Mahabalipuram: तमिलनाडु के चेंगलपट्टु जिले में बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित महाबलिपुरम या मामल्लपुरम की स्थापना का श्रेय राजा नरसिंहवर्मन प्रथम को जाता है। यह अपने भव्य मन्दिरों, द्रविड़ वास्तुकला और सागर-तटों के लिए प्रसिद्ध है। सातवीं शताब्दी में यह पल्लव राजाओं की राजधानी था।
न्यूज हवेली नेटवर्क
तीन दिन का वह सम्मेलन तीसरे दिन दोपहर 12 बजे ही खत्म हो गया और चेन्नई से लखनऊ की हमारी उड़ान अगले दिन अपराह्न दो बजे की थी। यानी हमारे पास पूरे 26 घण्टे थे। हम सभी लोग पहले भी कई बार चेन्नई घूम चुके थे, इसलिए तय हुआ कि बचे हुए समय का सदुपयोग महाबलिपुरम (Mahabalipuram) घूमने में किया जाये। हमने तुरन्त एक टैक्सी बुक की और निकल पड़े चेन्नई से करीब 56 किलोमीटर दूर स्थित रथों के इस शहर की ओर।
तमिलनाडु के चेंगलपट्टु जिले में बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित महाबलिपुरम (Mahabalipuram) या मामल्लपुरम की स्थापना का श्रेय राजा नरसिंह वर्मन प्रथम को जाता है। यह अपने भव्य मन्दिरों, द्रविड़ वास्तुकला और सागर-तटों के लिए प्रसिद्ध है। सातवीं शताब्दी में यह पल्लव राजाओं की राजधानी था। कभी यह दक्षिण भारत का एक बड़ा व्यापारिक शहर था और इसके बन्दरगाह पर दुनियाभर के वाणिज्यिक जहाज लंगर डालते थे। महाबलिपुरम (Mahabalipuram) को वर्ष 1984 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल किया गया था।
महाबलिपुरम (Mahabalipuram) की यात्रा पर आप वर्ष में कभी भी जा सकते हैं, हालांकि यहां यहा जाने के लिए सबसे अच्छा समय नवम्वर से फरवरी के बीच का माना जाता हैं।
महाबलिपुरम के प्रमुख दर्शनीय स्थल (Major tourist places in Mahabalipuram)
शोर मन्दिर :
इसे रथ मन्दिर और समुद्र तट मन्दिर भी कहा जाता है। यह दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मन्दिरों में से एक है जिसका सम्बन्ध आठवीं शताब्दी से है। नरसिंह बर्मन प्रथम द्वारा बनवाया गया यह मन्दिर द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। 27 मीटर लम्बी और नौ मीटर चौड़ी यह संरचना अपनी नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। इसे बनाने के लिए व्हेल की पीठ के आकार के विशाल शिलाखण्ड पर ईश्वर, मानव और पशुओं-पक्षियों की आकृतियां उकेरी गयी हैं। यहां तीन मन्दिर हैं। बीच में भगवान विष्णु का मन्दिर है जिसके दोनों तरफ शिव मन्दिर हैं।
पाण्डव रथ :
यह मन्दिर समूह महाबलिपुरम के दक्षिणी सिरे पर स्थित है। सातवीं शताब्दी के अन्त में पल्लव राजाओं ने इस रॉक-कट मन्दिर का निर्माण कराया था। इसके पांचों रथों का नाम पाण्डवों और महाभारत के अन्य पात्रों के नाम के अनुसार रखा गया है। इनमें धर्मराज युधिष्ठर का बहुमंजिला रथ मन्दिर सबसे बड़ा जबकि द्रौपदी रथ सबसे छोटा है। प्रवेश द्वार पर स्थित कुटि के आकार का द्रौपदी रथ देवी दुर्गा को जबकि अर्जुन रथ भगवान शंकर को समर्पित है। भीम चूहा मन्दिर के खम्भों पर शेर की आकर्षक नक्काशी है। नकुल-सहदेव रथ पर हाथियों को उकेरा गया है और यह देवराज इन्द्र को समर्पित है।
कृष्ण मण्डपम :
यह मन्दिर महाबलिपुरम के पत्थरों को काटकर बनाए गये प्रारम्भिक मन्दिरों में एक है जिसका निर्माण पल्लव राजाओं ने कराया था। इसकी दीवारों पर ग्रामीण जीवन की झलक देखी जा सकती है। एक जगह भगवान कृष्ण को गोवर्धन पर्वत को अंगुली पर उठाए दिखाया गया है।
