अपने रमणीय समुद्र तटों और मन्दिरों के लिए जाना जाने वाला गोकर्ण कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले का एक छोटा-सा शान्त शहर है। यहां के शानदार समुद्र तट बरबस ही गोवा की याद दिलाते हैं तो भव्य मन्दिर किसी प्राचीन धर्म नगरी की यात्रा का आनन्द देते हैं।
दीपिका टी उपाध्याय
एक दिन का आकस्मिक अवकाश लेकर तीन लगातार छुट्टियों का संयोग बना तो गोकर्ण (Gokarna) घूमने का कार्यक्रम बना लिया। गोकर्ण बंगलुरु से करीब पांचसौ किलोमीटर दूर है, ऐसे में ट्रेन से जाने के बजाय विमान यात्रा करना ही उचित लगा और हमने गोवा के डैबोलिम इण्टरनेशनल एयरपोर्ट की उड़ान भरी। वहां से कैब बुक कर गोकर्ण के लिए रवाना हुए तो हमें अन्दाजा नहीं था कि करीब तीन घण्टे का यह सफर इतना खूबसूरत होने वाला है। सहयाद्रि की हरीभरी पहाड़ियों के बीच से गुजरती सड़क के दोनों ओर के नजारे मुग्ध कर देने वाले थे। (Gokarna: “Hidden Gem” of Karnataka)
अपने रमणीय समुद्र तटों और मन्दिरों के लिए जाना जाने वाला गोकर्ण कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले का एक छोटा-सा शान्त शहर है। यहां के शानदार समुद्र तट बरबस ही गोवा की याद दिलाते हैं तो भव्य मन्दिर किसी प्राचीन धर्म नगरी की यात्रा का आनन्द देते हैं। प्रकृति के साथ साक्षात्कार और आध्यात्मिक अनुभूति के लिए हर साल हजारों पर्यटक यहां आते हैं। यहां के समुद्र तटों पर देसी से ज्यादा विदेशी पर्यटक दिखते हैं। हिन्दू श्रद्धालु प्रायः मन्दिरों में दर्शन-पूजन करने से पूर्व स्नान के लिए समुद्र तटों पर जाते हैं। भरपूर प्राकृतिक सौन्दर्य और धार्मिक महत्व के बावजूद गोकर्ण के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। इस कारण इसे कर्नाटक का “छुपा हुआ रत्न” भी कहा जाता है।
गोकर्ण की धार्मिक मान्यता
गोकर्ण (Gokarna) एक तीर्थस्थल है जहां देवाधिदेव महादेव शिव का वास माना गया है। भगवान शिव गाय के कान से प्रकट हुए थे, इसीलिए इस स्थान का नाम गोकर्ण पड़ा। साथ ही एक धारणा के अनुसार गंगावली और अघनाशिनी नदियों के संगम पर बसे इस शहर का आकार भी एक कान जैसा ही है। यहां भगवान शिव के चमत्कारों की अनेक कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता है कि देवता भी यहां महादेव का पूजन करने आते हैं। एक मान्यता यह भी है कि जो भक्त यहां पर तीन दिन तक उपवास करके भगवान शिव कि पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें 10 अश्वमेघ यज्ञों के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।
गोकर्ण के धार्मिक स्थल
यहां के मन्दिरों पर दक्षिण भारत की चालुक्य एवं कदम्ब वस्तु शैलियों का मिश्रित प्रभाव देखने को मिलता है़। यहां का सबसे प्रमुख मन्दिर है महाबलेश्वर मन्दिर। महाबलेश्वर, सेजेश्वर, गुणवन्तेश्वर, मुरुदेश्वर और धारेश्वर मन्दिरों को “पंच महाक्षेत्र” के नाम से जाना जाता है।
महाबलेश्वर मन्दिर :
सह्याद्रि पर स्थित भगवान शिव को समर्पित यह मन्दिर करीब 1,500 साल पुराना है। यह मन्दिर द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है जिसके निर्माण में ग्रेनाइट पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। इसको कर्नाटक के सात मुक्तिस्थलों में से एक माना जाता है। यहां छह फीट लम्बा शिवलिंग है जिसे आत्मालिंग के रूप में जाना जाता है। पौराणिक कथाओं में भी इस शिवलिंग का उल्लेख मिलता है। इस कारण इस मन्दिर को काशी के बाबा विश्वनाथ जितना ही महत्वपूर्ण कहा जाता है। अपनी इसी धार्मिक मान्यता के चलते इस जगह को “दक्षिण का काशी” के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने यह शिवलिंग रावण को उसके साम्राज्य की रक्षा करने के लिए दिया था लेकिन भगवान गणेश और वरुण देव ने कुछ चाल चलकर इसको यहां स्थापित करवा दिया। तमाम कोशिशों के बावजूद रावण इसे निकाल नहीं पाया। तभी से यहां महादेव का वास माना जाता है।
