Rameshwaram Jyotirlinga : रामेश्वरम् का मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुन्दर नमूना है। इसके प्रवेश-द्वार 40 फीट ऊंचा है। इसके प्रांगण में और मंदिर के अंदर सैकड़ों विशाल खंभें है जो देखने में एक-जैसे लगते है ; परंतु पास जाकर बारीकी से देखा जाय तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेल-बूटे की अलग-अलग कारीगरी है।
न्यूज हवेली नेटवर्क
तमिलनाडु के रामनाथपुरम् जिले में चेन्नई से करीब 560 किलोमीटर दूर भगवान शिव रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग (Rameshwaram Jyotirlinga) के रूप में विराजते हैं। मान्यता है कि इस शिवलिंग की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। रामेश्वरम् आदि शंकराचार्य द्वारा भारत की चारों दिशाओं में स्थापित हिन्दुओं के चार सबसे बड़े धामों बदरीनाथ, द्वारका पुरी, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम् में भी शामिल है।
तमिल भाषा मे लिखी गयी महर्षि कम्बन की रामकथा “इरामावतारम्” और स्कन्दपुराण में एक कथा का उल्लेख है। इसके अनुसार राक्षस राज रावण का वध करने पर भगवान श्रीराम पर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। ऋषियों ने उनको ब्रह्म हत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए कहा। उन्होंने श्रीराम से कहा कि वे शिवलिंग स्थापित करके अभिषेक करें। इस पर वहां माता सीता द्वारा बनाया गया बालू का शिवलिंग स्थापित किया गया और श्रीराम ने उसकी पूजा की। इसी वजह से इस ज्योतिर्लिंग का नाम रामेश्वरम् (Rameshwaram) पड़ा। एक अन्य पौराणिक कथा कि अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए रेत से एक शिवलिंग बनाकर उसकी पूजा की थी जो रामेश्वरम् के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान राम ने यहां पास में ही हनुमान जी द्वारा लाया गया एक और शिवलिंग भी स्थापित किया था जिसे हनुमदीश्वर कहा जाता है। हनुमदीश्वर की स्थापना करने के पश्चात श्रीराम ने हनुमान को वरदान दिया, “मेरे द्वारा स्थापित ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से पहले तुम्हारे द्वारा लाये गये शिवलिंग की पूजा करना आवश्यक होगा। जो व्यक्ति ऐसा नहीं करेगा उसे महादेव के दर्शन का फल प्राप्त नहीं होगा।”
रामेश्वरम् मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुन्दर नमूना है। इसके प्रवेश-द्वार 40 फीट ऊंचा है। इसके प्रांगण में और मंदिर के अंदर सैकड़ों विशाल खंभें है जो देखने में एक-जैसे लगते है ; परंतु पास जाकर जरा बारीकी से देखा जाय तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेल-बूटे की अलग-अलग कारीगरी है। मंदिर पूर्व से पश्चिम तक लगभग 1000 फीट और उत्तर से दक्षिण में लगभग 650 फीट क्षेत्र में फैला हुआ है। इस मन्दिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा माना जाता है।
मन्दिर परिसर में 24 कुएं (कुण्ड) हैं जिन्हें तीर्थ कहा जाता है। मान्यता है कि प्रभु श्रीराम ने अपने अमोघ बाण से इन्हें बनाकर इनमें तीर्थस्थलों से पवित्र जल मंगवाया था। यही कारण है कि इन कुओं का जल मीठा है। हालांकि मन्दिर परिसर के बाहर भी कुछ कुण्ड हैं पर उन सभी का जल खारा है। इन चौबीस कुओं अर्थात तीर्थों के नाम प्रसिद्ध तीर्थों और देवी-देवताओं के नाम पर रखे गये हैं। इन सभी तीर्थों के दर्शन करने के बाद ही रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग (Rameshwaram Jyotirlinga) पर जल चढ़ाने का महात्म्य है। शिवलिंग पर सिर्फ गंगाजल चढ़ाने की परम्परा है।
रामेश्वरम् मन्दिर (Rameshwaram Temple) के चारों और दूर-दूर तक कोई पहाड़ नहीं है जहां से पत्थर आसानी से लाये जा सकें। गंधमादन पर्वत तो नाममात्र का है। यह वास्तव में एक टीला है और उसमें से एक विशाल मंदिर के लिए जरूरी पत्थर नहीं निकल सकते। रामेश्वरम् मंदिर में जो कई लाख टन पत्थर लगे है, वे सब बहुत दूर-दूर से नावों पर लादकर लाये गये थे। मंदिर के भीतरी भाग में एक तरह का चिकना काला पत्थर लगा है। कहते हैं कि ये सब पत्थर लंका से लाये गये थे।
ऐसे पहुंचें रामेश्वरम् (How to reach Rameshwaram)
हवाई मार्ग : निकटतम हवाई अड्डा मदुरै एयरपोर्ट यहां से करीब 170 किलोमीटर दूर है जहां से ट्रेन, बस और टैक्सी पकड़ कर रामेश्वरम् पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग : रामेश्वरम में रेलवे स्टेशन है। चेन्नई, बनारस, कोयम्बटूर, ओखा, चेन्नई, फैजाबाद (अयोध्या), भुवनेश्वर, हैदराबाद, अजमेर आदि से यहां के लिए ट्रेन सेवा है।
सड़क मार्ग : सड़क मार्ग से भी बहुत आसानी से रामेश्वरम् पहुंच सकते हैं। यहां से मदुरै 176, कन्याकुमारी, चेन्नई 560और त्रिची करीब 274 किलोमीटर पड़ते हैं।