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darma valleydarma valley

चांदनी रात में पंचाचूली को देखने के  लिए हम ढाई बजे उठ गये। 15 मिनट पंचाचूली के अलौकिक दर्शन करने के बाद हम फिर सो गये और सुबह पांच बजे उठे। दारमा घाटी में मौसम बिल्कुल साफ था और मैंने अपने जीवन का सबसे खूबसूरत सूर्योदय देखा। पंचाचूली ऐसी लग रही थी जैसे किसी ने उसके ऊपर सोने की चादर चढ़ा दी हो। अद्भुत अनुभव था!

संजीव जिन्दल 

ह 25 अप्रैल 2023 की बात है। मैंने रविजीत सर को फोन किया, “मैं दारमा घाटी (Darma Valley) जाना चाहता हूं, क्या धारचूला में कोई आपका जानने वाला है जिससे मैं थोड़ी-बहुत जानकारी ले सकूं।” रविजीत सर ने तुरन्त कहा, “अरे, वहां तो मेरे दोस्त पवन अग्रवाल की ससुराल है। मैं अभी उनसे बात करता हूं और तुम्हें बताता हूं।” रविजीत सर पवन जी के ससुर राजीव खर्कवाल से बात करते हैं और उन्हें मेरे बारे में बताते हैं। राजीव जी कहते हैं, “किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होगी, जब चाहे धारचूला चले आयें पर शर्त एक ही है कि “साइकिल बाबा” धारचूला में किसी होटल में नहीं रुकेंगे, हमारे घर पर ही ठहरेंगे।” रविजीत सर ने मुझे राजीव जी का नम्बर दे दिया। मेरी उनसे बातचीत हुई और चार मई को धारचूला जाने का कार्यक्रम तय हो गया। (Darma Valley: A journey to meet nature and beautiful people)

30 अप्रैल को मौसम विभाग ने एक से चार मई तक का पहाड़ों पर बारिश का रेड अलर्ट घोषित कर दिया और कार्यक्रम स्थगित हो गया। मन बहुत खराब हुआ और सोचने लगा कि अब कभी जा भी पाऊंगा या नहीं। फिर मैंने 10 मई को राजीव जी को फोन किया कि मैं परसों 12 मई को धारचूला आ रहा हूं।

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बरेली से धारचूला के लिए हर रोज एक या दो बोलेरो गाड़ी ही जाती हैं। राजीव जी ने मुझे बोलेरो वाले का फोन नम्बर दिया और मैंने उससे बात करके अपने लिए आगे की सीट बुक कर दी। 12 मई को सुबह छह बजे मेरी धारचूला के लिए यात्रा शुरू हुई। बोलेरो में मेरी मुलाकात बरेली में रहने वाली धारचूला की भूमि और एक बुजुर्ग महिला से हुई। धारचूला क्षेत्र में नानी या दादी को लाला कह कर बुलाते हैं। बुजुर्ग महिला को सभी लाला कह रहे थे तो मैंने भी उन्हें लाला कहना शुरू कर दिया। इत्तेफाक से भूमि और लाला का गांव भी दारमा घाटी के पास में ही है पर अब वे लोग धारचूला में रहते हैं। रास्ते में दोनों से दारमा घाटी के बारे में काफी जानकारी मिली। हम तीनों आपस में इतना घुलमिल गये कि लग रहा था जैसे एक ही परिवार हो। रास्ते में इकट्ठे ही खाते-पीते हुए हम लोग सायंकाल ठीक पांच बजे धारचूला पहुंच गये। भूमि को लेने के लिए उसकी मां और भाई आए थे। भूमि ने दोनों से मेरी मुलाकात करवाई और मेरे से आत्मीय अनुरोध किया कि बाबा प्लीज आप हमारे यहां ही ठहरें। मैंने भूमि को राजीव खर्कवाल जी के बारे में बताया। वह उन्हें जानती थी। फिर भी मुझसे कहा, “बाबा कोई भी दिक्कत हो तो सीधा हमारे यहां चले आना।”

भूमि और लाला के साथ लेखक संजीव जिन्दल।
भूमि और लाला के साथ लेखक संजीव जिन्दल।

धारचूला का बाजार घूमते-फिरते छह बजे मैं राजीव खर्कवाल के घर पहुंच गया। तुरन्त चाय-नाश्ता आ गया। राजीव जी के परिवार के साथ खूब बातचीत हुई और रात का भोजन करके मैं जल्द ही सो गया क्योंकि सुबह जल्दी उठना था। सुबह नाश्ता करके मैं छह बजे धारचूला टैक्सी स्टैण्ड पर पहुंच गया और दारमा घाटी (Darma Valley) जाने के लिए बोलेरो का पता करने लगा। दारमा घाटी जाने वाला कोई नहीं था इसलिए शेयर टैक्सी नहीं मिल पा रही थी। मैंने पूरी टैक्सी का किराया पूछा तो चालक ने बताया, “आज आपके साथ चलेंगे। एक रात दांतू गांव में रुकेंगे, अगले दिन वापस आयेंगे और पूरे 10,000 रुपये लगेंगे।” जाना-आना केवल 150 किलोमीटर था इसलिए किराया मुझे बहुत ज्यादा लग रहा था पर कोई भी टैक्सी वाला 10,000 रुपये से कम में जाने को तैयार नहीं था। फिर मैंने खुद ही सवारियां ढूंढनी शुरू कर दीं। मेरी मेहनत रंग लाई। मुझे मेरे जैसे ही तीन सोलो ट्रैवलर मिल गये- एक पुणे से, एक हैदराबाद से और एक जर्मनी से। फिर हम चारों सुबह नौ बजे चल दिए दारमा घाटी के दांतू गांव की ओर।

