अथर्ववेद में भांग के पौधे को पांच सबसे पवित्र पौधों में से एक बताया गया है। कुछ लोगों का यहां तक मानना है कि वेदों में देवताओं के जिस प्रिय पेय सोमरस का जिक्र है, वह इस पौधे से ही तैयार किया जाता था।
पंकज गंगवार
झाड़ियों के पिटारे से आज ऐसे पौधे की बात जिसको हमने अपने सबसे प्रिय पौधों में रखा, यहां तक कि हम उसको अपने भगवान को भी अर्पित करते रहे हैं लेकिन विदेशी संस्कृति के दबाव में आज उसे खलनायक मान लिया है। पश्चिम की चकाचौंध को देखकर जैसे हम अपनी संस्कृति को हाशिये पर करते जा रहे हैं, ठीक उसी तरह यह पौधा भी झाड़ियों के बीच उपेक्षित-सा नजर आता है। मैं भांग (hemp) की बात कर रहा हूं जिसकी कलियों और पत्तियों को सुखा कर गांजा ( मैरुआना, मर्जुआना, वीड, पॉट) तैयार किया जाता है। भांग के पौधे में पाए जाने वाले चिपचिपे पदार्थ को राल कहते हैं जिससे चरस (hashish) तैयार की जाती है। भारत मे भांग की मुख्यत: दो प्रजातियां पाई जाती हैं– कैनबिस इंडिका (cannabis indica) और कैनबिस सटाइवा (cannabis sativa)।
अथर्ववेद में इस पौधे को पांच सबसे पवित्र पौधों में से एक बताया गया है। कुछ लोगों का यहां तक मानना है कि वेदों में देवताओं के जिस प्रिय पेय सोमरस का जिक्र है, वह इस पौधे से ही तैयार किया जाता था।
खैर, जो भी हो भांग का पौधा हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। मेरे पापा ने मुझे बताया कि 50 साल पहले इससे बनी ठंडाई का गर्मियों के दिनों में आम भारतीयों के घरों में प्रयोग किया जाना सामान्य बात थी हालांकि ठंडाई अब हमारे धार्मिक उत्सवों तक ही सीमित रह गई है। दूसरा किस्सा मेरी मां ने सुनाया। उनके मायके में होली पर इसकी कतलियां बनती थीं। मेरे मामा एक आयुर्वेदाचार्य थे। वह और उनके दोस्त इन कतलियों को चाव से खाते थे। एक बार मेरी मम्मी की एक भाभी के पैर में सेप्टिक हो गया जिस कारण उन्हें बहुत तकलीफ थी। डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए कहा था लेकिन ऑपरेशन के लिए जाने में थोड़ी देर थी। मम्मी को लगा कि इनकी तकलीफ ज्यादा है तो क्यों न इनको भांग की बनी कतलियां खिला दी जाएं। हो सकता है इनको खाकर तकलीफ कुछ कम हो जाए। मेरी मां का मानना था कि कतलियों को खाकर उनकी भाभी को नशा हो जाएगा और वह थोड़ी देर के लिए अपने दर्द के बारे में भूल जाएंगी। मम्मी ने यह बताए बिना कि ये भांग की कतलियां हैं, मामी को खिला दीं। सिर्फ यह कहा कि यह दवा है, आपको आराम मिलेगा।
अगले दिन सुबह मेरी मां जब अपनी भाभी का हालचाल लेने गईं तो उन्होंने पूछा कल आपने मुझे क्या खिलाया था। उसे खाकर तो मुझे बहुत आराम है और मेरी तकलीफ करीब-करीब आधी खत्म हो गई है। मुझे और लाकर दो। इस पर मम्मी ने उनको वही कतलियां बनाकर दीं जिन्हें दो-तीन दिन खाने के बाद वह पूर्णता ठीक हो गईं और ऑपरेशन से बच गईं।
