Sat. Mar 15th, 2025
bathing in the river gives health along with new energy.bathing in the river gives health along with new energy.

जब भी मौका मिले घास पर चल कर और नदी में नहा कर शरीर की अर्थिंग करते रहिए। ऐसा करके आप बहुत सारी समस्याओं से बचे रहेंगे। मैंने हाई ब्लडप्रेशर में इसका चमत्कार होते हुए देखा है।

पंकज गंगवार

नुष्य सभ्यता (Human civilization) की संपूर्ण यात्रा प्रकृति पर विजय की है। हमने जंगलों को जला कर खेती करने योग्य जमीन बनाई। वहां से खतरनाक जीव-जंतुओं को मार भगाया और काम के जीव-जंतुओं को पालतू बना लिया। नदी के प्रवाह को रोक कर उस पर बांध बना लिये और नहरें निकाल लीं। विज्ञान ने आज वह सबकुछ कर दिखाया है जो कि हमारे पूर्वज कल्पनाओं में भी नहीं सोच पाए होंगे।

लेकिन, इस सब का परिणाम यह हुआ कि मनुष्य अपने आप को प्रकृति का हिस्सा न मान कर इससे अलग मानने लगा है और यही हमारी समस्याओं की जड़ है। मुझे लगता है हम कितनी भी वैज्ञानिक प्रगति कर लें लेकिन हमें प्रकृति का हिस्सा बनकर ही रहना होगा, तभी हम जीवित रह पाएंगे। अन्यथा इस रूप में तो जीवन आगे नहीं बढ़ पाएगा। हम आधे मनुष्य और आधे मशीन बनकर आगे का जीवन जीने लगें तो अलग बात है।

मैं विज्ञान की प्रगति के विरोध में नहीं हूं लेकिन लोग प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं, इसको लेकर चिंतित हूं। मैंने देहरादून में देखा कि वहां नदी के किनारे लोगों ने छोटे-छोटे स्विमिंग पूल बना रखे हैं। बच्चे दिनभर उनमें नहाते हैं, उछल-कूद करते हैं, तरह-तरह से मस्ती और म्यूजिक पर डांस करते हैं। विडम्बना ही है कि सामने ही पहाड़ी नदी बह रही है, उसमें ज्यादा पानी भी नहीं है, पानी साफ-सुथरा भी है पर उसमें नहाने को कोई भी तैयार नहीं है। जितने दिन मैं वहां रहा, उस नदी में गरीबों के बच्चों को तो नहाते देखा पर किसी भी मध्य या उच्च वर्गीय व्यक्ति के बच्चों को वहां नहीं देखा जबकि मात्र 50 मीटर दूर स्थित स्विमिंग पूल भरी जेब वाले अभिभावकों के बच्चों की उछाल-कूद से गुलजार थे। हालांकि लोग धार्मिक कारणों से किसी नदी, सरोवर या किसी जाने-माने पॉइन्ट पर नहाते भी हैं लेकिन सामान्य तौर पर यह प्रवृत्ति कम हो रही है।

मैं यह नहीं कह रहा कि स्विमिंग पूल मत बनाइए या स्विमिंग पूल में मत नहाइये लेकिन जहां प्राकृतिक स्वरूप में पानी मिल जाए, पहाड़ी नदी मिल जाये, झरना अथवा प्रपात मिल जाए, समुद्र मिल जाए और वह स्थान सुरक्षित भी हो तो कम से कम वहां तो नहा ही लीजिए। इनके किनारे की रेत पर थोड़ी लोट लगा लीजिए, थोड़ी देर नंगे पांव टहल लीजिए, यह आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होगा।

अब आप सोच रहे होंगे कि इसका स्वास्थ्य से क्या संबंध है। दरअसल, ऐसा करना हमारे शरीर की अर्थिंग कर देता है। हालांकि आंखों की रोशनी कम होने और  हाई ब्लडप्रेशर होने पर अक्सर लोग घास पर नंगे पैर चलने की सलाह देते हैं और उसका प्रभाव भी मैंने देखा है लेकिन ऐसे लोग यह बता पाने में असमर्थ होते हैं कि आखिर यह नंगे पांव चलना काम कैसे करता है। मैं आज आपको इसके पीछे का विज्ञान बताता हूं।

हमारा शरीर एक प्रकार की बायो बैटरी है जो सोडियम आयन और पोटेशियम आयन के एक्सचेंज पर चल रही है। हमारी मेटाबॉलिक क्रिया के फलस्वरूप शरीर में कुछ एक्स्ट्रा इलेक्ट्रॉन बनते हैं जो हमारे शऱीर को फ्री रेडिकल्स के रूप में नुकसान पहुंचाते हैं। यदि हम गीली धरती पर नंगे पांव चलते हैं या नदी में नहाते हैं तो ये एक्स्ट्रा इलेक्ट्रॉन धरती में चले जाते हैं और उनका नुकसान हमें नहीं होता। यह उसी प्रकार से है जैसे हम अपने विद्युत उपकरणों की सुरक्षा के लिए अर्थिंग कर देते हैं। इसलिए जब भी मौका मिले, अपने शरीर की अर्थिंग करते रहिए। ऐसा करके आप बहुत सारी समस्याओं से बचे रहेंगे। मैंने हाई ब्लडप्रेशर में इसका चमत्कार होते हुए देखा है।

(लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड (न्यूट्रीवर्ल्ड) के चेयरमैन भी हैं)

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