अर्जुन की तपस्या :
30 मीटर लम्बी और नौ मीटर ऊंची यह संरचना दो विशाल शिलाखण्डों पर निर्मित है। सातवीं और आठवीं शताब्दी की इस भव्य संरचना में की गयी नक्काशी दर्शनीय है। यहां देवी-देवताओं, जानवरों, पक्षियो, अर्ध दिव्य जीवों आदि की आकृतियां उकेरी गयी हैं।
गणेश रथ मन्दिर :
यह पल्लव वंश के नरेशों द्वारा बनवाया गया एक दर्शनीय मन्दिर है। इसकी संरचना द्रविड़ शैली की है और यह अर्जुन तपस्या के उत्तर की ओर स्थित है। इस मन्दिर को एक चट्टान पर खूबसूरती से उकेरा गया है जिसकी आकृति एक रथ जैसी दिखाई देती हैं। शुरुआत में यह मन्दिर भगवान शिव के लिए जाना जाता था लेकिन बाद में इसे भगवान गणेश को समर्पित कर दिया गया।
त्रिमूर्ति गुफा मन्दिर : इस रॉक-कट मन्दिर का निर्माण सातवीं शताबदी के दौरान हुआ था। गणेश रथ मन्दिर के उत्तर में स्थित यह मन्दिर 100 फीट ऊंची चट्टान पर बनाया गया है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश को समर्पित है।
महिषासुरमर्दिनी गुफा :
सातवीं शताब्दी के मध्य में एक ही चट्टान को काटकर बनायी गयी यह गुफा महाबलिपुरम आने वाले पर्यटकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। इसमें आठ मण्डप हैं। देवी मां के महिषमर्दिनी स्वरूप को समर्पित इस गुफा में भगवान शिव, देवी पार्वती और मुरुगन (देव सेनापति कार्तिकेय) की नक्काशी है। यहां एक गुफा में उकेरी गयी शेषशय्या पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति को शिल्पकला के उत्कृष्ट उदाहरणों में से एक माना जाता है।
वराह गुफा :
यह गुफा भगवान विष्णु के वराह और वामन अवतारों के लिए प्रसिद्ध है। पल्लव के चार मननशील द्वारपालों के पैनल भी दर्शनीय हैं। यहां भूदेवी की एक आकर्षक प्रतिमा भी है।
स्थलसायन पेरुमल मन्दिर :
द्रविड़ शैली में निर्मित इस मन्दिर को थिरुकदलमल्लई भी कहा जाता है। यह भगवान विष्णु को समर्पित 108 दिव्यदेशम में से एक है। भगवान विष्णु को यहां स्थलसयन पेरुमल के रूप में उनकी पत्नी नीलामंगई थायर (देवी लक्ष्मी) के साथ पूजा जाता है। यहां प्रातः छह बजे से 12 बजे तक और दोपहर तीन बजे से रात्रि 08:30 बजे तक दर्शन-पूजन किया जा सकता है। तमिल महीने एपिसी (अक्टूबर-नवम्बर) के दौरान यहां भूततझवार अवतार उत्सव मनाया जाता है।
ओलक्कनेश्वर मन्दिर :
ग्रे और सफेद ग्रेनाइट से बने इस मन्दिर को ओल्ड लाइटहाउस भी कहा जाता है जिसका निर्माण आठवीं शताब्दी में हुआ था। यह मन्दिर महिषासुरमर्दिनी गुफा के ऊपर एक पहाड़ी पर है जहां से महाबलिपुरम शहर का विहंगम दृश्य देख सकते हैं। इस मन्दिर के निर्माण का श्रेय राजा राजसिम्हा को दिया जाता है। यह अब काफी जर्जर हो चुका है और इसकी अधिरचना गायब है; जो बचा है वह एक वर्गाकार इमारत है। इसके पश्चिमी प्रवेश द्वार के दोनों ओर द्वारपाल हैं। भगवान शिव को समर्पित इस मन्दिर में 19वीं शताब्दी के बाद पूजा-पाठ करना बन्द कर दिया गया था। यहां सुबह छह से सायंकाल छहे बजे तक ही जा सकते हैं।
मुकुन्द नयनार मन्दिर :
महाबलिपुरम शहर के पास स्थित इस मन्दिर को सालुवनकुप्पम की खुदाई के दौरान खोजा गया था। 12 फीट रेत के नीचे दबे मिले इस छोटे-से मन्दिर को वास्तुशिल्प की दृष्टि से धर्मराज-रथ माना जाता है। माना जाता है कि इसका निर्माण राजसिंह पल्लव के शासनकाल में हुआ था। मुकुन्द नयनार मन्दिर दोमंजिला है जिसमें एक अर्ध-मण्डप है जो दो गोलाकार स्तम्भों पर खड़ा है। खम्भों के ऊपर छोटे-छोटे मन्दिरों का समूह रखा गया है। सुबह छह से साय़ंकाल छह बजे के बीच यहां जाने की अनुमति है।
