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Supreme Court

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा कानून 2005 (Domestic Violence Act 2005) भारतीय संविधान में महिलाओं को मिले अधिकारों की रक्षा के लिए है और यह सभी महिलाओं पर समान रूप से लागू होता है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की अगुवाई वाली बेंच ने गुरुवार को कहा कि यह कानून एक सिविल कोड की तरह है और इस तरह से यह भारत की सभी महिलाओं पर लागू होता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि महिला किस धर्म या समुदाय से ताल्लुक रखती है। यह तमाम धर्म और समुदायों से ताल्लुक रखने वाली महिलाओं पर लागू होता है।

यह अधिनियम नागरिक संहिता का एक हिस्सा है, जो भारत में हर महिला पर लागू होता है, चाहे उसकी धार्मिक संबद्धता और/या सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो, जिससे संविधान के तहत गारंटीकृत उसके अधिकारों की अधिक प्रभावी सुरक्षा हो और घरेलू संबंधों में होने वाली घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की सुरक्षा हो सके।

                                            -सुप्रीम कोर्ट की बेंच

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा कानून 2005 (Domestic Violence Act 2005) की धारा-25 के तहत अर्जी दाखिल हो सकती है लेकिन यह अर्जी तब दाखिल हो सकती है जब परिस्थितियों में बदलाव हुआ हो। परिस्थितियों में बदलाव के बाद आदेश में बदलाव के लिए याचिका दायर की जा सकती है। परिस्थितियों में बदलाव का मतलब यहां आय में बदलाव आदि से है। यानी धारा-25 (2) का इस्तेमाल तब हो सकता है जब परिस्थितियों में बदलाव हो।

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बेंच ने कहा है कि पति इसलिए अर्जी दाखिल नहीं कर सकता है कि उसके द्वारा भुगतान कर दिए गए पैसे को रिफंड किया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपीलीय कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।

यह था मामला

दरअसल, कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश को एक महिला ने चुनौती दी थी। उसने फरवरी 2015 में गुजारा भत्ता आदि के लिए डीवी एक्ट यानी घरेलू हिंसा कानून 2005 के तहत मजिस्ट्रेट कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। मजिस्ट्रेट कोर्ट ने अर्जी स्वीकार कर ली और प्रति महीने 12,000 रुपये गुजारा भत्ता और एक लाख रुपये मुआवजे भुगतान किए जाने का निर्देश दिया था। महिला के पति ने इस फैसले को चुनौती दी। अपीलीय कोर्ट ने देरी के आधार पर अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद पति ने दोबारा अर्जी दाखिल की। तब पति की अर्जी अपीलीय कोर्ट ने स्वीकार कर ली। निचली अदालत स्थित मजिस्ट्रेट को अपीलीय कोर्ट ने मामला भेजा और फिर से आवेदन पर विचार करने को कहा। इस फैसले को महिला ने हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट कोर्ट को निर्देश दिया कि वह महिला के पति द्वारा डीवी एक्ट की धारा-25 के तहत दायर याचिका पर दोबारा से विचार करे।

मुस्लिम महिलाओं को घरेलू हिंसा एक्ट से अलग नहीं कर सकते :बॉम्बे हाई कोर्ट

 बॉम्बे हाई कोर्ट ने वर्ष 2018 में दिए गए अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा था कि घरेलू हिंसा एक्ट के तहत सुरक्षा मांग रही मुस्लिम महिलाओं को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने मुंबई निवासी मुस्लिम युवक की याचिका खारिज करते हुए उसे अपनी पत्नी और दो बच्चों के लिए 1.05 लाख रुपये का मासिक भत्ता और घर का किराया देने का आदेश दिया। हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले का समर्थन किया है। युवक का दावा था कि दंपती इस्लामिक अलवी बोहरा समुदाय के ताल्लुक रखते हैं जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अधीन है। इसलिए विशेष घरेलू हिंसा निषेध कानून उन पर लागू नहीं होता।

 

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