अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबानसिरी जिले में समुद्र तल से 5,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित जीरो वैली (Zero Valley एक छोटा-सा शहर और जिला मुख्यालय है। यह घाटी अपनी जैव विविधता के लिए जानी जाती है। हरे-भरे बांस के जंगल, बुरांश और देवदार के पेड़, आर्किड और धान के खेत बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।
न्यूज हवेली नेटवर्क
ईटानगर के डोनी पोलो एयरपोर्ट से टैक्सी लेकर जीरो घाटी के लिए रवाना हुए तो यही अनुमान था कि यह भी हिमालयन बेल्ट की अन्य घाटियों की तरह ही सुन्दर होगी लेकिन जैसे-जैसे जीरो शहर नजदीक आता गया, प्राकृतिक सौन्दर्य के अनेकानेक वितान खुलते गये। हरेभरे, सूर्य की रोशनी में दमकते, हिम-धवल और सुरमई परिदृश्यों की अनवरत श्रृंखला अपने सम्मोहन में बांधती चली गयी। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया है। (Zero Valley: Hypnosis Series in Arunachal Pradesh)
अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबानसिरी जिले में समुद्र तल से 5,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित जीरो वैली (Zero Valley एक छोटा-सा शहर और जिला मुख्यालय है। यह घाटी अपनी जैव विविधता के लिए जानी जाती है। हरे-भरे बांस के जंगल, बुरांश और देवदार के पेड़, आर्किड और धान के खेत बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। स्थानीय अपातिनी जनजाति ने यहां धान की खेती शुरू की और सिंचाई के लिए नालीनुमा नहरों के चैनल बनाए। दुनिया में अपनी किस्म की सबसे अनूठी खेती यहीं की जाती है। यहां खेती में किसी पशु या मशीन की मदद नहीं ली जाती, सारा काम सिर्फ महिलाएं अपने हाथों से करती हैं। महिलाएं ही परिवार की मुखिया होती हैं। वे काले नोज प्लग पहनती हैं और उनके माथे से ठोढ़ी तक टैटू होते हैं।
यहां हर साल एक म्यूजिक फेस्टिवल का आयोजन होता है। इसका आगाज सन् 2012 से दो गिटार बजाने वालों ने किया था। इसमें न सिर्फ अरुणाचल प्रदेश बल्कि पूरे भारत से संगीतकार-गायक और संगीत के शौकीन शामिल होते हैं। इस समरोह में वैविध्यपूर्ण संस्कृति, कला और संगीत का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इस संगीत समारोह की वजह से यहां पर्यटन को बहुत बढ़ावा मिला है।
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जीरो घाटी का इतिहास (History of Ziro Valley)
सुबनसिरी नाम सुबनसिरी नदी से लिया गया है जो ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी है। सुबनसिरी जिला 1914 तक असम के उत्तरी लखीमपुर जिले का एक हिस्सा था। इसके बाद इस जिले सहित यह पूरा क्षेत्र उत्तर-पूर्व सीमान्त पथ के लखीमपुर सीमान्त पथ का हिस्सा बन गया। 1919 में लखीमपुर फ्रन्टियर ट्रैक्ट (इसके आसपास के पश्चिमी हिस्सों सहित) का नाम बदलकर बलीपारा फ्रन्टियर ट्रैक्ट कर दिया गया। 1946 में इस जिले से बालीपारा फ्रन्टियर को हटा दिया गया। साथ ही इसका नाम बदलकर उत्तरी लखीमपुर मुख्यालय सुबनसिरी क्षेत्र कर दिया गया। सन् 1954 में इस क्षेत्र को सुबनसिरी फ्रन्टियर डिवीजन में बदल दिया गया। 30 अगस्त 1965 तक यह नेफा (नॉर्थ ईस्ट फ्रन्टियर एजेन्सी) के अधीन था जो ब्रिटिश भारत की राजनीतिक एजेंसियों में से एक थी। 31 सितम्बर 1965 को सुबनसिरी फ्रन्टियर डिवीजन का नाम बदलकर सुबनसिरी जिला कर दिया गया। 13 मई 1980 को सुबनसिरी जिला दो डिवीजनों में विभाजित कर दिया गया- लोअर सुबनसिरी जिला और अपर सुबनसिरी जिला। इसके साथ ही जीरो वैली लोअर सुबनसिरी जिले में आ गयी।
जीरो घाटी के प्रमुख दर्शनीय स्थल (Major tourist places of Ziro Valley)
टैली वैली वन्यजीव अभयारण्य :
