पक्षियों के रहने और फलने-फूलने के अनकूल कई वन क्षेत्रों को भारत सरकार ने संऱक्षित क्षेत्र घोषित कर पक्षी विहार का दर्जा दिया है। हर एक पक्षी विहार अपने आप में पक्षियों का विशाल संसार है। इनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध हैं।
न्यूज हवेली नेटवर्क
दूर तक फैली हरितिमा, पोखर, नदियां, झरने और निश्चिंत-निर्द्वंद कलरव करते पक्षी, ऐसा स्थान तो किसी वन-प्रांतर में ही हो सकता है। भारत में जैव विविधता की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण ऐसे दर्जनों स्थान हैं। पक्षियों के रहने और फलने-फूलने के अनकूल ऐसे कई वन क्षेत्रों को सरकार ने संऱक्षित क्षेत्र घोषित कर पक्षी विहार (Bird Sanctuary) का दर्जा दिया है। हर एक पक्षी विहार अपने आप में पक्षियों का विशाल संसार है। इनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध हैं। (Bird Sanctuary of India: Many worlds of birds in one country)
केवलादेव (घना) पक्षी विहार (Keoladeo (Ghana) Bird Sanctuary)
राजस्थान के भरतपुर में स्थित केवलादेव (घना) राष्ट्रीय उद्यान भारत का सबसे बड़ा पक्षी विहार है। इसे 1964 में अभयारण्य और 1982 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। 2,873 हेक्टेयर में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान में करीब 400 प्रकार के देसी-विदेशी पक्षी पाये जाते हैं। इनमें साइबेरियन सारस और लार्ज हॉक प्रमुख हैं। सर्दी के मौसम में अफगानिस्तान, साइबेरिया, रूस, चीन, किर्गिस्तान आदि से हजारों पक्षी लम्बी यात्रा कर यहां पहुंचते हैं। इसके अलावा यहां 71 प्रजातियों की तितलियां भी पायी जाती हैं। इस अभयारण्य को यूनेस्को से 1985 में विश्व धरोहर का दर्जा प्रदान किया था। यह सम्मान प्राप्त करने वाला यह भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान है।
गम्भीरी, बाणगंगा आदि नदियों का प्रवाह क्षेत्र और प्राकृतिक ढलान होने के कारण यहां अक्सर बाढ़ आती है। इसी के मद्देनजर भरतपुर के महाराजा सूरजमल ने गम्भीरी और बाणगंगा के संगम पर अजान बांध का निर्माण करवाया था।
रंगनाथथु पक्षी अभयारण्य
रंगनाथथु पक्षी अभयारण्य कर्नाटक के ऐतिहासिक शहर श्रीरंगपट्ट्नम से तीन किलोमीटर और मैसूर से मात्र 19 किमी की दूरी पर कावेरी नदी के तट पर है। 18वीं सदी में कावेरी नदी पर एक बांध बनाये जाने के बाद यह पक्षी विहार अस्तित्व में आया था। प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी डॉ॰ सलीम अली के अनुसार यह क्षेत्र पक्षियों के शरण देता है और उनके घोंसले के लिए अनुकुल है। मैसूर के राजा वोडेयार ने 1940 में इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया था। यह पक्षी अभयारण्य कावेरी नदी के छह छोटे द्वीपों सहित 40 एकड़ क्षेत्र में विस्तृत है। यहां पक्षियों के 30 प्रजातियां पहचानी जा चुकी हैं। इनमें पेंटेड स्ट्रोक, हेरन, स्ट्रोर्क बिल्ड किंगफिशर, कॉमन स्पूनबिल, पेलिकन, आम चम्मच, चित्रित स्टोर्क, ओरिएंटल डार्टर, हेरॉन, इग्रेट, आईबीस, इंडियन शेग, प्लोवर, पेलिकन आदि शामिल हैं। यहां की चट्टानों में चमगादड़ों के विशाल झुंड देखे जा सकते हैं जिनमें भारतीय फ्लाइंग फॉक्स प्रमुख है।
