सिलीगुड़ी (Siliguri) भौगोलिक दृष्टि से एक ओर नेपाल की सीमा से जुड़ा है और दूसरी ओर बांग्लादेश से। लकड़ी और चाय उत्पादन में इसकी अपनी अलग पहचान है तो पर्यटन के नक्शे में भी यह तेजी से उभरा है।
न्यूज हवेली नेटवर्क
कलिम्पोंग में तीन आनन्दपूर्ण दिन बिताने के बाद हमारा अगला गन्तव्य था सिलीगुड़ी (Siliguri)। यह दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी के बीच में स्थित है। महानन्दा नदी के किनारे हिमालय के चरणों में बसा यह शहर पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार कहा जाता है। यह उत्तरी बंगाल का प्रमुख वाणिज्यिक, पर्यटन, आवागमन और शैक्षिक केन्द्र है। “सिलीगुड़ी कॉरिडोर” जिसे “चिकन नेक” (“Siliguri Corridor” also known as “Chicken Neck”) भी कहा जाता सिलीगुड़ी शहर के पास ही है। 60 किलोमीटर लम्बा और 22 किलोमीटर चौड़ा यह कॉरिडोर पूर्वोत्तर के आठ राज्यों को शेष भारत से जोड़ने वाला एकमात्र गलियारा है। (Siliguri: Gateway to the North-Eastern region of India in West Bengal)
कलिम्पोंग में सूर्योदय का भव्य नजारा देखने के बाद नाश्ता कर हम करीब 10 बजे होटल से बाहर निकले। पहाड़ की घुमावदार सड़क पर हर मोड़ पर बदलता परिदृश्य मुग्ध कर देने वाला था। सीवोक में कुछ देर ठहर कर एक-एक कप चाय पीने के बाद वापस टैक्सी में बैठे तो 21 किलोमीटर का ही सफर बाकी था। सिलीगुड़ी (Siliguri) पहुंचे तो दोपहर का डेढ़ बज चुका था यानी करीब 67 किलोमीटर की दूरी तय करने में लगभग सवा तीन घण्टे खर्च हुए थे।
सिलीगुड़ी (Siliguri) भौगोलिक दृष्टि से एक ओर नेपाल की सीमा से जुड़ा है और दूसरी ओर बांग्लादेश से। लकड़ी और चाय उत्पादन में इसकी अपनी अलग पहचान है तो पर्यटन के नक्शे में भी यह तेजी से उभरा है। यहां देखने के लिए प्रकृति के शानदार नजारे, घूमने के लिए वन्यजीव अभयारण्य और चाय बागान एवं धर्माटन के लिए मठ और मन्दिर हैं। कुल मिलाकर यहां पर्यटकों के लिए इतना कुछ है कि वे तीन-चार दिन आराम से घूम सकते हैं।
सिलीगुड़ी व आसपास घूमने योग्य स्थान (Places to visit in and around Siliguri)
महानन्दा वन्यजीव अभयारण्य (Mahananda Wildlife Sanctuary):
159 वर्ग किलोमीटर में फैला यह वन्यजीव अभयारण्य सिलीगुड़ी से करीब नौ किलोमीटर दूर है। इसका मुख्य प्रवेश द्वार सुकना में है। इसे 1955 में एक खेल अभयारण्य के तौर पर शुरू किया गया था और 1959 में मुख्य रूप से गौर और रॉयल बंगाल बाघ के संरक्षण-संवर्धन के लिए अभयारण्य का दर्जा दिया गया। महानन्दा और तीस्ता नदियों के बीच हिमालय की तलहटी में स्थित इस आरक्षित वन में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे और जानवर हैं, विशेष रूप से जरुल, हाथी, सीरो और रॉयल बंगाल टाइगर। यहां फ्लाईकैचर्स, हिमालयन पाइड हॉर्नबिल्स समेत प्रवासी पक्षियों की कई प्रजातियां भी देखी जा सकती हैं। यहां संग्रहालय और सरकार द्वारा संचालित एक लॉज भी है।
बंगाल सफारी पार्क :
महानन्दा वन्यजीव अभयारण्य के बीच में स्थित इस सफारी पार्क का उद्घाटन सन् 2016 में हुआ था। यह उत्तर बंगाल क्षेत्र का पहला पशु सफारी पार्क है। 700 एकड़ में फैला यह पार्क साल के वृक्षों से घिरा हुआ है। यहां आप सांभर, जंगली सूअर, गैंडा, चित्तीदार हिरण, भालू, बाघ आदि के साथ ही विभिन्न प्रजातियों के पक्षी भी देख सकते हैं। यहां कई तरह की सफारी आयोजित की जाती हैं। बंगाल सफारी पार्क सोमवार को छोड़कर हर दिन सुबह नौ बजे से सायंकाल पांच बजे तक खुला रहता है। यहां शाकाहारी और मांसहारी खाना, चाय, कॉफी और स्नेक्स की भी सुविधा है।
