Thu. Feb 6th, 2025
india becomes the fourth country to dock

MONAL

News Havel, बंगलुरु। (Docking in Space) भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) ने अंतरिक्ष में एक और इतिहास रच दिया है। भारत अंतरिक्ष में दो स्पेसक्राफ्ट को सफलतापूर्वक डॉक करने वाला चौथा देश बन गया है। इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन ही ऐसा करने में सफल रहे हैं। इसरो ने गुरुवार को बताया कि आज सुबह डॉकिंग एक्सपेरिमेंट को पूरा किया गया। इसरो की 2025 में यह पहली बड़ी कामयाबी है।

इस मिशन की कामयाबी पर चंद्रयान-4, गगनयान और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन जैसे मिशन्स निर्भर थे। चंद्रयान-4 मिशन में चंद्रमा की मिट्टी के सैंपल पृथ्वी पर लाये जाएंगे। गगनयान मिशन में मानव को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।

इसरो ने 30 दिसंबर 2024 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से रात 10 बजे स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट मिशन (Space Docking Experiment Mission) लॉन्च किया था। इसके तहत PSLV-C60 रॉकेट से दो स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी से 470 किलोमीटर ऊपर डिप्लॉय किए गए।

7 जनवरी 2025 को इस मिशन में दोनों स्पेसक्राफ्ट्स को आपस में जोड़ा जाना था लेकिन इसे टाल दिया गया। फिर 9 जनवरी को भी तकनीकी दिक्कतों के कारण डॉकिंग टल गई। 12 जनवरी को स्पेसक्राफ्ट्स को 3 मीटर तक पास लाने के बाद वापस इन्हें सुरक्षित दूरी पर ले जाया गया था।

सफल डॉकिंग के बाद इसरो का बयान

“स्पेसक्राफ्ट की डॉकिंग सफलतापूर्वक पूरी हुई! एक ऐतिहासिक क्षण। चलिए डॉकिंग प्रोसेस जानते हैं: स्पेसक्राफ्ट्स के बीच की दूरी को 15 मीटर से 3 मीटर तक लाया गया। डॉकिंग की शुरुआत सटीकता के साथ की गई जिससे स्पेसक्राफ्ट को कैप्चर करने में कामयाबी मिली। डॉकिंग सफलतापूर्वक पूरी हुई। भारत सफल स्पेस डॉकिंग हासिल करने वाला चौथा देश बन गया। पूरी टीम को बधाई! भारत को बधाई! डॉकिंग के बा, सिंगल ऑब्जेक्ट के रूप में दो स्पेसक्राफ्ट का कंट्रोल सक्सेसफुल हुआ। आने वाले दिनों में अनडॉकिंग और पावर ट्रांसफर चेक किए जाएंगे।”

इस तरह नजदीक आए दोनों स्पेसक्राफ्ट

30 दिसंबर 2024 को PSLV-C60 रॉकेट से 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर दो छोटे स्पेसक्राफ्ट टारगेट और चेजर को अलग-अलग कक्षाओं में लॉन्च किया गया। डिप्लॉयमेंट के बाद दोनों स्पेसक्राफ्ट्स की रफ्तार करीब 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे हो गई। यह रफ्तार बुलेट की स्पीड से 10 गुना ज्यादा थी। दोनों स्पेसक्राफ्ट्स के बीच सीधा कम्युनिकेशन लिंक नहीं किया गया। इन्हें जमीन से गाइड किया गया और एक-दूसरे के करीब लाया गया।

5 किलोमीटर से 0.25 किलोमीटर के बीच की दूरी तय करते समय लेजर रेंज फाइंडर का उपयोग किया गया। 300 मीटर से 1 मीटर की रेंज के लिए डॉकिंग कैमरे का इस्तेमाल हुआ। 1 मीटर से 0 मीटर तक की दूरी पर विजुअल कैमरा उपयोग में आया। सफल डॉकिंग के बाद अब आने वाले दिनों में दोनों स्पेसक्राफ्ट के बीच इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर दिखाया जाएगा। फिर स्पेसक्राफ्ट्स की अनडॉकिंग होगी और ये दोनों अपने-अपने पेलोड के ऑपरेशन को शुरू करेंगे। करीब दो साल तक इनसे बहुमूल्य डेटा मिलता रहेगा।

इसलिए आवश्यक है डॉकिंग मिशन

  • इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल चंद्रयान-4 मिशन में होगा जिसमें चंद्रमा से सैंपल पृथ्वी पर लाये जाएंगे।
  • स्पेस स्टेशन बनाने और उसके बाद वहां जाने-आने के लिए भी डॉकिंग टेक्नोलॉजी की जरूरत पड़ेगी।
  • गगनयान मिशन के लिए भी यह टेक्नोलॉजी जरूरी है जिसमें मानव को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।
  • सैटेलाइट सर्विसिंग, इंटरप्लेनेटरी मिशन और इंसानों को चंद्रमा पर भेजने के लिए यह टेक्नोलॉजी आवश्यक है।

 भारत ने अपने डॉकिंग मैकेनिज्म पर पेटेंट लिया

इस डॉकिंग मैकेनिज्म को “भारतीय डॉकिंग सिस्टम” (Indian Docking System) नाम दिया गया है। इसरो ने इस पर पेटेंट भी ले लिया है। भारत को अपना खुद का डॉकिंग मैकेनिज्म डेवलप करना पड़ा क्योंकि कोई भी स्पेस एजेंसी इस बेहद कॉम्प्लेक्स प्रोसेस की बारीकियों को शेयर नहीं करती है।

 

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