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नासा की अधिकारी जीना डिब्रैकियो ने हाल ही में कहा था कि यूरोपा (बृहस्पति का चंद्रमा) पृथ्वी से परे जीवन की तलाश के लिए सबसे आशाजनक स्थानों में से एक है।

वॉशिंगटन अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बृहस्पति ग्रह के चंद्रमा यूरोपा (Europa) के अध्ययन के लिए यान लॉन्च कर दिया है। फ्लोरिडा के केप केनवरल स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर से यूरोपा क्लिपर (Europa Clipper) नाम का अंतरिक्ष यान SpaceX के फॉल्कन हैवी रॉकेट से लॉन्च किया गया। यह एक रोबोटिक सोलर पावर्ड यान है। इस यान को यूरोपा तक पहुंचने में 2030 तक का समय लगेगा। इस दौरान यह 2.9 अरब किलोमीटर दूरी तय करेगा।

बृहस्पति ग्रह की ऑर्बिट में पहुंचने के बाद यूरोपा क्लिपर तीन साल में यूरोपा चंद्रमा के नजदीक से 49 बार गुजरेगा। इसकी सबसे नजदीकी यात्रा यूरोपा मून की सतह से 25 किलोमीटर ऊंचाई की होगी। यूरोपा क्लिपर को वहां पर धरती से 20 हजार गुना ज्यादा मैग्नेटिक फील्ड और बयानक रेडिएशन का सामना करना पड़ेगा।

यूरोपा क्लिपर मिशन (Europa Clipper Mission) बृहस्पति के कई चंद्रमाओं में से एक यूरोपा पर जीवन की संभावना तलाशेगा और नासा को चंद्रमा के बारे में नए और अहम विवरण देगा जिसके बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी बर्फीली सतह के नीचे तरल पानी का एक महासागर हो सकता है। नासा की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि यह यान नौ वैज्ञानिक उपकरणों को लेकर जा रहा है। यूरोपा क्लिपर साढ़े पांच साल में 2.9 अरब किलोमीटर की यात्रा कर 2030 में बृहस्पति की कक्षा में एंट्री लेगा।

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क्यों खास है यह मिशन?

नासा की अधिकारी जीना डिब्रैकियो ने हाल ही में कहा था कि यूरोपा पृथ्वी से परे जीवन की तलाश के लिए सबसे आशाजनक स्थानों में से एक है। यह मिशन सीधे तौर पर जीवन के संकेतों की तलाश नहीं करेगा, बल्कि इस सवाल का जवाब तलाशेगा कि क्या यूरोपा में ऐसे तत्व हैं जो जीवन को मौजूद होने की अनुमति देंगे। ऐसा होता है, तो किसी अन्य मिशन को इसका पता लगाने की कोशिश करने के लिए यात्रा करनी होगी।

यूरोपा क्लिपर कार्यक्रम के वैज्ञानिक कर्ट नीबर ने कहा, “यह हमारे लिए मंगल ग्रह की तरह उस दुनिया का पता लगाने का मौका नहीं है जो अरबों साल पहले रहने योग्य रही होगी। बल्कि एक ऐसी दुनिया का पता लगाने का मौका है जो आज या अभी रहने योग्य हो सकती है।”

नासा ने यूरोपा ही क्यों चुना?

यूरोपा का अस्तित्व 1610 से ज्ञात है। इसकी पहली क्लोज-अप तस्वीरें 1979 में वोयाजर जांच द्वारा ली गई थीं जिससे इसकी सतह पर रहस्यमयी लाल रेखाएं दिखाई दीं। बृहस्पति के बर्फीले चंद्रमा तक पहुंचने वाली अगली जांच 1990 के दशक में नासा की गैलीलियो जांच थी। इसमें कहा गया कि इसकी बहुत संभावना है कि चंद्रमा एक महासागर का घर था। ऐसे में वैज्ञानिकों की दिलचस्पी यूरोपा में है।

यूरोपा क्लिपर अपने चुंबकीय बलों को मापने के लिए कैमरे, एक स्पेक्ट्रोग्राफ, रडार और एक मैग्नेटोमीटर सहित कई परिष्कृत उपकरणों को ले गया है। इसका उद्देश्य यह समझना है कि क्या जीवन के लिए आवश्यक तीन तत्व- पानी, ऊर्जा और कुछ रासायनिक यौगिक यहां मौजूद हैं। ऐसा होता है तो जीवन की संभावना तलाशी जा सकती है।

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