Junagadh : करीब 160 वर्ग किलोमीटर में फैला जूनागढ़ (Junagadh) शहर गिरनार पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है। गुजराती भाषा में जूनागढ़ का अर्थ होता है “प्राचीन किला”। जूनागढ़ को “सोरठ” के नाम से भी जाना जाता है जो पहले जूनागढ़ रियासत का नाम था। इस पर कई वंशों ने शासन किया। साथ ही यहां समय-समय पर हिन्दू, बौद्ध, जैन और मुस्लिम धर्मों का प्रभाव रहा है।
न्यूज हवेली नेटवर्क
गुजरात में सापुतारा, सूरत, वडोदरा और राजकोट के बाद हमारा अगला पड़ाव था जूनागढ़ (Junagadh)। राजकोट से करीब तीन घण्टे का सफर कर हम यहां पहुंचे तो शाम के चार बजे थे। होटल में चेक-इन करने के बाद कुछ देर आराम कर बाहर निकले तो सूर्यदेव पश्चिम की ओर ढलान पर थे। गिरनार पहाड़ियों का एक अलग ही तरह का सौन्दर्य हमें लुभा रहा था। हमने जूनागढ़ (Junagadh) के उन बुजुर्गों को मन ही मन नमन किया जो यहां के तत्कालीन शासक मोहम्मद महावत खानजी तृतीय के फैसले के खिलाफ उठ खड़े हुए और जनमत संग्रह में भारत में विलय का समर्थन किया। फरवरी 1948 में हुए इस जनमत संग्रह ने जूनागढ़ के भारत में विलय को वैधानिक रूप से और पुख्ता कर दिया था।
करीब 160 वर्ग किलोमीटर में फैला जूनागढ़ (Junagadh) शहर गिरनार पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है। गुजराती भाषा में जूनागढ़ का अर्थ होता है “प्राचीन किला”। जूनागढ़ को “सोरठ” के नाम से भी जाना जाता है जो पहले जूनागढ़ रियासत का नाम था। इस पर कई वंशों ने शासन किया। साथ ही यहां समय-समय पर हिन्दू, बौद्ध, जैन और मुस्लिम धर्मों का प्रभाव रहा है। विभिन्न राजनीतिक एवं धार्मिक शाक्तियों के समन्वय के कारण यह वैविध्यपूर्ण संस्कृति का धनी रहा है।
जूनागढ़ (Junagadh) दो भागों में विभक्त है। मुख्य शहर के चारों ओर दीवारों से किलेबन्दी की गयी है। दूसरा हिस्सा पश्चिम में है जिसे उपरकोट कहा जाता है। उपरकोट एक प्राचीन किला है जो मुख्य शहर से काफी ऊपर स्थित है। यह किला मौर्य और गुप्त शासकों के लिए बहुत बड़ा शक्ति केन्द्र रहा था। अपनी विशिष्ट संरचना, भौगोलिक स्थिति और दुर्गम राह के कारण इसने करीब एक हजार वर्षों में करीब16 आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया। इसका प्रवेश द्वार हिन्दू तोरण स्थापत्य कला का उत्कृट उदाहरण है।
गिरनार के रास्ते में एक गहरे रंग की बेसाल्ट चट्टान है जिस पर तीन राजाओँ का प्रतिनिधित्व करने वाला शिलालेख अंकित है। ये हैं- मौर्य शासक अशोक, रुद्रदामन और स्कन्दगुप्त। यहां बौद्ध गुफाएं हैं तो हिन्दू और जैन मन्दिर भी हैं। यहां जामा मस्जिद समेत कई मस्जिदें और मकबरे भी हैं।
पन्द्रहवीं शताब्दी तक राजपूतों के गढ़ रहे जूनागढ़ (Junagadh) पर 1472 में गुजरात के शासक महमूद बेगड़ा (अबुल फत नासिर-उद-दीन महमूद शाह) ने क़ब्ज़ा कर लिया। उसने इसे मुस्तफाबाद नाम दिया और यहां एक मस्जिद बनवाई जो अब खण्डहर हो चुकी है। उसे बेगड़ा की उपाधि गिरनार और चम्पानेर को जीतने के कारण मिली थी।
