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हिमाचल प्रदेश के काफनू में हम (मैं और बंगलुरु की शालिनी) वांगपा अमित नेगी के होम स्टे (Home Stay) में ठहरे थे। हम दोनों रात को करीब साढ़े आठ बजे वहां पहुंचे। उस समय अमित रसोईघर में काम कर रहा था।

संजीव जिन्दल

मय के साथ होम स्टे (Home Stay) का प्रचलन बढ़ रहा है और लोग इनमें रुकना भी चाहते हैं। होम स्टे (Home Stay) में ठहरने की चाहत रखने वालों से विनती है कि मेरा यह छोटा-सा आलेख अवश्य पढ़ें। होम स्टे का मतलब है कि आप होटल या रिजॉर्ट में नहीं बल्कि किसी के घर में रुकने के लिए जा रहे हैं। इसलिए होम स्टे (Home Stay) में किसी चीज का आर्डर ना करें बल्कि जो भी चाहिए, किचन के पास जाकर मांग लीजिए और अपने जूठे बर्तन आदि कभी भी उन लोगों को मत उठाने दीजिए। कमरा छोड़ कर जाते समय उसकी पूरी सफाई भी करके जाएं। लेकिन, सफाई का मतलब यह नहीं कि सारा समान बैग में भरकर ले जाएं। जितना सम्मान आप दूसरों को देंगे, उससे कई गुना पाएंगे। मुझे स्थानीय संस्कृति और परम्पराओं को देखने और जानने-समझने का शौक है। मैं उस समय से होम स्टे में ठहर रहा हूं जब ये पूरी तरह से प्रचलन में आये भी नहीं थे।

हिमाचल प्रदेश के काफनू में हम (मैं और बंगलुरु की शालिनी) वांगपा अमित नेगी के होम स्टे (Home Stay) में ठहरे थे। हम दोनों रात को करीब साढ़े आठ बजे वहां पहुंचे। उस समय अमित रसोईघर में काम कर रहा था। उसने फटाफट हमारे लिए चाय बनाई और मुझे सर कह कर सम्बोधित किया। मैंने कहा,“सर नहीं, अंकल, बुड्ढन और दद्दू में से कुछ भी कह सकते हो, सर शब्द दूरियां पैदा करता है।”उस समय तक मुझे नहीं मालूम था कि यह अमित का अपना घर है या वह यहां काम करता है। दरअसल, मैं जब भी किसी होम स्टे (Home Stay) में रहता हूं तो किसी को भी छोटा या बड़ा नहीं मानता। फिर बातों-बातों में पता चला यह महलनुमा घर अमित का ही है।

अमित का परिवार किन्नौर के समृद्ध परिवारों में शामिल है पर उनका व्यवहार और रहन-सहन बिल्कुल डाउन टू अर्थ है। अमित और उनके छोटे भाई मन्टू में जुनून है इस सड़क के आखिरी गांव काफनू को दुनिया के नक्शे पर लाने का, इसलिए अपनी अमीरी भूलकर घर में आए मेहमानों की खूब सेवा करते हैं। अमित हमारे व्यवहार से इतना खुश हुए कि अगली सुबह अपनी गाड़ी में बैठा कर अपने सेब के बागान दिखाने ले गए और हमने ताजे-ताजे रसीले सेब खाए।

ट्रैकिंग पर निकलने से पहले।
ट्रैकिंग पर निकलने से पहले।

अमित के साथ रहकर तीन बहुत ही भावुक कर देने वाले पल हमारे सामने आए। सुबह जब मैं और शालिनी म्यूलिन वैली के लिए ट्रैकिंग पर निकले तो अमित ने हमें खाना पैक करके दिया। मैंने कहा,“इसकी क्या जरूरत है? हम लंच तक वहां पहुंच ही जाएंगे और वहीं जाकर बनाएंगे।” अमित बोला,“दद्दू जंगल में जा रहे हो, कब किस चीज की जरूरत पड़ जाए कुछ नहीं मालूम।” जरा-सी उम्र और कद में अमिताभ बच्चन! अमित का व्यवहार हमारे प्रति एक मां जैसा था।

दूसरा भावुक पल तब आया जब अमित की मताजी से भेंट हुई। अमित की बहन की शादी होने वाली थी। अमित और उसकी माताजी ने हम दोनों को इतने प्यार से शादी में आने का निमन्त्रण दिया जैसे हम उनके कितने ही सगे वाले हों और कितने ही दिनों से जानते हों। अन्दर से हिला देने वाला पल था वह।

तीसरा भावुक पल वह था जब हम लोग चण्डीगढ़ के लिए रवाना हुए। अमित की माताजी बार-बार कह रही थीं कि शालिनी का ध्यान रखना और जल्दी मत करना, आराम से जाना। माताजी ने तो शालिनी को अपनी बिटिया ही मान लिया था।

दोस्तों, शहर के बड़े-बड़े लोग और राजनीति वाले ही नफरत फैलाते हैं, गांवों में अभी भी प्यार बरकरार है। इसलिए जब भी होम स्टे में रुकने को जाओ तो अपनी ऐंठ घर पर ही रख कर जाओ और अगर आपमें जरा-सी भी ऐंठ बची है तो होटल में रुको।

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