यहां पक्षियों को देखने के लिए सबसे अच्छा समय नवम्बर से जून तक है। इस दौरान यहां साइबेरिया, अफगानिस्तान आदि के हजारों प्रवासी पक्षियों को कलरव करते देखा जा सकता है।
मंगलाजोडी (चिल्का झील)
करीब 1,100 वर्ग किलोमीटर में फैली चिल्का झील दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी समुद्री झील है। ओडिशा के पुरी जिले में स्थित इस झील में कई छोटे-छोटे द्वीप हैं। इस झील और आसपास के स्थानों पर 160 प्रजातियों के पक्षियों की पहचान की जा चुकी है। सर्दियों में यहां कैस्पियन सागर, ईरान, रूस और साइबेरिया से हजारों प्रवासी पक्षी पहुंचते है। इस झील में कई प्रकार के जलीय वनस्पतियां और जीव-जंतु मौजूद हैं। अगर आप भी पक्षियों को देखने का शौक रखते हैं तो चिल्का झील इसके लिए सबसे उपयुक्त जगह है।
झील के पूर्वी तट पर मंगलाजोडी गांव पक्षियों की कई प्रजातियों के साथ ही दुर्लभ पक्षियों का मुख्य निवास है। यहां काली पूंछ वाला गॉडविट, बड़े अहंकार, छोटे कॉर्मोरेंट, भारतीय तालाब हेरॉन, बैंगनी मुरहेन, ब्राह्मण शेल्डक, मार्श सैंडपाइपर, कांस्य-पंख वाले जैकाना आदि पक्षी आसानी से देखे जा सकते हैं। सी ईगल, ग्रेलैग गीज़, पर्पल मोरहेन, फ्लेमिंगो जकाना प्रजाति के परिंदे भी यहां हैं। चिल्का झील में 14 प्रकार के शिकारी पक्षी पाये जाते हैं।
पुलिकेट झील पक्षी अभयारण्य
सलीम अली पक्षी अभयारण्य, गोवा (Salim Ali Bird Sanctuary, Goa)
गोवा में मंडोवी नदी के चारों द्वीपों और एक मैंग्रोव दलदल के बीच फैला सलीम अली पक्षी अभयारण्य गोवा का एकमात्र पक्षी अभयारण्य है। मात्र 440 एकड़ में फैला यह अभयारण्य पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियों के सुरक्षित निवास स्थान के रूप में उभरा है। अक्टूबर से मार्च के दौरान यहां देश-विदेश के हजारों पक्षी शीतकालीन प्रवास पर पहुंचते हैं। यहां गौरैया, मोर, तोते, हवासील, पश्चिमी रीफ हेरॉन, लाल गाँठ, धारीदार हेरोन, कठफोड़वा आदि पक्षी देखे जाते हैं। कोयल की कई प्रजातियों का आवास होने के चलते इसे “कोयल स्वर” भी कहा जाता है।
यह पक्षी अभयारण्य पर्यटकों के लिए प्रातः सात बजे से सायं पांच बजे तक खुला रहता है। इसमें प्रवेश के लिए शुल्क चुकाना पड़ता है।
नल सरोवर
अहमदाबाद से 60 किलोमीटर की दूर पर स्थित नल सरोवर पक्षी अभयारण्य भारत के सबसे बड़े जल पक्षी विहारों में से एक है। इसीलिए यहां पानी में रहने वाले पक्षियों की संख्या भी ज्यादा है। करीब 120 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य में 250 से अधिक प्रजातियों के पक्षी पाये जाते हैं। इसको 1969 में पक्षी अभयारण्य का दर्जा मिला था। किसी भी मौसम में प्रातः छह बजे से सायं छह बजे तक यहां पक्षियों का दीदार किया जा सकता है।