जूनागढ़ (Junagadh) कई हिन्दू और मुस्लिम शासकों की राजधानी रहा है। इसके चलते य हकई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का केन्द्र है।यह गिरनार पहाड़ियों की तलहटी पर बसा है। विश्व प्रसिद्ध गिर नेशनल पार्क इसके बेहद करीब है। इस कारण यह पर्यटन के लिहाज से सबसे अच्छी स्थानों में से एक है। गुजरात घूमने जाने वालों को जूनागढ़ कि यात्रा अवश्य़ करनी चाहिए।
जूनागढ़ के प्रमुख दर्शनीय स्थल (Major tourist places of Junagadh)
अशोक के शिलालेख : गिरनार जाने के रास्ते पर सम्राट अशोक द्वारा ग्रेनाइट पत्थरों पर उत्कीर्ण कराए गये 14 शिलालेख हैं। इन पर राजकीय आदेश खुदे हुए हैं। इसके अतिरिक्त इनमें नैतिक नियम भी लिखे हुए हैं। इन शिलालेखों पर ही शक राजा रुद्रदाम और स्कन्दगुप्त के खुदवाये अभिलेखों को देखा जा सकता है। रुद्रदाम ने 150 ईस्वी में जबकि स्कन्दगुप्त ने 450 ईस्वी में ये अभिलेख खुदवाये थे। रुद्रदाम के अभिलेखों को ही संस्कृत भाषा का प्रथम शिलालेख माना जाता है।
उपरकोट किला :
यह भारत के सबसे पुराने किलों में से एक माना जाता है। इसका निर्माण मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त द्वारा 319 ईसा पूर्व में करवाया गया था, हालांकि बाद में कई बार इसका पुनर्निर्माण और विस्तार किया गया। स्थानीय मान्यता है कि इस किले का निर्माण यादवों ने मथुरा से द्वारिका आने पर करवाया था।इसकी दीवारें किसी-किसी स्थान पर 20 मीटर तक ऊंची हैं। किले के अन्दर चारों ओर दीवार से लगी हुई करीब तीनसौ फीट गहरी खाई है। दीवारों पर की गई नक्काशी अभी भी सुरक्षित अवस्था में है। इसकी पश्चिमी दीवार पर मिस्र में निर्मितदो विशाल तोपे रखी हुई हैं जिनका नाम नीलम और मानेक (काण्डल) है। जूनागढ़ के पूर्व में गिरनार पहाड़ियों के नीचे स्थित इस विशाल किले के चारों ओर 200 ईस्वी पूर्व से 200 ईस्वी तक की बौद्ध गुफाएं हैं।
अड़ी-कड़ी वाव और नवघन कुवो :
अड़ी-कड़ी वाव और नवघन कुवो (कुआं) का निर्माण चूडासमा राजपूतों ने करवाया था। इन कुओं की संरचना आम कुओं से बिल्कुल अलग तरह की है। अन्य सीढ़ी वाले कुओं के विपरीत ये एक ही चट्टान से बने हैं और इनके निर्माण में अन्य बाहरी तत्वों का उपयोग नहीं किया गया है। अड़ी-कड़ी वाव नौ परतों वाला एक गहरा कुआं है जिस तक पहुंचने के लिए 120 पायदान नीचे उतरना होता है जबकि नवघन कुआं 52 मीटर की गहराई में है। इन कुओं तक पहुंचने के लिए गोलाकार सीढियां बनी हुई हैं। ये दोनों कुएं युद्ध के समय दो साल तक पानी की कमी को पूरा कर सकते थे। नवघन कुएं का निर्माण महाराजा नवघन रा खंगार एवं रानी उदयमति ने सोलंकी शासक भीम प्रथम की स्मृति में 1063 में करवाया था। ये दोनों कुएं स्थापत्य कला के जीवन्त उदाहरण है।
जामा मस्जिद :
जामा मस्जिद मूलत: महाराजा रा खंगार की महारानी रानकदेवी का रानीवास थाजिसमें वह अपनी दासियों सहित रहती थीं । गुजरात के शासक राजा मोहम्मद बेगड़ा ने जूनागढ़ फतह (1470 ईस्वी) की स्मृति में इस स्थान पर इस विशाल मस्जिद का निर्माण कराया एवं इसका नाम जामा मस्जिद रखा। इसमें 140 खम्भे हैं।
बौद्ध गुफाएं :
ये प्राकृतिक गुफाएं न होकर शिलाओं को काटकर बनाए गये कक्षों के तीन समूह हैं। इन कक्षों का निर्माण सम्राट अशोक के काल से लेकर पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी तक जारी रहा।इनमें सुसज्जित खम्भे, अलंकृत प्रवेशद्वार,जल कुण्ड, चैत्य हॉल, चैत्य खिडकियां, प्रार्थना कक्ष आदि देखने योग्य हैं। यहां बौद्ध भिक्षु रहते थे।
