Fri. Nov 22nd, 2024
sanjeev jindal with children in nepal.sanjeev jindal with children in nepal.

Cycling in Nepal – धनगढ़ी से आगे की 50 किलोमीटर की साइकिल राइड में 25 किलोमीटर हिस्सा खड़ी चढ़ाई वाला था और भयंकर सर्दी पड़ रही थी। शरीर को बाहर से ठण्ड लग रही थी और साइकिलिंग करने के कारण कपड़ों के अन्दर बहुत ज्यादा पसीना आ रहा था। पहाड़ी राइड के दौरान आबादी बहुत कम थी पर रास्ते में जगह-जगह बहुत ही प्यारे-प्यारे बच्चे मिले जिन्होंने मेरी इस कठिन यात्रा को बहुत ही सुहाना बना दिया।

संजीव जिन्दल

पुराने मित्र भरत विक्रम शाह ने मुझे नेपाल (Nepal) आने का निमन्त्रण दिया, “बाबा आओ, धनगढ़ी (Dhangadhi) से बुड्डर (Budder) तक साइकिल राइड करते हैं।” उन्होंने अकेले दम पर बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा कर काफी बड़ा कार्यक्रम भी आयोजित किया। नेपाल में पहले दिन की 50 किलोमीटर की साइकिल राइड बहुत ही कठिन थी। मैंने विक्रम के साथ चुहुल की, “विक्रम भाई नेपाल बुलाकर आपने तो मेरा तेल ही निकाल दिया।”

monal website banner

भारत से मेरे साथ दामाद अभिषेक द्विवेदी समेत 11 लोग नेपाल के धनगढ़ी पहुंचे थे। इस छोटे-से कारवां में वहां पर कई नेपाली मित्र शामिल हो गए और जब हम आगे रवाना हुए तो करीब 70 लोग हो चुके थे। धनगढ़ी से आगे की 50 किलोमीटर की राइड में 25 किलोमीटर हिस्सा खड़ी चढ़ाई वाला था और भयंकर सर्दी पड़ रही थी। शरीर को बाहर से ठण्ड लग रही थी और साइकिलिंग करने के कारण कपड़ों के अन्दर बहुत ज्यादा पसीना आ रहा था। पहाड़ी राइड के दौरान आबादी बहुत कम थी पर रास्ते में जगह-जगह बहुत ही प्यारे-प्यारे बच्चे मिले जिन्होंने मेरी इस कठिन यात्रा को बहुत ही सुहाना बना दिया। मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं यह राइड पूरी कर पाऊंगा पर नेपाली साथी मेरा हौसला बढ़ाते रहे, “बाबा चलो, बाबा चलो, हो जाएगा।” और इस तरह मैंने अपने जीवन की सबसे कठिन साइकिल यात्रा पूरी की।

नेपाल में साइकिल रैली का स्वागत करते लोग।
नेपाल में साइकिल रैली का स्वागत करते लोग।

नेपाल पर्यटन की एक टैगलाइन है जो बिल्कुल सत्य प्रतीत होती है-

Heaven is a Myth, Nepal is Truth. सच में स्वर्ग किसी ने नहीं देखा है पर यदि आपको स्वर्ग देखना है तो नेपाल जरूर घूमें।

दामाद हो तो अभिषेक द्विवेदी जैसा जो रास्तेभर अपने ससुर अर्थात मेरी देखभाल करने के साथ ही शानदार फोटो खींचता रहा। रास्ते में हम केवल आधा घण्टा दोपहर के भोजन के लिए रुके और शाम को करीब पांच बजे खानीडांडा (Khanidanda) पहुंचे। अगले दिन भी लगभग इतनी ही कठिन साइकिल यात्रा करनी थी। मैं और अभिषेक रात को गणेश अधिकारी के घर पर रुके। मैं जहां भी जाता हूं, कोशिश रहती है कि होटल में ना रुक कर किसी के घर या होमस्टे पर ठहरूं। गणेश अधिकारी ने हमें जो प्यार, सम्मान और आतिथ्य दिया, उसका शब्दों में वर्णन करना बहुत मुश्किल है। स्वर्ग कल्पना है, नेपाल हकीकत है। घुल-मिल जाएं नेपाल में जाकर वहां के लोगों में और महसूस करें धरती पर ही स्वर्ग को। (Nepal: Love showered during cycling)

