यह गिरोह पीड़ितों को “डिजिटली अरेस्ट” कर लेता था। वे वीडियो कॉल के ज़रिए पीड़ितों पर नज़र रखते थे और उन्हें डरा-धमका कर रुपयों की मांग करते थे।
अहमदाबाद। (Digital arrest racket busted) अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने “डिजिटल अरेस्ट” के नाम पर साइबर फ्रॉड (cyber fraud) करने वाले एक बड़े रैकेट का पर्दाफाश किया है। कई राज्यों में हुई छापेमारी में 4 ताइवानी नागरिकों समेत 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इस गिरोह के लोग खुद को सरकारी अधिकारी बताकर लोगों को डराते थे और फिर उनसे मोटी रकम ऐंठ लेते थे। इनका बुरा समय तब शुरू हुआ जब एक बुजुर्ग ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने बताया कि कुछ लोग खुद को ट्राई, सीबीआई और साइबर क्राइम ब्रांच के अधिकारी बताकर उन्हें डरा रहे थे। वे उन पर आरोप लगा रहे थे कि उनके बैंक अकाउंट से अवैध लेनदेन हो रहा है। डर के मारे उन्होंने उनके (साइबर ठगों) के कहने पर 79.34 लाख रुपये अलग-अलग बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिए।
पुलिस ने बताया कि यह गिरोह अलग-अलग कॉल सेंटरों से अपना काम करता था। छापेमारी के दौरान पुलिस ने 12.75 लाख रुपये नकद, 761 सिम कार्ड, 120 मोबाइल फोन, 96 चेक बुक, 92 डेबिट और क्रेडिट कार्ड तथा 42 बैंक पासबुक बरामद की हैं।
पुलिस कमिश्नर शरद सिंघल ने बताया कि गिरोह पीड़ितों को “डिजिटली अरेस्ट” (Digital arrest) कर लेता था। वे वीडियो कॉल के ज़रिए पीड़ितों पर नज़र रखते थे और उन्हें डरा-धमका कर रुपयों की मांग करते थे। पीड़ित बुजुर्ग ने शिकायत दर्ज कराई थी कि कुछ लोग खुद को ट्राई, सीबीआई और साइबर क्राइम ब्रांच के अधिकारी बता रहे हैं। वे आरोप लगा रहे थे कि उनके बैंक खाते से अवैध लेनदेन हो रहा है। शिकायत मिलने के बाद हमारी टीम हरकत में आई और गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, कर्नाटक, ओडिशा और महाराष्ट्र में छापेमारी की गई। इस कार्रवाई में 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें ताइवान के 4 नागरिक भी शामिल हैं। हमें लगता है कि इस गिरोह ने अब तक लगभग 1,000 लोगों को अपना शिकार बनाया होगा।
गिरफ्तार किए गए ताइवानियों की पहचान मू ची सुंग (42), चांग हू युन (33), वांग चुन वेई (26) और शेन वेई (35) के रूप में हुई है। बाकी 13 आरोपी गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड, ओडिशा और राजस्थान के रहने वाले हैं। मू ची सुंग और चांग हू युन को दिल्ली के ताज पैलेस होटल से पकड़ा गया जबकि वांग चुन वेई और शेन वेई को बंगलुरु में खोज निकाला गया। जांच में पता चला है कि ताइवान के ये चारों नागरिक पिछले एक साल से भारत आ-जा रहे थे। इन्होंने ही गिरोह के बाकी सदस्यों को रुपयों के लेन-देन के लिए मोबाइल ऐप और दूसरी तकनीकी मदद मुहैया कराई थी।
खुद ही बनाया था ठगी का ऐप
शरद सिंघल ने बताया कि जिन मोबाइल ऐप का इस्तेमाल यह गिरोह कर रहा था, उसे ताइवान के इन चारों लोगों ने ही बनाया था। इन्होंने अपने इस सिस्टम में ऑनलाइन वॉलेट भी जोड़ रखे थे। पीड़ितों से मिले रुपयों को इसी ऐप के जरिए दूसरे बैंक खातों और दुबई के क्रिप्टो खातों में भेजा जाता था। इन्हें हर ट्रांजेक्शन पर कमीशन मिलता था जो हवाला के जरिए दिया जाता था।