सक्करबाग प्राणी उद्यान (Sakkarbagh Zoological Park) :
यह गुजरात का सबसे बड़ा, भारत का दूसरा सबसे पुराना और चौथा सबसे बड़ा प्राणी उद्यान है। यह गिर के शेरों के अलावा तेंदुओं के लिए भी प्रसिद्ध है। गिर के शेरों को लुप्तप्राय होने से बचाने के लिए जूनागढ़ के नवाब मोहब्बत खानजी बाबी द्वितीयने 1863 ईस्वी में इस प्राणीउद्यान का निर्माण करवाया था। करीब 500 एकड़ में फैले इस उद्यान में भालू, गीदड़, जंगली गधे, हिरन, काला हिरन,सांप और पक्षियों की कई प्रजातियां भी देखने को मिलती हैं।
जूनागढ संग्रहालय : सक्करबाग प्राणी उद्यान परिसर में स्थित इस संग्रहालय में हस्तलिपि, प्राचीन सिक्कों,चित्रकला, पुरातत्व और साहित्य के अलावा प्राकृतिक इतिहास का भी एक विभाग है।
गिर नेशनल पार्क (Gir National Park) :
यह अभयारण्यअपनी जैव विविधता, खासतौर पर एशियाई शेरों के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्तनधारियों की 30 और सरीसृप वर्ग की 20 प्रजातियां मिलती हैं। इसके अलावा यहां कीड़े-मकोडों और पक्षियों की भी कई प्रजातियां पाई जाती हैं। दक्षिणी अफ्रीका के अलावा विश्व में यही ऐसा एकमात्र स्थान है जहां शेरों को अपने प्राकृतिक आवास में रहते हुए देखा जा सकता है। भारत का सबसे ऊंचे कद का हिरण, सांभर, चीतल, चिंकारा, बारहसिंगा, नीलगाय, भालू, सुर्ख नेवला, सुनहरा सियारऔर बड़ी पूंछ वाले लंगूरयहां देखे जा सकते हैं। यहां मगरमच्छों का एक फार्म भी बनाया गया है। गिर एक अच्छा पक्षी अभयारण्य भी है। यहां फलगी वाला बाज, कठफोड़वा, एरीओल, जंगली मैना, पैराडाइज, अधोलिया, वालडेरा, रतनघुन पीपलिया आदि पक्षी देख जा सकते हैं।सूखे पताड़ वाले वृक्षों, कांटेदार झाड़ियों के अलावा हरे-भरे पेड़ों से समृद्ध गिर के जंगल के मुख्य वृक्षों में सागौन, शीशम, बबूल, बेर, जामुन, बेल आदि शामिल हैं।
गिर के जंगल को सन् 1969 में वन्य जीव अभयारण्य घोषित किया गया था। इसके छह वर्ष बाद विस्तार करके इसे राष्ट्रीय उद्यान बना दिया गया। यह करीब 1,424 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।दर्शकों के लिए यह मध्य अक्टूबर से लेकर मध्य जून तक खोला जाता है।
अम्बे माता का मन्दिर : यह मन्दिर एक पहाड़ की चोटी पर स्थित है। नवविवाहित जोड़े विवाह के बाद अपने सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना के साथ यहां माता का आशीर्वाद लेने जाते हैं।
स्वामीनारायण मन्दिर :
इस मन्दिर का निर्माण 2006में पूरा हुआ था, तभी से यह जूनागढ़ के प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिरों में से एक हैं।
मल्लिनाथ मन्दिर :
यह जूनागढ़ का सबसे बड़ा मन्दिर है। नौवें जैन तीर्थंकर मल्लिनाथ की याद में 1177 ईस्वी पूर्व में दो भाइयों ने इस त्रि-मन्दिर का निर्माण करवाया था। कार्तिक पूर्णिमा पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
भवनाथ महादेव मन्दिर :
जूनागढ़ शहर के सबसे पवित्र स्थानों में से एक भवनाथ महादेव मन्दिरगिरनार की पहाड़ियों के नीचे स्थित है। मिथक के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव और देवी पार्वती गिरनार पहाड़ियों को पार कर रहे थे,तब उनका दिव्य वस्त्र वर्तमान मृगी कुण्डपर गिर गया। तभी से यह स्थान शिव भक्तों के लिए एक शुभ स्थल माना जाता है।