नल सरोवर में भोजन की कमी के कारण यहां के पक्षी आसपास के इलाकों में चले जाते हैं और मानसून के बाद वापस लौट आते हैं। यहां फ्लेमिंगोस, पेलिकन, बतख, बिटरेंट, हंस, सुर्खाब, कैक्स, हॉर्नबिल, किंगफिशर, जहॉर्नबिल, प्लोवर्स, सैंडपिपर्स, स्टींट्स और कई अन्य घरेलू और प्रवासी पक्षियों को देखा जा सकता है।
भूगर्भवेताओं का मानना है कि जहां पर आज नल सरोवर है, वह स्थान कभी समुद्र का हिस्सा था जो खम्भात की खाड़ी को कच्छ की खाड़ी से जोड़ता था। हालांकि अब यह ताजे पानी की उथली झील है जिसकी गहरायी वर्षाकाल में भी अधिकतम ढाई मीटर तक ही रहती है।
नल सरोवर में प्रवासी पक्षियों का आगमन अक्टूबर से शुरू हो जाता है जिनमें से कई प्रजातियों के पक्षी अप्रैल तक यहीं डेरा डाले रहते हैं। दिसम्बर और जनवरी में यहां सर्वाधिक पक्षी होते हैं। यहां जाने का सबसे सही समय नवम्बर से फरवरी तक का है।
बिनसर वन्यजीव विहार
बिनसर वन्यजीव विहार उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से 34 किलोमीटर दूर झांडी ढार नाम की पहाडी पर स्थित है। समुद्र तल से 2412 मीटर की ऊंचाई पर बसे इस वन्य क्षेत्र में यूं तो तेंदुआ (गुलदार), उड़न गिलहरी, लोमड़ी, बार्किंग डियर आदि जानवर भी हैं पर इसे पहचान मिली है पक्षियों के अद्भुत आवास के रूप में। तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने इसको 1988 में पक्षी विहार घोषित किया था। यहां से ग्रेटर हिमालय की बर्फ से ढकी करीब 300 किमी लंबी पर्वत श्रृंखला के दर्शन किये जा सकते हैं जिसमें चौखम्बा, त्रिशूल, नन्दादेवी और पंचाचूली जैसे हिम शिखर शामिल हैं।
47.04 वर्ग किलोमीटर में फैले इस पक्षी विहार में मोनाल, गोल्डन ईगल, हिमालयन स्नोकॉक, फॉर्किटेल, ब्लैक बर्ड्स, लाफिंग थ्रश, कालिज तीतर, पारकेट, श्यामा, ढेलहरा, तोता, बुलबुल, नीलकंठ समेत 200 से अधिक प्रजातियों के पक्षी पाये जाते हैं।
लाख बहोसी पक्षी विहार
उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में स्थित लाख बहोसी को वर्ष 1989 में पक्षी विहार घोषित किया गया था। वर्ष 2007 में इसे राष्ट्रीय नम भूमि संरक्षण कार्यक्रम के 94 स्थानों में चिह्नित किया गया। करीब 80 वर्ग किलोमीटर में फैला यह पक्षी विहार भारत के बड़े पक्षी विहारों में शामिल है। यह दरअसल दो तलाबों- लाख और बहोसी की मिलाकर बनाया गया है। कन्नौज से इसकी दूरी 40 किलोमीटर जबकि औरेया जनपद के दिबियापुर नगर से 38 किमी है। यहां स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की सैकड़ों प्रजातियां देखने को मिलती हैं। इनमें बार हेडेड गूस, पिन टेल, कॉमन टील, गडवाल, शौवाल्लर, कूट ब्राह्मणी डक (सुर्खाब), सैंड पाइपर, सफेद स्टोर्क, ओपन बिल स्टॉर्क, सफेद गर्दन वाली स्टॉर्क, काली गर्दन वाली स्टॉर्क, श्वेत आइबिस, श्याम आइबिस, पन कौव्वा, किंगफिशर, स्पून बिल, ब्लैक दोरोंगों, व्हिशलिंग डक, सफेद पेट वाली जलमुर्गी, स्विफ्ट उल्लू, हूप, मैना, बगुला, बुलबुल आदि शामिल हैं।