एक और घटना के बारे में मैंने यूट्यूब पर देखा था। एक बहुत ही विद्वान महिला हैं। उनको गले में कैंसर जैसा कुछ था। डॉक्टरों ने कहा कि ऑपरेशन करना होगा और उसके बाद भी जरूरी नहीं कि आपकी आवाज बच पाए। इस पर उनके एक मित्र ने उन्हें भांग की कतलियां खाने को यह कह कर मना लिया कि आप ऑपरेशन कराने से पहले इन्हें खाकर देखो, आप सही हो जाओगी। उन्होंने कोई विकल्प न देखकर इन कतलियों को खाया और पूर्णत: स्वस्थ हो गईं। आज वह भांग के पौधे के प्रचार-प्रसार में जुटी हुई हैं। उनके वीडियो आप यूट्यूब पर भी देख सकते हैं।
सही बात तो यह है कि सरकारें चाहे कितना भी प्रतिबंध लगाएं, कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन आम लगों के दिलो-दिमाग से भांग शब्द को निकालना इतना आसान भी नहीं है। बॉलीवुड का जो भी ड्रग कनेक्शन है, उसके मूल में यही पौधा और इससे बने उत्पाद ही हैं।
आप कभी गांजे का नशा किए हुए व्यक्ति से बात करें तो वह आपको काल्पनिक कहानियां सुनाएगा। मेरे गांव का एक लड़का जो इसका नशा करता है, जिस दिन ज्यादा कर लेता है उस दिन अपने आप को कल्कि अवतार घोषित कर देता है। दरअसल, इसके नशे से कल्पनाशीलता बढ़ जाती है। इसी कारण फिल्मी दुनिया के लोग इसका प्रयोग ज्यादा करते हैं क्योंकि उनका काम ही कल्पना कर उसे पर्दे पर उतारना है। आपने कई साधु-महात्माओं को इसका प्रयोग करते हुए देखा होगा। यह उनकी साधना का हिस्सा रहा है। यह मस्तिष्क को आनंद से भर देता है। तंत्र साधना में इसका प्रयोग इसलिए जाता है कि साधक उस आनंद को जो ब्रह्म के साक्षात्कार से प्राप्त होता है, क्रत्रिम रूप से महसूस कर सके और फिर उसे छोड़ कर असल ब्रह्मानन्द की अनुभूति कर सके।
कई देशों में भांग की खेती की जा रही है। भारत में उत्तराखंड की सरकार ने भी इसकी खेती की अनुमति दी है। विश्व के 18 से ज्यादा देश चिकित्सीय प्रयोग के लिए गांजे को कानूनी वैधता प्रदान कर चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार कुछ अध्ययन बताते हैं कि यह कैंसर, एड्स, अस्थमा और ग्लूकोमा जैसी बीमारियों के इलाज में गांजा मददगार है। लेकिन, उसका यह भी मानना है कि गांजे के चिकित्सीय इस्तेमाल को स्थापित करने के लिए और अध्ययन की जरूरत है।
चिकित्सा में गांजे के शुरुआती प्रयोग की जानकारी अथर्ववेद में मिलती है। सुश्रुत संहिता में भी गांजे के चिकित्सीय प्रयोग की जानकारी है। सुस्ती, नजला और डायरिया में इसके इस्तेमाल का उल्लेख मिलता है। भांग के बीजों की चटनी पहाड़ी इलाकों में बहुत लोकप्रिय है। इन बीजों में बिल्कुल भी नशा नहीं होता है लेकिन उच्च कोटि का प्रोटीन होता है। अगर किसी को प्रोटीन की कमी है तो भांग के बीजों का सेवन सप्लीमेंट के रूप में कर सकता है।
भांग देश की अर्थव्यवस्था को बहुत फायदा पहुंचा सकता है क्योंकि यह किसी भी तरह की भूमि में आसानी से उग जाता है। इसके पौधों के रेशे से कपड़ा बनता है जबकि पत्तियों, फूलों और राल से विभिन्न प्रकार की दवाइयां बनती हैं।
अगर आपकी इच्छाशक्ति कमजोर है तो इसके प्रयोग से बचें क्योंकि इसकी लत भी लग सकती है। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका नशा शराब और तंबाकू के मुकाबले में बहुत कम नुकसानदायक है।
((लेखक पोषण विज्ञान के गहन अध्येता होने के साथ ही न्यूट्रीकेयर बायो साइंस प्राइवेट लिमिटेड (न्यूट्री वर्ल्ड) के चेयरमैन भी हैं))