केदारनाथ मन्दिर (Kedarnath Temple) को बनाने के लिए इस्तेमाल किये गये पत्थरों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए इण्टरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इसके कारण ही यह मंदिर हजारों साल बाद भी अपने उसी स्वरूप में खड़ा है। यह मन्दिर तीनों तरफ से पहाडों से घिरा हुआ है। यहां पांच नदियां बहती हैं।
न्यूज हवेली नेटवर्क
देवाधिदेव महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ (Kedarnath) का स्थान पांचवां माना जाता है। उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में हिमालय की गोद में स्थित हिन्दुओं का यह पवित्र धाम राज्य के चार धामों और पंच केदारों में से भी एक है। पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित यह मन्दिर क्षेत्र की प्रतिकूल जलवायु के कारण अप्रैल से नवम्बर के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। कत्यूरी शैली में बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने करवाया था। यहां स्थित बैल की पीठ के आकार का स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। एक मान्यतानुसार वर्तमान मन्दिर आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया था। वर्ष 2013 में आयी आपदा के बाद उत्तराखण्ड सरकार ने केन्द्र सरकार के सहयोग से इसका जीर्णोद्धार कराया। (Kedarnath Jyotirlinga)
ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर यहां बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए तो उनके धड़ से ऊपर का भाग नेपाल के काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ मंदिर है। शिव की भुजाएं गढ़वाल के तुंगनाथ, मुख रुद्रनाथ, नाभि मद्महेश्वर और जटाएं कल्पेश्वर में प्रकट हुईं। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। एक मान्यता यह भी है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनकी प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां सदा वास करने का वर प्रदान किया।
यहां की पूजाओं के क्रम में प्रात:कालिक पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, देवी पार्वतीकी पूजा, शिव सहस्त्रनाम आदि प्रमुख हैं। यहां के पुजारियों को रावल कहा जाता है। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य इनके पूर्वजों को भगवान केदारनाथ की सेवा के लिए दक्षिण भारत से यहां लाये थे। (Kedarnath Jyotirlinga)
केदारनाथ मंदिर की विशेषता (Specialty of Kedarnath Temple)
केदारनाथ मन्दिर (Kedarnath Temple) को बनाने के लिए इस्तेमाल किये गये पत्थरों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए इण्टरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इसके कारण ही यह मंदिर हजारों साल बाद भी अपने उसी स्वरूप में खड़ा है। यह मन्दिर तीनों तरफ से पहाडों से घिरा हुआ है। यहां पांच नदियां बहती हैं जिनके नाम हैं- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा (चिरगंगा), सरस्वती और स्वर्णगौरी (स्वरंदरी)।
ऐसे पहुंचें केदारनाथ (How to reach Kedarnath)
दिल्ली से केदारनाथ (Kedarnath) की दूरी करीब 490 किलोमीटर है। आप विमान, ट्रेन या सड़क मार्ग किसी से भी आयें, केदारनाथ जाने के लिए देहरादून, हरिद्वार या ऋषिकेश पहुंचना होगा। हरिद्वार से केदारनाथ की दूरी 247 किलोमीटर है। यहां से गौरीकुण्ड (233 किमी) तक की यात्रा मोटरमार्ग से की जाती है। गौरीकुण्ड से केदारनाथ तक 14 किलोमीटर की दूरी पैदल मार्ग से तय करनी करनी होती है। पैदल चलने में असमर्थ व्यक्तियों के लिए गौरीकुण्ड से घोड़ा, पालकी, पिट्ठू आदि साधन मिलते हैं। केदारनाथ के निकटतम रेलवे स्टेशन हरिद्वार, देहरादून और ऋषिकेश हैं। देहरादून का जौली ग्रांट एयरपोर्ट यहां के सबसे नजदीकी हवाईअड्डा है।
हेली सेवा :उत्तराखण्ड सरकार ने केदारनाथ के लिए हेली सेवा भी शुरू की है। श्रद्धालु गढ़वाल मण्डल विकास निगन (जीएमवीएन) की बेवसाइट http://heliservices.uk.gov.inपर विजिट कर सीट बुक करा सकते हैं।