चिलपटा वन :
सिलीगुड़ी से कुछ दूर स्थित यह घना जंगल तोर्शा और बनिया नदियों के किनारे है। यह इतना घना है कि कई स्थानों पर सूरज की रोशनी धरती तक नहीं पहुंच पाती है। जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान और बक्सा टाइगर रिजर्व के बीच यह एक हाथी गलियारा बनाता है। कभी यह बड़े गैंडों का एक बड़ा वास स्थल हुआ करता था। यहां हाथियों, तेंदुओं और जंगली सूअरों की भी अच्छी आबादी है। यहां कई प्रकार की तितलियां और 20 से अधिक प्रकार के सांप मिलते हैं। तोर्शा नदी के किनारे एक वॉच टावर है जिससे आसपास का नजारा देख सकते हैं। नलराजा गढ़ के खण्डहर भी यहीं पर हैं जो राम गुण वृक्षों से घिरे हुए हैं। इन्हें “रक्तस्राव वृक्ष” भी कहा जाता है।
सिपाही धुरा चाय बागान : सिलीगुड़ी से करीब आठ किलोमीटर दूर स्थित इस चाय बागान के आसपास प्रकृति का वैभव मानो बिखरा पड़ा है। यहां आप हरेभरे बागानों और जंगलों में टहलें, वृक्षों की फुनगियों में फंसते आवार बादलों को निहारें और स्वच्छ ताजा हवा में भरपूर सांस लें। यहां आप चाय पत्तियों को चुनने की प्रक्रिया भी देख सकते हैं।
कोरोनेशन ब्रिज (Coronation Bridge) :
सिलीगुड़ी से करीब 21 किलोमीटर दूर सीवोक में स्थित कोरोनेशन ब्रिज क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय पर्यटक आकर्षणों में से एक है। इसे पीडब्ल्यूडी के दार्जिलिंग डिवीजन के लिए काम करने वाले अन्तिम ब्रिटिश कार्यकारी अभियन्ता जॉन चेम्बर्स की देखरेऱख में किंग जॉर्ज छठे (अल्बर्ट फ्रेडरिक आर्थर जॉर्ज) के राज्याभिषेक की स्मृति में बनाया गया था। इसके निर्माण के लिए तीस्ता नदी की गहराई एक बड़ी चुनौती थी। यह पुल अपनी इंजीनियरिंग और डिजाइन दोनों के लिए प्रसिद्ध है।
उत्तर बंगाल विज्ञान केन्द्र :
यह विज्ञान केन्द्र सिलीगुड़ी शहर से करीब चार किलोमीटर दूर माटीगाड़ा क्षेत्र में स्थित है। यहां के मुख्य आकर्षणों में डिजिटल प्लेनेटेरियम, त्रिआयामी फिल्म थियेटर, विज्ञान शो (अतिशीतित द्रव, रोचक बुलबुले, विस्मयकारी रसायन, अप्रत्याशित विज्ञान) तारामंडल शो, विभिन्न दर्शक दीर्घाएं और विज्ञान उद्यान शामिल हैं। इसके प्रवेश द्वार के पास ही एक विशाल डायनासोर आगन्तुकों का स्वागत करता है।
उत्तर बंगाल विज्ञान केन्द्र की स्थापना 17 अगस्त 1997 को हुई थी और यह सिलीगुड़ी राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद की देखरेख में संचालित है। इसकी स्थापना का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों में वैज्ञानिक चेतना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना है ताकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति का लाभ जन-जन को मिल सके और सही अर्थों में समाज का विकास हो सके। प्रतिवर्ष ढाई लाख से भी अधिक पर्यटक और विद्यार्थी इसे देखने आते हैं।
इस्कॉन मंदिर :
पूर्वोत्तर भारत का यहा सबसे बड़ा कृष्ण चेतना केन्द्र सिलीगुड़ी के गीतम पारा क्षेत्र में है। 1966 में स्वामी प्रभुपाद द्वारा स्थापित इस दिव्य स्थान पर सभी कृष्ण भक्तों और पर्यटकों को अवश्य जाना चाहिए। इसका मुख्य भवन जितना आकर्षक है, उतना ही सुन्दर है इसका बगीचा। यहां की कृत्रिम हरी झील में नाव की सवारी भी कर सकते हैं। यह मन्दिर प्रातः 04:30 बजे मंगला आरती के साथ भक्तों के लिए खुलता है और सायंकाल आठ बजे शुरू होकर करीब आधा घण्टा चलने वाली आरती के बाद साढ़े आठ बजे बन्द हो जाता है। श्रद्धालुओं को यहां के शुद्ध शाकाहरी गोविन्द भोग का स्वाद अवश्य लेना चाहिए। यहां एक अतिथि गृह भी है पर इसमें ठहरने के लिए पहले से बुकिंग करानी होती है।