श्री करुकाथम्मन मन्दिर :
ईस्ट कोस्ट रोड पर स्थित यह मन्दिर मां अम्मन को समर्पित है। देवी अम्मन यहां सुखासन में विराजती हैं। इस मन्दिर का आन्तरिक भाग अत्यन्त रंग-बिरंगा है जिसमें कई अन्य आकर्षक मूर्तियां भी स्थापित हैं। एक स्थानीय मान्यता के अनुसार एक महिला को उसके पूर्वजों ने बच्चा न होने का शाप दिया था लेकिन देवी अम्मन के आशीर्वाद से उसने एक स्वस्थ-सुन्दर बच्चे को जन्म दिया। तभी से लोग यहां संतान प्राप्ति और पारिवारिक समृद्धि का आशीर्वाद लेने आते हैं।
बाघ गुफा : महाबलिपुरम के उत्तर में पांच किलोमीटर की दूरी पर सालुरंकुपम गांव के पास स्थित यह रॉक-कट गुफा मन्दिर देवी दुर्गा को समर्पित है। देवी दुर्गा से जुड़ी की कथाओं को यहां नक्काशी के माध्यम से दर्शाया गया है। यह पल्लव कला के सबसे महान उदाहरणों में से एक है।
कृष्ण की बटर बॉल :
महाबलीपुरम समुद्र तट के दूसरी ओर एक पहाड़ी पर स्थित इसविशाल गोलाकार चट्टान को भगवान कृष्ण की गेंद या कृष्ण की बटर बॉल कहा जाता है। गणेश रथ के पास एक पहाड़ी ढलान पर स्थित यह चट्टान पांच मीटर व्यास की है और 1,200 वर्षों से एक ही जगह पर टिकी हुई है। करीब 50 टन वजनी यह पत्थर करीब 45 डिग्री के कोण पर झुका हुआ है। हैरानी की बात यह है कि यह बिना किसी सहारे के टिका हुआ है। सन् 1908 में मद्रास के गवर्नर आर्थर ने इस पत्थर को हटाने के लिए सात हाथियों को लगाया था पर सफलता नहीं मिली।
क्रोकोडाइल बैंक : मगरमच्छों के संरक्षण-संवर्धन के लिए बनाया गया यह बैंक महाबलिपुरम से 14 किलोमीटर दूर चेन्नई मार्ग पर स्थित है। अमेरिका के रोमुलस विटेकर ने इसे 1976 में स्थापित किया था। इसके नजदीक ही सांपों का एक फार्म है।
मूर्ति संग्रहालय : राजा स्ट्रीट के पूर्व में स्थित इस संग्रहालय में स्थानीय कलाकारों की बनायी गयी तीन हजार से अधिक मूर्तियां देखी जा सकती हैं। ये मूर्तियां पीतल, रोड़ी, लकड़ी और सीमेन्ट से बनायी गयी हैं।
मुट्टुकाडु : महाबलिपुरम से 21 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह स्थान वाटर स्पोर्ट्स के लिए प्रसिद्ध है। यहां नौकायन, केनोइंग, कायकिंग और विंडसर्फिंग जैसी जलक्रीड़ाओं का आनन्द लिया जा सकता है।
कोवलोंग : महाबलिपुरम से 19 किलोमीटर दूर कोवलोंग एक खूबसूरत समुद्र तटीय गांव है। इस शांत फिशिंग विलेज में एक किले के अवशेष भी हैं। यहां तैराकी, विंडसफिइर्ग आदि की सुविधा उपलब्ध है।
ऐसे पहुंचें महाबलिपुरम (How to reach Mahabalipuram)
वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा चेन्नई इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 53 किलोमीटर दूर है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, बंगलुरु, हैदराबाद, लखनऊ समेत भारत के सभी प्रमुख शहरों से चेन्नई के लिए फ्लाइट्स हैं।
रेल मार्ग : निकटतम रेल हेडचेन्गलपट्टू जंक्शन यहां से करीब 29 किलोमीटर की दूरी पर है। चेन्नई समेत दक्षिण भारत के सभी प्रमुख शहरों से यहां के लिए ट्रेन मिलती हैं। नई दिल्ली से भी यहां के लिए सीधी ट्रेन है।
सड़क मार्ग : महाबलिपुरम तमिलनाडु के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। राज्य परिवहन निगम के साथ ही निजी ऑपरेटर भी यहां के लिए बस संचालित करते हैं। आप चाहें तो टैक्सी भी कर सकते हैं।