भले ही यूरोप और अमेरिका में कॉफी सबसे ज्यादा पी जाती हो लेकिन यह आई है अफ्रीका के आदिवासी इलाकों से। आज भी वहां के लोग बिना किसी बड़े तामझाम के कॉफी को इंजॉय करते हैं।
पंकज गंगवार
मुझे कॉफी बहुत पसंद है, वह भी खालिश, बिना दूध-चीनी की। आज मैं आपको बताऊंगा कॉफी की कहानी। जब भी कॉफी की बात आती है तो हमारे दिमाग में एक ऐसे पेय पदार्थ की तस्वीर उभरती है जिसका सेवन अमीरों द्वारा किया जाता है। बड़े-बड़े कॉफी शॉप का लग्जरी इंटीरियर और वहां मिलने वाली महंगी कॉफी जिसे पीना आम इंसान के बस की बात नहीं होती, इसलिए ही इसे अमीरी से जोड़कर देखा जाता है। कॉफी को जहां एक ओर बौद्धिकता के साथ भी जोड़ा जाता है वहीं दूसरी ओर इसे रोमांस से भी जोड़ा जाता है। बड़े-बड़े विचारशील और बौद्धिक लोग कॉफी शॉप में बैठकर विचार-विमर्श करते हैं। दूसरी तरफ प्रेमी-प्रेमिका भी कॉफी शॉप में जाकर कॉफी की चुस्किया लेते हुए डेट करते हैं।
अगर कॉफी के इतिहास पर जाएंगे तो आपको आश्चर्य होगा यह पेय मूल रूप से अफ्रीका के आदिवासियों का है। भले ही यूरोप और अमेरिका में कॉफी सबसे ज्यादा पी जाती हो लेकिन यह आई है अफ्रीका के आदिवासी इलाकों से। आज भी वहां के लोग बिना किसी बड़े तामझाम के कॉफी को इंजॉय करते हैं।
मेरे बचपन के मित्र राजीव जी एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में इथियोपिया गए थे। जब वह वहां थे तो उनसे फोन पर बात हुई तो वे वहां की कॉफी के बारे में बताने लगे कि यहां कॉफी बहुत अधिक होती है और अपने यहां की चाय की टपरियों की तरह ही यहां भी कॉफी की छोटी-छोटी दुकाने हैं। राजीव जी ने बताया कि इथियोपिया व अन्य अफ्रीकी देशों में ग्राहक के सामने ही कॉफी के बीजों को आग पर भूनकर और लकड़ी के इमाम दस्ते में कूट कर मिट्टी के बरतनों में खूब उबालते हैं। दोस्त की इन बातों को सुनकर मेरा मन मचलने लगा था ऐसी कॉफी का आनंद लेने के लिए। लेकिन, इस कॉफी के एक कप की कीमत मेरे लिए कई लाख रुपये पड़ती। मैंने राजीव जी से कहा कि मेरे लिए इथोपियन कॉफी जरूर लेकर आएं और उन्होंने अपना वादा निभाया। यह बाजार मैं मिलने वाली आम इंस्टेंट कॉफी की तरह नहीं थी। इसमें काफी के भुने हुए सबूत बीज थे जिनको मिक्सी में पीसकर मुझे पाउडर बनाना था।
कॉफी इथियोपिया से पहले यमन पहुंची और वहां से तमाम अरब देशों में पहुंच गई। कॉफी को अरब में सूफी संतों द्वारा खूब पिया जाता था। उनके द्वारा ही यह जनमानस में लोकप्रिय हो गई। अरब के लोगों ने ही कॉफी को यूरोप और बाकी देशों में पहुंचाया।
पुराने समय में कॉफी के निर्यात के समय काफी सावधानी बरती जाती थी। कोई और देश इसके बीजों से पौधे ना उगा लें इसके लिए इसके बीजों को उबाल कर ही बाहर भेजा जाता था। लेकिन, भारत के एक सूफी संत बाबा बदन हज से लौटते समय यमन से इसके बीज अपनी दाढ़ी में छुपा कर ले आए। उन्होंने इसको 15वीं शताब्दी में सबसे पहले मैसूर में उगाया था। तब से यह भारत में खूब उगाई जाने लगी।
कॉफी पीने के अपने फायदे हैं। कॉफी में कैफीन होती है जो हमारे मस्तिष्क को सक्रिय रखती है, हमें ऊर्जा से भर देती हैं और नींद नहीं आने देती। इसलिए छात्र-छात्राएं देर रात तक जागने के लिए खूब कॉफी पीते हैं। किसी का ब्लडप्रेशर अगर लो हो रहा हो तो कॉफी पिला दो, एकदम सही हो जाता है। कॉफी त्वचा यानी स्किन के लिए भी बहुत अच्छी होती है। यही कारण है कि आजकल काफी के कॉस्मेटिक्स भी बनने लगे हैं। कॉफी से फेस वॉश से लेकर शैंपू स्क्रब, क्रीम हर तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट बनते हैं।
प्राकृतिक चिकित्सा में पेट के रोगों के लिए कॉफी का एनिमा काफी लोकप्रिय है। कॉफी का सेवन डायबिटीज, लीवर और हृदय के रोगों, कैंसर आदि होने की संभावना को कम करता है। यह मानसिक रोगों में बहुत अच्छा काम करती है। पार्किंसन, डिमेंशिया, डिप्रेशन आदि में कॉफी का सीमित मात्रा में प्रयोग किया जाए तो अच्छे परिणाम मिलते हैं। लेकिन, इसके लिए आप कॉफी को बिना चीनी और दूध के ही प्रयोग करें।
(लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड (न्यूट्री वर्ल्ड) के चेयरमैन भी हैं)