दारमा घाटी पहुंचे सोलो ट्रैवलर्स के साथ संजीव जिन्दल।
दारमा घाटी पहुंचे सोलो ट्रैवलर्स के साथ संजीव जिन्दल।

रास्ता बहुत ही खतरनाक था पर दृश्य बहुत ही खूबसूरत। रास्ते में कितने झरने-प्रपात पड़े, गिनती करना मुश्किल था। साथ-साथ बहती हुई दारमा नदी की खूबसूरती शब्दों में बयान नहीं की जा सकती। ऊंचे-ऊंचे बर्फ वाले पहाड़ों को देखकर जल्दी से उनके पास पहुंचने को मन कर रहा था। खतरनाक रास्ते का डर और मनोहारी दृश्यों की खुशी का संगम लेकर हम लोग अपराह्न ढाई बजे दांतू गांव पहुंच गये। दांतू के तीन तरफ ऊंचे-ऊंचे बर्फ वाले पहाड़ हैं और एक तरफ है समुद्र की सतह से 6,904 मीटर ऊंची और पूरी दुनिया में अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर पंचाचूली।

दारमा के दांतू गांव में जयन्ती दताल के साथ संजीव जिन्दल।
दारमा के दांतू गांव में जयन्ती दताल के साथ संजीव जिन्दल।

मुझे किसी ने जयन्ती दताल के बारे में बताया था। हम लोग उनके घर पहुंच गये। उन्होंने हमारे लिए चाय और प्याज के पकोड़े बनाए, फिर अपने भतीजे सुनील के साथ हमें घूमने के लिए भेज दिया। शानदार डिनर करके हम लोग सो गये। चांदनी रात में पंचाचूली (Panchachuli) को देखने के  लिए हम ढाई बजे उठ गये। 15 मिनट पंचाचूली के अलौकिक दर्शन करने के बाद हम फिर सो गये और सुबह पांच बजे उठे। मौसम बिल्कुल साफ था और मैंने अपने जीवन का सबसे खूबसूरत सूर्योदय देखा। पंचाचूली (Panchachuli) ऐसी लग रही थी जैसे किसी ने उसके ऊपर सोने की चादर चढ़ा दी हो। अद्भुत अनुभव था!

दारमा घाटी से पंचाचूली के भव्य दर्शन।
दारमा घाटी से पंचाचूली के भव्य दर्शन।
दारमा घाटी से पंचाचूली दर्शन।
दारमा घाटी से पंचाचूली दर्शन।

नाश्ता करने के बाद हम अपने गाइड सुनील के साथ चल दिए पंचाचूली के चरणों की ओर जिसे जीरो पॉइन्ट कहते हैं। लगभग नौ किलोमीटर की ट्रैकिंग है जिसमें तीन किलोमीटर रास्ता थोड़ा कठिन, बाकी बहुत ही मस्त और खूबसूरत है। हर कदम पर अलग ही नजारा था। जीरो पॉइन्ट पर लगभग 12:30 बजे मौसम खराब होने लगा और हमारे गाइड ने जल्दी से वापस चलने को कहा। फिर हम पांचों ने वापसी के लिए दौड़ लगा दी। बिल्कुल अंग्रेजी फिल्मों वाला दृश्य था। हवा बहुत तेज थी। हम आगे-आगे दौड़ रहे थे और बारिश हमारे पीछे-पीछे। बारिश हमें भिगोना नहीं चाह रही थी, बस हमसे मजे ले रही थी। तीन बजे हम जयन्ती दताल के घर पहुंच गये। खाना तैयार था। भोजन करके हम लोग चार बजे वापस धारचूला की ओर चल दिए। जयन्ती दताल से ऐसा अपनापन हो गया था कि उनसे विदाई लेना बहुत मुश्किल लग रहा था।

दारमा घाटी का दांतू गांव।
दारमा घाटी का दांतू गांव।

रास्ते में एक जगह जबरदस्त भूस्खलन मिला। अच्छी बात यह है कि चीन सीमा की ओर जाने वाली यह सड़क सीमा सड़क संगठन के नियन्त्रण में है, इसलिए रास्ता दो घण्टे में साफ हो गया और हम लोग रात्रि 11 बजे धारचूला पहुंच गये। खतरनाक रास्ता देखते हुए अब हमें टैक्सी का किराया 10,000 रुपये ज्यादा नहीं लग रहा था। इतनी रात को राजीव खर्कवाल को परेशान करना मुझे उचित नहीं लगा। हम चारों लोग केएमवीएन के गेस्ट हाउस की डॉरमेट्री में रुक गये। 15 जून को सुबह सात बजे मैं बरेली वापसी के लिए बोलेरो में बैठ गया। कैमरे और अपने मन-मस्तिष्क में दारमा घाटी और इस यात्रा के दौरान मिले लोगों की खूबसूरत यादें लेकर मैं शाम को छह बजे अपने घर पहुंच गया।

लोहाघाट : उत्तराखण्ड की धरती पर “कश्मीर”

कितने अनजान लोगों के साथ मैं रहा और खाया-पिया, ना मैंने और ना ही उनमें से किसी ने मेरी जात पूछी न धर्म। यात्राओं से बड़ा कोई मन्दिर नहीं, यात्राओं से बड़ा कोई धर्म नहीं। यदि आप खुद हो एक ठीक-ठाक इन्सान तो यात्राओं के दौरान मिलेंगे आपको इन्सान के रूप में भगवान।