जीरो वैली (Ziro Valley) से सिर्फ 32 किलोमीटर का सफर कर इस अभयारण्य में पहुंच सकते हैं। इसका प्रवेश द्वार मानपोलंग से सात किमी की दूरी पर पांग कैम्प में है। 337 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले इस अभयारण्य में आज भी मानव हस्तक्षेप बहुत ही कम है। पंगे, सिपु, कारिंग और सुबानसिरी नदियां इस आरक्षित वन क्षेत्र से होकर बहती हैं। 1995 में स्थापित इस अभयारण्य (Talley Valley Wildlife Sanctuary) में वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं का विविधता विस्मित कर देने वाली है। यहां देवदार के साथ ही बुरांश के कई प्रजातियां, ऑर्किड, बांस की अद्भुत किस्में और फर्न का विशाल संसार है। वसंत ऋतु में यहां पक्षियों की 130 से अधिक प्रजातियां देखने को मिलती हैं। इनमें ब्लैक ईगल, कॉलर रेड उल्लू, गोल्डन-ब्रेस्टेड फुलवेत्ता, स्कार्लेट मिन्वेट, वेर्डिटर फ्लाइकैचर आदि शामिल हैं। यहां तितलियों की 171 प्रजातियां देखी गयी हैं। यहां की स्तनपायी प्रजातियों में क्लाउडेड तेंदुआ, मलायण विशाल गिलहरी, भारतीय दलदली और एशियाई पाम सिवेट शामिल हैं।
पाको घाटी : जीरो वैली के हरे-भरे नजारों के साथ ही अगर हिमालय के बर्फ से ढंके शिखर देखने की इच्छा हो तो पाको घाटी एक आदर्श गंतव्य है। यह एक संकरी घाटी है जिसकी सुन्दरता को यहां पहुंच कर ही महसूस किया जा सकता है।
मेघना गुफा मन्दिर :
करीब 5,000 साल पुराना यह रॉक-कट गुफा मन्दिर भगवान शिव के 28वें अवतार लकुलीशा को समर्पित है। गुफा की दीवार पर अंकित प्राचीन संस्कृत शिलालेख इसके इतिहास की पुष्टि करता है। समय के साथ यह मन्दिर आम लोगों की पहुंच से दूर हो गया था। सन् 1962 में इसे फिर खोजा गया। इस मन्दिर तक पहुंचने के लिए कई सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं।
टिपी आर्किड रिसर्च सेण्टर :
इस अनुसंधान केन्द्र में आर्किड की करीब एक हजार प्रजातियों को देख सकते हैं।
किल पाखो : अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्य का धनी यह पर्यटन स्थल ओल्ड जीरो से केवल सात किमी दूर है। यहां आप रिज पर चढ़ सकते हैं, पठार पर घूम सकते हैं और बर्फ से ढके हिमालय के शिखरों को निहार सकते हैं।
जीरो पुतु :
यह पहाड़ी भारत के पहले स्वतन्त्र प्रशासनिक केन्द्र की स्थापना के लिए जानी जाती है। इसे आर्मी पुतु के नाम से भी जाना जाता है। 1960 के दशक में यहां सेना की छावनी बनाई गयी थी। यहां की हरियाली में आप सुकून के कुछ पल बिता सकते हैं।
तारिन मछली फार्म : बुल्ला गांव में स्थित यह मछली फार्म जीरो वैली (Ziro Valley) के सबसे लोकप्रिय आकर्षणों में से एक है। यह क्षेत्र अपातानी जनजाति का निवास स्थल है। यहां चावल की फसल उगाने (मिप्या और एमोह) और मछली उगाने (न्गीही) की प्रक्रिया एक साथ देख सकते हैं।
गांधी बाजार : यह जीरो घाटी का सबसे लोकप्रिय बाजार है जहां का पूरा कारोबार महिलाएं संभालती हैं। इस प्लास्टिक मुक्त बाजार में कई तरह का ताजा और सूखा मांस एवं मछलियां, ताजा और सब्जियां आदि मिलते हैं। यहां सभी तरह की वस्तुओं को पत्तों में लपेट कर ग्राहकों को दिया जाता है।
इस घाटी के बोमडिला-सेप्पा, आलोंग-मैचुका, दापोरिजो-ताकसिंग, पासीघाट-तूतिंग, पासीघाट-मारीआंग तथा रामलिंगम और चाकू होते हुए बॉमडिला-दायमारा ट्रैक अत्यन्त लोकप्रिय है। यहां रिवर रॉफ्टिंग की भी सुविधा है।
कब जायें
जीरो वैली (Ziro Valley) घूमने के लिए अक्टूबर से जून तक का मौसम सबसे अच्छा माना जाता है। अक्टूबर और नवम्बर में यहां हल्की सर्दी पड़ती है जबकि दिसम्बर और जनवरी में बहुत अधिक। फरवरी और मार्च में सर्दी से कुछ राहत मिल जाती है। अप्रैल से जून के बीच यहां का तापमान छह से 20 डिग्री तक रहता है। मानसून में यहां का तापमान दो से 19 डिग्री के बीच रहता है। इस दौरान यहां के तमाम रास्ते बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं।
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ऐसे पहुंचें
वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा ईटानगर का डोनी पोलो एयरपोर्ट यहां से करीब 132 किलोमीटर जबकि तेजपुर एयरपोर्ट लगभग 246 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग : निकटतम रेलव हेड नाहरलागुन रेलवे स्टेशन जीरो से करीब 95 किलोमीटर दूर है। दिल्ली, मुम्बई, गुवाहाटी, कामाख्या, चांगसारी, तंगला आदि से यहां के लिए नियमित ट्रेन सेवा है।
सड़क मार्ग : ईटानगर से जीरो शहर करीब 115 किलोमीटर पड़ता है। गुवाहाटी और ईटानगर से यहां के लिए बस चलती हैं। ईटानगर और उत्तर लखीमपुर से यहां के लिए कैब या टैक्सी कर सकते हैं।
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