Mechuka: मेचुका को मेनचुखा के नाम से भी जाना जाता है जो तीन शब्दों से बना है। स्थानीय भाषा में “मेन” का अर्थ है “औषधीय”, “चू” का अर्थ है “पानी” और “खा” का अर्थ है “बर्फ”। माना जाता है कि बर्फ से ढकी चोटियों से पिघल कर यहां आने वाले पानी में औषधीय गुण होते हैं। इस घाटी को “सपनों की दुनिया” और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र का “मिनी स्विट्जरलैण्ड” भी कहा जाता है।
न्यूज हवेली नेटवर्क
मैं एक घुमक्कड़ हूं और पहाड़ मुझे मानो बार-बार आमन्त्रण देते हैं। कई बार अरुणाचल प्रदेश जा चुका हूं जो मेरी नजर में दुनिया के सबसे सुन्दर स्थानों में से एक है। यहां की पिछली यात्रा के दौरान एक मित्र ने शियोमी जिले में स्थित मेचुका (Mechuka) जाने की सलाह दी। उस समय ऐसा सम्भव नहीं हो पाया। करीब दो साल बाद फिर पूर्वोत्तर भारत घूमने का कार्यक्रम बनाया तो उसमें मेचुका को भी शामिल कर लिया।
इस बार के पूर्वोत्तर भ्रमण की शुरुआत हमने डिब्रूगढ़ से की। तीन दिन यहां घूमने-फिरने के बाद हम ट्रेन से सिलपथार पहुंचे और वहां से शेयरिंग टैक्सी कर आगे का सफर शुरू किया। करीब सवा तीन सौ किलोमीटर का यह सफर एक अलग ही तरह का अनुभव था। दुर्गम पहाड़ों, हरीभरी घाटियों और नदियों के किनारों से गुजरते हुए कभी लगता कि हम किसी उपवन में हैं तो कभी बादल हमें अपने आंचल में समेट लेते। अगले ही पल मौसम बिल्कुल साफ प्रतीत होता और दूर घाटियों के खेत-बागान अपने सम्मोहन में बांध लेते। रास्ते में बसर में दोपहर के भोजन में चावल और मछली के व्यंजनों का आनन्द लिया। यहां से आगे मौलिंग नेशनल पार्क के करीब से गुजरते हुए हेरांग पहुंचे तो चाय की तलब लगने लगी। ग्लूकोज के कुछ बिस्किट के साथ चाय सुड़कने के बाद आगे का सफर शुरू कर जब मेचुका (Mechuka) पहुंचे तो शाम ढल चुकी थी।
करीब 10 घण्टे के सफर ने काफी थका दिया था। होटल में चेक इन कर अपने कमरे में पहुंच कर खिड़की के पर्दे हटाते ही सामने बिजली की रोशनी में जगमगाते मेचुका (Mechuka) ने मन्त्रमुग्ध कर दिया। ऐसा लगा जैसे हमारे स्वागत में किसी ने बिजली के लट्टुओं की लड़ियों को करीने से सजा दिया हो। चाय की चुस्कियों के बीच इसे निहारते हुए सारी थकान मानो हवा हो गयी।
समुद्र तल से छह हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित मेचुका (Mechuka) मैकमोहन रेखा से लगभग 289 किलोमीटर दूर है जो भारत को तिब्बत से अलग करती है। देवदार के जंगलों और झाड़ियों से घिरा यह छोटा-सा शहर अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, झीलों-नदियों औरजनजातीय संस्कृति के लिए जाना जाता है। तिब्बत में मानसरोवर झील के आसपास के ग्लेशियरों से निकलने वाली सियांग नदी मेचुका से होकर बहती है और घाटी को एक मनमोहक परिदृश्य प्रदान करती है। यहां की नदियों में आप कयाकिंग और राफ्टिंग जैसे साहसिक खेलों का आनन्द ले सकते हैं।
मेचुका (Mechuka) को मेनचुखा के नाम से भी जाना जाता है जो तीन शब्दों से बना है। स्थानीय भाषा में “मेन” का अर्थ है “औषधीय”, “चू” का अर्थ है “पानी” और “खा” का अर्थ है “बर्फ”। माना जाता है कि बर्फ से ढकी चोटियों से पिघल कर यहां आने वाले पानी में औषधीय गुण होते हैं। इस घाटी को “सपनों की दुनिया” और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र का “मिनी स्विट्जरलैण्ड” भी कहा जाता है।
