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नमस्कार और शिष्टाचारनमस्कार और शिष्टाचार

What is etiquette : धर्मव्याध ने कहा, “ब्राह्मण! यज्ञ, तप, दान, वेदों का स्वाध्याय और सत्यभाषण– ये पांच बातें शिष्ट पुरुषों के व्यवहार में सदा रहती हैं। जो व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ, दम्भ और उद्दण्डता जैसे दुर्गुणों को जीत लेते हैं, कभी इनके वश में नहीं होते, वे ही शिष्ट (elegant) यानी उत्तम कहलाते हैं और उनका ही शिष्ट पुरुष आदर करते हैं। वे सदा ही यज्ञ और स्वाध्याय में लगे रहते हैं और कभी भी मनमाना आचरण नहीं करते हैं।

रेनू जे त्रिपाठी

हाभारत में एक कथा आती है कि पूर्वकाल में कौशिक नामक धर्मात्मा और तपस्वी ब्राह्मण थे जिन्होंने वेदों और उपनिषदों का गहन अध्ययन किया था। एक बार वे भिक्षाटन के लिए एक गांव पहुंचे जहां एक स्त्री ने पातिव्रत धर्म के तेज से उनके गर्व को चूर-चूर कर दिया। उस सती स्त्री ने उन्हें धर्म का यथार्थ तत्व जानने के लिए मिथिलापुरी में रहने वाले धर्मव्याध के पास जाने का आदेश दिया जो माता-पिता के भक्त, सत्यवादी और जितेन्द्रीय थे।

कोई व्याध धर्मव्याध भी हो सकता है, यह जानकर कौशिक को अत्यन्त आश्चर्य हुआ। फिर धर्म की सूक्ष्म गति पर विश्वास कर मन ही मन निश्चय किया कि मुझे इस सती के कहने पर श्रद्धा और विश्वास करना चाहिए। मैं अवश्य ही मिथिला जाऊंगा और उस धर्मात्मा व्याध से मिलकर धर्म संबंधी प्रश्न करूंगा।

इस प्रकार विचार कर कौशिक ब्राह्मण मिथिलापुरी के लिए चल दिए। कौशिक को मिथिला पहुंचकर उस धर्मात्मा व्याध का घर ढूंढने में कोई कठिनाई नहीं हुई। धर्मव्याध ने कौशिक का यथोचित आदर-सत्कार करने के पश्चात उन्हें धर्म पर उपदेश देकर उनकी कई जिज्ञासाओं का शमन किया। धर्माचरण के प्रति व्याध की अटूट निष्ठा के समक्ष नतमस्तक कौशक ने उनसे पूछा, “नरश्रेष्ठ! मुझे शिष्ट पुरुषों के आचरण (conduct of chivalrous men) का ज्ञान कैसे हो सकता है? आप मेरे लिए शिष्ट व्यक्तियों के व्यवहार का यथार्थ रीति से वर्णन करिए।”

धर्मव्याध ने कहा, “ब्राह्मण! यज्ञ, तप, दान, वेदों का स्वाध्याय और सत्यभाषण– ये पांच बातें शिष्ट पुरुषों के व्यवहार में सदा रहती हैं। जो व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ, दम्भ और उद्दण्डता जैसे दुर्गुणों को जीत लेते हैं, कभी इनके वश में नहीं होते, वे ही शिष्ट (elegant) यानी उत्तम कहलाते हैं और उनका ही शिष्ट पुरुष आदर करते हैं। वे सदा ही यज्ञ और स्वाध्याय में लगे रहते हैं और कभी भी मनमाना आचरण नहीं करते हैं। सदाचार का निरंतर पालन करना शिष्ट पुरुषों  का दूसरा लक्षण है। शिष्टाचारी पुरुषों (mannered men) में ये चार गुण अवश्य होते हैं- गुरु की सेवा, क्रोध का अभाव, सत्यभाषण और दान। वेद का सार है सत्य, सत्य का सार है इन्द्रिय संयम और इन्द्रिय संयम का सार है त्याग। यह त्याग शिष्ट पुरुषों में सदा विद्यामान रहता है। जो शिष्ट हैं, वे सदा ही नियमित जीवन व्यतीत करते हैं, धर्म के मार्ग पर चलते हैं और गुरु की आज्ञा का पालन करते हैं। ”

धर्मव्याध ने कौशिक ब्राह्मण को उपदेश देते हुए आगे कहा, “इसलिए हे ब्राह्मण! तुम धर्म की मर्यादा भंग करने वाले नास्तिक, पापी और निर्दयी पुरुषों का साथ छोड़ दो। सदा धार्मिक पुरुषों की सेवा में रहो। यह शरीर एक नदी है, पांच इन्द्रियां इसमें जल हैं, काम और लोभ रूपी मगर इसके भीतर भरे पड़े हुए हैं। जन्म और मरण के दुर्गम प्रदेश में यह नदी बह रही है। तुम धर्म की नाव पर बैठो और इसके दुर्गम स्थानों (जन्मादि क्लेशों) को पार कर जाओ। जैसे कोई भी रंग सफेद कपड़ों पर ही अच्छा खिलता है, उसी प्रकार शिष्टाचार का पालन करने वाले पुरुषों में ही क्रमशःसंचित किया हुआ कर्म और ज्ञानरूपी महान धर्म भलीभांति प्रकाशित होता है।”

