Bir Billing: बैजनाथ में बस में बैठने के ठीक आधा घण्टे बाद मैं बीर बिलिंग (Bir Billing) चौराहे पर था और बैग कन्धे पर लादकर पैराग्लाइडिंग लैण्डिंग साइट की तरफ चल दिया। लगभग डेढ़ किलोमीटर पैदल चलने के बाद मुझे एक होटल दिखाई दिया जिसकी शानदार डॉरमेट्री में मुझे 300 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से बेड मिल गया। बैग वहीं पर रखने के बाद मैं आधा किलोमीटर दूर लैण्डिंग साइट की तरफ चल दिया।
संजीव जिन्दल
साइकिलिंग और ट्रैकिंग मैं काफी कर चुका हूं, अब मन था कुछ एडवेंचरस करने का। लेकिन, इसमें मेरी उम्र और मोटापा आड़े आ रहा था। फिर मन ने कहा, “देखा जायेगा, घर से निकल लो साइकिल बाबा।” मन की इस सलाह को आदेश मानकर मैंने आठ अक्टूबर 2023 को सायंकाल पठानकोट के लिए ट्रेन पकड़ी और अगले दिन सुबह 6:30 बजे वहां पहुंच गया।
बीर बिलिंग (Bir Billing) जाने के लिए पालमपुर (Palampur) होकर गुजरना पड़ता है। मेरा पालमपुर में रुकने का कोई कार्यक्रम नहीं था। पिछले दो साल से पालमपुर (Palampur) के शमशेर राजपूत मेरे फेसबुक फ्रेन्ड हैं। आगे की यात्रा के लिए कुछ जानकारी लेने को मैंने उन्हें फोन किया। यह कॉल करना भारी पड़ गया। उन्होंने स्नेह पगे शब्दों में धमकाया, “देखता हूं आप पालमपुर में रुके बिना बीर बिलिंग कैसे पहुंचते हैं?” मरता क्या ना करता! मैंने पठानकोट से सुबह आठ बजे पालमपुर के लिए बस पकड़ी जहां शमशेर मोटरसाइकिल पर बैठे मेरा इन्तजार कर रहे थे। करीब 12 बजे मैं शमशेर की मोटरसाइकिल पर पीछे बैठा था। वह मुझे पास ही में रहने वाली अपनी मुंहबोली बहन के घर ले गए। वहां हम लोगों ने चाय-नाश्ता करते हुए खूब सारी बातें कीं। शमशेर बोले, “इतना लम्बा सफर करके आए हैं, थोड़ा आराम कर लीजिए।” मैंने कहा, “ट्रेन और बस में आराम ही किया है, अब बस घूमना है।” बहन से विदा लेकर हम शमशेर के घर पहुंचे। वहां बैग रखने के बाद नाश्ते का एक और दौर चला। इसके बाद हम दोनों घूमने निकल गए और देर तलक घूमते रहे।
सच कहूं, पालमपुर (Palampur) की बेपनाह खूबसूरती पर मैं रीझ गया, उससे मोहब्बत-सी हो गयी। मदहोशी जैसे आलम में मैंने स्वयं को कोसा कि पालमपुर में रुकने का कार्यक्रम पहले से क्यों नहीं बनाया। अपराह्न करीब साढ़े तीन बजे बजे हमने शमशेर के घर वापस आकर रसोईघर में चूल्हे के पास जमीन पर बैठ कर भोजन किया। ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं लम्बी छुट्टी के बाद अपने ही घर पर आया हूं। भोजन के बाद हम फिर घूमने निकल गए। वापस आये तो रात काफी चढ़ चुकी थी। थकान के कारण भोजन करते ही नींद आ गयी।
अगले सुबह नाश्ता करने के बाद हम पालमपुर (Palampur) के चाय बागान घूमते हुए बैजनाथ पहुंचे। बैजनाथ धाम शिव मन्दिर अति प्राचीन है और इसकी शिल्प मन मोह लेता है। यहां दर्शन-पूजन के बाद शमशेर ने मुझे करीब 12 बजे बीर बिलिंग की बस में बैठा दिया। विदा लेते समय हम दोनों ही बहुत भावुक हो गये और गला रुंध गया।
