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भगवान श्री रंगनाथस्वामी को समर्पित श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर 108 दिव्य देशमों में से प्रथम माना जाता है। Sri Ranganathaswamy Temple परिसर अपने आप में किसी नगर से कम नहीं है। यह चारों ओर से सात परत में दीवारों से घिरा हुआ है। इन दीवारों की कुल लम्बाई लगभग 10 किलोमीटर  है।

न्यूज हवेली नेटवर्क

जिस तरह उत्तर भारत में श्री बदरीनाथ धाम को “भू-लोक वैकुण्ठ” कहा जाता है, उसी प्रकार दक्षिण में श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर को भी धरती पर वैकुण्ठ सदृश्य माना जाता है। धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन के दौरान ज्ञात हुआ कि श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर (Sri Ranganathaswamy Temple) विश्व का दूसरा सबसे बड़ा क्रियाशील मन्दिर है, यानि ऐसा मन्दिर जहां नियमित रूप से पूजा-पाठ व अन्य धार्मिक अनुष्ठान होते हों। हालांकि क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा मन्दिर कम्बोडिया का अंकोरवाट (402 एकड़) है।

यह जानकारी मिलने के बाद श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर (Sri Ranganathaswamy Temple) में दर्शन-पूजन की इच्छा जागृत हो गयी, हालांकि इस इच्छा के पूरा होने में एक दशक से भी ज्यादा समय लग गया। अंततः एक दिन नयी दिल्ली के इन्दिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट से फ्लाइट पकड़ कर तिरुचिरापल्ली पहुंच गया। तिरुचिरापल्ली अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से टैक्सी कर श्रीरंगम (श्रीरंगमी या तिरुवरंगम) पहुंचे। वहां होटल के कमरे में कुछ देऱ विश्राम करने के बाद मन्दिर के लिए निकल पड़े। दरअसल, थकान के वजह से कुछ देर आराम करना चाहता था लेकिन मन्दिर के 72 मीटर (263 फीट) ऊंचे राजगोपुरम यानि मुख्य द्वार के दर्शन श्रीरंगम के रास्ते में टैक्सी से यात्रा के दौरान ही कर चुका था और यह भव्य द्वार मुझे मानो बार-बार अतिशीघ्र आने का आमंत्रण दे रहा था।

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर
श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर (Sri Ranganathaswamy Temple) जिस स्थान पर स्थित है, वह दरअसल कावेरी और उसकी सहायक नदी कोल्लिदम द्वारा बनायी गयी द्वीपनुमा संरचना है जिसे श्रीरंगम कहा जाता है। भगवान श्री रंगनाथस्वामी (भगवान् श्रीहरि विष्णु शेषशैय्या पर लेटे हुए) को समर्पित यह मन्दिर 108 दिव्य देशमों में से प्रथम माना जाता है। श्रीरंगम भगवान विष्णु के आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों में से एक है। सात अन्य स्वयं व्यक्त क्षेत्र हैं-श्रीमुष्णम, वेंकटाद्रि, शालिग्राम, नैमिषारण्य, पुष्कर, तोताद्रि और बदरी (बद्री)। इसके अलावा यह क्षेत्र कावेरी नदी के किनारे बसे पंच रंग क्षेत्रों में से भी एक है। ऐसी मान्यता है कि यह क्षेत्र सृष्टि के आरंभ से ही अस्तित्व में है।

इस विशाल मन्दिर परिसर का क्षेत्रफल लगभग 6,31,000 वर्ग मीटर (156 एकड़) और परिधि 4116 मीटर है। इसका परिसर 7 प्रकारों (संकेन्द्रित दिवारी अनुभागों या उन्नत घेरों) और 21 गोपुरमों से मिलकर बना है। मुख्य गोपुरम यानि मुख्य द्वार को राजगोपुरम कहा जाता है।