दर्शन-पूजन के लिए मन्दिर में जाने से पहले समुद्र में डुबकी लगाने की परम्परा है। स्नान के पश्चात सामने स्थित महागणपति मन्दिर में दर्शन-पूजन के बाद ही महाबलेश्वर मन्दिर में पूजा-आराधना की जाती है। यहां जींस, ट्रॉउजर और शॉर्ट्स पहन कर आने का निषेध है।
महागणपति मन्दिर : भगवान गणेश को समर्पित यह मन्दिर महाबलेश्वर मन्दिर के पास स्थित और गोकर्ण जाने वाले तीर्थयात्रियों के बीच काफी लोकप्रिय है। दर्शन करने का समय सुबह छह बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और दोपहर तीन बजे से रात नौ बजे के बीच है।
भद्रकाली मन्दिर : भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने त्रिलोक विजयी राक्षस वैत्रासुर को हराने के लिए दुर्गा नामक देवी की रचना की थी। गोकर्ण शहर की रक्षा के लिए देवताओं ने दुर्गा देवी को यहां भद्रकाली के रूप में स्थापित किया। यह महाबलेश्वर मन्दिर से कुछ ही दूरी पर है।
महालासा मन्दिर : भगवान गणेश यहां सिद्धि विनायक के रूप में विराजमान हैं। डेढ़ सौ वर्ष पुराना यह मन्दिर शहर के मुख्य बस स्टेशन से 10 किलोमीटर की दूरी पर है। इस अत्यन्त सुन्दर मन्दिर में गणेश चतुर्थी और श्रावण संकष्टी पर भव्य आयोजन होते हैं।
सोमेश्वर मन्दिर : इस शिव मन्दिर की स्थापना 14वीं शताब्दी में की गयी थी। चोल राजाओं द्वारा बनाये गये इस मन्दिर का चालुक्य राजाओं ने विस्तार किया। विशाल स्तम्भों वाली इस इमारत में गर्भगृह के अलावा कल्याण मण्डप भी है। यह मन्दिर काफी हद तक बंगलुरु के सोमेश्वर मन्दिरों से मिलता-जुलता है।
उमा महेश्वर मन्दिर : भगवान शिव और पर्वती को समर्पित यह मन्दिर शतश्रुंग पर्वत पर कुडले और ओम समुद्र तटों के बीच स्थित है। करीब 15 मिनट की ट्रैकिंग कर इस मन्दिर तक पहुंचा जा सकता है।
मल्लिकार्जुन मन्दिर : इसे वेंकटरमण मन्दिर भी कहा जाता है। इसके गर्भगृह तक पहुंचने के मार्ग पर कई अलंकृत स्तम्भ हैं। इस मन्दिर में गैर-मूल प्रवासियों का प्रवेश निषिद्ध है लेकिन वे बाहर से दर्शन कर सकते हैं।
कोटि तीर्थ : व्रत-उपवास और धार्मिक आयोजनों के दौरान बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं। श्रद्धालु यहां पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। यहां मूर्ति विसर्जन भी किया जाता है। कोटि तीर्थ गोकर्ण से करीब ढाई किमी दूर स्थित है।
प्राकृतिक पर्यटन स्थल
ओम बीच : इस बीच का आकार प्राकृतिक तौर पर ही ओम जैसा है, इसलिए इसे ओम बीच के नाम से जाना जाता है। गोकर्ण शहर से करीब छह किलोमीटर दूर स्थित इस बीच पर बनाना बोट राइड्स, बम्पर राइड्स, कयाकिंग, जेट-स्कीइंग, सर्फिंग आदि एडवेंचर एक्टिविटी की सुविधा है।
कुडले बीच : गोकर्ण का यह अत्यन्त लोकप्रिय टूरिस्ट डेस्टीनेशन ताड़ के वृक्षों से घिरा है। मून बीच और ओम बीच से कुछ ही दूरी पर स्थित इस समुद्र तट पर सूर्योद्य और सूर्यास्त दोनों का नजारा अत्यन्त सुन्दर होता है। इस एक किलोमीटर लम्बे साफ-सुथरे सफेद रेतीले समुद्र तट पर स्थानीय लोगों के साथ ही पर्यटक भी सुबह-शाम टहलते और योगाभ्यास करते हुए दिखते हैं। यहां पर्ययकों के ठहरने के लिए कई झोपड़ियां बनायी गयी हैं। आसपास कई फूड स्टाल भी हैं।
हाफ मून बीच : इस बीच को ओम चट्टान से अलग करके बनाया गया है जो बहुत ही छोटी और शान्त जगह है। अनन्त समुद्र और घने जंगल से घिरे इस बीच पर तैराकी, कैम्पिंग, पैडल बोट, केनोईंग आदि का आनन्द लिया जा सकता है।
