पर है। इसका इतिहास 11वीं शताब्दी के दौरान यादव युग में जाना गया था। इतिहासकारों के अनुसार इस किले को गिरने से बचाने और संरक्षक देवता को प्रसन्न करने के लिए गढ़ के नीच एक पुरुष और एक महिला को जिन्दा दफन किया गया था। 1670 में शिवाजी राजे भोंसले को इसका जागीरदार नियुक्त किया गया लेकिन वह ज्यादा दिन तक टिक नहीं सके। पांच वर्ष के अन्तराल के बाद शिवाजी ने औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह कर इस किले को अपने नियन्त्रण में ले लिया। उनके पुत्र सम्भाजी राज भोंसले का जन्म यहीं पर हुआ था। इस किले में एक सुरंग है जिसका रास्ता किले के बाहर की ओर जाता है। कहा जाता है कि शिवाजी इस सुरंग का इस्तेमाल युद्ध के समय बाहर जाने के लिए किया करते थे।

इस किले को दो अलग-अलग खण्डो में विभाजित किया गया है। किले के निचले हिस्से को माची नाम से जाना जाता हैं। माची के उत्तरी हिस्से में छावनी और एक वेधशाला है। यहां भगवान पुरन्दरेश्वर को समर्पित एक मन्दिर भी है।

यह किला देखने के लिए आप साल में किसी भी समय जा सकते हैं, हालांकि सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक का माना जाता है। निकटतम हवाईअड्डा पुणे इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 48 किलोमीटर दूर है। ट्रेन से जाने पर भी पुणे पहुंचना सबसे अच्छा विकल्प है। आसपास के सभी शहरों से पुरन्दर किले के लिए बस और टैक्सी मिलती हैं।

सुवर्णदुर्ग (Suvarnadurga)

सुवर्ण दुर्ग किला
सुवर्ण दुर्ग किला

यह किला मुम्बई और गोवा के बीच अरब सागर के एक द्वीप पर है जो महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आता है। छत्रपित शिवाजी ने सन् 1660 में आली आदिलशाह द्वितीय को हरा कर इस किले पर कब्जा किया। दरअसल, इस किले की भौगोलिक स्थिति और रणनीतिक महत्व को देखते हुए वे इस पर नियन्त्रण कर अपनी ताकत बढ़ना चाहते थे। शिवाजी के बाद के मराठा शासकों ने अपनी नौसेना की शक्ति और बढ़ाई। इस किले के जरिये मराठों ने कई समुद्री आक्रमणों को रोका। कहा जाता है कि मुम्बई से करीब 243 किलोमीटर दूर 48 एकड़ में विस्तृत इस किले को बनाने में तीन साल का समय लगा था।

अर्नाला का किला (Arnala Fort)

अर्नाला का किला
अर्नाला का किला

यह किला महाराष्ट्र के वसई शहर के उत्तर में 12 किलोमीटर दूर अर्नाला द्वीप समूह पर स्थित है। तीन ओर से समुद्र से घिरा यह किला मुम्बई से करीब 48 किलोमीटर पड़ता है। सुल्तान महमूद बेगड़ा ने 1530 ईस्वी में इसका निर्माण कराया था। 1530 में पुर्तगालियों ने इस पर कब्जा कर लिया। सन् 1737 में पेशवा बाजीराव प्रथम के भाई चीमाजी ने इस पर कब्जा कर लिया था। सन् 1781 में हुए प्रथम एंग्लो-मराठा युद्ध में विजय के बाद इस पर अंग्रेज़ों ने कब्जा कर लिया।

यह किला विरार से केवल 10 किलोमीटर दूर है। मुम्बई का छत्रपति शिवाजी इण्टरनेशनल एयरपोर्ट इसका निकटतम हवाईअड्डा है।

दौलताबाद किला (Daulatabad Fort)

daulatabad fort
daulatabad fort

महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित इस किले का मूल नाम देवगिरी दुर्ग था। कैलास गुफाओं का निर्माण कराने वाले राष्ट्रकुट शासक राजा भिल्लम यादव ने ही इस किले का भी निर्माण कराया था। अपने निर्माण वर्ष (1187-1318) से लेकर 1762 तक इस किले ने कई शासक देखे। इस पर यादव, खिलजी और तुगलक वंशों ने शासन किया। मोहम्मद बिन तुगलक ने देवगिरी को अपनी राजधानी बनाकर इस शहर का नाम दौलताबाद कर दिया। बाद में इसे औरंगाबाद कहा जाने लगा, हालांकि किले को दौलताबाद किला ही कहा जाता है। इसे मध्यकालीन भारत का सबसे ताकतवर किला माना जाता है।

यह तीन मंजिला किला औरंगाबाद शहर से करीब 13 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर है। किला परिसर में एक मीनार हैजिसे चांद मीनार के नाम से जाना जाता है। इसे कुतुबमीनार के बाद भारत की दूसरी सबसे ऊंची मीनार का दर्जा प्राप्त है।

औरंगाबाद जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी के बीच का है। निकटतम हवाईअड्डा औरंगाबाद शहर के पूर्व में स्थित चिक्कलथाना एयरपोर्ट यहां से करीब 23 किलोमीटर दूर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 52 और 72एच इसके करीब से गुजरते हैं। दिल्ली, नागपुर, नासिक, पुणे, हैदराबाद, तिरुपति आदि से औरंगाबाद के लिए ट्रेन मिलती हैं।

इन किलों का भी है स्वर्णिम इतिहास

वासोटया का किला , विशालगढ़, अजिंक्यतारा किला , अलंग का किला, तुंग का किला, अंजनेरी का किला, आन्तुर का किला, भैरवगढ़, भोरगिरी का किला, द्रोणागिरी का किला , हड़सर का किला, हनुमंतगढ़, हरिश्चंद्रगढ़, जंजीरा किला,कलवन्तिन दुर्ग, कन्धार का किला , कर्नल का किला, मदनगढ़, माहुरगढ़, मणिकगढ़ , नलदुर्ग , पद्मदुर्ग,पन्हाला का किला, पराण्डा का किला, खर्डा का किला ,प्रबलगढ़ , रामटेक का किला, सज्जनगढ़, शनिरबाड़ा, सरजकोट, तिकोना का किला, त्रम्बकगढ़, उडगीर का किला, वज्रगढ़, वसंतगढ़, यशवन्तगढ़, विसापुर का किला।

 

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