सेवोकेश्वरी काली मन्दिर :
कोरोनेशन ब्रिज से कुछ दूर तीस्ता नदी के किनारे स्थित इस मन्दिर को सेवक काली मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है। जंगलों से घिरे इस मन्दिर तक रंग-बिरंगी सीढ़ियों से पहुंचा जा सकता है। यहां का वातावरण एकदम शान्त है। इस दिव्य स्थान से तीस्ता की जलधारा और हिमालय के कंचनजंगा शिखर को देखने का अपना अलग ही आनन्द है।
लोकनाथ बाबा मन्दिर :
यह मन्दिर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। लोकनाथ बाबा और भगवान शिव की खण्डित छवि इस स्थान की सबसे लोकप्रिय मूर्ति है। यहां हवन करने के स्थान को “जोग्यो-बेदी” कहा जाता है। परिसर में लक्ष्मी-नारायण-शेषनाग और भगवान गणेश की प्रतिमाएं भी हैं।
श्री बालाजी मन्दिर :
खालपारा क्षेत्र में स्थित यह मन्दिर सिलीगुड़ी के सबसे पुराने मन्दिरों में से एक है। इसका भवन अत्यन्त दर्शनीय और वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। मुख्य गर्भगृह में भगवान हनुमान की मूर्ति के साथ ही भगवान राम और देवी सीता की भी मूर्तियां हैं। यह सुबह छह से रात आठ बजे तक भक्तों के लिए खुला रहता है।
सालुगारा मठ :
सिलीगुड़ी से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित इस तिब्बती बौद्ध मठ को द ग्रेट इण्टरनेशनल ताशी गोमंग स्तूप (The Great International Tashi Gomang Stupa) के नाम से भी जाना जाता है। यह सिलीगुड़ी के सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षणों में से एक है। मठ के स्तूप या चोर्टेन की स्थापना तिब्बती लामा कालू रिनपोछे ने की थी। यह स्तूप 100 फीट ऊंचा है। यहां एक विशाल प्रार्थना चक्र है जहां आगन्तुक मक्खन के दीपक चढ़ा सकते हैं। यहां के उद्यान और आसपास की पहाड़ियां वातावरण में जादू बिखेरती नज़र आती हैं।
कालिम्पोंग : शिवालिक पर्वतमाला में लेप्चाओं के खेलने की पहाड़ी
हांगकांग बाजार : यह सिलीगुड़ी का मुख्य बाजार है जहां जाये बिना खरीदारी पूरी नहीं हो सकती। यहां स्थानीय हस्तशिल्प के साथ ही तिब्बती हस्तशिल्प की भी कई दुकानें हैं जहां से आप सुन्दर कलाकृतियां स्मृति चिन्ह के तौर पर खरीद सकते हैं। यहां चीन से आयातित वस्तुओं के साथ-साथ थाईलैण्ड, नेपाल और म्यांमार का समान भी मिलता है। यहां खरीदारी करते समय मोलभाव करना बहुत जरूरी है अन्यथा आपको किसी भी सामान का दोगुना से तिगुना मूल्य तक चुकाना पड़ सकता है।
दुधिया : सिलीगुड़ी से करीब 26 किलोमीटर दूर बालासन नदी के किनारे स्थित छोटा-सा गांव दुधिया अपने सुरम्य प्राकृतिक परिदृश्य और शान्त वातावरण के चलते पर्यटन के नक्शे में तेजी से उभरा है। मिरिक-सिलीगुड़ी राजमार्ग पर स्थित दुधिया नाइट कैम्पिंग के लिए एक आदर्श स्थान है जहां से आप रात को तारों भरे आसमान को निहार सकते हैं। यह पर्यटन स्थल होने के साथ ही दार्जिलिंग, कलिम्पोंग, सिलीगुड़ी, न्यू जलपाईगुड़ी, कुर्सियांग आदि के लोगों के लिए एक लोकप्रिय पिकनिक स्पॉट भी है।
सविन किंगडम :
दस एकड़ में फैला यह मनोरंजन पार्क सिलीगुडी के प्रमुख पर्यटन आकर्षणों में शामिल है। यहां के वाटर पार्क में एक वेव पूल है और यहां वाटर स्लाइड व अन्य मनोरंजक गतिविधियां होती हैं। बच्चों को यहां की रोमांचकारी साहसिक सवारी और खेल पसन्द आते हैं। यहां कई अन्य दिलचस्प गतिविधियां भी होती हैं, जैसे मेंहदी पेंटिंग, मिट्टी के बर्तन बनाना, जादू का प्रदर्शन और भाग्य-बताना। यहां रेस्तरां और सिनेमा साइट भी हैं।