दातार हिल :
यह सुन्दर पहाड़ी एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल होने के साथ ही हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्मों के श्रद्धालुओं लिए एक बहुत ही पवित्र स्थान माना जाता है। दातार हिल की सीढ़ियां विलिंग्डन डेम से शुरू होकर जमियल शाह दातार तक जाती हैं।
मोहब्बत मकबरा :
जूनागढ़ के चिता खाना में स्थितइस मकबरे में बहारुद्दिन हुसैनभाई की कब्र हैजो कि एक समय जूनागढ़ के नवाब हुआ करते थे। इसका निर्माण 1851 से1882 के बीच हुआ था। इसकी संरचना इण्डो इस्लामिक, यूरोपीय और नियो-गोथिक शैलियों का मिश्रण है। मीनारें और गुम्बद इस्लामिक शैली में बने हुए हैं जबकि स्तम्भ गोथिक शैली में बनाए गये हैं।
दरबार हॉल संग्रहालय :
इस हॉल में ही जूनागढ़ के नवाब अपना दरबार लगाते थे। यहां पर चित्रों, पालकियों और हथियानों के बहुत से विभागहैं।इनमें नवाब चित्रांकन कक्ष, हथियार कक्ष, बर्तनों का कमरा, लकड़ी के सामान का कक्ष, हावड़ा, रजत कक्ष, पालकी कक्ष आदि शामिल हैं।
नरसिंह मेहता का चबूतरा : यह एक विशाल लेकिन सादगीपूर्ण तरीके से बना चबूतरा है। इसी जगह पर 15वीं शताब्दी में महान सन्त कवि नरसिंह मेहता के प्रवचनों और सभाओं का आयोजन होता था। यहां पर गोपनाथ का एक छोटा मन्दिर तथाश्री दामोदर राय और नरसिंह मेहता की प्रतिमाएं भी हैं।
दामोदर कुण्ड :
दामोदर कुण्ड और राधा दामोदर मन्दिर जूनागढ़ से गिरनार तलहटी के रास्ते में भवनाथ मन्दिर से लगभग दो किलोमीटर दूर सोनारख नदी के तट पर स्थित हैं। माना जाता है इस मन्दिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के पोते व्रजनाभ ने करवाया था।बाद मेंसमय-समय पर इसका पुनर्निमण किया गय़ा।दामोदर कुण्ड करीब 50 फीट चौड़ा, 257 फीट लम्बा और पांच फीट तक गहरा है। इसके चारों ओर घाट बने हुए हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इसी घाट पर भगवान श्रीकृष्ण ने महान सन्त कवि नरसिंह मेहता को फूलों का हार पहनाया था।
मोती बाग : वांथली रोड पर स्थित इस बाग में कई तरह के खूबसूरत पेड़-पौधे और पुष्प देखे जा सकते हैं। यहां एक खूबसूरत तालाब भी है।
गिरनार परिक्रमा :
ऐसे पहुंचें जूनागढ़ (How to reach Junagadh)
जूनागढ़ घूमने का सबसे अच्छा मौसम सर्दियों का होता है। अक्टूबर से जनवरी के बीच यहां का मौसम अत्यन्त सुहावना होता है।
वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा केशोद एयरपोर्ट जूनागढ़ शहर से करीब 39 किलोमीटर दूर है। पोरबन्दर एयरपोर्ट यहां के करीब 104 किमी जबकि राजकोट एयरपोर्ट लगभग 105 किमी पड़ता है।
रेल मार्ग : जूनागढ़ जंक्शन अहमदाबाद और राजकोट रेल लाइन पर पड़ता है। अहमदाबाद, राजकोट, वडोदरा, द्वारका, भुवनेश्वर, जगदलपुर, दिल्ली, जयपुर आदि से यहां के लिए ट्रेन उपलब्ध हैं।
सड़क मार्ग : जूनागढ़ राजकोट से करीब 103, पोरबन्दर से 105 और अहमदाबाद से 318 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गुजरात के सभी प्रमुख शहरों से यहां के लिए प्राइवेट और राज्य परिवहन निगम की बसें और टैक्सी मिलती हैं।