ठीक आधा घण्टे बाद मैं बीर बिलिंग (Bir Billing) चौराहे पर था और बैग कन्धे पर लादकर पैराग्लाइडिंग लैण्डिंग साइट की तरफ चल दिया। लगभग डेढ़ किलोमीटर पैदल चलने के बाद मुझे एक होटल दिखाई दिया जिसकी शानदार डॉरमेट्री में मुझे 300 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से बेड मिल गया। बैग वहीं पर रखने के बाद मैं आधा किलोमीटर दूर लैण्डिंग साइट की तरफ चल दिया। सुन रखा था कि सूर्यास्त के समय पैराग्लाइडिंग (Paragliding) करने में ज्यादा मजा आता है। यही सोच कर पैराग्लाइडिंग एजेन्सी ढूंढने लगा। कई जगह होता हुआ हाई फ्लाई पैराग्लाइडिंग एजेन्सी पर पहुंचा जहां मेरी मुलाकात पायलट चेतन कपूर से हुई। चेतन से पता चला कि आज धर्मशाला में इंग्लैण्ड और बांग्लादेश का क्रिकेट मैच होने के कारण पैराग्लाइडिंग पर प्रतिबन्ध है ताकि यहां से बाई एयर केवल 30 किलोमीटर दूर स्थित धर्मशाला के क्रिकेट स्टेडियम में कोई पैराग्लाइडर लैण्डिंग ना कर दे और सिक्योरिटी का कोई इशू ना हो जाए।

मैं चेतन कपूर के पास ही बैठ गया और पैराग्लाइडिंग के बारे में जानकारी लेने लगा। चेतन ने मुझे बताया, “सूर्यास्त के समय पैराग्लाइडिंग करना आपके लिए ठीक नहीं रहेगा क्योंकि आपका वजन ज्यादा है और उस वक्त हवा ठण्डी हो जाती है। ठण्डी हवा भारी होती है और पैराग्लाइडर ज्यादा उड़ नहीं पाता है। आप सुबह 11 बजे पैराग्लाइडिंग करें। उस वक्त हवा गर्म होगी और मैं आपको टेक ऑफ साइड से भी काफी ऊपर ले जाऊंगा।”
मैं चेतन कपूर के पास लगभग डेढ़ घण्टा बैठा और हम दोनों में दोस्ती हो गई थी। उसने मुझे 210 किलोग्राम क्षमता का पैराग्लाइडर भी दिखाया और बताया कि यह बिल्कुल नया है और इससे अभी तक केवल 12 फ्लाइट हुई हैं, 13वीं फ्लाइट आपकी होगी। मैंने मन ही मन कहा, “साइकिल बाबा, कल हो जायेगी तुम्हारी तेरहवीं।” चेतन ने आगे और अत्यन्त महत्वपूर्ण जानकारी दी, “सर, आपको डरना नहीं है और जब तक पैराग्लाइडर पूरी तरह से टेक ऑफ ना कर ले तब तक दौड़ते रहना है। बीच में मन बदल कर रुकना नहीं है। ऐसा करने पर भयंकर दुर्घटना हो सकती है और दोनों के चोट भी लग सकती है, जान भी जा सकती है। सर, मेरी जान भी आपके हाथ में है। एक बार पैराग्लाइडर टेक ऑफ कर गया तो फिर सारी जिम्मेदारी मेरी।”
चेतन कपूर से सारी बातें समझ कर मैं बीर बिलिंग (Bir Billing) बाजार घूमने निकल गया और डिनर करने के बाद होटल वापस पहुंचा। रिसेप्शन पर होटल की मैनेजर मानसी के साथ कुछ देर कैरम खेलने के बाद अपने बेड पर चला गया। नींद आंखों से कोसो दूर थी और चेतन कपूर की बतायी बातें याद कर डर लग रहा था। इसी बीच मेरे एक दोस्त ने द ट्रिब्यून की एक खबर मुझे व्हाट्सएप की। खबर थी बीर बिलिंग (Bir Billing) में पिछले एक सप्ताह में तीन पैराग्लाइडर्स की हादसों में मौत हो चुकी है। अब मन कह रहा था, “देख लो साइकिल बाबा, चेतन की जान भी तुम्हारे हाथ में है। यदि तुमने गड़बड़ की तो तुम तो मारोगे ही, चेतन को भी मार डालोगे।” फिर मैंने अपने आप को समझाया, “अरे, इतनी दूर आए हो क्या डर कर लौट जाओगे? जिन तीन लोगों की मौत हुई है वे स्टन्ट करने के कारण मरे हैं। बस तुम्हें कुछ दूर दौड़ना ही तो है, फिर चेतन सब सम्भाल लेगा।” फिर मैं रातभर मन ही मन रटता रहा, “भाग जिन्दल भाग।”