ड्रीमलैंड अम्यूजमेंट पार्क : सिलीगुड़ी जंक्शन से करीब तीन किलोमीटर दूर फूलबाड़ी में स्थित यह पार्क एक वाटर थीम पार्क है जो अपने सभी मेहमानों के लिए कई रोमांचक थीम वाली सवारी, स्लाइड, वाटर स्पोर्ट्स और अन्य मनोरंजक गतिविधियां प्रदान करता है। इस पार्क में प्रवेश शुल्क के अलावा हर गतिविधि के लिए अलग-अलग शुल्क चुकाना होता है।
सूर्य सेन पार्क : यह पार्क अपने सुव्यवस्थित लॉन और फव्वारों के लिए प्रसिद्ध और स्थानीय लोगों का एक पसन्दीदा पिकनिक स्पॉट है। बच्चों को यह स्थान बहुत पसन्द आता है और वे यहां मज़ेदार सवारी, झूले और खेलने का मजा लेते हैं। टॉय ट्रेन यहां का मुख्य आकर्षण है जो शाम को चलती है। शाम होते ही यह रंगीन रोशनी से जगमगा उठता है। यहां स्वतन्त्रता सेनानी सूर्य सेन की प्रतिमा और राफ्टिंग के लिए एक पूल भी है। पार्क में प्रवेश करने के लिए टिकट खरीदना होता है।
दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे (Darjeeling Himalayan Railway) :
इसे “टॉय ट्रेन” के नाम से भी जाना जाता है। यह न्यू जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग के बीच नैरो गेज लाइन की रेलवे प्रणाली है। इसका निर्माण 1879 से 1881 के बीच किया गया था और इसकी कुल लम्बाई 78 किलोमीटर है। सुन्दर हरीभरी पहाड़ियों और घाटियों के बीच घुमावदार रेल लाइन से गुजरती इस ट्रेन की यात्रा पर्यटकों के लिए एक कभी न भूलने वाला अनुभव होता है। इस रेलवे का मुख्यालय कार्सियांग में है। इसके मार्ग में कुल 13 स्टेशन हैं- न्यू जलपाईगुड़ी, सिलीगुड़ी टाउन, सिलीगुड़ी जंक्शन, सुकना, रंगटंग, तिनधरिया, गयाबाड़ी, महानदी, कार्सियांग, टुंग, सोनादा, घुम और दार्जिलिंग। पर्यटक घुम स्टेशन पर स्थित डीएचआर अभिलेखागार और सुकना रेलवे स्टेशन की फोटो गैलरी भी देख सकते हैं।
कब जायें
सिलीगुड़ी भले ही हिल स्टेशन कहलाता हो पर यहां घूमने का आदर्श समय अक्टूबर से फरवरी के बीच का है। इन दिनों तापमान आठ से 10 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है और कुछ स्थानों पर, विशेष रूप से सुबह घना कोहरा छा जाता है और कभी-कभी हल्की बारिश होती है। दिसम्बर और जनवरी में यहां कड़ाके की सर्दी पड़ती है। गर्मी और मानसून के मौसम में यहां का कार्यक्रम बनाने से बचें क्योंकि यहां पर ये दिन काफी गर्म और आर्द्र होते हैं।
ऐसे पहुंचें सिलीगुड़ी (How to reach Siliguri)
हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा बागडोगरा इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से मात्र 12 किलोमीटर दूर है जहां से टैक्सी और ऑटो मिलते हैं।
रेल मार्ग : सिलीगुड़ी जंक्शन एक बड़ा रेल हेड है जहां के लिए दिल्ली, मुम्बई, हावड़ा गुवाहाटी आदि से नियमित ट्रेन सेवा है। न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन सिलीगुड़ी से बमुश्किल छह किमी पड़ता है।
सड़क मार्ग : सिलीगुड़ी पश्चिम बंगाल के लगभग सभी प्रमुख स्थानों से सड़कों के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यह दार्जिलिंग से करीब से 62 किमी दूर है। कालिम्पोंग से सिलिगुड़ी पहुंचने के लिए पहाड़ों के घुमावदार रास्तों पर करीब 67 किलोमीटर लम्बा सफर करना होता है। सिलीगुड़ी शहर कोलकाता से 584 किलोमीटर की दूरी पर है। (जारी)
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