खानीडांडा निवासी गणेश अधिकारी जिनके यहां हम रात को रुके थे।
खानीडांडा निवासी गणेश अधिकारी जिनके यहां हम रात को रुके थे।

सुबह आंख खुली तो कड़ाके की सर्दी ने हमारा स्वागत किया पर मौसम का यह कड़क मिजाज हमारे जोश को कम न कर सका। चाय-नाश्ता कर हमारा दल अपने अगले गन्तव्य बदुर डोटी (Badur doti) के लिए रवाना हो गया। कठिन चढ़ाई वाले पहाड़ी मार्ग और हाड़ कंपा देने वाली सर्दी पर हमारा हौसला भारी पड़ रहा था। लगभग हर पांच किलोमीटर बाद कोई हमें सन्तरे बांट रहा था तो कोई बिस्कुट। पानी की बोतलों की तो गिनती ही नहीं थी और साथ में प्यार भरा स्वागत। केराबारी में एक छोटे-से ढाबे के मालिक ने हम सभी साइकिलिस्टों को इन्टीरियर नेपाल का बहुत ही स्वादिष्ट और ऊर्जा दोने वाला सूप गतानी डुब्का पिलाया। इसको बनाने में बहुत मेहनत और समय लगता है। इसके लिए उड़द की दाल को कुछ घण्टे पानी में भिगोने के बाद सिल-बट्टे पर पीसा जाता है। उस ढाबे वाले का दिल सचमुच बहुत बड़ा था। अद्भुत है नेपाल और अद्भुत हैं यहां के लोग!

गतानी डुब्का पीने का आनन्द
गतानी डुब्का पीने का आनन्द

धनगढ़ी (Dhangadhi) से लगभग 90 किलोमीटर दूर बदुर डोटी (Badur doti) में हमारा भव्य स्वागत हुआ। इस बहुत ही शान्त और खूबसूरत छोटे-से पहाड़ी कस्बे में उस वक्त तापमान शून्य के करीब पहुंच चुका था। जमा देने वाली सर्दी के बीच हमने साइकिलिंग की थकान नाच-गाकर उतारी। इस दौरान जिस आनन्द की अनुभूति हुई उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।

नेपाल में घुमक्कड़ी : त्योहार पर जन्नत की सैर

कार्यक्रम खत्म होने के बाद भरत विक्रम शाह ने मुझसे पूछा, “बाबा रिजॉर्ट में रुकोगे या होमस्टे में।” मैंने कहा, “विक्रम दाई तुम जानते ही हो कि मुझे होटल पसन्द नहीं हैं। मैं होमस्टे में ही रुकूंगा।” हाड़ जमा देने वाली ठण्ड के बीच मैं और अभिषेक द्विवेदी रात करीब आठ बजे रिन्ची लामा के घर पहुंचे। रिन्ची अपने घर का एक साफ-सुथरा कमरा हमें देने के बाद हमारे लिए खाना बनाने में जुट गयी। मैं और अभिषेक दोनों ही बहुत ही कम खाना खाते हैं। रिन्ची के बनाये परम्परागत स्वादिष्ट नेपाली भोजन का हमने भरपूर आनन्द लिया। डाइट कम होने के कारण रिन्ची को लगा कि हम लोगों को खाना स्वाद नहीं लगा इसीलिए हम लोगों ने काफी कम खाया। वह बार-बार कहने लगी, “अंकल आपको खाना स्वाद नहीं लगा हो तो कुछ और बता दो, वही बना देती हूं।” मैंने कहा, “बेटा हमारी डाइट ही इतनी है, खाना बहुत ही स्वादिष्ट था।” बड़ी मुश्किल से रिन्ची को मेरी बात पर विश्वास हुआ। अगली सुबह भी रिन्ची ने बहुता स्वादिष्ट नाश्ता और फिर दोपहर का भोजन परोसा। इस छोटी-सी मुलाकात में अंकल और बेटी का ऐसा रिश्ता बना कि मुझे लग रहा था कि मैं अपनी बेटी के घर आया हूं।