मेचुका (Mechuka) की खूबसूरती के कई आयाम हैं। मई से अगस्त तक यहां की फ्लोरोसेन्ट हरी छटा आपको डीसी कॉमिक्स “ग्रीन लैन्टर्न”की याद दिलाएगी। सितम्बर में शरद ऋतु के आगमन के साथ ही पूरी घाटी भूरे रंग की हो जाती है और दिसम्बर के मध्य तक इसी रंग में रंगी रहती है। इसके बाद फरवरी तक यह बर्फ की चादर ओढ़े रहती है। मार्च से पेड़-पौधों पर कोपलें आनी शुरू हो जाती हैं और घाटी शनैः-शनैः हरियल होने लगती है।
इस हिमालयी क्षेत्र में ज्यादा पर्यटक नहीं आते हैं, इस कारण इसका नैसर्गिक सौन्दर्य अभी भी बरकरार है। यहां बांस के कई पुल हैं जो नदियों के किनारों को जोड़ते हैं। नदियों के ऊफनते पानी के ऊपर बने ये पुल जब लोगों के चलने से हिलने लगते हैं तो यह अनुभव सैलानियों को रोमांच से भर देता है। यहां की घाटियों के ढलानों परचावल के सीढ़ीनुमा खेत और कई छोटे-छोटे फार्म हैं। मेचुका घाटी (Mechuka Valley) मेम्बा, आदि (रामो), बोकर और लिबो जनजातियों का घर है। ऐसा माना जाता है कि ये जनजातियां तिब्बती-मंगोलॉयड मूल की हैं। इनमें से ज्यादातर लोग तिब्बती बौद्ध परम्परा के अनुयायी हैं। बाकी लोग डोनी-पोलोइज़्म और ईसाई धर्म को मानते हैं। ये मेम्बा, आदि, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा समझ और बोल सकते हैं।
मेचुका के आसपास के दर्शनीय स्थान (Places to visit around Mechuka)
ज़ोग्चेन सैमटेन योंगचा मठ :
मेचुका का एक बड़ा आकर्षण महायान बौद्ध सम्प्रदाय का 400 वर्ष पुराना ज़ोग्चेन सैमटेन योंगचा मठ है। यहां भगवान बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमा समेत कई प्राचीन प्रतिमाएं,भित्ती चित्र और कलाकृतियां हैं। इनमें गुरु पद्मसम्भव की प्रतिमा भी शामिल हैजिन्हें निंगमा सम्प्रदाय का संस्थापक माना जाता है। यहांतिब्बती पौराणिक कथाओं पर आधारित लोककथाओं के पात्रो की रंगीन वेशभूषा और मुखौटे भी प्रदर्शित किए गये हैं। पारम्परिक चाम नृत्य के दौरानइन मुखौटों को पहना जाता है। यहां कई तिब्बती त्योहार, विशेषकर लोसारपूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। नव वर्ष के स्वागत के लिए मनाए जाने वाले इस उत्सव के दौरान बड़ी संख्या में प्रवासी और पर्यटक यहां आते हैं।मेचुका की विशाल उड़ने वाली गिलहरी भी यहीं खोजी गयी थी।
गुरु नानक देव गुरुद्वारा एवं तपोस्थान :
ऐसा कहा जाता है कि करीब पांच सौ साल पहले जब श्री गुरु नानक देव मेचुका के रास्ते तिब्बत जा रहे थेतो उन्होंने इन दो स्थानों पर ध्यान लगाया। इनमें से एक को गुरुद्वारा के रूप में जाना जाता है जिसकी देखभाल और प्रबन्धन भारतीय सेना करती है और दूसरे को तपोस्थान कहा जाता है। तपोस्थान को लेकर एक रोचक कहानी प्रचलित है। ऐसा माना जाता है कि जब श्री गुरु नानक देव और उनके शिष्य ध्यान कर रहे थे तो एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया। गुरु नानक देव को बचाने के लिए एक शिष्य ने एक शिला उठा ली। उस विशाल शिला पर गुरु नानक देव के चेहरे की छाप आज भी देखी जा सकती है। यहां गुरु नानक देव को समर्पित एक पवित्र गुफा भी है। अत्यन्त पवित्र मानी जाने वाली इस गुफा में एक विशाल चट्टान हैजिस पर गुरु नानक देव की पगड़ी की छाप है। लोककथाओं के अनुसार गुरु नानक देव इस गुफा में रुके थे।