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर
श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर (Sri Ranganathaswamy Temple) परिसर अपने आप में किसी नगर से कम नहीं है। यह चारों ओर से सात परत में दीवारों से घिरा हुआ है। इन दीवारों की कुल लम्बाई लगभग 10 किलोमीटर  है। सात में से पहली तीन दीवारों में दुकानें व अन्य व्यापारिक संस्थाएं और आवासीय परिसर हैं । मन्दिर परिसर में मुख्य मन्दिर के अलावा 50  अन्य मन्दिर हैं। इस परिसर में 17 विशाल गोपुरम सहित कुल 21 गोपुरम हैं। परिसर में कुल 39 मंडप और 12 सरोवर हैं जिनमें नौ अत्यंत पवित्र माने जाते हैं।  इन सरोवरों में से सूर्य पुष्करिणी (सन पूल) और चंद्र पुष्करिणी (मून पूल) मुख्य रूप से वर्षा जल के संचयन के लिए बनाये गये हैं। दोनों पुष्करिणी की क्षमता करीब बीस लाख लीटर है। इस पूरे परिसर को इस तरह से बनाया गया है कि सारा पानी एकत्रित होकर इन टैंकों में चला जाता है।

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर
श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर

मन्दिर का मुख्य मण्डप अयिरम काल मण्डपम है जो 1000 स्तंभों वाला एक विशाल हॉल है। गर्भगृह में आदिशेष पर विराजमान भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है। इन्हें ही श्री रंगनाथस्वामी या श्री रंगनाधर कहा जाता है। इसके अलावा गर्भगृह में देवी लक्ष्मी की मूर्ति भी है जिन्हें रंगनायकी थायर कहा जाता है। मन्दिर में लकड़ी की एक मूर्ति है जिसे याना वहाना कहा जाता है जिस पर भगवान विष्णु बैठे हुए मस्तोदोनटिओटाइदा जैसे दिखते हैं (मस्तोदोनटिओटाइदा एक प्रागैतिहासिक हाथी है जो 15 मिलियन वर्ष पूर्व विलुप्त हो गया था)। इस मन्दिर को यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया है और यह उसकी अस्थायी सूची में है। मन्दिर की विशालता और सांस्कृति विरासत को देखते हुए यूनेस्को इसे एशिया प्रशांत मेरिट पुरस्कार भी दे चुका है।

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर
श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर के शिलालेखों पर उत्कीर्ण है निर्माण की गाथा (The story of construction is engraved on the inscriptions of Sri Ranganathaswami Temple)

इस मन्दिर का उल्लेख संगम युग (100 ई. से 250 ई.) के तमिल साहित्य और शिलप्पादिकारम (तमिल साहित्य के पांच श्रेष्ठ महाकाव्यों में से एक) में भी मिलता है। हालांकि पुरातात्विक शिलालेख केवल 10वीं शताब्दी ईस्वी से उपलब्ध हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर प्राचीन काल से भगवान श्री रंगनाथ की प्रतिमा स्थापित थी लेकिन यह स्थान जंगल बन चुका था। ज्ञात पुष्ट इतिहास के अनुसार सबसे पहले चोल साम्राज्य के शासकों ने वर्तमान श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर का निर्माण कराया था। हालांकि इसका निर्माण कार्य लगातार चलता रहा और चोल साम्राज्य के अंतिम शासकों ने भी इसके कई हिस्सों का जीर्णोद्धार कराया। चोल शासकों के अलावा पांड्य शासकों ने भी मन्दिर के निर्माण में अपना योगदान दिया। इस मन्दिर में चोल, पांड्य, होयसाला और विजयनगर राजवंशों के शिलालेख मिलते हैं।

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर (Sri Ranganathaswamy Temple) परिसर में 800 से अधिक शिलालेख हैं जिनमें से लगभग 640 मन्दिर की दीवारों और स्मारकों पर हैं। इनमें से कई शिलालेख शासकों या अभिजात वर्ग द्वारा दिये गये उपहार और अनुदान से सम्बन्धित हैं जबकि अन्य मन्दिर के प्रबन्धन, विद्वानों, समर्पण और सामान्य संचालन से सम्बन्धित हैं। ये ऐतिहासिक शिलालेख छह प्रमुख भारतीय भाषाओं में हैं- तमिल, संस्कृत, कन्नड़, तेलुगु, मराठी और ओडिया।

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं (Mythological stories related to Sri Ranganathaswamy Temple)

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर
श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर

पौराणिक कथाओं के अनुसार वैदिक काल में गोदावरी नदी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम था। उस समय अन्य क्षेत्रों में जल की काफी कमी थी। एक दिन जल की तलाश में कुछ ऋषि-मुनि गौतम ऋषि के आश्रम जा पहुंचे। गौतम ऋषि ने यथाशक्ति आदर सत्कार कर उन्हें भोजन कराया परन्तु ऋषि-मुनियों को उनसे ईर्ष्या होने लगी। उर्वर भूमि के लालच में उन्होंने छल-कपट द्वारा गौतम ऋषि पर गौ हत्या का आरोप लगा दिया और उनकी सम्पूर्ण भूमि हथिया ली। इसके बाद गौतम ऋषि ने श्रीरंगम जाकर श्री रंगनाथ (श्री हरि विष्णु) की आराधना और सेवा की। गौतम ऋषि की आराधाना-सेवा से प्रसन्न होकर श्री रंगनाथ ने उन्हें दर्शन दिये और पूरा क्षेत्र उनके नाम कर दिया। गौतम ऋषि के आग्रह पर स्वयं ब्रह्माजी ने इस भव्य मंदिर का निर्माण किया।

पौराणिक कथाओं में यह भी कहा जाता है कि इस मन्दिर में देवताओं की भगवान राम द्वारा पूजा की जाती थी। लंकाधिपति रावण पर भगवान राम की जीत के बाद यहां के देवताओं को राजा विभीषण को सौंप दिया गया। विभीषण के वापस लंका जाते समय भगवान विष्णु उनके सामने उपस्थित हुए और इस स्थान पर रंगनाथ के रूप में रहने की इच्छा व्यक्त की। कहा जाता है कि तब से भगवान विष्णु यहां श्री रंगनाथस्वामी के रूप में वास करते हैं।

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर में दर्शन का समय (Darshan timings at Sri Ranganathaswamy Temple)

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर
श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर

-मंदिर खुलने का समय सुबह 6:00 बजे।

-पूजा का समय सुबह 7:15 बजे से 9:00 बजे तक।

-दर्शन का समय सुबह 9:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक।

-दोपहर की पूजा का समय 12:00 बजे से 1:15 बजे तक।

-दर्शन का समय दोपहर 1:15 बजे से शाम 6:00 बजे तक।

-शाम की पूजा का समय 6:00 बजे से 6:45 बजे तक।

-दर्शन का समय शाम 6:45 बजे से रात 9:00 बजे तक।

-रात 9:00 बजे मन्दिर बन्द हो जाता है।

 श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर जाने का सबसे अच्छा समय (Best time to visit Sri Ranganathaswamy Temple)

इस मन्दिर में सालभर उत्सव होते हैं। इसीलिए किसी भी समय यहां जाया जा सकता है। हालांकि यह स्थान घूमने का सबसे अच्छा समय अगस्त से फरवरी के बीच है क्योंकि अप्रैल से जुलाई के बीच यहां का मौसम बहुत गर्म होता है।

आसपास घूमने लायक अन्य स्थान

भारतीय पैनोरमा: 1.4 किमी दूर स्थित है।

जंबुकेश्वर मन्दिर: 1.6 किमी दूर है।

श्रीरंगम रंगनाथर मन्दिर: 1.7 किमी दूर।

रॉकफोर्ट यूसीची पिल्लार मन्दिर: 4.5 किमी दूर है।

श्रीरंगम मेलूर अय्यर मन्दिर: 1.7 किमी दूर मेलूर में है।

ऐसे पहुंचें श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर (How to reach Shri Ranganathaswamy Temple)

श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर
श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर

वायु मार्ग : श्रीरंगम का निकटतम हवाईअड्डा तिरुचिरापल्ली अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है। यहां से श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर (Sri Ranganathaswamy Temple) करीब 12 किलोमीटर है।

रेल मार्ग : श्रीरंगम का निकटतम रेलवे स्टेशन तिरुचिरापल्ली है जो मन्दिर से  करीब 7.5 किमी की दूरी पर है। यह बडा रेलवे स्टेशन भारत के कई बड़े शहरों से रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है।

सड़क मार्ग : तिरुचिरापल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग 38 पर है और तमिलनाडु के सभी बड़े शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। त्रिची सेंट्रल बस स्टैंड से राज्य के सभी प्रमुख शहरों के लिए नियमित बस सेवा है। तिरुचिरापल्ली से श्रीरंगम जाने के लिए बस स्टैंड से स्थानीय बस, टैक्सी, ऑटो रिक्शा आदि मिल जाते हैं।

 

130 thought on “श्री रंगनाथस्वामी : विश्व का दूसरा सबसे बड़ा क्रियाशील हिन्दू मन्दिर”
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