बदुर डोटी में रिंची लामा के साथ संजीव जिन्दल।
बदुर डोटी में रिंची लामा के साथ संजीव जिन्दल।

बदुर डोटी (Badur doti) जितना सुन्दर हिल स्टेशन है, वहां का जलप्रपात भी उतना ही खूबसूरत है। सुबह-सुबह एक डिग्री तापमान में मैंने और कर्मवीर ढिल्लन ने इस प्रपात में नहाने की हिमाकत की। हिम्मत जुटाकर इसके  ठण्डे पानी में घुस गए और फिर मन भरकर नहाए।

बदुर डोटी का सूर्योदय।
बदुर डोटी का सूर्योदय।

बदुर डोटी से आगे साइकिलिंग शुरू की तो काफी कठिन चढ़ाई थी। कुछ देर बाद ही थकान हावी होने लगी। बरिस्ता और कैफे कॉफी डे की चाय-कॉफी आरामतलब पर्यटकों को मुबारक, अपन तो किसी भी दुकान, ढाबे या फड़ पर कुछ देर रुक कर चाय को घूंट-घूंट कर हलक से उतार लेते हैं। तीन डिग्री तापमान के बीच बुड्डर के पास एक छोटी-सी दुकान नजर आयी जिसे एक युवती चलाती है। परिचय के बाद मैंने कहा, “तारा बिटिया एक ग्रीन टी और दो दूध वाली चाय बनाओ।” तारा ने एक बार फिर हमारी तरफ गौर से देख कर कहा, “अंकल आप तो दो लोग ही हो, तीन चाय किसलिए?” शरारत भरी मुस्कान के साथ मैंने कहा, “मेरे दामाद अभिषेक द्विवेदी जो यह वीडियो बना रहे हैं, वह एक साथ दो चाय पीते हैं।” तारा ने तीन चाय बनाईं और मैंने एक कप उसकी तरफ ही बढ़ा दिया, “यह एक चाय आपकी है बिटिया।” बहुत मुश्किल से तारा ने तीन चाय के रुपये लिये। ताजा दम होकर आगे की यात्रा पर रवाना हो गये।

बदुर डोटी का प्राकृतिक सौन्दर्य
बदुर डोटी का प्राकृतिक सौन्दर्य

कैलास-मानसरोवर का वह गाइड (That guide of Kailash-Mansarovar)

सच में दुनिया गोल है, कब कौन मिल जाए किसी को नहीं पता।‌ बदुर डोटी में हमारी साइकिल रैली का स्वागत वीरू शेरपा ने पूरे शेरपा समाज के साथ किया। बातचीत के दौरान उनको मालूम पड़ा कि मैं बरेली से हूं तो उन्होंने बताया, “वर्ष 1998 में आपके सांसद सन्तोष कुमार गंगवार कैलास-मानसरोवर यात्रा पर गये थे तो उस दल का गाइड मैं ही था।” वीरू ने बताया कि वह कैलास-मानसरोवर यात्रा के कई दलों के गाइड रह चुके हैं, इस कारण भारत में उनको काफी लोग जानते हैं। भारत-नेपाल दोस्ती की एक कड़ी वीरू शेरपा से मिलकर मुझे वास्तव में बहुत खुशी हुई।