सुबह नहा-धोकर होटल के सामने स्थित एक बड़े बौद्ध मठ में जा पहुंचा। चेतन ने बताया था कि पैराग्लाइडिंग में ऊपर काफी चक्कर काटने पड़ते हैं, इस कारण उल्टी हो सकती है, इसलिए नाश्ता हल्का ही करिएगा। मठ में एक घण्टा छोटे-छोटे बौद्ध भिक्षुओं के साथ खेलता रहा, फिर वहीं पर चाय-आमलेट का नाश्ता करके चेतन की एजेन्सी की ओर चल दिया। चेतन मुझे देखकर खुश हो गया, उसे उम्मीद नहीं थी कि मैं आज पैराग्लाइडिंग करने आऊंगा। हम लोग एक कार में बैठकर बीर से 14 किलोमीटर दूर बिलिंग के लिए रवाना हो गये। यह बहुत खड़ी चढ़ाई थी। करीब 11:30 बजे हम बिलिंग पहुंच गए। चेतन पैराग्लाइडर खोलने लगा। मेरा हृदय धुक-धुक कर रहा था और मैं मन ही मन एक ही रट लगाए हुए था, “भाग जिन्दल भाग, रुकना नहीं है।”
चेतन ने मुझे पैराग्लाइडर की बेल्टों में जकड़ दिया। मैंने भागना शुरू किया। 15 कदम दौड़ने के बाद हम लोग शानदार टेक ऑफ के साथ हवा में थे। पैराग्लाइडर कुछ झटके ले रहा था और चेतन मुझसे कह रहा था, “डोन्ट पैनिक, डोन्ट पैनिक।” एक मिनट के बाद ही मैं सहज हो गया और उड़ान का मजा लेने लगा। झटकों के बारे में चेतन ने बताया कि ऊपर कहीं गर्म तो कहीं ठण्डी हवा होती है। पैराग्लाइडर जब गर्म से ठण्डी या ठण्डी से गर्म हवा में प्रवेश करता है तो झटके लगते हैं। डरने वाली कोई बात नहीं है।

एकाएक चेतन ने कहा, “देखो-देखो बवंडर बन रहा है। यदि मैं पैराशूट इसमें फंसा दूं तो हम बहुत ऊपर चले जायेंगे। मन है तो बताओ।” अब तक मैं पूरी तरह सहज हो चुका था इसलिए हामी भर दी। फिर हमारा पैराग्लाइडर बवंडर में घूमता-घामता बहुत ऊपर चला गया। आपने नदी या समुद्र में भी बवंडर बनते देखे होंगे। यदि इन्सान उनमें फंस जाए तो नीचे चला जाता है, इसके उलट हवा का बवंडर आपके ऊपर ले जाता है। यह एक अलग ही तरह का अनुभव था। जिन्दगी के बेहतरीन 32 मिनट हवा में गुजारने के बाद मेरे बेहतरीन पायलट चेतन कपूर ने बीर में पैराग्लाइडर की शानदार लैण्डिंग करवाई।
ऊपर हवा में काफी गोल-गोल चक्कर काटने के कारण मुझे उबकाई आ रही थी। एक तरफ झाड़ियों में जाकर उल्टी करने के बाद मैंने लिम्का पिया। अब मैं बिलकुल सामान्य हो चुका था। चेतन कपूर का लाख-लाख धन्यवाद करके मैं बाजार में निकल गया। एक स्कूटी किराए पर ली और आठ किलोमीटर दूर स्थित एक मठ को देखने चल दिया। मठ से वापस आने तक अन्धेरा हो चुका था। कुछ देर बाजार में बेवजह चहलकदमी करने के बाद डिनर किया और अपने होटल वापस आ गया। होटल में मानसी को अपनी पैराग्लाइडिंग के वीडियो दिखाने और उसके साथ कैरम-लूडो खेलने के बाद सोने चल दिया। बहुत गहरी नींद आयी। बारह अक्टूबर को सुबह आंख खुलने पर मैं स्वयं को तरोताजा महसूस कर रहा था।