कुमरकम पक्षी विहार
वेम्बन्नाडू (वेम्बानद ) झील के पूर्वी तट पर छोटे-छोटे द्वीपों का समूह कुमरकम गांव केरल के कोट्टायम शहर से 16 किलोमीटर की दूरी पर कुट्टन्नाडू क्षेत्र में है। पहले इस स्थान को रबर प्लान्टेशन के लिए जाना जाता था लेकिन अब इसकी पहचान पक्षी अभयारण्य के रूप में है। 14 एकड़ में फैले इस पक्षी अभयारण्य में ईग्रेट, डारटर, हेरोन्स, टील, गार्गेनी टील, बिटर्न्स, मार्श हैरियर, वाटरफाउल, कुक्कु और जंगली बत्तख जैसे दुर्लभ पक्षियों को देखा जा सकता है। शीतकाल में यहां साइबेरिन स्टॉर्क जैसे प्रवासी पक्षी भी आते हैं। इस झील में मछली की 150 से अधिक प्रजातियां पायी जाती हैं।
सिजू पक्षी अभयारण्य
मेघालय के दक्षिण गारों जिले में सिम्संग नदी के तट पर स्थित सिजू पक्षी अभयारण्य को जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यहां ग्रे हॉर्नबिल, मोर, तीतर समेत विभिन्न दुर्लभ और लुप्तप्राय पक्षी देखे जा सकते हैं। सिजू की पहाड़ियां अपनी गुफाओं के लिए भी प्रसिद्ध हैं। भारत की तीसरी सबसे लम्बी गुफा यहीं पर है जो अपने अद्भुत स्टालाग्माइट्स और स्टैलेक्टसाइट्स के लिए जानी जाती हैं। गुफा में कई कक्ष हैं। इस गुफा से एक नदी भी गुजरती है।
न्योरा घाटी राष्ट्रीय उद्यान
पश्चिम बंगाल के कालिम्पोंग जिले में स्थित न्योरा घाटी राष्ट्रीय उद्यान को पक्षियों के स्वर्ग के रूप में जाना जाता है। 159.59 वर्ग किलोमीटर में फैला यह राष्ट्रीय उद्यान भारत के सबसे पुराने संरक्षित वनों में शामिल हैं। यह अपनी अद्भुत जैव विविधता के लिए तो जाना ही जाता है, पूर्वी हिमालय के अन्तिम शेष पारिस्थितिक तंत्रों में से भी एक है। यह जंगल कई स्थानों पर इतना घना है कि सूरज की किरणें धरती तक नहीं पहुंच पाती हैं।
समुद्र तल से 1600 और 2700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस अर्द्ध सदाबहार जंगल में देसी के साथ-साथ विदेशी पक्षियों का जमावड़ा लगा रहता है। सर्दी के मौसम में यहां कुछ दुर्लभ पक्षियों के साथ ही साइबेरिया, अफगानिस्तान, उजबेकिस्तान आदि से आने वाले प्रवासी पक्षी भी दिखायी देते हैं। यहां ट्रोगोपैन, किरमिजी-छाती के कठफोड़वा, दार्जिलिंग के कठफोड़वा, खाड़ी के कठफोड़वा, सुनहरा धारीदार बारबेट, हॉजसन के हॉक कोयल, भूरा लकड़ी के उल्लू, एशरी लकड़ी की कबूतर, पहाड़ी शाही कबूतर, जेरदन के बाजा, काली ईगल, पहाड़ी बाज़, ब्लू-बैकड एक्सेन्टर, डार्क-ब्रेस्टेड रोज़फिंच, रेड-ब्रेस्टेड, ब्लैक-ब्रेकड फुलवेटा, सोना-नेप्ड फिंच आदि पक्षी बहुतायत में दिखायी देते हैं।
(Bird Sanctuary of India)
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