न्यायमूर्ति हिमा कोही और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच आईएमए (IMA) की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें कहा गया है कि पतंजलि (Patanjali) ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार किया।
नयी दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (7 मई 2024) को पतंजलि भ्रामक विज्ञापन के मामले में सुनवाई की। शीर्ष अदालत ने कहा, “अगर लोगों को प्रभावित करने वाले किसी प्रोडक्ट या सर्विस का विज्ञापन भ्रामक पाया जाता है तो सेलिब्रिटीज और सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स भी समान रूप से जिम्मेदार हैं।” (Patanjali Misleading Advertisement Case)
न्यायमूर्ति हिमा कोही और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच आईएमए (IMA) की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें कहा गया है कि पतंजलि (Patanjali) ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार किया।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार से पूछा, “सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आयुष अधिकारियों को भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ ड्रग एंड कॉस्मेटिक रूल, 1945 के रूल 170 के तहत कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए क्यों कहा।” सुनवाई के दौरान अदालत का ध्यान केंद्र सरकार की ओर से 2023 में जारी एक पत्र की ओर ले जाया गया। इसमें रूल 170 के कार्यान्वयन पर प्रभावी रूप से रोक लगा दी गई थी। रूल 170 को 2018 में 1945 के नियमों में जोड़ा गया था।
रूल 170 मे कहा गया है कि आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी दवाएं जिस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में बनाई जा हो रही हैं, वहां के लाइसेंसिंग अथॉरिटी के अप्रूवल के बिना विज्ञापन नहीं दिया जा सकेगा। इस नियम का उद्देश्य भ्रामक विज्ञापनों से निपटना था।
न्यायमूर्ति हिमा कोही और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच को आज मंगलवार को बताया गया कि रूल 170 को कई उच्च न्यायालयों में चुनौती दी गई है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से एक्सपर्ट की सलाह लेने के बाद नियम की फिर से एग्जामिन करने को कहा है। चूंकि नियम पर अभी पुनर्विचार किया जाना बाकी है, इसलिए केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वे भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ इसे लागू करने से बचें। हालांकि, बेंच इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं थी। केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने अदालत को आश्वासन दिया कि रूल 170 पर अंतिम निर्णय जल्द से जल्द लिया जाएगा।
डॉ. आरवी अशोकन की टिप्पणियों पर कड़ी आपत्ति
आईएमए प्रेसिडेंट डॉ. आरवी अशोकन (IMA President Dr. RV Ashokan) की टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई। दरअसल, 23 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए की आलोचना की थी। इसके बाद अशोकन ने एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कोर्ट की टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था।
कोर्ट ने कहा “आप (IMA) कहते हैं कि दूसरा पक्ष (पतंजलि आयुर्वेद) गुमराह कर रहा है, आपकी दवा बंद कर रहा है – लेकिन आप क्या कर रहे थे?! … हम स्पष्ट कर दें, यह अदालत किसी भी तरह की पीठ थपथपाने की उम्मीद नहीं कर रही है।”
सुप्रीम कोर्ट ने बीते 23 अप्रैल की सुनवाई के दौरान कहा था कि आईएमए (IMA) को अपने डॉक्टरों पर भी विचार करना चाहिए जो अक्सर मरीजों को महंगी और गैर-जरूरी दवाइयां लिख देते हैं। अगर आप एक अंगुली किसी की ओर उठाते हैं तो चार अंगुलियां आपकी ओर भी उठती हैं। दरअसल, आईएमए प्रसीडेंट अशोकन ने कहा था, “सुप्रीम कोर्ट के अस्पष्ट बयानों ने प्राइवेट डॉक्टरों का मनोबल कम किया है। आप चाहे कुछ भी कहें लेकिन अब भी बड़ी संख्या में डॉक्टर्स ईमानदारी से काम करते हैं, वे अपनी नीति और उसूलों के मुताबिक प्रैक्टिस करते हैं।”
आईएमए (IMA) की ओर से सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया ने अदालत से आग्रह किया है कि उन्हें आगे की दलीलें देने के लिए 14 मई को सुनवाई की अगली तारीख तक का समय दिया जाए। वहीं सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने पतंजलि का प्रतिनिधित्व किया और बताया कि सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ आईएमए प्रेसिडेंट की टिप्पणियों से संबंधित मामले में एक आवेदन दायर किया गया है।