दोर्जिलिंग गांव : प्राकृतिक सौन्दर्य के मामले में अद्भुत दोर्जिलिंग गांव को घूमे बिना मेचुका यात्रा अधूरी है। मेचुका से करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित इस गांव तक पहुंचने के लिएयार्गेपचु नदी को पार करना होता है। यहां बांस और लकड़ी से बनेकई लटकते (हैंगिंग) पुल हैंजिनका इस्तेमाल स्थानीय लोग नदी पार करने के लिए करते हैं। यहां लकड़ी और बांस के संयोजन से बनाये गये खूबसूरत घर और एक आश्रम (मठ) भी है। यह गांव आज भी आम पर्यटकों की पहुंच से दूर है। लेकिन, मेरा सुझाव है कि आप यहां अवश्य जायें औरआसपास के सुरम्य परिदृश्यों का आनन्द लें। यहां आप सलमान खान व्यू पाइन्ट भी देख सकते हैं जो इस गांव का एक लोकप्रिय आकर्षण है।
यारलुंग आर्मी कैम्प : समुद्र तल से 7,394 फीट की ऊंचाई पर स्थित भारतीय सेना का यह शिविर प्रकृति की सुरम्य गोद में स्थित है।आम नागरिक इसके गेट तक ही जा सकते हैं। इसके आगे भारत-तिब्बत सीमा तक जाने के लिए परमिट बनवाना पड़ता है। इनके अलावा आप मेंगांग गांव में 1962 का युद्ध बिन्दु भी देख सकते हैंजहां भारत-चीन युद्ध हुआ था। आप लामांग कैम्प भी देख सकते हैं। लामांग की ओर जाने वाली सड़क बहुत ही सुन्दर है और शंकुधारी जंगलों से होकर गुजरती है।
हनुमान शिविर :
यह स्थान यारलुंग आर्मी कैम्प के मार्ग पर पड़ता है। यहां आपएक ऊंची ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी चट्टान परभगवान हनुमान के चेहरे की एक प्राकृतिक रूप से नक्काशीदार छवि के दर्शन कर सकते हैं। पास ही में बौद्धों की एक बस्ती और कुछ दुकानें हैं जहां चाय-नाश्ता किया जा सकता है।
आलो :
योमगो और सिपू नदियों के किनारे पर स्थित आलो (पुराना नाम अलोंग) एक छोटी और खूबसूरत जगह है। यहां रिवर राफ्टिंग, हाईकिंग, ट्रैकिंग आदि साहसिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं। मेचुका-सिलपाथर मार्ग पर स्थित इस स्थान पर आप स्थानीय जनजातियों द्वारा बनाए गये हथकरघा वस्त्र और बांस की कलाकृतियां खरीद सकते
कामाकी जलविद्युत बांध : आलो के पास ही बनाया गया कामाकी हाइड्रोपॉवर बांध एक जल आरक्षित क्षेत्र है। यहां कई तरह की वनस्पतियों के साथ ही विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों को चहचहाते और उन्मुक्त उड़ान भरते देखा जा सकता है।
सिको डिडो जलप्रपात :
मेचुका और उसके आसपास कई झरने-प्रपात हैं जिनमें सबसे खास है सिको डिडो जलप्रपात। यह बसर की सड़क पर लिपो गांव के पास मेचुका के रास्ते में है जहां जलधारा 200 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरती है। इसके आधार पर एक तालाब है।
ऐसे पहुंचें मेचुका (How to reach Mechuka)
वायु मार्ग : मेचुका एक ऑफबीट गन्तव्य है जहां के लिए कोई सीधी हवाई और रेल कनेक्टिविटी नहीं है। निकटतम हवाई अड्डा असम के मोहनबाड़ी में स्थित डिब्रूगढ़ एयरपोर्ट यहां से करीब 382 किलोमीटर दूर है। पासीघाट एयरपोर्ट यहां से करीब 285 जबकि ईटानगर के पास स्थित डोनी पोलो ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट लगभग 505 किलोमीटर दूर है।
रेल मार्ग : सिलपथार रेलवे स्टेशन यहां से करीब 323 किलोमीटर दूर है। असम के डिब्रूगढ़, गुवाहाटी आदि से यहां के लिए ट्रेन मिलती हैं।
सड़क मार्ग : मेचुका के लिए सबसे अच्छी सड़क कनेक्टिविटी पश्चिम सियांग जिले और आलो के माध्यम से है। ईटानगर से भी यहां के लिए बस, टैक्सी, कैब आदि मिलती हैं।