धर्मव्याध ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आगे कहा, “अहिंसा और सत्य इनसे ही सम्पूर्ण जीवों का कल्याण होता है। अहिंसा सबसे महान धर्म है पर उसकी प्रतिष्ठा है सत्य में। सत्य के आधार पर ही श्रेष्ठ पुरुषों के सभी कार्य आरम्भ होते हैं। इसलिए सत्य ही गौरव की वस्तु है। न्यायायुक्त कर्मों का आरम्भ धर्म कहा गया है। इसके विपरीत जो अनाचार है, उसे ही शिष्ट पुरुष अधर्म बताते हैं। जो क्रोध और निन्दा नहीं करते, जिनमें अहंकार और ईर्ष्या का भाव नहीं है, जो मन पर काबू रखने वाले और सरल स्वभाव के पुरुष हैं, उन्हें शिष्टाचारी कहते हैं। उनमें सत्तत्वगुण की वृद्धि होती है; जिनका पालन दूसरों के लिए कठिन प्रतीत होता है, ऐसे सदाचारों का भी वे सुगमतापूर्वक पालन करते हैं। अपने सत्कर्मों केकारण ही उनका सर्वत्र आदर होता है। उनके हाथ से कभी हिंसा आदि घोर कर्म नहीं होते हैं। ”

कौशिक ब्राह्मण की जिज्ञासा का समाधान करते हुए धर्मव्याध ने अपनी बात आगे बढ़ाई, “सदाचार पुराने जमाने से चला आ रहा है; यह सनातन धर्म है, इसको कोई मिटा नहीं सकता। सबसे प्रधान धर्म तो वह है जिसका वेद प्रतिपादन करते हैं; दूसरा वह है जिसका वर्णन धर्मशास्त्रों में हुआ है। तीसरा धर्म है शिष्ट (सन्त) पुरुषों का आचरण। इस प्रकार ये धर्म के तीन लक्षण हैं। विद्याओं में पारंगत होना, तीर्थों में स्नान करना तथा क्षमा, सत्य, कोमलता और पवित्रता आदि सद्गुणों का संचय शिष्ट पुरुषों के आचरण में ही देखा जाता है। जो सब पर दया करते हैं, किसी का जी नहीं दुखाते, कभी कठोर वचन नहीं बोलते, वे ही शिष्ट या संत पुरुष हैं। जिन्हें शुभाशुभ कर्मों के परिणाम का ज्ञान है, जो न्यायप्रिय, सद्गुणी,सम्पूर्ण जगत के हितैषी और सदा सन्मार्ग पर चलने वाले हैं, वे सज्जन पुरुष ही शिष्ट हैं। उनका दान करने का स्वभाव होता है। वे किसी भी वस्तु को पहले और सबको बांटकर पीछे स्वीकार करते हैं तथा दीन-दुखियों पर सदा उनकी कृपा बनी रहती है।”

धर्मव्याध कहते हैं, “स्त्री और सेवकों को कष्ट न हो, शिष्ट पुरुष (gentleman) इसके लिए सदा तैयार रहते हैं और उन्हें अपनी शक्ति से अधिक धन आदि देते रहते हैं। सर्वदा सत्पुरुषों का सत्संग करते हैं; संसार में जीवन निर्वाह कैसे हो, धर्म की रक्षा और अत्मा का कल्याण किस प्रकार हो, इन सब बातों पर उनकी दृष्टि रहती है। अहिंसा, सत्य, क्रूरता का अभाव, कोमलता, द्रोह और अहंकार का त्याग, लज्जा, क्षमा, शम, दम, बुद्धि, धैर्य, जीवों पर दया, कामना एवं द्वेष का अभाव शिष्ट पुरुषों के लक्षण हैं। इनमें भी प्रधानता तीन की है- किसी से द्रोह न करें, दान करते रहें और सत्य बोलें। शांति, संतोष और मीठे वचन भी शिष्ट पुरुषों के गुण हैं। इस प्रकार शिष्टों के आचार-व्यवहार का पालन करने वाले मनुष्यमहान भय से मुक्त हो जाते हैं।”

अपने उपदेशों का समापन करते हुए धर्मव्याध ने कहा, “हे ब्राह्मण! इस प्रकार जैसा मैंने सुना और जाना है, उसके अनुसार शिष्टों के आचरण का तुमसे वर्णन किया है।”

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