बुन्देलखण्ड के व्यंजनों (Bundelkhand dishes) की सबसे बड़ी विशेषता है इनकी साधारण रेसिपी और रोजमर्रा का भोजन तैयार करने में इस्तेमाल की जाने वाली सामान्य-सी सामग्री। इसके बावजूद ये अत्यंत स्वदिष्ट होते हैं। सही बात तो यह है कि खास ही नहीं आम आदमी भी इन्हें घर में आसानी से और कम खर्च में तैयार कर सकता है।
न्यूज हवेली नेटवर्क
Bundelkhand food : चन्देल राजाओं, छत्रसाल बुन्देला, राजा भोज, ईसुरी, पद्माकर, रानी लक्ष्मीबाई, मैथिलीशरण गुप्त, मेजर ध्यान चन्द, गोस्वामी तुलसी दास जैसी महान विभूतियों की धरती बुन्देलखण्ड अपनी सुस्वाद भोजन परम्परा के लिए भी जानी जाती है। मध्य भारत के इस प्राचीन क्षेत्र का विस्तार उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश तक है। बुन्देलखण्ड के व्यंजनों (Bundelkhand dishes) की सबसे बड़ी विशेषता है इनकी साधारण रेसिपी और रोजमर्रा का भोजन तैयार करने में इस्तेमाल की जाने वाली सामान्य-सी सामग्री। इसके बावजूद ये अत्यंत स्वदिष्ट होते हैं। सही बात तो यह है कि खास ही नहीं आम आदमी भी इन्हें घर में आसानी से और कम खर्च में तैयार कर सकता है। (Bundelkhand: Unique taste based on simple recipes and simple ingredients)
बुन्देलखण्ड में विवाह कार्यक्रम के अंत में विदाई के समय टिपारा दिये जाने की परम्परा है। टिपारे (बायना) में बेसन से बने गुना, फूल, मैदा से निर्मित खाकड़ा, पैराखे (रंग-बिरंगी बड़ी गुझिया) तथा मैदा, गुड और मेवे से निर्मित आंसे (बड़ी पूरी) होते हैं। समय के साथ दावत के तौर-तरीके तो बदल गये पर न तो विवाह कार्यक्रम में दिया जाने वाले टिपारा बदला और न ही इसमें रखे जाने वाले व्यंजन।
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एरसे
यह एक तरह की मीठी पूड़ी है। इसे मूसल में कूटे गये चावलों से तैयार किया जाता है। इसे बनाने के लिए दरदरे आटे में गुड़ मिलाकर गूंथ लेते हैं। इसकी पूड़ियां घी में तली जाती हैं। बुन्देलखण्ड में यह व्यंजन त्यौहारों विशेषकर दीपावली और होली पर बनाया जाता है।
अद्रैनी
अद्रैनी को गेहूं के आटे और बेसन से बनाया जाता है। इसके लिए छह भाग गेहूं का आटा और चार भाग चने के बेसन को नमक मिलाकर गूंथ लेते हैं। इस मिश्रण से जो नमकीन पूड़ी बनायी जाती है, उसे अद्रैनी कहते हैं। स्वाद और पाचन के लिए इसमें अजवाइन या जीरा मिलाया जाता है।
बेसन के आलू
आपने आलू की तरह-तरह की सब्जी-व्यंजन चखे होंगे लेकिन बुन्देलखण्ड में आलू नाम जुड़ा एक ऐसा व्यंजन बनता है जिसमें नाम-मात्र का भी आलू नहीं होता है। यह बहुत मसालेदार और नमकीन होता है। यहां बेसन के आलू बनाने के लिए सूखे हुए आंवलों को घी में भूनने का बाद पीसकर बेसन में मिलाते हैं। इस मिश्रण को गूंथकर आलू की तरह गोले बनाकर उन्हें खौलते पानी में पकाया जाता है। फिर छोटे-छोटे टुकड़े कर तेल या घी में भूनते हैं। इसके बाद मसालों के साथ छौंक कर कड़ाही या पतीली में बनाया जाता है।
रसखीर
गन्ने के ताजे रस में पके हुए चावलों को रसखीर कहते हैं। सर्दी के मौसम में इसे अक्सर बनाया जाता है। कुछ लोग इसमें ऊपर से मेवे भी डालते हैं। यह पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ ही अत्यंत स्वादिष्ट भी होती है। इसे सामूहिक रूप से और लोगों को अपने यहां आमंत्रित कर खाने की परम्परा है।
पूड़ी के लड्डू
इसे बनाने के लिए बेसन की बड़ी और मोटी पूड़ियां तेल या घी में सेंक कर हाथों से बारीक मीड़ी (मींजी) जाती हैं। फिर उन्हें चलनी से छानकर थोड़े से घी में भूना जाता है। उसके बाद शक्कर या गुड़ का घोल डाल कर हाथों से बांधा जाता है। स्वाद बढ़ाने के लिए इलायची भी पीसकर मिला सकते हैं। कम आय वर्ग के लोग जो महंगी मिठाइयां नहीं खरीद सकते, उनके लिए यह किसी विशिष्ट पकवान से कम नहीं है। हालांकि इसे आमतौर पर त्यौहारों पर या बुलावा (बुलउआ) के लिए बनाया जाता है।
थोपा