पैराडाइज बीच : इसे फुल मून बीच भी कहा जाता है जिसका अधिकतर हिस्सा चट्टानों से घिरा हुआ है, बाकी भाग सफ़ेद रेत से ढका है। यह एक फ्रेश वाटर बीच है। यह काफी दुर्गम समुद्र तट है। अन्य समुद्र तटों से नाव के जरिये अथवा ट्रैकिंग करके ही यहां पहुंचा जा सकता है।
याना गुफाएं : सहयाद्रि पर्वतमाला के जंगलों के बीच ये गुफाएं गोकर्ण शहर से करीब 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यह जगह एक पुराने मन्दिर, क्रिस्टलीय लाइमस्टोन की संरचना, पहाडों और झरनों के लिए प्रसिद्ध है। यहां एक गुफा में शिवलिंग है जिसे गंगोद्भव कहते हैं। इसके अलावा यहां देवी चण्डिका की कांस्य प्रतिमा भी है। वन्य जीवन, रोमांच और धर्मस्थलों के लिए प्रसिद्ध याना गुफाएं ट्रैकिंग और हाइकिंग के लिए एक आदर्श स्थान हैं।
लाल्गुली जलप्रपात : गोकर्ण से करीब 98 किलोमीटर दूर स्थित यह जलप्रपात उत्तर कन्नड जिले का एक कम ज्ञात लेकिन सुन्दर पर्यटन स्थल है। यहां काली नदी का पानी कई स्थानों पर चट्टानों से टकराते हुए नीचे गिरता है। यह जलप्रपात 61 से 91 मीटर तक ऊंचा है। अक्टूबर से दिसम्बर के बीच इसकी सुन्दरता देखने लायक होती है।
गोकर्ण की ऐतिहासिक धरोहर
सोलहवीं सदी में बनाया गया मिरजन किला गोकर्ण (Gokarna) शहर से करीब 11 किमी की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 66 पर स्थित है। यह अघनाशिनी नदी के तट पर करीब चार हेक्टेयर में फैला हुआ है। यह किला 16वीं और 17वीं शताब्दी में कई युद्धों का गवाह रहा है। यह सन् 1785 तक कार्यात्मक था। अंग्रेजों ने अपने कब्जे में लेने के बाद इसका शस्त्रागार के तौर पर इस्तेमाल किया।
गोकर्ण घूमने का सबसे अच्छा समय
गोकर्ण (Gokarna) समेत लगभग पूरे कर्नाटक में घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच का है। मानसून के मौसम में गोकर्ण क्षेत्र में भारी बारिश होती है और उमस वाली गर्मी पड़ती है। इस दौरान ट्रैकिंग करना तथा नदी-प्रपातों के पास जाना खतरनाक हो सकता है। अप्रैल से मई के बीच यहां के कई स्थानों पर तापमान 40 डिग्री से भी अधिक हो जाता है।
ऐसे पहुंचें गोकर्ण
वायु मार्ग : निकटतम हवाईअड्डा गोवा का डैबोलिम इण्टरनेशनल एयरपोर्ट यहां से करीब 149 किलोमीटर दूर है। एयरपोर्ट से आप कैब या टैक्सी ले सकते हैं अथवा पणजी से गोकर्ण की बस पकड़ सकते हैं।
रेल मार्ग : गोकर्ण रोड रेलवे स्टेशन पर गिनीचुनी ट्रेनों का ही ठहराव है। निकटत बड़ा रेलवे स्टेशन अंकोला यहां से करीब 22 किलोमीटर दूर है। नयी दिल्ली, बंगलुरु, मुम्बई, पुणे, नागपुर, जयपुर आदि से अंकोला के लिए ट्रेन मिलती हैं। कारवार रेलवे स्टेशन गोकर्ण से करीब 65 किमी पड़ता है।
सड़क मार्ग : कारवार से गोकर्ण पहुंचने के लिए करीब 61 किलोमीटर का सफर करना पड़ता है। यह अंकोला से लगभग 26 किमी जबकि गोवा के पणजी से करीब 154 किलोमीटर पड़ता है। बंगलुरु, मंगलुरु, मैसूर, कोयम्बटूर और रत्नागिरि से भी यहां तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
It was an amazing experience for me. Beautifully written.
Beautifully description of one of the hidden gems of India.
Great information about Gokarna and has covered every minute detail.
Such a pertinent and heavenly description
A beautiful description of the gorgeous and heavenly place.
Helpful and beautiful description about the heavenly destination to visit.
excited to visit this place soon after reading this
[…] गोकर्ण : कर्नाटक का “छुपा हुआ रत्न” […]
[…] गोकर्ण : कर्नाटक का “छुपा हुआ रत्न” […]
[…] गोकर्ण : कर्नाटक का “छुपा हुआ रत्न” […]
m53mrq