कैलास-मानसरोवर यात्री दलों के गाइड रह चुके वीरू शेरपा के साथ संजीव जिन्दल।
कैलास-मानसरोवर यात्री दलों के गाइड रह चुके वीरू शेरपा के साथ संजीव जिन्दल।

चाय अन्दर, थकान छूमन्तर

दोस्तों, इस दुनिया में मैं मुसाफिर हूं और अपनी जिन्दगी में भी। इस धरती पर 50–60 वर्ष रातें काटनी हैं, फिर चले जाना है और हर रोज 5-6 घण्टे रात काटनी है, फिर दिनभर भटकना है। इस भटकने के दौरान लोगों के दिलों में थोड़ी-सी जगह बनानी है।

नेपाल की इस यात्रा के दौरान मैंने धनगढ़ी में बेहतरीन कॉकटेल बनानी सीखी और सिखाई थी और अब आपको तिब्बती मक्खन चाय बनाना सिखाता हूं। लद्दाख हो, हिमाचल प्रदेश का लाहौल स्पीति हो, उत्तराखण्ड का माना गांव हो, अरुणाचल प्रदेश का तिब्बत सीमा वाला क्षेत्र हो अथवा नेपाल का उच्च पर्वतीय क्षेत्र, इन सभी स्थानों के निवासियों का खानपान करीब-करीब एक जैसा है और उस पर तिब्बत का बहुत अधिक प्रभाव है। इन सभी इलाकों में तिब्बती मक्खन चाय बहुत ही शौक से पी जाती है। नेपाल में इस बार की साइकिल यात्रा के दौरान बदुर डोटी हम लोगों का स्वागत शेरपा समाज ने किया और अत्यन्त स्वदिष्ट नमक वाली तिब्बती मक्खन चाय पिलाई। यह चाय बहुत ही स्फूर्तिदायक होती है और कप के खाली होने तक थकान मानो छूमन्तर हो जाती है।

चाय अन्दर, थकान छूमन्तर
चाय अन्दर, थकान छूमन्तर

इस चाय को बनाने के लिए काली चाय पत्ती ही चाहिए होती है पर वह दानेदार ना होकर ग्रीन टी की तरह लम्बी पत्ती वाली होनी चाहिए क्योंकि इसमें फ्लेवर ज्यादा होता है और कड़कपन कम। इसके अलावा पानी, दूध, मक्खन और नमक चाहिए होता है और यह नमक भी रॉक साल्ट होना चाहिए। इस चाय़ को बनाने के लिए ज्यादा पानी और थोड़ी-सी चाय पत्ती अच्छी तरह से उबाल लीजिए। बढ़िया रंग और खुशबू आने पर दूध मिला लीजिए। दूध की मात्रा भी कम ही रखनी है। फिर इसमें रॉक साल्ट स्वादानुसार मिला लीजिए। एक बार फिर अच्छी तरह उबालने के बाद चाय को किसी दूसरे बर्तन में छान लें। फिर इसमें सफेद या पीला मक्खन मिलाकर हैण्ड ब्लेण्डर से मैश कर लें। लीजिए तैयार है तिब्बती मक्खन चाय। इस चाय को मैश करने के लिए हमारे पास तिब्बती घरों में आनिवार्य रूप से पाया जाने वाला लकड़ी का लम्बा-बड़ा बर्तन नहीं होता है इसलिए हैण्ड ब्लेण्डर से भी मैश कर सकते हैं। मैश करने से चाय थोड़ी गाढ़ी हो जाती है और स्वाद अलग ही स्तर का हो जाता है।

तिब्बत में बहुत अधिक सर्दी पड़ती है और वहां के लोग दिनभर पानी ना पीकर यही चाय पीते हैं। वे याक का दूध और इसी दूध से बने मक्खन का इस्तेमाल करते हैं। आप गाय या भैंस के दूध का प्रयोग कर सकते हैं। आजकल भारत में भी खूब सर्दी पड़ रही है तो मजा लीजिए तिब्बती मक्खन चाय का।