जैसी कि नाम से ही जाहिर है, यह शब्द “थोपने”, से बना है। इसे बनाने के लिए बेसन को पानी में घोलकर कड़ाही में हलुवे की तरह पकाते हैं। इसमें नमक, मिर्च, लहसुन, जीरा और कटा प्याज मिलाया जाता है। यह जब हलुवे की तरह कुछ गाढ़ा हो जाता है, तब जरा-सा तेल छोड़ देते हैं। पक जाने पर किसी थाली या हुरसे पर तेल लगाकर हाथ से थोप देते हैं। ठंडा हो जाने पर छोटी-छोटी कतरी (कतली) काट ली जाती हैं। इन्हें ऐसा ही खाया जाता है और मट्ठे के साथ भी। इसे प्रायः सवेरे के नाश्ता के तौर पर तैयार किया जाता है।
आंवरिया
यह आंवले की कढ़ी है। इसे बनाने के लिए सूखे आंवले की कलियों को घी या तेल में भूनकर सिल पर पीसा जाता है। बेसन को पानी में घोलकर किसी बर्तन में चूल्हे पर चढ़ाने के बाद आंवले के इस चूर्ण को उसमें डाल देते हैं। लाल मिर्च, जीरा, प्याज और लहसुन के पिसे मिश्रण को तेल या घी में भूनकर बेसन के घोल को छौंका लगाते हैं। परम्परागत रूप से इसे मिट्टी की हण्डी में बनाया जाता है। हालांकि अब इसे पतीले और कड़ाही में भी बनाया जाने लगा है।
बफौरी
यह शब्द भाप या वाष्प से बना है। बुन्देली बोली में भाप को बाफ्, भाफ् और कहीं-कहीं भापु भी कहते हैं। यह एक तरह की सब्जी है। इस व्यंजन को बनाने के लिए मिट्टी या धातु के बर्तन में पानी भरकर उसके मुंह पर साफ कपड़ा बांध देते हैं। उसे आग पर खौलाते हैं। जब भाप निकलने लगती है, तब उस पर बेसन की पकौड़ियां सेंकते हैं। इसके बाद किसी कड़ाही में घी या तेल डाल कर लहसुन, प्याज, धनिया, हल्दी, मिर्च आदि मसालों के मिश्रण को भूनने के बाद इन पकौड़ियों को उसमें मिलाकर थोड़ी देर पकाते हैं।
ठोंमर
इसे ज्वार के दलिये से बनाया जाता है। परम्परागत रूप से ज्वार को ओखली में मूसल से कूटकर दलिया बनाया जाता है। इस दलिये को मिट्टी के बर्तन में मट्ठे में पकाते हैं। इसमें हल्का नमक मिलाया जाता है। कुछ लोग ज्वार के दलिये को दूध में पकाने के बाद गुड़ या शक्कर मिलाकर खाते हैं। यह अत्यंत सुपाच्य होता है।
मिर्ची का सालन
मिर्च का सालन एक प्रकार की करी होती है। इसमें भरपूर मात्रा में मिर्च का इस्तेमाल होता है। इसे रोटी और जीरा राइस (जीरा चावल) के साथ खाया जाता है। इसमें पकाई जाने वाली मिर्च थोड़ी मोटी होती है जो आम मिर्च की तुलना में थोड़ी कम तीखी होती है। तेज मिर्च खाने के शौकीन मोटी मिर्च के स्थान पर गहरे हरे रंग की पतली मिर्च भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
मांडे
यह मैदे से बनायी जाने वाली एक तरह की रोटी है। अन्तर यह है कि रोटी लोहे के तवे पर सेंकी जाती है जबकि मांड़े मिट्टी के तवों पर, जिन्हें कल्ले कहते हैं, बनाये जाते हैं। इन्हें घी में डुबो कर खाया जाता है।
करार
यह मूंग की दाल से बनायी जाने वाली एक तरह की कढ़ी है। इसे बनाने के लिए मूंग की दाल भिगोकर, छिलके हटाने के बाद पीसकर मट्ठे में घोला जाता है। इस घोल को मसालों सहित बेसन की कढ़ी की तरह पकाते हैं। इसी प्रकार हरे चने (छोले या निघोना) की कढ़ी बनायी जाती है।
फरा
इसे बनाने के लिए गेहूं के आटे को मांड़ कर या तो उसकी छोटी-छोटी रस्सियां बना ली जाती है या पूड़ियां। फिर इन्हें खौलते हुए पानी में सेंका जाता है। व्रत-उपवास के दिन पूडियों के स्थान पर प्रायः इन्हीं को खाया जाता है।
कोपरा पाक
बुंदेलखंड की अत्यंत लोकप्रिय मिठाई है कोपरा पाक। इसे नारियल बर्फी के नाम से भी जाना जाता है। ताजे नारियल, मावा (खोवा), दूध और चीनी से तैयार होने वाला कोपरा पाक बहुत ही स्वादिष्ट होता है।
मेवे के लड्डू
बुन्देलखण्ड के समृद्ध परिवारों में सर्दी के मौसम में मेवे से बनने वाले लड्डू खूब खाये जाते हैं। इसे अपनी पसंद के अनुसार गेहूं अथवा किसी भी दाल के आटे को घी में भूनने के बाद गुड़, काजू, बादाम, अखरोट, खरबूजे की मींग आदि डालकर तैयार किया जाता है।
जलेबी, मालपुआ और कलाकंद भी बुन्देलखण्ड में अत्यंत लोकप्रिय हैं। इसके अलावा हिंगोरा, बेसन का पापड़ तथा करौंदे और आंवले की सब्जी भी खूब खायी जाती है।
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