नाश्ता करने बाद स्कूटी स्टार्ट की और वहां से लगभग 10-12 किलोमीटर दूर गुनेहार जलप्रपात घूमने चल दिया। जलप्रपात से कुछ पहले ही मैंने स्कूटी एक तरफ खड़ी की और गाइड राहुल को साथ ले लिया। फिर हमने एक छुपे हुए जलप्रपात तक काफी लम्बी ट्रैकिंग की। इसी दौरान रास्ते में शानदार गुनेहार जलप्रपात को भी देखा। दूरदराज के कुछ गांवों में भी घूमे। अपराह्न करीह तीन बजे मैं बीर वापस आ गया। स्कूटी वापस करके भोजन किया और कुछ देर बाजार में घूमा। कुछ देर बाद होटल से बैग उठाया, मानसी को बाय-बाय किया और दिल्ली के लिए बस पकड़ने चल दिया। ठीक छह बजे वोल्वो बस दिल्ली के लिए चल दी। सुबह छह बजे मैं दिल्ली के कश्मीरी गेट पर खड़ा था। वहां से मेट्रो पकड़ कर आनन्द विहार पहुंचा। सड़क पार कर कौशाम्बी से बरेली के लिए आठ बजे वाली बस पकड़ी। दोपहर ठीक डेढ़ बजे मैं अपने घर पर था।
यह थी एक 56 साल के “जवान” और मोटे इन्सान की बीर बिलिंग एडवेंचरस यात्रा।
घूमने से ज्यादा महसूस करने की यात्रा

दोस्तों, यदि हिमाचल प्रदेश को सही से घूमना है तो मेरी सलाह है कि कभी भी संगी-साथियों के साथ वहां मत जाना, अकेले ही घूमना। हिमाचल में आप शिमला की माल रोड और संग्रहालयों का मोह छोड़कर दूरदराज के क्षेत्रों में ट्रैकिंग और हाईकिंग करेंगे तो प्रकृति के ज्यादा करीब होंगे और अधिक आनन्द आएगा और उतना ही अधिक इस हिमालयी राज्य को सही से महसूस कर पाएंगे। जब आप दोस्तों के समूह में होते हैं तो आपकी अपनी बातें ही खत्म नहीं होतीं और फोटोग्राफी भी अपनी ही होती है, “अरे यार मेरा एक फोटो खींच दे।” “अमां यार एक सेल्फी हो जाये।” आदि-आदि। फिर वहां से लौटकर अपने कट बिगड़े चेहरे को देखते रहते हैं और प्रकृति से निकटता के चिन्ह ढूंढने पड़ते हैं। इसीलिए मैं कहता हूं कि हिमाचल प्रदेश घूमने की नहीं महसूस करने की जगह है।
बीर बिलिंग (Bir Billing) यात्रा, हिमाचल को महसूस करने की यात्रा।
फोटोग्राफी का स्वर्ग

बीर बिलिंग (Bir Billing) में आपको दो ही तरह के लोग दिखाई देंगे, पैराग्लाइडर और बौद्ध भिक्षु। यह पैराग्लाइडिंग के लिए दुनिया की बेहतरीन साइट्स में से एक है इसलिए यहां दुनियाभर से पैराग्लाइडिंग के शौकीन इकट्ठा होते हैं और दिनभर पक्षियों की तरह आसमान में मंडराते रहते हैं। कई लोगों के प्रयासों के चलते बीर बिलिंग सन् 1982 से “पैराग्लाइडिंग के शौकीनों का काशी” बन गया है।
1959 में जब दलाई लामा अपने हजारों अनुयाइयों के साथ अरुणाचल प्रदेश के रास्ते तिब्बत से भारत आए तो उन हजारों लोगों को भारत में कहां बसाया जाए यह भी एक समस्या थी। कई जगह का सर्वेक्षण करने के पश्चात इन्हें हिमाचल प्रदेश के मैकलोडगंज और वहां से 50 किलोमीटर दूर बीर बिलिंग (Bir Billing) में बसाया गया। बीर बिलिंग में कई बड़े मठ हैं जहां पूरी दुनिया से बौद्ध भिक्षु शिक्षा लेने आते हैं। हालंकि मेरे जैसे घुमक्कड़ों के लिए यह फोटोग्राफी का स्वर्ग है।