दोस्तों, घुमक्कड़ी का मजा तभी है जब आप जहां भी जाओ वहीं के लोगों जैसे हो जाओ। वहीं का खानपान, वहीं की मस्ती।

जहां गये वहीं के हो गये

इक मुसाफिर को दुनिया में क्या चाहिए

बस थोड़ी-सी दिलों में जगह चाहिए।

मैं एक मुसाफिर, घुमक्कड़ और फक्कड़ बंजारा होने के कारण जहां भी जाता हूं वहीं का हो जाता हूं। अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानने वाले ना तो खुद जिन्दगी जी पाते हैं और ना ही दूसरों को जीने देते हैं। उनकी ऐंठ होती है, “बस मैं जो करता हूं वही सही है, वही आप लोग भी करो।” ऐसे लोग चिड़चिड़े होकर हर चीज का बहिष्कार करने लगते हैं। आखिर ये बहिष्कार क्यों? और फिर आपकी सुन ही कौन रहा है? कुढ़ते रहो और बैठे-बैठे जलाते रहो अपना खून।

वैलेंटाइन डे को युवा जोड़े अपने हिसाब से मनाते हैं तो हम घुमक्कड़ लोग अपने हिसाब से मना सकते हैं। अपनी पत्नी के साथ, अपने बच्चों के साथ, कुदरत के साथ या नदी-पहाड़ों के साथ।

नेपाल में 100 किलोमीटर की साइकिलिंग करते हुए रास्ते में देखा कि एक जगह किसी विद्यालय का स्टाफ पिकनिक मनाने आया हुआ है। बस घुलमिल गए उनमें। थोड़ा नाचे, थोड़ा नाश्ता किया और बढ़ा दी बंजारे ने अपनी साइकिल आगे। महिला शिक्षक जोकि मेरे लिए बच्चों के ही समान थीं, ने मुझे बहुत प्यार और सम्मान दिया।

प्रबुद्ध बनकर घूमना घुमक्कड़ी नहीं है, बुद्धू होकर वहीं का हो जाना ही असली पर्यटन है।

सार संसार एक मुनस्यार : सारे संसार की खूबसूरती पर भारी मुनस्यारी का सौन्दर्य

परम्परा और आधुनिकता का संगम

एक शहर तभी पूर्ण रूप से शहर बन पाता है जब उसमें पुरानी संस्कृति और परम्पराएं भी बची हों और वह नये जमाने के साथ कदमताल भी कर रहा हो। नेपाल का धनगढ़ी (Dhangadhi) एक ऐसा ही शहर है जहां आपको पुरानी संस्कृति, परम्पराओं और आधुनिकता का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। मैं और अभिषेक द्विवेदी घूमते-फिरते टेम्पल रिजॉर्ट पहुंचे तो वहां प्यारी-प्यारी बच्चियां काठमाण्डू में आयोजित होने वाली मिस नेपाल प्रतियोगिता की तैयारी कर रही थीं। इन बच्चियों को तैयारी करवाने के लिए बुटवल से, जो कि धनगढ़ी से 500 किलोमीटर दूर है, महिमा क्षेत्रीय आयी हुई थीं। मैंने कहा, “महिमा मुझे भी बाबा नेपाल बनना है, मुझे भी कैटवॉक सिखा दो।” महिमा पहले हंसी, फिर बोली, “आओ-आओ बाबा बच्चों के साथ मिलकर कैटवॉक करो।” वहीं पर मुझे एक बहुत ही प्यारी-सी बिटिया उर्मिला मिली जो कि टिकटॉक स्टार है और आने वाले समय में फिल्मों में काम करना चाहती है। फिर मैंने और उर्मिला ने मिलकर धनगढ़ी के बहुत ही बड़े, मेरी नजर में 7 स्टार चौलानी क्लब एण्ड रिजॉर्ट के कई मार्केटिंग वीडियो बनाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *